अमरीका में नस्लभेद और ख़तरे में सपना।
28 अगस्त वर्ष 1963 को वाशिंग्टन डीसी में अब्राहम लिंकन के स्मारक के पास दो लाख लोगों ने प्रदर्शन किया था।
प्रदर्शनकारियों का नारा था “रोज़गार और आज़ादी”। प्रदर्शनकारियों की अपार भीड़ के मध्य श्याम वर्ण के मार्टिन लूथर किंग ने एतिहासिक भाषण दिया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि हमें निराशा की खाई में नहीं तैरना चाहिये। आज हमारा संबोधन आप लोगों से है। मेरे दोस्तो यद्यपि हमें कठिनाइयों का सामना है परंतु आज भी हमारी कुछ आकांक्षाएं हैं। यह वे आकांक्षाए हैं जिसकी जड़ें अमेरिकी समाज की गहराइयों में हैं। अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता ने उसके बाद अपनी आकांक्षाओं के बारे में कहाः मेरी आकांक्षा यह है कि एक दिन आयेगा जब अतीत में दास बनाये जाने वालों और दास बनाने वालों की संताने जार्जिया के लाल पहाड़ के टीलों पर भाईचारे के साथ मिलकर एक दूसरे के साथ बैठेंगी। मेरी आकांक्षा यह है कि मेरे चार छोटे बच्चे एक दिन उस देश में जीवन व्यतीत करेंगे जहां उनके रंग की वजह से नहीं बल्कि उनकी योग्यता को दृष्टि में रखकर उनके व्यक्तित्व के साथ व्यवहार किया जायेगा।
मेरी आकांक्षा है कि अंततः एक दिन खाइयां ऊपर आ जायेंगी और टीले नीचे चले जायेंगे यानी ऊंचे- नीचे बराबर हो जायेंगे असमानता समानता में बदल जायेगी। ईश्वर की महानता स्पष्ट हो जायेगी और समस्त इंसान एक दूसरे के साथ मिलकर उसे देखेंगे।
यह हमारी आशा है। यह वह विश्वास है जिसे मैं अपने साथ दक्षिणी अमेरिका ले जा रहा हूं। इस विश्वास के साथ हम निराशा को आशा में परिवर्तित कर सकते हैं। इस आशा के साथ हम अपने देश में मौजूद असमानता को सुन्दर बंधुत्व में बदल सकते हैं। इस विश्वास के साथ हम एक दूसरे के साथ काम कर सकते हैं। एक दूसरे के साथ दुआ कर सकते हैं, एक दूसरे के साथ संघर्ष कर सकते हैं, एक दूसरे के साथ जेल जा सकते हैं एक दूसरे के साथ आज़ादी की वकालत कर सकते हैं। हमें पूरा विश्वास है कि एक दिन हमारी आज़ादी का दिन अवश्य आयेगा।“
अलबत्ता मार्टिन लूथर किंग इतने दिनों तक जीवित नहीं रह सके कि वह अमेरिका में नस्लभेद के स्पष्टतम नमूने को ख़त्म होने को अपनी आंखों से देख सकें। नस्ली भेदभाव की वजह से अमेरिका के कुछ रेस्तरां में काले लोगों का जाना और कुत्तों को साथ में ले जाना मना था। इसी तरह नस्ली भेदभाव की विचार धारा इस बात की अनुमति नहीं देती थी कि काले छात्र गोरे छात्रों के साथ एक मेज़ पर बैठें और एक साथ सार्वजनिक स्वीमिंग पूल में नहायें।
बहरहाल मार्टिन लूथर किंग ने 28 अगस्त वर्ष 1963 को नस्ल भेद के ख़िलाफ़ जो भाषण दिया था वह अमेरिकी इतिहास में अमर हो गया। कहा जाता है कि “मेरी एक आकांक्षा है” शीर्षक के अंतर्गत मार्टिन लूथर ने जो भाषण दिया था उसे जार्ज वाशिंग्टन के विदाई भाषण और गटीस्बर्ग में अब्राहम लिंकन के भाषण के बाद अमेरिकी इतिहास का तीसरा सबसे प्रभावी व महत्वपूर्ण भाषण माना जाता है। इसी कारण हर साल 28 अगस्त की याद मनायी जाती है विशेषकर समानता और नस्ली भेद की समाप्ति के इच्छुक गुटों की ओर से।
इसी प्रकार 28 अगस्त का दिन अमेरिका में नस्लभेद की जड़ों की समीक्षा करने और नस्लभेदी व्यवहार से मुकाबले का बेहतरीन अवसर है। इसी प्रकार 28 अगस्त का दिन उस समाज की अभिलाषा का दिन है जिसमें किसी प्रकार की असमानता न हो।
मार्टिन लूथर किंग ने वाशिंग्टन में “मेरी एक आकांक्षा है” शीर्षक के अंतर्गत जो भाषण दिया था उसके 54 साल बीत जाने के बाद अमेरिका में बहुत से भेदभाव समाप्त हो गये और श्याम वर्ण का एक व्यक्ति अमेरिका का राष्ट्रपति भी बन चुका है फिर भी अमेरिकी समाज में भेदभाव की बुरी परंपरा आज भी जारी है। हालिया वर्षों में अमेरिकी पुलिस कर्मियों ने श्याम वर्ण के युवाओं पर गोली चलाकर और हत्यारे व ग़ैर हत्यारे विभिन्न पुलिस कर्मियों के बरी होने का आदेश जारी करके अमेरिका में नस्लीभेद भाव का नया रूप पेश किया है। अगर अतीत में सामान्य लोग अश्वेतों के साथ नस्ली भेदभाव और उनके साथ हिंसात्मक व्यवहार करते थे तो आज कानून और न्याय स्थापित करने का दावा करने वाले अमेरिकी कर्मचारियों और पुलिस कर्मीयों ने अपने व्यवहार से नस्ल भेदी सोच का परिचय दिया है। मौजूद आंकड़े इस बात के सूचक हैं कि इस समय अमेरिका में श्याम वर्ण के युवाओं को गोरे लोगों की अपेक्षा पुलिस की फायरिंग का 9 गुना अधिक खतरा है। दूसरे शब्दों में श्याम वर्ण का होना ही अमेरिका में मारे जाने के लिए काफी है। यह एसी स्थिति में है जब मेधावी व प्रतिभाशाली अश्वेत लोगों का जीवन बेहतर तो हो गया है परंतु श्याम वर्ण के करोड़ों लोग अब भी निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं और उनकी दशा परिवर्तित नहीं हुई है। आज अमेरिकी समाज में एक ही तरह के काम को दो व्यक्ति अंजाम देते हैं एक गोरा और दूसरा काला पर गोरे की अपेक्षा श्याम वर्ण के व्यक्ति को कम वेतन दिया जाता है। इसी तरह सार्वजनिक कल्याण की सेवाएं जैसे मकान, गाड़ी और शेयर ख़रीदने की सुविधा गोरों की अपेक्षा श्याम वर्ण के लोगों को कम है। अमेरिकी जेल आम तौर पर श्याम वर्ण के लोगों से भरे हैं। जिन लोगों को सज़ा दी गयी है या लंबे समय तक कारावास का दंड दिया गया है उनमें सबसे अधिक संख्या श्याम वर्ण के लोगों की है।
हालिया दिनों में जो चीज़ अतीत की नस्ल भेदी असमानता से कहीं अधिक चिंताजनक रही है वह उस धड़े का दोबारा जीवित हो जाना है जिसका मानना है कि गोरे, श्याम वर्ण के लोगों से श्रेष्ठ होते हैं। शालेतवेल की घटना ने दर्शा दिया कि न केवल अमेरिकी समाज मार्टिन लूथर के विचारों से अभी बहुत दूर है बल्कि आशंका इस बात की है कि इस देश में नागरिक अधिकारों के लिए होने वाली लड़ाइयां दोबारा न आरंभ हो जायें। 1950 और 1960 के दशकों में अमेरिका के अधिकांश नगरों में नस्लभेद के समर्थकों और विरोधी गुटों के मध्य लड़ाइयां होती थीं। उन वर्षों में जिन बसों में नस्लभेद के विरोधी गोरे लोग सवार होते थे वे भी अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में नस्लभेदी गुटों के हमलों से सुरक्षित नहीं थे और दोनों पक्षों के मध्य होने वाली लड़ाई में कुछ लोग हताहत या घायल होते थे। अंततः नोबल पुरस्कार से सम्मानित मार्टिन लूथर की भी इसी नस्लभेदी गुट ने हत्या कर दी। नागरिक अधिकार आंदोलन के लगभग 50 वर्ष बीत जाने के बाद उस समय की घरेलू लड़ाइयों के प्रतीकों की सुरक्षा के बहाने एक बार फिर नस्लभेदी और कुछ सशस्त्र गुट भी सक्रिय हो गये हैं। वे इस देश में नस्लभेदी कार्यवाहियों को गति प्रदान करने की चेष्टा में हैं। यह काम वर्ष 2015 में अमेरिका के दक्षिणी राज्य कैरोलिना में एक नस्लभेदी युवा के उस कार्य से शुरु हुआ जिसमें श्याम वर्ण के नौ युवा चार्ल्सटन नगर में श्याम वर्ण के लोगों के लिए विशेष गिरजाघर में प्रार्थना व उपासना कर रहे थे और उन सबको गोलियों से भून दिया गया। चार्ल्सटन नगर की आतंकवादी घटना उन अश्वेत गुटों के लिए ख़तरे की घंटी है जो समानता के पक्षधर हैं और इससे पहले कि नस्लभेदी और अतिवादी तत्व दोबारा सक्रिय हो जायें और यह विषय विषम रूप धारण कर जाये उसकी रोकथाम करें। इसी कारण समानता के पक्षधर लोगों व युवाओं ने दासता और आंतरिक लड़ाइयों के प्रतीकों को समाप्त करने के लिए विस्तृत पैमाने अभियान आरंभ कर दिया है। उनके इस कार्य को अतिवादी व नस्लभेदों गुटों व तत्वों की कड़ी प्रतिक्रिया का सामना हुआ और उसके परिणाम में अमेरिका के शालेतवेल नगर में दोनों पक्षों के मध्य झड़प हो गयी। अमेरिका में दास बनाये जाने के पक्षधर कमांडर राबर्ट ई ली की प्रतीमा की सुरक्षा को लेकर इसी नाम के पार्क में होने वाला विवाद शालेतवेल नगर में होने वाली झड़प का बहाना बन गया और अमेरिका के अतिवादी गुटों ने हालिया दशकों में समानता के पक्षधर गुटों को लक्ष्य बनाया। अमेरिका में अतिवादी गुटों के अनुसार वे लोग जिनका रंग गोरा न हो और जो यूरोपीय मूल के न हों तो उन्हें अमेरिकी नहीं समझा जायेगा और उनका अमेरिका में कोई स्थान नहीं है जबकि इस समय अमेरिकी समाज में नागरिक अधिकार आंदोलन के दौर की अपेक्षा कई गुना अधिक विभिन्न जातियों व संस्कृतियों के लोग रहते हैं।
जिस चीज़ से मार्टिन लूथर की आकांक्षा को सबसे अधिक ख़तरा है वह वाइट हाउस में एसे व्यक्ति की उपस्थिति है जो अतिवादी और नस्लभेदी विचारधारा रखता है। डोनाल्ड ट्रम्प इसी अतिवादी गुट की सहायता से सत्ता में पहुंचे और आम जनमत पर इस अतिवादी गुट के दबाव को कम करने की दिशा में वह कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर शालेतवेल नगर की घटना पर पहली प्रतिक्रिया में डोनाल्ड ट्रम्प ने दोनों गुटों की भर्त्सना की और उसके कुछ दिन बाद शालेतवेल नगर में अतिवादियों की ओर से की जाने वाली हिंसा का औचित्य दर्शाया। ट्रंप ने उसका समर्थन करते हुए कहा कि जनरल ली की भांति जार्ज वाशिंग्टन और थामस जेफरसन भी दासता के पक्षधर थे। यद्यपि उनकी यह बात अमेरिका की एतिहासिक वास्तिकता के अनुरुप है पंरतु उनके इस बयान को नस्लभेदियों के दृष्टिकोणों के समर्थन के रूप में देखा गया और अतिवादी गुटों की ओर से उनकी सराहना की गयी। अमेरिका में इस प्रकार की प्रक्रिया के जारी रहने से मार्टिन लूथर किंग की उस आकांक्षा पर पानी फिर जायेगा जिसमें उन्होंने कहा था कि अतीत में दास बनने वालों और दास बनाने वालों की संतानें जार्जिया पर्वत के लाल टीलों पर भाईचारे के रूप में एक साथ बैठेंगी।