इस्लाम और मानवाधिकार- 57
एक अच्छा दोस्त इंसान के जीवन में काफ़ी महत्व रखता है।
दोस्ती के बल पर जीवन की बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल निकल आता है। ख़ुशी के हालात में भी दोस्त अच्छे सहयोगी साबित होते हैं और उनके साथ की वजह से ख़ुशियों का आनंद और बढ़ जाता है। हालांकि कभी कभी इंसान का आचरण, दोस्ती को नुक़सान पहुंचाता है।
अच्छे दोस्तों के बीच जुदाई और दूरी का एक कारण नाराज़गी है और इस मानसिक स्थिति के विभिन्न कारण हो सकते हैं। हदीसों में इन कारणों का उल्लेख किया गया है। इसका मुख्य कारण, दोस्त का अपमान और नैतिक ज़िम्मेदारियों का पालन न करना है। कुछ लोग, दोस्त के प्रेम और मोहब्बत का सम्मान करने के बजाए, उसे नज़र अंदाज़ कर देते हैं, यहां तक कि वे सामान्य लोगों को जो सम्मान देते हैं, दोस्तों को वह सम्मान भी नहीं देते। उदाहरण स्वरूप, जब किसी सभा में जाते हैं तो सबसे गर्मजोशी से हाथ मिलाते हैं, लेकिन अपने अच्छे दोस्त से या तो हाथ ही नहीं मिलाते या बहुत लापरवाही से हाथ मिलाते हैं। अपने बच्चों की शादी में सभी को आमंत्रित करते हैं और इनविटेशन कार्ड भेजते हैं, लेकिन अपने जिगरी दोस्त को कार्ड तक नहीं भेजते और उससे ज़बानी ही कह देते हैं कि शादी में शिरकत करे। दोस्त के साथ इस तरह का अपमानजनक व्यवहार, सद्गुणों एवं शिष्टाचार के ख़िलाफ़ है, जिससे धर्म के मार्गदर्शकों ने रोका है।
हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, अपने भाई के अधिकारों को अनदेखा करने से बचो, इसलिए कि तुम्हारे बीच प्रेम और मोहब्बत पाई जाती है, इसलिए कि अगर तुमने किसी के अधिकार का हनन किया है तो वह तुम्हारा भाई नहीं है। जिगरी दोस्त के हक़ की अनदेखी करना और उसे दुखी करना, एक बेवफ़ा दोस्त की निशानी है। इस संदर्भ में हज़रत अली फ़रमाते हैं, सबसे मजबूर व्यक्ति वह है, जिसका कोई दोस्त नहीं हो, और उससे भी बढ़कर मजबूर वह व्यक्ति है जो अपने दोस्त को अपने आचरण के कारण खो दे।
मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि मज़ाक़ बनाना, शर्मिंदा करना, अपमान करना और हर ऐसा काम करना कि जिससे मानवीय मूल्यों को नुक़सान पहुंचता है और दोस्तों के बीच दूरी हो जाती है, इस्लाम में वर्जित है।
दोस्तों के बीच दूरी उत्पन्न होने और रिश्तों को प्रभावित होने से बचाने के लिए दोस्त की ग़लतियों को अनदेखा कर देना चाहिए। दूसरे शब्दों में हम अपने दोस्त की ग़लती से अवगत हैं, लेकिन उसे शर्मिंदगी से बचाने के लिए अनजान बन जाते हैं, ताकि दोस्त यह समझे कि हम उसकी ग़लती से बेख़बर हैं। इस शैली के अपनाने से समाज में रिश्ते प्रभावित नहीं होते और दोस्ती बनी रहती है।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, जीवन में सुधार और लोगों के साथ अच्छे संबंध एक ऐसे प्याले की भांति हैं जो दो तिहाई चेतना और एक तिहाई अनदेखा करने से भरा हुआ है। किसी भले उद्देश्य की ख़ातिर ग़लतियों को अनदेखा करना इतना महत्वपूर्ण है कि इस्लाम में इस पर बल दिया गया है और ईमान रखने वाले लोग इसके महत्व की उपेक्षा नहीं कर सकते। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, मोमिन के व्यवहार का आधा भाग अनदेखा करने पर आधारित होता है।
ईश्वर ने अपने दूतों को लोगों के बीच भेजा ताकि मानवीय मूल्यों की ओर उनका ध्यान आकर्षित करें और उन्हें इन मूल्यों का सम्मान करने के लिए प्रशिक्षित करें। इंसानियत के मुल सिद्धांतों का महत्व इतना अधिक है कि अगर कोई दिन ऐसा आ जाए कि धरती पर मौजूद समस्त इंसान इन सिद्धांतों का पालन करने लगें तो धार्मिक विश्वास, भाषा और संस्कृति के अलग अलग होने एवं विभिन्न जातियों से संबंध रखने के बावजूद, सभी लोग शांतिपूर्ण एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं और समस्त सुविधाओं से लाभ उठा सकते हैं।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) फ़रमाते हैं, जब तक लोगों में तीन गुण पाए जायेंगे, पूरी धरती पर लोग सुख सुविधा के साथ जीवन व्यतीत करेंगे, पहला यह कि एक दूसरे को दोस्त समझें और एक दूसरे से इंसानियत का रिश्ता रखें। दूसरा यह कि अमानत में ख़यानत न करें, तीसरा यह कि न्यायपूर्ण व्यवहार करें।
यहां ध्यान देने योग्य बिंदु यह है कि इमाम (अ) ने इंसानों के सुखी जीवन के लिए सबसे पहला गुण, दोस्ती और मोहब्बत को क़रार दिया है। किसी समाज में लोग एक दूसरे की ख़ुशी में ख़ुश हों और एक दूसरे के ग़म में ग़मगीन, तो उस समाज की बुनियाद दया और हमदर्दी पर होती है और इसका लाभ सभी लोगों को पहुंचता है।
दूसरे के साथ दोस्ती और भाईचारा, पैग़म्बरे इस्लाम की स्पष्ट विशेषताओं में से एक है। ईश्वर जब क़ुरान में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मानवीय गुणों का उल्लेख करता है तो सबसे पहले लोगों से उनके अटूट रिश्ते के बारे में बात करता है और यह स्पष्ट करता है कि लोगों की समस्याओं और दुखों से पैग़म्बरे इस्लाम (स) बहुत प्रभावित होते थे और वे ख़ून के आंसू रोते थे और उनके समाधान के लिए हर संभव प्रयास करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने दोस्ती के लिए महत्वपूर्ण बिंदुओं का उल्लेख किया है, वे फ़रमाते हैं, दोस्ती में सादा व्यवहार करो और संतुलन बनाए रखो, क्योंकि संभव है एक दिन दोस्त, दुश्मन बन जाएं। इसी तरह दुश्मनों के साथ भी संतुलित व्यवहार करो, शायद एक दिन वे तुम्हारे दोस्त बन जाएं।
इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं, मोमिन ईश्वर के लिए दोस्ती करता है और यह ईमान की सबसे बड़ी निशानियों में से है। याद रखो कि जो कोई ईश्वर के लिए दूसरों से दोस्ती या दुश्मनी रखेगा, ईश्वर के लिए उन्हें क्षमा कर देगा या बुराई से रोकेगा तो वह ईश्वर के पवित्र बदों में से है।
धार्मिक विद्वानों के मुताबिक़, कुछ लोगों के साथ दोस्ती करने से रोका गया है। हज़रत अली (अ) अपने बड़े बेटे इमाम हसन (अ) से कहते हैं, हे बेटा, मूर्ख लोगों से दोस्ती करने से बचो, इसलिए कि वह तुम्हें फ़ायदा पहुंचाना चाहेगा, लेकिन नुक़सान पहुंचा बैठेगा और कंजूस व्यक्ति से दोस्ती करने से बचो, इसलिए कि वह तुम्हें उस चीज़ से रोक कर रखेगा, जिसकी तुम्हें बहुत ज़रूरत होगी, और चरित्रहीन व्यक्ति से दोस्ती करने से बचो, इसलिए कि वह तुम्हें किसी भी मामूली चीज़ के बदले बेच देगा, उस व्यक्ति से भी दोस्ती करने से बचो जो बहुत अधिक झूठ बोलता है, इसलिए कि वह उस सुराब या मृगतृष्णा की तरह है जो दूर को तुमसे निकट और निकट को दूर कर देता है।
शिया मुसलमानों के चौथे इमाम हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ) फ़रमाते हैं, दोस्त का तुम पर यह हक़ है कि उसके साथ उठने बैठने में हाथ खुला रखो और जहां तक हो सके भलाई करो, लेकिन अगर तुम यह नहीं कर सको तो कम से कम उसके साथ न्याय करो, जिस तरह वह तुम्हारा सम्मान करता है उसका सम्मान करो और जिस तरह तुम्हारी सुरक्षा के लिए प्रयास करता है तुम उसकी सुरक्षा के लिए कोशिश करो, और यह प्रयास करो कि वह तुम्हारे साथ भलाई करने में तुमसे आगे न निकल पाए लेकिन अगर आगे निकल जाए तो उसका बदला उतारो और जहां तक संभव हो सके दोस्ती में लापरवाही मत करो, अपने लिए यह अनिवार्य समझो कि तुम उसके शुभ चिंतक, रक्षक और सहयोगी हो, ईश्वर के आदेशों के पालन में उसका सहयोग करो और बुरे कामों से बचने के लिए उसकी सहायता करो। उसके लिए रहमत एवं सुख का कारण बनो और उसके लिए समस्या और प्रकोप का कारण न बनो, सर्व शक्तिमान केवल ईश्वर है।
इमाम आगे फ़रमाते हैं कि अपने साथी का तुम पर यह हक़ है कि उसके साथ धोखा मत करो और उसके साथ झूठ और धोखे से दोस्ती मत गाठो और उसे धोखा मत दो और उसके साथ वादा ख़िलाफ़ी मत करो, जिस तरह से एक दुश्मन करता है, क्योंकि वह अपने दुश्मन के साथ कोई रियायत नहीं करता, अगर दोस्त ने तुम पर भरोसा किया है तो उसका भरोसा क़ायम रखने के लिए कठिन प्रयास करो, इसलिए कि उसके साथ ठगी करना जिसने तुम पर भरोसा किया है, सूदख़ोरी के समान है और केवल ईश्वर सर्व शक्तिमान है।