May ०७, २०१८ १४:२८ Asia/Kolkata

आज दुनिया में शायद ही कोई हो जिसने सात अजूबों का नाम न सुना हो।

ये सात अजूबे प्राचीन काल में वास्तुकला और मूर्ति निर्माण के उत्तम नमूने हैं। विदित रूप से दूसरी शताब्दी पूर्व मसीह में एक व्यक्ति ने अपनी किताब में इन अजूबों का वर्णन किया था। ये अजूबे हैं, ऐलेक्ज़ेन्ड्रिया का रोशनीघर, गीज़ा के पिरामिड, रोडेस की विशाल मूर्ति, अर्टेमिस का उपासनाघर, बेबीलोन के झूलते बाग़, ओलम्पिया में ज़ियस की मू्र्ति और हेलीकारनासोस का मक़बरा।

आज की दुनिया में संपर्क माध्यमों के विस्तार और इंसान के हाथों बनाई गई कलाकृतियों के बारे में विचार बदलने से सात अजूबों के चयन के बारे में कुछ क़दम उठाए गए हैं। जिन अजूबों के नाम लिए गए उनमें से सिर्फ़ मिस्र के पिरामिड बाक़ी बचे हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि अब नए चयन होने चाहिए। यूनेस्को से संबंधित एक संस्था ने कुछ साल पहले एक सर्वेक्षण कराया था जिसमें दस करोड़ से अधिक लोगों ने भाग लिया और नए अजूबों का चयन किया जिनमें चीन की दीवार और ताज महल जैसी इमारतें भी शामिल हैं।

पुरातन अवशेषों ने सात अजूबों के बहुत से ऐतिहासक राज़ों से पर्दा उठा दिया है। ये ऐसी विचित्र इमारतें हैं जो उनके निर्माताओं के लिए धर्म, कला, शक्ति और ज्ञान का प्रतीक रही हैं लेकिन हमारे लिए इंसान की शक्ति व क्षमताओं का प्रमाण हैं। इन इमारतों के माध्यम से प्राचीन काल के इंसान ने अपनी कला का प्रदर्शन किया और सभ्यता का आधार रखा। सभ्यता का शाब्दिक अर्थ नगर व नगर निवास है और इसे उस सामाजिक व्यवस्था के लिए प्रयोग किया जाता है जिसके परिणाम में सांस्कृतिक सृजनात्मकता संभव होती है और जारी रहती है।

 

संस्कृति का प्रचलित अर्थ गद्य, पद्य, लोक साहित्य और मानव विज्ञान या एंथ्रोपोलोजी जैसी बातें हैं। व्यापक दृष्टि से देखा जाए तो संस्कृति, एक सभ्य समाज का मार्ग प्रशस्त करती है। वास्तुकला , संस्कृति की ही शाखा है और मनुष्य की ज़रूरतों की सेवा में रहती है। कुछ लोगों का कहना है कि वास्तुकला, अच्छा जीवन बिताने की कला है जबकि कुछ अन्य ने इसे कला व पदार्थ का मिश्रण कहा है लेकिन शायद इसकी सबसे समग्र परिभाषा यह हो कि वास्तुकला समय के साथ किसी समाज की संस्कृति का प्रतिबिंबन है। एक अच्छे वास्तुकार की विशेषताएं भी अनेक होती हैं जैसे कलात्मक क्षमता, भुगोल का अच्छा ज्ञान, समाज की पहचान, मनोज्ञान में दक्षता, धर्म की पहचान, गणित व ज्योमिति जैसे ज्ञानों व तकनीक में महारत।

शरण स्थल के निर्माण की शैली के रूप में वास्तुकला का इतिहास मानव इतिहास जितना ही पुराना है लेकिन आज इमारतों के निर्माण की कला इस प्रकार की हो गई है कि वह दर्शनाशस्त्र, प्रोग्रामिंग, आर्थिक विकास और भौतिक शास्त्र इत्यादि ज्ञानों से प्रभावित है। आज की दुनिया में वास्तुकला, मनुष्य के सबसे ज़्यादा सामाजिक मेलजोल को दर्शाने वाली कला है और इसका मनुष्य के पर्यावरण से संबंध है। अतीत से लेकर अब तक स्थान, इमारतें और शहर मनुष्य के प्रतिदिन के जीवन में मूल भूमिका निभाते रहे हैं। शहर, ऐसी इमारतों से भरे होते हैं जो कला और वैज्ञानिक दक्षता से लाभ उठा कर तैयार होती हैं और हमारे आस-पास के माहौल को तैयार करती हैं।

 

ईरान में भी कला का इतिहास, मानव इतिहास जितना ही पुराना है और कलाओं में सबसे पुरानी कला वास्तुकला है। प्राचीन ईरान में वास्तुकला की वैभवता व परिपूर्णता इस बात की साक्षी है कि यह देश शहर निर्माण, बांध निर्माण और इंजीनियरिंग के सबसे प्राचीन केंद्रों में से एक रहा है। आज भी ईरान और उन क्षेत्रों में जगह जगह पर, जो ईरान के अधीन रहे हैं या जहां ईरानी वास्तुकार रहे हैं, सैकड़ों इमारतें दिखाई देती हैं जिनमें से हर एक ईरानी वास्तुकारों की कला का नमूना है।

 

पुरातनविदों के लेखों के अनुसार ईरानी वास्तुकला का अतीत छः हज़ार पूर्व मसीह से जा मिलता है। प्रख्यात ईरानवेत्ता आर्थर पोप कहते हैं कि ईरानी वास्तुकला अपने प्राचीन इतिहास में तीन सिद्धांतों सुदृढ़ता, आराम और प्रफुल्लता पर आधारित रही है और ईरानी वास्तुकार, इमारतों के निर्माण में डिज़ाइन की सादगी और सजावट पर ध्यान केंद्रित करते थे। पोप की सराहना वास्तव में उन बातों की पुष्टि है जिसकी इतिहास ने बार बार पुष्टि की है। तख़्ते जमशेद या पर्सपोलिस के स्तंभ और हॉल, बग़दाद के निकट ताक़े कसरा या मदायन के हॉल, ईरान व पाकिस्तान के बलोचिस्तान में प्राचीन सभ्यता के अवशेष, मर्व में प्राचीन इमारतें, किरमानशाह में ताक़े बुस्तान, इस्फ़हान की ऐतिहासिक मस्जिदें, भारत में ताज महल और अन्य हज़ारों इमारतें, ईरान के वास्तुकारों के मूल्यवान अवशेष हैं।

 

अधिकांश मामलों में इन अवशेषों की वास्तुकला सादा है लेकिन उसमें ऐसी विशेषताएं हैं जिन्हें ईरानी वास्तुकला का आधार कहा जा सकता है। ये विशेषताएं हज़ारों बरस से विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ कर अत्यंत विविध और मूल्यवान हो गई हैं और अब ईरानी वास्तुकला विश्व स्तर पर वास्तुकला के अहम मतों में से एक समझी जाती है। इस संबंध में एक अहम बात यह है कि वास्तुकला के अवशेषों से ईरान के लोगों की श्रद्धा और जुड़ाव है जो पवित्र अवशेषों के निर्माण का कारण बना है।

 

ईरान में इस्लाम के आगमन के बाद ईरानी कला व वास्तुकला में जो परिवर्तन आया वह एक ऐसा प्रकाशमीय मोड़ है जिसने मानवता के कला के ख़ज़ाने को बड़े बेजोड़ मोती प्रदान किए हैं। मस्जिदों और इसी प्रकार की अन्य इमारतें जो ईरानी शैली में और सजावट की इस्लामी कला के मिश्रण से बनाई गईं, पूरे ईरान में दिखाई देती हैं और ईरानी वास्तुकला पर इस्लाम के प्रभाव को उजागर करती हैं। दक्ष मुस्लिम वास्तुकारों ने सदियों तक इस बात की कोशिश की कि नई इमारतों के निर्माण में इस्लामी मान्यताओं के आधार पर पूरिपूर्णता का प्रदर्शन करें और सच्चाई यह है कि वे अपने इस लक्ष्य में सफल रहे हैं।

ईरान के संकलित इतिहास के आरंभ से लेकर अब तक ईरानी वास्तुकला के मूल बिंदुओं पर नज़र डालने से उस राजमार्ग का रास्ता खुल जाता है जो ईरान की प्राचीन सभ्यता के हृदय तक पहुंचता है।

इस कार्यक्रम में हम बाज़ारों, मस्जिदों, मदरसों, दुर्गों, महलों, हम्मामों, पुलों, सरायों और घरों के निर्माण में ईरानी वास्तुकला की विविध शैलियों और बेजोड़ विशेषताओं का भी उल्लेख करेंगे। ईरानी इमारतें, ईरानी कलाकारों की अद्भुत कलाओं का दर्पण हैं। हम उनकी भी समीक्षा करेंगे और इमारतों की सजावट के बारे में भी बात करेंगे और आपको चूने, टाइल्स, आइने इत्यादि के काम से अवगत कराएंगे। ईरान व संसार के अन्य स्थानों पर ईरानी वास्तुकला के नमूनों का परिचय भी हमारे इस कार्यक्रम में शामिल रहेगा। हमें आशा है कि हमारा ये प्रयास आपको पसंद आएगा। (HN)

 

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