May ०६, २०१८ १४:१० Asia/Kolkata

अमरीकी विदेशमंत्रालय हर साल मानवाधिकारों की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करता है।

इस साल गत बीस अप्रैल को सन दो हजार सत्रह की रिपोर्ट प्रकाशित की गयी है जिसमें  कुछ देशों में मानवाधिकारों की स्थिति के बारे में चर्चा की गयी है लेकिन मुख्य रूप से उन देशों को निशाना बनाया गया है जो अमरीका के विरोधी या प्रतिस्पर्धी हैं जैसे रूस, चीन , ईरान, सीरिया और उत्तरी कोरिया आदि। यह विश्व में मानवाधिकारों के बारे में अमरीका की बयालिसवीं रिपोर्ट थी । 

 

यहां पर सब से बड़ा सवाल यह है कि कौन सी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने अमरीका को यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वह हर साल विश्व के विभिन्न देशों में मानवाधिकारों की दशा के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करे? अमरीका ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह दुनिया में मानवाधिकारों के हनन के सिलसिले में सब से अधिक खराब रिकार्ड रखता है  लेकिन इस  देश का विदेशमंत्रालय, अमरीकी नागरिकों के अधिकारों के हनन के बजाए  विश्व के अन्य देशों के बारे  में रिपोर्ट प्रकाशित करता है ताकि अमरीकियों और विश्व वासियों का ध्यान, अमरीका में होने वाले मानवाधिकार के हनन की ओर से हट जाए। अमरीकी सरकार प्रायः उन्हीं देशों में मानवाधिकार की आलोचना करती है जो उसके विरोधी होते हैं। अमरीकी सरकार अन्य देशों  पर सैन्य हमले करती है, हस्तक्षेप करती है और उसके बाद विश्व के देशों में मानवाधिकारों की दशा के बारे में रिपोर्टें भी प्रकाशित करती है लेकिन स्वंय अमरीका में मानवाधिकारों की दशा के बारे में कोई संकेत नहीं किया जाता। अन्य देशों की नीतियों और दूसरे देशों में मानवाधिकार के बारे में राय प्रकट करना और फैसला करना, अन्य देशों के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के अंतरराष्ट्रीय नियम का खुला उल्लंघन  है। 

 

यही वजह है कि अमरीका द्वारा अन्य देशों में मानवाधिकारों की स्थिति के बारे में रिपोर्ट पर रूस चीन और ईरान जैसे देशों ने आपत्ति की है तथा उसका जवाब भी दिया है। चीन और रूस के विदेशमंत्रालयों ने भी वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित करके, अमरीका में मानवाधिकारों की दशा पर चिंता प्रकट की है। वैसै संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकर परिषद सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने अपनी विभिन्न रिपोर्टों में एेसे सूबूत व दस्तावेज पेश किये हैं जिन से स्पष्ट होता है कि अमरीका पूरी दुनिया में सब से  अधिक मानवाधिकारों का हनन करता है। 

लेटिन अमरीका के एक विशेषज्ञ ने संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद की एक बैठक में, मानवाधिकार के अमरीकी विशेषज्ञों से कहा कि वह वाइट हाउस की ओर से अन्य देशों में मानवाधिकारों की दशा पर चिंता प्रकट करने और उसका समाधान पेश करने के बजाए अमरीकी नागरिकों के अधिकारों के हनन पर ध्यान दें और उसके निवारण का रास्ता खोजें जो वास्तव में अमरीका समाज में विभाजन व आक्रोश का कारण बना हुआ है। 

 

अमरीका में विभिन्न रूपों में मानवाधिकारों का हनन नज़र आता है और अमरीकी सरकार की ओर से मानवाधिकार की रक्षा के बड़े बड़े दावों के बावजूद , स्थानीय लोगों, अश्ववेतों , अल्पसंख्यकों  बंदियों तथा अन्य विषयों के बारे में अमरीकी सरकार की नीतियों  पर नज़र डालने से , मानवाधिकारों के संदर्भ में अमरीकी सरकार के खोखले दावों की वास्तविकता सामने आ जाती है। अमरीकी सरकार को अपने गठन के आरंभ से ही, मानवता के विरुद्ध अपराध जैसे भारी आरोपों का सामना रहा है। स्थानीय लोगों का जिस तरह से सफाया किया गया है उससे हर एक अवगत है और रेड इंडियन्स को आज भी अमरीकी सरकार की ओर से भेदभाव का सामना है। इसी तरह पलायनकर्ताओं के प्रति अमरीकी सरकार का व्यवहार अति निंदनीय है। हयूमन राइट्स वाॅच  के अनुसार सन 2013 में अमरीका में सैंकड़ों गैर कानूनी पलायनकर्ताओं का बलात्कार हुआ लेकिन चूंकि उनके पास वीज़ा नहीं था इस लिए उन्होंने अपने साथ हुए अपराध की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करायी क्योंकि उन्हें यह डर था कि रिपोर्ट लिखाने की दशा में कहीं उन्हें ही गिरफ्तार न कर लिया जाए। अमरीका में पलायनकर्ताओं और विशेषकर गैर कानूनी पलायनकर्ताओं की दशा अत्याधिक दयनीय है। 

 

पलायन कर्ताओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन अपनी जगह पर लेकिन अमरीका मानवाधिकारों के हनन का सब से अधिक स्पष्ट रूप नस्लवाद में नज़र आाता है। अमरीका के इतिहास पर एक नज़र डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि नस्लभेद और अमरीका का साथ बहुत पुराना है और विशेषज्ञों का मानना है कि इस देश में नस्लभेद, उस समय से है जब अमरीका ब्रिटेन के वर्चस्व में था। हालांकि अमरीका में नस्लीय भेदभाव का रूप अब काफी बदल चुका है और अब बेहद सुनियोजित ढंग से यह घिनौना अपराध किया जाता है। इस अपराध के विभिन्न रूप अमरीका की न्यायपालिका, अर्थ व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य और पुलिस व सुरक्षा विभाग में भलीभांति देखे जा सकते हैं। यह सब एेसे हालात में है कि अमरीका हमेशा यह दावा करता है कि वह मानवाधिकारों का ध्यान रखता है और इस देश में महिला व पुरुष में समानता है लेकिन अमरीकी सरकार के दावों के विपरीत, आंकड़े यह बताते हैं कि इस देश में महिलाओं के अधिकारों का खुला हनन होता है उदाहरण स्वरूप अमरीका में अब भी 16 प्रतिशत पुरुषों का यह मानना है कि महिलाओं को मारना पीटना आम बात है। अमरीकी सेना में यौन हिंसा की घटनाओं में असाधारण वृद्धि  भी इस देश में महिलाओं के अधिकारों के हनन की एक खुली मिसाल है। जहां तक बच्चों के अधिकारों के हनन की बात है तो अमरीका का रिकार्ड इसमें भी बेहद खराब है और अमरीका ने वर्ष 2013 में बालअधिकार से संबंधित कन्वेंशन का विरोध किया जिसकी वजह से यह देश सोमालिया और दक्षिणी सूडान की सूचि में शामिल हो गया। इन तीनों देशों ने बच्चों के अधिकारों से संबंधित कन्वेंशन मंज़ूर नहीं किया 

 

अमरीका में नस्लभेद की सब से अधिक घटनाएं, अश्वेतों के साथ होती हैं। श्याम वर्ण के नागरिकों के साथ अपनाया जाने वाल व्यवहार, अमरीका में मानवाधिकार के हनन का स्पष्ट उदाहरण है। अमरीका में अश्वेतों के प्रति अत्याधिक कठोर व्यवहार और भेदभाव का आरंभ 17वीं सदी से आरंभ हुआ तो अब तक जारी है और यही वजह है कि नस्लभेद हमेशा से अमरीकी समाज का एक गर्म मुद्दा रहा है। अमरीका में एक अश्वेत के रूप में जब बाराक ओबामा राष्ट्रपति बनें तो यह आशा थी कि इस देश के अश्वतों की दशा में सुधार पैदा होगा लकिन व्यवहारिक रूप  में आर्थिक और सामाजिक हालात अधिक खराब हुए। श्याम वर्ण के लोगों के खिलाफ अमरकी कानूनों पर हमेशा ही मानवाधिकार की संस्थाओं ने आपत्ति की है। मानवाधिकार के कार्यकर्ताओं का कहना है कि अश्वेतों के खिलाफ सब से अधिक नस्लभेदों व्यवहार, पुलिस की ओर से होता है और इसी तरह, अन्य अमरीकियों की तुलना में अदालत की ओर से अश्वतों के सज़ा मिलने की संभावना अधिक होती है। अमरीका में श्याम वर्ण लोगों की आबादी 13 प्रतिशत है लेकिन अमरीका में नागरिकों की दी जाने वाली शिक्षा व अन्य सुविधाओं तथा धन में इन का हिस्सा बहुत कम है जबकि उनकी समस्याओं बहुत ज़्यादा हैं। 

 

अमरीकी जेलों में काले वर्ण के लोगों की संख्या बहुत अधिक है और बड़े बड़े नगरों के आस पास रहने वाले अश्वेत वर्ण के लोगों की दशा सच में दयनीय है। आंकड़ों से पता चलता है कि अमरीका में तेइस लाख बंदियों में से दस लाख काले वर्ण के बंदी हैं और सब से दुखदायी बात यह है कि अमरीकी पुलिस की हिंसा का शिकार भी यही लोग सब से अधिक बनते हैं जिसकी वजह से हालिया वर्षों में पूरे अमरीका में व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन भी हुए यह सब उस देश में होता है  जो पूरी दुनिया में मानवाधिकार और प्रजातंत्र की रक्षा का ढिंढोरा पीटता है और अन्य देशों को कटघरे में खड़ा करता है। यह प्रक्रिया डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में अधिक तेज़ी से चल रही है क्योंकि वह स्पष्ट रूप से नस्लभेदी विचारों के स्वामी हैं जिसका का प्रदर्शन उन्होंने चार्लोट्सविले की घटना के समय किया था। अमरीकी सामाजिक कार्यकर्ता राबर्ट फान्टीना ने कई सुबूत पेश करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प को नस्लभेदी कहा है । उनका कहना है कि राष्ट्रपति के रूप में उनके चयन के बाद से अमरीका में नस्लीय घृणा की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र संघ में नस्ल भेद पर अंकुश लागने वाली संस्था सीईआरडी ने अमरीका को कड़ी चेतावनी देते हुए ट्रम्प की सरकार  से मांग की कि वह स्पष्ट रूप से और बिना किसी शर्त के इस देश से नस्लभेद का अंत करे। यह चेतावनी चार्लोट्सविले की घटना के बाद दी गयी थी जहां नस्लभेदी गोरे अमरीकियों के प्रदर्शन का विरोध करते हुए एक मानवाधिकार कार्यकर्ता मारा गया था। 

 

अमरीका में मानवाधिकारों के हनन का अन्य पहलु , इस देश के सामाजिक ताने बाने से सबंधित हैं उदाहरण स्वरूप हथियारों का निरंकुश इस्तेमाल, इस देश में अत्यायधिक असुरक्षा का कारण बना है और इस तरह से सुरक्षा का आभास जो हर देश के नागरिक का मूल अधिकार होता है, अमरीकी नागरिकों को प्राप्त नहीं है। आंकडों के अनुसार अमरीका में हिंसा से जुड़े अपराध, विश्व में सब से अधिक होते हैं इस देश में हिंसा से जुड़े अपराध, अन्य विकसित देशों की तुलना में बीस गुना अधिक हैं। अमरीका विश्व के उन देशों में शामिल है जहां हथियार रखना और खरीदना, कानूनी रूप से वैध है और इस देश में तीस करोड़ से अधिक निजी हथियार मौजूद हैं और एक अनुमान के अनुसार इस देश में हर साल तीस हज़ार लोग , फायरिंग में मारे जाते हैं लेकिन चूंकि हथियारों की बिक्री से, हथियारों की कंपनियों को भारी लाभ मिलता है इस लिए इस देश में हथियारों के व्यापार पर अंकुश लगाना संभव नहीं । बहुत से अमरीकियों का कहना है कि अमरीकी सरकार और कांग्रेस  जान बूझ कर हथियारों के कानून से पैदा होने वाली दुखदायी स्थिति की अनदेखी कर रही है। 

 

अमरीका में मानवाधिकारों के हनन का एक अन्य उदाहरण पुलिस का व्यवहार है। अमरीका में पुलिस की ओर से आम नागरिकों के खिलाफ हिंसा एक आम बात है। पुलिस की ओर से हिंसा की घटनाएं अमरीका में इतना अधिक हैं कि इस देश में पुलिस की हिंसा का विरोध दिवस मनाया जाता है और इस दिन अमरीकी , प्रदर्शन करके पुलिस की हिंसा का विरोध करते हैं और हालात में सुधारने की मांग करते हैं। इसी तरह से अमरीका में बंदियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार भी मानवाधिकार के हनन का एक स्पष्ट उदाहरण है। अमरीका में जेलों और बंदियों की जो हालत है उसकी वजह से मानवाधिकार की संस्थाओं ने निरंतर विरोध दर्शाया है और रिपोर्टें तैयार की हैं । बहुत से बंदियों को बिना किसी मुक़द्दमे के बरसों तक जेलों में बंद रखा जाता है। अमरीका में बंदियों की संख्या भी बहुत अधिक है और जनसंख्या के अनुपात अमरीका में बंदियों की संख्या विश्व में सब से अधिक है। पियो के अनुसार विश्व के कुल बंदियों में से एक चौथाई अमरीकी हैं और अमरीका के एक लाख लोगों में से 754 लोग जेल में हैं। 

 

अमरीका में मानवाधिकारों के हनन का एक अहम उदाहरण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का न होना और सरकारी तंत्र की जासूसी के कारण लोगों की निजी जानकारियों के सार्वजनिक होने के कारण उन्हें फंसाना है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के दृष्टिगत अमरीका में इनमें से कुछ अहम मामलों के हनन की ओर संकेत किया जा सकता है। इनमें से अहम और विवादित मामला अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के पूर्व कर्मचारी एडवर्ड स्नोडन के ख़िलाफ़ कार्यवाही है। अमरीका की सुरक्षा व गुप्तचर संस्थाओं विशेष कर राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा लोगों की जासूसी के संबंध में अहम सूचनाओं को सार्वजनिक करने के कारण स्नोडन के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्यवाही की गई। उन्हें विवश होकर अमरीका से भागना पड़ा और इस समय वे रूस में राजनैतिक शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।

स्नोडन ने प्रीज़्म नामक कार्यक्रम से संबंधित सूचनाएं सार्वजनिक की थीं ताकि दुनिया भर के लोगों की मूल आज़ादी की रक्षा कर सकें। जासूसी का यह कार्यक्रम अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी और इस देश की फ़ेडरल पुलिस एफ़बीआई को यह अनुमति देता है कि वे अमरीका व अन्य देशों के लोगों के ईमेल, वीडियो, चेट, चित्र और अन्य अहम सूचनाओं और इसी तरह फ़ोन कॉल्ज़ तक पहुंच बना सकें।

अमरीकाने हमेशा इस बात की कोशिश की है कि अंतर्राष्ट्रीय मान्यताओं और वैश्विक क़ानूनी पर ध्यान दिए बिना अपने विदेशी लक्ष्यों को हासिल करे। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए उसने अन्य देशों में मानवाधिकार का खुल कर और व्यापक रूप से हनन किया है। अमरीका ने अपने गठन के समय से ही अपनी सीमाओं के बाहर आम नागरिकों का जनसंहार किया है, मानवाधिकार का हनन किया है और अन्य देशों पर युद्ध थोपे हैं। राजनैतिक मामलों के विशेषज्ञ हसन हानी ज़ादे संसार के विभिन्न देशों में अमरीका के अपराधों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि अमरीका, मानवाधिकारों का सबसे बड़ा हननकर्ता है। वियतनाम, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया और यमन इत्यादि देशों में अमरीका के अपराध, अमरीकी सरकार की ओर से मानवाधिकारों के हनन की भली भांति दर्शाते हैं। यह देश अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पर अपने प्रभाव के चलते इन्हें संसार के अन्य देशों के ख़िलाफ़ प्रोपेगंडे के लिए इस्तेमाल करता है।

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का हनन, अफ़ग़ानिस्तान व इराक़ पर हमले, अबू ग़रेब और बगराम जेलों में मानवाधिकारों का भयंकर हनन, हज़ारों निर्दोष लोगों की हत्या और इसी तरह ड्रोन विमानों के माध्यम से तथाकथित आतंकवाद विरोधी हमले, मानवाधिकारों का खुला हनन हैं। देश से बाहर अमरीका की ओर से मानवाधिकारों के हनन का एक अन्य मामला ग्वानतानामो जेल में असंख्य लोगों के बिना किसी आरोप के केवल संदेह के चलते बंद करना और भयंकर यातनाएं देना है। इस पर स्वयं अमरीका के भीतर और बाहर अत्यधिक आपत्तियां हुईं।

संयुक्त राष्ट्र संघ में मानवाधिकारों के एक शोधकर्ता निल्स मेलज़र ने दिसम्बर वर्ष 2017 में रिपोर्ट दी थी कि उनके पास एक क़ैदी की सूचनाएं हैं जिसे ग्वानतानामो में अमरीकी जेल में यातनाएं दी गई हैं। पूरे संसार में सीआईए की ओर से अमरीकी की रक्षा के बहाने आतंकवाद कार्यवाहियों के आरोपियों की गिरफ़्तारी और उनसे ग़ैर क़ानूनी और गुप्त पूछताछ भी, जो जार्ज बुश के राष्ट्रपति काल में शुरू हुई थी, अमरीका से बाहर मानाधिकारों के हनन का एक अहम मामला है। (Q.A.)

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