बैतुल मुक़द्दस को इस्राईली राजधानी बनाने का अमरीकी सपना- 2
ट्रम्प की ओर से बैतुल मुक़द्दस को अवैध ज़ायोनी शासन की राजधानी घोषित करने से अमरीकी सरकार की बुरी नियत अब सबके लिए स्पष्ट हो चुकी है।
बैतुल मुक़द्दस के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प का फैसला, अवैध ज़ायोनी शासन के बारे में अमरीकी नीति को जहां एक दृढ़ निर्णय के रूप में बता रहा है वहीं पर यह बात भी ध्यान योग्य है कि इससे न केवल क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि विश्व स्तर पर ख़तरनाक दुष्प्रभाव सामने आएंगे।
यह एक वास्तविक्ता है कि पश्चिमी एशिया की बहुत सी समस्याओं के ज़िम्मेदार अमरीका और इस्राईल ही हैं। मध्यपूर्व का वर्तमान संकट भी इन्ही की देन है। वर्तमान समय में अमरीका ने जिस षडयंत्र का आरंभ किया है वह क्षेत्र के संकट को घटाने के बजाए बढ़ाएगा। छह दशकों से अधिक समय से फ़िलिस्तीन और कुछ इस्लामी देशों की भूमि, ज़ायोनियों के अतिग्रहण में है। इस्राईल ने सन 1967 में बैतुल मुक़द्दस का अतिग्रहण कर लिया था। इस दौरान अधिकांश फ़िलिस्तीनी या तो बेघर हो गए या फिर अतिग्रहित क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के भेदभाव के बीच जीवन बिता रहे हैं। इसी प्रकार ग़ज्ज़ा के फ़िलिस्तीनी भी कई वर्षों से परिवेष्टन में जीवन गुज़ार रहे हैं। ऐसी विषम परिस्थितियों में क्षेत्रीय देशों विशेषकर फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के लिए अमरीका का संदेश, अवैध ज़ायोनी शासन के समर्थन की पुष्टि और बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में स्वीकार करना है। बैतुल मुक़द्दस के बारे में ट्रम्प का हालिया फैसला यह बताता है कि अमरीका और इस्राईल मिलकर अब फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध नई आक्रामक नीति अपनाना चाहते हैं। यहां पर यह सवाल पैदा होता है कि वर्तमान समय में इस काल खण्ड के दौरान हर प्रकार के विरोध के बावजूद यह विषय, ट्रम्प और नेतनयाहू के लिए क्यों एक रणनीति में बदल गया है?
इतिहास बताता है कि अवैध ज़ायोनी शासन ने अमरीका के साथ सहयोग करते हुए बैतुल मुक़द्दस को हथियाने के लिए हर प्रकार के हथकण्डे अपना रखे हैं जैसे स्थानीय फ़िलिस्तिनियों का उनके घरों से जबरन निष्कासन, फ़िलिस्तीनियों की संपत्ति पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा, बैतुल मुक़द्दस की जनसंख्या के अनुपात को बदलने के लिए अवैध कालोनियों में ज़ायोनियों को लाकर बसाना, बैतुल मुक़द्दस की इस्लामी पहचान को नष्ट करना और अतिवादी ज़ायोनियों को मस्जिदुल अक़सा में प्रवेष कराकर उसका अपमान करना आदि। फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध इस्राईल के इस प्रकार के अत्याचारों का क्रम पिछले कई दशकों से जारी है।
अब अमरीका ने बैतुल मुक़द्दस के विरुद्ध एक एसा नया षडयंत्र शुरू किया है जिसके निश्चित रूप में गंभीर दुष्परिणाम सामने आएंगे। नए अमरीकी षडयंत्र के दो मुख्य उद्देश्य हैं। पहला मक़सद यह है कि मध्यपूर्व के समीकरण बदले जाएं। क्षेत्र में दाइश की लज्जाजनक पराजय और यमन में सऊदी अरब की नीति के अधर में लटक जाने के बाद वर्चस्ववादियों ने मध्यपूर्व के समीकरण बदलने की योजना बनाई है।
नए अमरीकी षडयंत्र का दूसरा उद्देश्य, फ़िलिस्तीन और लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध को सदा के लिए समाप्त करके इस्राईलियों को शांतिपूर्ण जीवन बिताने की भूमि प्रशस्त करना है। अमरीका की ओर से बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी स्वीकार करने की ताज़ा घोषणा में यह दोनों बातें सम्मिलित हैं। बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी स्वीकार करने और इस फैसले के अमरीका पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के संबन्ध में इन्डिपेंडेंट में एक लेख प्रकाशित किया गया है। इस लेख में लिखा गया है कि इससे पूरी दुनिया में अमरीकी प्रभाव में बहुत कमी आएगी। ट्रम्प के इस फैसले की निंदा न केवल इस्लामी देश कर रहे हैं बल्कि विश्व के एसे बहुत से देशों ने इसकी निंदा की है जो मुसलमान नहीं हैं। यूरोपीय संघ ने भी ट्रम्प के हालिया फैसले की आलोचना की है। क्षेत्र की अशांति का मुख्य कारण अमरीका की ओर से अवैध ज़ायोनी शासन का खुल्लमखुल्ला समर्थन है। इस समर्थन के कारण दशकों से फ़िलिस्तीनी अपने मूल अधिकारों से वंचित रहे हैं।
अमरीका की ओर से बैतुल मुक़द्दस को आधिकारिक रूप में इस्राईल की राजधानी घोषित करने के फैसले पर ईरान की इस्लामी क्रांति के संरक्षक बल सिपाहे पासदारान ने इसकी निंदा में एक बयान जारी किया है। इस बयान में कहा गया है कि ट्रम्प का यह मूर्खतापूर्ण फैसला, इस्लामी राष्ट्रों के विरुद्ध एक नया अमरीकी षडयंत्र है जिसके माध्यम से फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। बयान में आया है कि अब यह अनिवार्य हो गया है कि संसार के सभी स्वतंत्रता प्रेमी, एकजुट होकर इस अशुभ अमरीकी षडयंत्र को विफल बनाएं। इस्लामी क्रांति के संरक्षक बल के बयान में यह भी कहा गया है कि बैतुल मुक़द्दस के बारे में वाइट हाउस के अधिकारियों का सपना कभी साकार नहीं होगा।
इस्राईल सन 1948 से दो लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयास करता आया है। उसका पहला लक्ष्य अवैध अधिकृत शासन होने के बावजूद स्वयं को वैध स्थापित करने का प्रयास है। इस्राईल का यह प्रयास कड़े प्रतिरोध के कारण सदैव ही विफल रहा है और आज भी उसे कड़ी चुनौतियों का सामना है। इस्राईल का दूसरा लक्ष्य, मुसलमानों के पहले क़िब्ले वाले बैतुल मुक़द्दस को अपनी राजधानी बनाना है। इस अवैध लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इस्राईल, सदा से फ़िलिस्तीन के अस्तित्व के लिए ख़तरे पैदा करता आ रहा है।
पिछले दस वर्षों के दौरान कुछ युद्धों में प्रतिरोध के मुक़ाबले में इस्राईल को लज्जाजनक पराजय का सामना करना पड़ा है। यह युद्ध लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध हिज़बुल्लाह आन्दोलन और फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध गुटों और इस्राइल के बीच हुए थे। इस प्रकार से 33, 22 और 8 दिवसीय युद्धों में इस्राईल को इस्लामी प्रतिरोध के आगे घुटने टेकने पड़े थे। हालांकि इस दौरान इस्राईल के मुक़ाबले में हिज़बुल्लाह के पास आधुनिक हथियार नहीं थे लेकिन इसके बावजूद हिज़बुल्लाह ने इस्राईल को नाको चने चबवा दिये। हिज़बुल्लाह के मुक़ाबले में इस्राईल की पहली पराजय उसका उन क्षेत्रों से वापस जाना था जिनका उसने सन 1982 से परिवेष्टन कर रखा था। दूसरी पराजय सन 2000 में दक्षिणी लेबनान से इस्राईल का पीछे हटना था। इसके बाद सन 2006 में 33 दिवसीय युद्ध में भी हिज़बुल्लाह के प्रतिरोध के मुक़ाबले में इस्राईल, पराजित हुआ।
इन पराजयों ने हिज़बुल्लाह और फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं के मुक़ाबले में इस्राईल की कमज़ोरी को सिद्ध कर दिया। इससे पता चलता है कि प्रतिरोध के मुक़ाबले में इस्राईल और उसके समर्थक अर्थात अमरीकी सरकार कितनी कमज़ोर है।
हिज़बुल्लाह और फ़िलिस्तीनी गुटों के मुक़ाबले में ज़ायोनी शासन की लज्जाजनक पराजय का पहला परिणाम यह निकला कि क्षेत्र में इस्राईल का भय समाप्त हो गया। इन पराजयों के बाद यह विचार लोगों के मन से निकल गया कि इस्राईल बड़ी सरलता से अपने सामने वाले पक्ष को पराजित कर सकता है। इस्राईल की विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने में यह बात बहुत बड़ी बाधा के रूप में सामने आई। इस्राईल की पराजय का दूसरा आयाम यह रहा कि फ़िलिस्तीनी युवा पहले की संख्या में अधिक से अधिक मुक़ाबला करने के लिए आने लगे। इस प्रक्रिया से पता चलता है कि इस्राईल के विरुद्ध फ़िलिस्तीनियों का प्रतिरोध निर्बाध रूप से आगे भी जारी रहेगा।
अब यह कहा जा सकता है कि प्रतिरोध ने पूरे इस्लामी जगत में अपने पैर जमा लिए हैं जिससे इस्राईल के पतन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। यही विषय इस्राईल और अमरीका के भय और चिंता का कारण बना है। इसीलिए उनकी यह सोच है कि जहां तक हो सके पूरी तरह से फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों का अतिग्रहण कर लिया जाए और उसकी राजधानी, बैतुल मुक़द्दस हो। यही कारण है कि अमरीका, चाहता है कि क्षेत्रीय और वैश्विक परिवर्तन इस्राईल के हित में हों। बैतुल मुक़द्दस का यहूदीकरण इसी षडयंत्र का एक भाग है।
इसी बीच ईरान के रक्षामंत्री ने ट्रम्प के हालिया फैसले को सुनियोजित षडयंत्र बताते हुए कहा है कि बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी घोषित करने के कारण हर प्रकार के रक्तपात का ज़िम्मेदार अमरीका ही होगा। ब्रिगेडियर जनरल अमीर हातमी ने कहा कि ट्रम्प के एलान से मुसलमानों के बीच एकता बढ़ी है तथा इसने, ज़ायोनी शासन के विनाश को और निकट कर दिया है। उन्होंने कहा कि विश्व वर्चस्ववाद, इराक़ और सीरिया में पराजय के बाद क्षेत्रीय राष्ट्रों के विरुद्ध नए षडयंत्र रच रहा है। ईरान के रक्षामंत्री का कहना था कि ट्रम्प का निर्णय फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के संकल्प में कोई भी कमी पैदा नहीं कर सकता बल्कि इसके विपरीत बैतुल मुक़द्दस को आज़ाद कराने के उद्देश्य से अब फ़िलिस्तीनियों और विश्व के स्वतंत्रता प्रेमियों के बीच समन्वय बढ़ा है और उनके संकल्प अधिक मज़बूत हुए हैं।
यह वास्तविकता है कि फ़िलिस्तीनी राष्ट्र ने इस्राईली अतिग्रहणकारियों से अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी क़ुर्बानियां दी हैं और वह इसके बाद भी इसीके लिए तैयार है। इस्लामी गणतंत्र ईरान की नीति आरंभ से ही अत्याचारग्रस्त फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन पर आधारित है जो आगे भी जारी रहेगी।