Sep १७, २०१७ १३:५० Asia/Kolkata

हमने इस बात का प्रयास किया कि आपको तकफ़ीरी विचारधारा की वास्तविकता से अवगत करवाएं।

हमने आपको बताया कि धर्म के नाम पर भ्रष्ट विचारधारा किस प्रकार के लोगों की हत्याएं कर रही है। कार्यक्रमों को सुनकर यह बात तो आप समझ ही गए होंगे तकफ़ीरी विचारधारा का संबन्ध पवित्र क़ुरआन या पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं से कदापि नहीं है। तकफ़ीरी विचारधारा का केन्द्रीय बिंदु यह है कि जो भी इस विचारधारा का विरोध करे उसे धर्म विरोधी बताकर उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाए।

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यही कारण है कि तकफ़ारी विचारधारा से प्रभावित आतंकवादी गुट, अपने विरोधियों को इस्लाम का शत्रु बताकर उनकी हत्या करने को वैध समझते हैं। आपने भी देखा होगा कि आतंकवादी गुटों विशेषकर दाइश ने इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, यमन, लीबिया और कई अन्य देशों में किस प्रकार से जधन्य अपराध किये। अपनी समस्त हिंसक कार्यवाहियों को दाइश ने इस्लाम के नाम पर अंजाम दिया जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस्लाम की छवि धूमिल हुई है। विडंबना यह है कि दाइश जैसे आतंकवादी गुट, उस धर्म के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं जो हिंसा का विरोधी और शांति का इच्छुक है।

दाइश ने अपनी हिंसक एवं अमानवीय गतिविधियों के माध्यम से पूरे संसार में इस्लाम की तस्वीर ख़राब करने के साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पवित्र छवि को भी बहुत गहरा आघात लगाया है। एक सच्चा मुसलमान होने की नाते हमारी यह ज़िम्मेदारी बनती है कि सुनियोजित ढंग से उनकी बिगाड़ी जाने वाली छवि को सही करने में हम एक-दूसरे का सहयोग करें।

यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि दाइश और इस जैसी विचारधाराएं, धर्म की उपज नहीं हैं। इन भ्रष्ट विचारधाराओं को पैदा किया गया है। दाइश जैसे आतंकवादी गुटों को जन्म देने का मुख्य कारण मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करना और इस्लाम को बदनाम करना है। बहुत से विश्वसनीय टीकाकारों का कहना है कि इस प्रकार के अतिवादी गुटों को पैदा करने से पश्चिम का उद्देश्य, इस्लामी जगत में मतभेद पैलाने के साथ ही इस्लामी देशों में अपने प्रभाव को अधिक बढ़ाना है। कुछ लोगों का मानना है कि दाइश जैसे गुटों को प्रयोग करके पश्चिम , मध्यपूर्व में अपनी नीतियों को लागू करना चाहता है। पश्चिम ने इस्लाम को बदनाम करने के लिए इस्लामोफ़ोबिया का जो मुद्दा उठाकर दुष्प्रचार करना आरंभ किया  है उस दुष्प्रचार के लिए दाइश की कार्यवाहियां पश्चिम के हित में हैं। दूसरी ओर इस्लामी देशों में व्याप्त अशांति से सबसे अधिक लाभ ज़ायोनी शासन को हो रहा है। दाइश की हिंसक कार्यवाहियों को पेश करके पश्चिम, इस्लाम की छवि को धूमिल करने में लगा हुआ है जबकि दाइश का इस्लाम से कोई संबन्ध नहीं है।

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दाइश एक अतिवादी और रूढ़ीवादी गुट है। सामान्यत: वह आधुनिकीकरण का भी विरोधी है किंतु वे इंटरनेट का प्रयोग करके अपना प्रचार कर रहा है। दाइश बिना किसी विरोध और किसी भी प्रकार की सीमा के बिना इंटरनेत और संचार माध्यमों का खुलकर प्रयोग कर रहा है। इससे पता चलता है कि कहीं कुछ गड़बड़ी अवश्य है। दाइश के सदस्य, सामूहिक संचार माध्यम, इंटरनेट, फेसबुक और इंस्टाग्राम का प्रयोग करते हुए अपनी विचारधारा को लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

आतंकवादी गुट दाइश, दाबिक़ नामक पत्रिका प्रकाशित करके उसका व्यापक स्तर पर प्रचार व प्रसार करता है। इस पत्रिका का दाइश नियंत्रित क्षेत्रों में वितरण किया जाता है। अपने कार्यक्रमों के लिए दाइश, दक्ष पत्रकारों , निर्माताओं और निर्दशकों का प्रयोग करता है। जर्मनी की एक पत्रिका श्पैगल ने इस बात का रह्सयोद्घाटन किया है कि यूरोपीय कंपनियों ने सेटेलाइट के माध्यम से सीरिया और इराक़ में दाइश के लिए इंटरनेट तक पहुंच की सुविधा उपलब्ध कराई है। श्पैगल की रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय , उपग्रह के माध्यम से सीरिया और इराक़ में दाइश को इंटरनेट की सेवाएं दे रहे हैं।

इस जर्मनी पत्रिका के अनुसार ब्रिटेन की Avanti Communications और फ़्रांस की Eutelsat कंपनियां, दाइश के साथ सहयोग कर रही हैं।

दाइश , आधुनिक संचार माध्यम का प्रयोग बहुत आयामी उद्देश्यों के लिए करता है। जहां पर एक ओर वह इससे अपना प्रचार करता है वहीं पर अपने आतंक और विजय को बढ़ाचढाकर भी पेश करता है ताकि लोगों में उसकी दहशत बनी रहे। इस प्रकार वह मनोवैज्ञानिक ढंग से अपने मुक़ाबले वालों का मनोबल तोड़ना चाहता है। यह अतिवादी गुट विश्व के षड़यंत्रकारियों और अत्याचारियों से मुक़ाबला करने के बजाए निर्दोष मुसलमानों को अपने हमलों का निशानी बनाए हुए है। इस प्रकार से पश्चिम की वह मनोकामना पूरी हुई जिसकी उसे वर्षों से प्रतीक्षा थी अर्थात मुसलमानों के बीच मतभेद और ख़नख़राबा।

दाइश का मुक़ाबला करने के लिए सबसे पहले तो मुसलमानों को अपने मतभेद दूर करने चाहिए। इस बातों को देखते हुए समस्त इस्लामी पंथों के धर्मगुरूओं का दायित्व बनता है कि वे इस षड़यंत्र को समझते हुए संयुक्त रूप से इसका मुक़ाबला करें। उनका यह कर्तव्य है कि इस्लाम की छवि को बिगाड़ने वालों को मुंहतोड़ जवाब दें क्योंकि दाइश का लक्ष्य कोई एक इस्लामी पंथ नहीं बल्कि पूरा इस्लाम है। दाइश, बिना किसी कारण बहुत ही निर्दयता से मुसलमानों का खुलकर जनसंहार कर रहा है। मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने के लिए दाइश एक काम तो यह करता है कि वह विभिन्न पंथों विशेषकर शिया मुसलमानों की आस्था के बारे में दुष्प्रचार करके दूसरे मुलमानों को गुमराह करता है। इसका सही जवाब उचित ढंग से धर्मगुरू ही दे सकते हैं। उनको इसके लिए संचार माध्यमों का प्रयोग करके लोगों को वास्तविकता बतानी चाहिए। हालांकि इराक़ और सीरिया में तकफ़ीरी आतंकवादी विशेषकर दाइश का दायरा सिकुड़ता जा रहा है किंतु पश्चिम अभी भी मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने और इस्लाम की छवि बिगाड़ने में लगा हुआ है।

दाइश और पश्चिम द्वारा इस्लामोफ़ोबिया को बढ़ावा देने का मुक़ाबला करने के लिए धर्मगुरूओं, विचारकों, बुद्धिजीवियों और समस्त इस्लामी संगठनों को राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होना होगा ताकि इस बुराई को ख़त्म किया जा सके। इसके लिए जिससे जो भी सके वह उसे करे।

 

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