Feb ०३, २०१८ १३:१२ Asia/Kolkata

हमने मस्जिद के महत्व की विस्तार से चर्चा की।

हमने आपको बताया कि उपासना के साथ ही मस्जिद, आरंभ से शिक्षा का भी केन्द्र रही है।  इस्लाम के उदय के आरंभिक काल में मक्के में अत्यधिक कठिन परिस्थतियों के बावजूद पैग़म्बरे इस्लाम (स) पवित्र काबे में जाकर लोगों को एकत्रित करके उनके लिए क़ुरआन पढ़ते थे।  वहां वे लोगों को इस्लाम की शिक्षाएं देते थे।  वहां पर वे लोगों को अलग से बिठकार इस्लाम और एकेशेवरवाद के बारे में बताया करते थे।

अलअज़हर मस्जिद

 

मक्के से मदीने पलायन के बाद लोगों को इस्लाम के बारे में बताने और उनको पढ़ाने का यह क्रम मस्जिदे नबवी स्थानांतरित हो गया।  मदीने में सुबह की नमाज़ के बाद या फिर शाम की नमाज़ के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) भाषण देते थे।  अपने भाषणों में वे क़ुरआन के बारे में लोगों को विस्तार से बताया करते थे।  इन भाषणों के अतिरिक्त वे मस्जिद में ही बैठकर लोगों को पढ़ाते और उनके सवालों का जवाब दिया करते थे।  मस्जिद में ठहरने के बारे में वे कहते थे कि केवल तीन प्रकार के लोगों का ही मस्जिद में ठहरना उचित है।  एक वह जो नमाज़ के बाद मस्जिद में बैठकर क़ुरआन पढ़े।  दूसरे वह जो नमाज़ के बाद दुआएं करे और तीसरे वह जो नमाज़ के बाद धर्म के बारे में अध्ययन करे।

इन बातों से हमें यह पता चलता है कि मस्जिद, उपासना करने के अतिरिक्त इस्लाम को सीखने और समझने का उपयुक्त स्थान है।  यही कारण है कि इस्लाम के उदय के आरंभिक काल में मस्जिद, पढ़ने और पढ़ाने के केन्द्र में सक्रिय रही है।  बहुत से इतिहासकारों का मानना है कि मदरसों के अस्तित्व से पहले इस्लाम में पढ़ने के केन्द्र के रूप में मस्जिद का ही नाम लिया जाता है।  बाद में मस्जिदों में ही पढ़ने के लिए स्थान विशेष किये गए जहां पर बैठकर लोग शिक्षा ग्रहण करते थे।  ईरान तथा दूसरे इस्लामी देशों में एसी मस्जिदें आज भी मौजूद हैं जो इस वास्तविकता को बताती हैं।  इस प्रकार से शाब्दिक रूप में तो मस्जिद और मदरसा अलग-अलग दिखाई देते हैं किंतु उपयोगिता की दृष्टि से दोनों समान हैं बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि मस्जिद ही, मदरसों की जननी है।

अलअज़हर मस्जिद

 

बाद के वर्षों में जब मदरसे बनने लगे और मस्जिदों तथा मदरसों को अलग किया गया उसके बावजूद मस्जिदों में पढ़ने और पढ़ाने का क्रम पहले की ही तरह बाक़ी रहा।  आठवीं शताब्दी के जानेमाने पर्यटक “इब्ने बतूता” अपनी रचनाओं में बताते हैं कि बग़दाद में कई मदरसे होने के बावजदू उस काल में बग़दाद की जामा मस्जिद में हदीस पढ़ाने के क्लास लगा करते थे।  इससे पता चलता है कि मस्जिदे आरंभ से शिक्षा का केन्द्र रही हैं और आज भी वे अपनी यह भूमिका निभा रही हैं।

ताओ मिस्र की राजधानी क़ाहेरा की सबसे प्राचीन मस्जिद, अलअज़हर है।  अलअज़हर एसी मस्जिद है जिसके भीतर विश्व विख्यात शिक्षा केन्द्र भी मौजूद है।  कहा जाता है कि इसका निर्माण “फ़ातेमीयून” के सत्ताकाल में हुआ था जो उत्तरी अफ़्रीका की सबसे बड़ी शासन श्रंखला थी।  फ़ातेमी शासको का कहना था कि उनका संबन्ध हज़रत फ़ातेमा अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सुपुत्री से है।  बहुत से लोगों का कहना है कि अलअज़हर का नाम इसीलिए हज़रत फ़ातेमा के नाम पर है।

फ़ातेमियों के चौथे ख़लीफ़ा “मोइज़्ज़ुद्दीन” के सेनापति “जौहर कातिब सक़ली” ने सन 356 हिजरी क़मरी को मस्जिदे अलअज़हर का निर्णाम किया था।  इसका निर्माण कार्य 359 हिजरी क़मरी को आंरभ हुआ जो सन 361 हिजरी क़मरी में पूरा हुआ था।  “जौहर कातिब सक़ली” ने फ़ातेमियों के चौथे ख़लीफ़ा “मोइज़्ज़ुद्दीन” के आदेश पर मिस्र पर विजय प्राप्त करने के बाद अलअज़हर मस्जिद का निर्माण कराया था।  सन 361 हिजरी क़मरी की सात रमज़ान को पहली बार अलअज़हर मस्जिद में जुमे की नमाज़ पढ़ी गई थी।  365 हिजरी क़मरी के पवित्र रमज़ान के महीने में पहली बार अलअज़हर मस्जिद में पढ़ाई का काम आरंभ हुआ था।  “अली बिन नोअमान” ने अपने पिता द्वारा लिखी गई पुस्तक, “अलइख़्तेसार” को अलअज़हर में पढ़ाना आरंभ किया था।  कहते हैं कि फ़ातेमी शासक मुइज़ुद्दीन के आदेश पर अली इब्ने नोअमान ने शिया मुसलमानों की विचारधारा के बारे में बताना शुरू किया था।

अलअज़हर मस्जिद

 

आरंभ में मस्जिदुल अज़हर केवल दो भागों में विभाजित थी।  एक इमारत और दूसरा उसका आंगन।  अलअज़हर की आरंभिक इमारत को जौहर सैक़ली ने बनवाया था जिसमें 76 स्तंभ थे।  इसी स्थान पर नमाज़ पढ़ी जाती थी।  मस्जिदे अलअज़हर के दूसरे हिस्से को “अब्दुर्रहमान कदख़ुदा” ने बनवाया जिसमें 50 स्तंभ थे।  मस्जिद का यह भाग पुराने मेहराब के पिछले हिस्से की ओर बनवाया गया था।

सन 400 हिजरी क़मरी को “अलहाकिम बे अम्रिल्लाह” ने मस्जिदे अलअज़हर का पुनरनिर्माण कराया था।  उसने मस्जिद की देखरेख और वहां पर पढ़ने के लिए एक बजट विशेष किया था।  उन्होंने “दारुलहिकमा” नामक पुस्तकालय की किताबों को अलअज़हर के पुस्तकालय में भिजवाया था।  वर्तमान समय में मौजूद मस्जिदे अलअज़हर और प्राचीनकाल की मस्जिदे अलअज़हर में बहुत अंतर है।  इसका मुख्य कारण यह है कि मस्जिदे अलअज़हर आरंभ से भी अपने काल के शासकों के ध्यान का केन्द्र रही है इसिलए इसमें समय-समय पर परिवर्तिन होते रहे।  यही कारण है कि इस मस्जिद में आरंभिक काल में जो सादगी पाई जाती थी वह अब नहीं रही है।  शासकों ने अपनी समय की आवश्यकता और अपनी पसंद के हिसाब के अलअज़र मस्जिद में परिवर्तन कराए।  इसके बावजूद अलअज़हर मस्जिद, इस्लामी और अरब वास्तुकला का अद्वितीय नमूना है।

वर्तमान समय की अलअज़हर मस्जिद, आरंभिक अलअज़र की तुलना में बहुत बड़ी है।  इसकी इमारत बहुत ही सुन्दर है।  फ़ातेमियों के काल में इस मस्जिद में सुन्दर खिड़कियां बनाई गई थीं उनको आज भी इस मस्जिद की सुन्दरता का कारण बताया जाता है।

 

ममलूक और उस्मानी शासन कालों में अलअज़हर मस्जिद में विस्तार का काम हुआ और इसकी मीनारों को अधिक सुन्दर ढंग से बनाया गया।  इसके अतिरिक्त यहां पर मरम्मत का काम भी चलता रहा।  सन 740 हिजरी क़मरी में अलअज़हर मस्जिद से सटाकर एक इमारत बनाई गई जिसमें पवित्र क़ुरआन और हस्तलिखित किताबों को रखा गया।  सन 844 हिजरी क़मरी में मदरसए जौहर को इसमें बढ़ाया गया।

विभिन्न चरणों में अलअज़हर मस्जिद की मरम्मत होती रही और इसक रूप बदलता गया।  इसने बहुत से उतार चढ़ाव भी देखे।  जहां पर विभिन्न कालों में अलअज़हर मस्जिद पर बहुत ध्यान दिया गया वहीं पर ऐसा ज़माना भी आया जब इसकी ओर से ध्यान हट गया।  लगभग 100 वर्षों तक यहां पर जुमे की नमाज़ नहीं हो सकी।  सन 702 हिजरी क़मरी में क़ाहिरा में भीषण भूकंप आया।  इस भूकंप ने अलअज़हर मस्जिद को प्रभावित किया। बाद में तत्कालीन सरकार ने इसकी मरम्मत कराई।  मंगोलों के हमले के बाद अलअज़हर मस्जिद, उस काल के मुसलमान शोधकर्ताओं के शरणस्थल में परिवर्तित हो गई।  उस काल के इस्लामी जगत के शोधकर्ता अलग-अलग स्थानों से यहां आकर शरण लेने लगे।  कहते हैं कि आठवीं और नवीं हिजरी क़मरी का काल, अलअज़हर मस्जिद के चरम और वैभवता का काल रहा है।  बाद में वहां पर धार्मिक शिक्षाओं के अतिरिक्त विज्ञान, गणित, इतिहास, खगोलशास्त्र और भूगोल आदि की भी शिक्षा दी जाने लगी।

अलअज़हर मस्जिद

 

क़ाहेरा के अलअज़र विश्वविद्यालय में संसार के बहुत से जानेमाने लोगों ने शिक्षा हासिल करके नाम कमाया हैं जैसे प्रसिद्ध विद्वान “इब्ने ख़लदून” “मुक़रीज़ी” “अस्क़लानी” “सख़ावी” “सोयूती” “सअद ज़ग़लूल” “मुहम्मद अब्दो” “ताहा हुसैन” और इसी तरह के कई अन्य विश्वविख्यात विद्वान।  वर्तमान समय में मिस्र का अलअज़हर विश्वविद्यालय, एक विश्वविख्यात धार्मिक शिक्षा केन्द्र है जहां पर दूनिया के कोने-कोने से लोग धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से आते हैं।