Apr १५, २०१८ १२:२७ Asia/Kolkata

सऊदी अरब ने 26 मार्च 2015 को यमन के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ दिया था और इसे निर्णायक तूफ़ान का नाम दिया था।

रियाज़ ने घोषणा की थी कि इस युद्ध का लक्ष्य, यमन के पूर्व भगोड़े राष्ट्रपति मंसूर हादी को सत्ता में वापस लाना है। मंसूर हादी ने दो कारणों से अपनी वैधता समाप्त कर ली थी। पहला यह कि हादी के राष्ट्रपति काल की बढ़ी हुई अवधि फ़रवरी 2015 में समाप्त हो गई थी, जिसके बाद देश में चुनावों का आयोजन होना चाहिए था, लेकिन हादी सरकार ने इसके लिए कोई क़दम नहीं उठाया। इसलिए सत्ता में बना रहना उनके लिए ग़ैर क़ानूनी था। दूसरा यह कि आंतरिक परिस्थितियों और अंसारुल्लाह आंदोलन के साथ बढ़ते तनाव के कारण, हादी ने देश से भाग निकलने को प्राथमिकता दी। भगोड़ा राष्ट्रपति देश में सैन्य हस्तक्षेप का अधिकार नहीं रखता है। इन परिस्थितियों को देखते हुए सऊदी अरब द्वारा हादी को सत्ता में वापस लौटाने का दावा, केवल एक धोखा और राजनीतिक छल है।

यमन पर सऊदी अरब के हमलों की तीन आयामों से समीक्षा की जा सकती है। यमन, सऊदी अरब के लिए विभिन्न कारणों से बहुत महत्वपूर्ण है। यमन की 1458 किलोमीटर की सीमाएं सऊदी अरब से मिलती हैं। आले सऊद शासन यमन में अपने वर्चस्व वाली सरकार देखना चाहता है। हालांकि 2014 के घटनाक्रमों के कारण, हौसियों की भूमिका कि जो ज़ैदी शिया हैं, बढ़ रही है। उत्तरी यमन में ज़ैदियों की मौजूदगी और उनका दक्षिणी सऊदी अरब की सीमाओं के पड़ोस में होना, इसलिए आले सऊद शासन के क्रोध का कारण बनाते क्योंकि ज़ैदियों और आले सऊद की विचारधारा एक दूसरे की विपरीत दिशा में हैं। इसलिए हौसियों की स्थिति को कमज़ोर करने के लिए यमन पर हमला किया गया।

इसके अलावा, भूरणनीति के लिहाज़ से यमन का काफ़ी महत्व है। बाबुल मंदब स्ट्रेट यमन में स्थित है। यह स्ट्रेट लाल सागर और हिंद महासागर के बीच स्थित है और पूरब एवं पश्चिम के जल मार्ग के सबसे निकट है। सऊदी अरब विश्व में सबसे अधिक तेल निर्यात करने वाला देश है, इसलिए बाबुल मंदब स्ट्रेट का उसके लिए बहुत महत्व है। एशिया, यूरोप और अफ़्रीक़ा के बीच होने वाले समुद्री व्यापार का दो तिहाई भाग इस स्ट्रेट से विशेष है। इसके अलावा, अदन खाड़ी और कई द्वीप भी यमन में स्थित हैं। 2014 के घटनाक्रमों से सऊदी अरब को यह चिंता हो गई कि यह स्ट्रेट कहीं यमन की ऐसी सरकार के निंयत्रण में न आ जाए जो उसके बराबर की हो।

2011 और 2014 में यमन में घटने वाले घटनाक्रम सीधे तौर पर देश की आंतरिक स्थिति को प्रभावित कर सकते थे। दूसरी ओर यह भी स्पष्ट है कि आले सऊद शासन, लोकतंत्र व्यवस्था का दुश्मन है। यमन में सत्ता परिवर्तन और उसमें अंसारुल्लाह आंदोलन के शामिल होने से लोकतंत्र व्यवस्था की स्थापना होती, जिसके कारण लेबनान और इराक़ की तरह सत्ता में समस्त धार्मिक समुदायों की भागीदारी होती। इस परिवर्तन का सऊदी अरब पर भी असर पड़ सकता था, इसलिए कि सऊदी अरब में तानाशाही शासन है और लोग इस व्यवस्था से नाराज़ हैं। देश में बढ़ती चिंताओ के कारण भी आल सऊद शासन ने यमन पर हमला कर दिया, ताकि पड़ोसी देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना न हो सके।

सऊदी अरब ने ऐसी परिस्थितियों में यमन पर हमला किया है कि जब सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ और उनके बेटे मोहम्मद बिन सलमान ने नई नई सत्ता संभाली थी। किंग सलमान को किंग अब्दुल्लाह का उत्तराधिकारी बनाया गया, जिन्होंने अपने बेटे मोहम्मद को रक्षा मंत्री बना दिया। जिसका लक्ष्य आख़िर में देश की सत्ता सौंपना था। सऊदी अरब की शक्ति और दबदबे को ज़ाहिर करने के लिए यमन पर हमला किया गया। सऊदी अरब के अनाड़ी शासकों का मानना था कि ए महीने से भी कम में हौसी आंदोलन को कुचल दिया जाएगा, जिससे देश में उनकी लोकप्रियता बढ़ जाएगी।

यमन पर हमले का एक अन्य कारण यह है कि आले सऊद शासन क्षेत्र में ईरान के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है। यमन की लगभग 2 करोड़ 60 लाख की आबादी है, जो कुल मिलाकर क़तर, इमारात, बहरैन, कुवैत और ओमान की कुल आबादी के बराबर है। यमन में शिया और सुन्नी मुसलमानों की आबादी है। कुल आबादी का 58 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं, जबकि शियों की आबादी क़रीब 42 प्रतिशत है। शियों में क़रीब 32 प्रतिशत ज़ैदी शिया हैं, 5 प्रतिशत बारह इमामी और 5 प्रतिशत इस्माईली शिया हैं। लगभग 1 करोड़ 10 लाख शिया आबादी के कारण, पड़ोसी देश यमन आले सऊद शासन के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है। इसलिए कि इस शासन का मानना है कि अगर यमन में शिया सत्ता में पहुंचते हैं तो सऊदी अरब में आले सऊद शासन सत्ता कमज़ोर पड़ सकती है और इसी के साथ यमन और इलाक़े में ईरान के प्रभाव में वृद्धि हो सकती है।

मध्यपूर्व के मामलों के विशेषज्ञ स्टेनबर्ग के अनुसार, आले सऊद शासन का मानना है कि अरब देशों में अस्थिरता से लाभ उठाकर, ईरान क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, इसके लिए वह सऊदी अरब का बैकयार्ड समझे जाने वाले यमन की परिस्थितियों से भी लाभ उठाना चाहता है।

वास्तव में यमन पर हमला करके आले सऊद की ख़ुदकुशी का मूल कारण, इराक़ और सीरिया समेत अन्य क्षेत्रीय देशों में ईरान के मुक़ाबले में सऊदी अरब की लगातार हार है। जिस तरह से सऊदी अरब ने बहरैन पर चढ़ाई करके वहां की जनता को सत्ता में आने से रोक दिया, वह वैसा ही क़दम मध्यपूर्व के सबसे निर्धन देश यमन में भी उठाना चाहता था।

यमन युद्ध ऐसी स्थिति में चौथे साल में प्रवेश कर गया है कि सऊदी अरब का कोई भी लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। युद्ध इतने जल्दी ख़त्म नहीं हुआ, जैसा कि सऊदी अरब को भ्रम था। यहां तक कि अब इस युद्ध को लेकर सऊदी अरब के भीतर मतभेद स्पष्ट हो गए हैं। यमन का सऊदी अरब ने चारो ओर से घेराव कर रखा है। इसके बावजूद, इस युद्ध के कारण मोहम्मद बिन सलमान एक हीरो के तौर पर उभरने में विफल रहे, बल्कि इसके विपरीत देश के भीतर और बाहर उनकी नीतियों की आलोचना में वृद्धि हो गई है।

इंडिपेंडेंट अख़बार ने बिन सलमान की लंदन यात्रा का विरोध करते हुए लिखा था कि सऊदी अरब दूसरे देशों को पीड़ा और दुख निर्यात कर रहा है और इसके योजनाकार मोहम्मद बिन सलमान हैं। क्षेत्र में ईरान के साथ प्रतिस्पर्धा में भी यमन युद्ध से सऊदी अरब की स्थिति कमज़ोर हुई है। आज इस देश में हौसी आंदोलन इतना शक्तिशाली हो चुका है कि सत्ता में उन्हें नज़र अंदाज़ करना संभव नहीं है। वास्तविकता यही है कि यमन युद्ध में जहां सऊदी अरब पूर्ण रूप से हार का सामना कर रहा हैं, वहीं राष्ट्र संघ के अनुसार इस देश में विश्व का सबसे बड़ा मानवीय संकट उत्पन्न हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि यमन, सऊदी अरब के लिए एक दलदल बन चुका है, जिससे वह निकल नहीं पा रहा है।