हालीवूड में भेदभाव- 1
संयुक्त राज्य अमरीका में रहने वाले अफ़्रीकियों को ब्लैक अमेरिकन्स भी कहा जाता है।
वास्तव में वे अफ़्रीकी मूल के अमरीकी हैं जो बहुत लंबे समय से अमरीका में रह रहे हैं। सन 2017 तक उनकी संख्या लगभग चार करोड़ बीस लाख थी। इस हिसाब से अमरीका में रहने वाले अफ़्रीकी मूल के अमरीकी, वहां की जनसंख्या का 12.5 प्रतिशत हैं।

अमरीका में रहने वाले अफ़्रीकियों को वहां पर आंरभ से ही नस्लवाद या जातीय भेदभाव का सामना रहा है। 17वीं से 19वीं शताब्दी के दौरान दास प्रथा के काल में अफ़्रीकियों या श्यामवर्ण वालों ने श्वेत वर्ण के लोगों के तरह-तरह के अत्याचार सहन किये हैं। अमरीका में सन 1865 में दास प्रथा के अंत की आधिकारिक घोषणा और श्वेतों के नागरिक अधिकार संगठन के गठन के आरंभ तक अमरीका में रहने वाले काले लोगों को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, स्वास्थ्य, रोज़गार और कई अन्य क्षेत्रों में नस्लवाद का खुलकर सामना रहा है। अमरीका में रहने वाले अफ़्रीकी मूल के लोग, सन 1955 से 1968 के बीच कठिन संघर्ष करके अपने कुछ नागरिक अधिकारों को क़ानूनी रूप दिलवाने में सफल रहे। किंतु उन्हें अभी भी अमरीका के भीतर नाना प्रकार से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। कार्यक्रम में यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि हालीवुड में किस तरह से नस्लवाद को थोपा जाता है। इससे आपको यह समझ में आएगा कि हालीवुड की फ़िल्मों में फ़िल्मी अंदाज़ में गोरे लोगों के मुक़ाबले में काले लोगों को किस तरह से अपमानित किया जाता है।
आरंभ में हम यह देखेंगे कि हालीवुड के भीतर अफ्रीकी मूल के अमरीकियों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है। उन काले लोगों को राह में जो हालीवुड में काम करने के इच्छुक हैं कई प्रकार की बाधाए हैं जैसे उनको बहुत ही कम फ़िल्मों के लिए भूमिकाएं दी जाती हैं। इसका कारण भी नस्लभेद है। दूसरे यह कि शिक्षा की सुविधाओं के अभाव के कारण वे अधिक पढ़ नहीं पाते जो आगे चलकर एक बाधा के रूप में उनके सामने आता है। एक कारण यह भी है कि लंबे समय से चल रहे नस्लवाद के कारण अधिकांश कालों में यह भावना घर कर गई है कि इस राह में आगे बढ़ना बेकार है क्योंकि वहां पर वर्चस्व तो गोरे लोगों का है इसलिए भी वे आगे क़दम नहीं बढ़ाते।
वैसे इस भावना के बावजूद अध्ययन करने से पता चलता है कि हालीवुड में काले लोगों वालों की तुलना में गोरी चमड़ी वालों को प्राथमिकता दी जाती रही है जो अब भी जारी है। आरंभ में तो कालों को हालीवुड में पूरी तरह से अनदेखा किया जाता था। पहली बार हालीवुड में अश्वेत लोग उस समय दिखाई दिये जब हालीवुड सिनेमा को आंरभ हुए दो दशकों का समय बीत चुका था। “फ्रेडी वाशिंग्टन” ने पहली बार 1950 में हालीवुड में क़दम रखा। उन्होंने गोरी चमड़ी वाले सिनेमा कलाकारों की तुलना में बहुत ही कम पैसों में काम करना आरंभ किया था। पचास और साठ के दशक के बाद हालीवुड में श्यामवर्ण के लोग जो दिखाई देने लगे थे उसका कारण, उस समय की अमरीका की सामाजिक परिस्थतियां थी। यह वह काल था जब अमरीकी समाज में भी काले लोग अधिक दिखाई देने लगे थे। वे लोग समाज में समान अधिकारों के लिए प्रयासरत थे इसी प्रकार से वे हालीवुड में भी अपने अधिकारों के पक्षधर थे। यहां पर इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि श्वेतों के नागरिक अधिकार संगठन को गठित हुए आधी शताब्दी से अधिक का समय हो चुका है किंतु आज भी अमरीकी समाज में अश्वेत, नस्लभेद का शिकार हैं। हालांकि अमरीकी संविधान, अफ्रीकी मूल के अमरीकियों को अमरीकी नागरिक मानता है किंतु इसके बावजूद अमरीकी समाज में उनको वह स्थान प्राप्त नहीं है जो होना चाहिए।

हालीवुड में काले अमरीकियों के साथ जारी भेदभाव से आस्कर पुरस्कार भी सुरक्षित नहीं रह सका है। हालीवुड ने इस पुरस्कार को देने में भी अफ़्रीकी मूल के अमरीकियों के साथ खुला भेदभाव किया है। सन 1939 से लेकर 2016 के बीच आस्कर अवार्ड दिये जाने का विषय वास्तव में समीक्षा योग्य है। सन 1939 में पहली बार “Gone with the wind” नामक फ़िल्म के लिए अफ्रीकी मूल की किसी महिला “Hattie Mc Daniel” को आस्कर पुरस्कार दिया गया था। सन 2015 से 2016 के बीच हालीवुड के कुछ अश्वेत कलाकारों ने आस्कर पुरस्कार का विरोध किया था। इसका मुख्य कारण यह है कि उस ज्यूरी में जो आस्कर पुरस्कार देने का फैसला करती है 94 प्रतिशत, श्वेत अर्थात गोरे हैं जबकि 6 प्रतिशत में अमरीका की अन्य जातियों के लोग शामिल हैं। इनमें कालों की भागीदारी मात्र 2 प्रतिशत है। इस प्रकार पता चलता है कि आस्कर पुरस्कार देने वाली समिति में केवल दो प्रतिशत अश्वेत शामिल हैं। इस बात से अफ्रीकी मूल के अमरीकियों में क्रोध पाया जाता है।
सन 2016 में यह घोषणा की गई कि आस्कर के लिए जिन नामों को शामिल किया जा रहा है वे सबके सब गोरी चमड़ी वाले हैं। हालांकि इस बीच हालीवुड में जो फ़िल्में बनीं उनमें कालों ने भी काम किया और उनकी फ़िल्में पसंद भी की गईं। इसके बावजूद 2015 और 2016 में लगातार दूसरी बार इस घोषणा से नस्लवादी विरोध आरंभ हो गया। इसी वर्ष आस्कर पुरस्कार दिये जाने के अवसर पर हालीवुड में काम करने वाले अफ्रीकी मूल के अमरीकी कलाकारों ने “एलफ्रेड चार्ल्स शार्पटन जूनियर” के नेतृत्व में विरोध किया। यह विरोध ठीक उसी समय किया गया जब आस्कर पुरस्कार बांटा जा रहा था। यह कलाकार नारे लगा रहे थे कि हालीवुड को अच्छे ढंग से काम करना चाहिए। अफ्रीकी मूल के अमरीकी नेता “एलफ्रेड चार्ल्स शार्पटन जूनियर” ने अपने संबोधन में कहा कि यदि आस्कर समिति ने अगली बार पुरस्कार बांटने के लिए केवल गोरे रंग के कलाकारों को चुना तो इसके विरोध में व्यापक स्तर पर प्रदर्शन किये जाएंगे।
हालांकि सन 1940 में Hattie McDaniel 1963 में Sidney Poitier 1991 में Whoopi Goldberg 2001 में Denzel Washington 2005 में Morgan Freeman जैसे काले रंग वाले कलाकारों ने अच्छे कलाकारों के रूप में आस्कर पुरस्कार प्राप्त किए। इस बारे में यह बात विशेष ध्यान योग्य है कि अमरीकी इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि काले कलाकारों को बहुत ही कम आस्कर पुरस्कार मिले हैं वे भी बहुत लंबे अंतराल से। अर्थात एक पुरस्कार के बाद मिलने वाले दूसरे पुरस्कार के बीच का समय काफ़ी लंबा है। इन अश्वेत कलाकारों का कहना है कि उन्हें अच्छी भूमिकाएं भी बहुत ही कम ही दी जाती हैं। अफ्रीकी मूल के अमरीकी निर्देशक Shelton Jackson "Spike" Lee “शेल्टन जैक्सन स्पाइक ली” का कहना है कि हालीवुड में बहुत अधिक नस्लवाद पाया जाता है। वे इसकी आलोचना करते हुए कहते हैं कि किसी काली चमड़ी वाले एक व्यक्ति का अमरीका का राष्ट्रपति होना किसी सीमा तक संभव है किंतु यह संभव नहीं है कि कोई काला व्यक्ति हालीवुड के किसी स्डूडियो का प्रमुख बन सके। स्वभाविक सी बात है कि जब अश्वेत वर्ग के लोगों को हालीवुड में काम करने का अवसर ही नहीं दिया जाएगा तो फिर वे किस प्रकार से हालीवुड में सफलता हासिल कर सकते है।
अंत में इस ओर संकेत ज़रूरी है कि हालीवुड में 1970 के दशक में अश्वेत कलाकारों की कुछ सफल फिल्मों के कारण, हालीवुड में अश्वेत निर्माता, निर्देशकों और कलाकारों की उल्लेखनीय संख्या दिखाई देने लगी। इसके बाद 1976 से अमरीका में रहने वाले अफ्रीकी मूल के समाज से संबन्धित बहुत सी बातें पर्दे पर आने लगीं। बाद में हालीवुड में कार्यरत लोगों की इच्छाओं के विपरती काले कलाकारों की भागीदारी से बनने वाली फ़िल्मों के बजट को बढ़ाए जाने के प्रयास किये जाने लगे। अब हालीवुड के वर्चस्व का मुक़ाबला करने के उद्देश्य से न्यूयार्क में “ब्लैक अमेरिकन फ़िल्म फाउन्डेशन” की आधारशिला रखी गई है।