May ०९, २०१८ १२:१० Asia/Kolkata

क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-647

 

وَإِذَا رَأَوْكَ إِنْ يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَذَا الَّذِي بَعَثَ اللَّهُ رَسُولًا (41) إِنْ كَادَ لَيُضِلُّنَا عَنْ آَلِهَتِنَا لَوْلَا أَنْ صَبَرْنَا عَلَيْهَا وَسَوْفَ يَعْلَمُونَ حِينَ يَرَوْنَ الْعَذَابَ مَنْ أَضَلُّ سَبِيلًا (42)

 

और (हे पैग़म्बर!) वे जब भी आपको देखते हैं तो आपका परिहास की करते हैं (और कहते हैं) कि क्या यही हैं, जिन्हें ईश्वर ने पैग़म्बर बना कर भेजा है? (25:41) अगर हम मूर्तियों (की पूजा) पर डटे न होते तो इन्होंने तो हमें अपने पूज्यों की ओर से भटका ही दिया होता, और शीघ्र ही, जब वे दंड को देखेंगे तो उन्हें पता चल जाएगा कि कौन अधिक पथभ्रष्ठ है? (25:42)

 

 

أَرَأَيْتَ مَنِ اتَّخَذَ إِلَهَهُ هَوَاهُ أَفَأَنْتَ تَكُونُ عَلَيْهِ وَكِيلًا (43)

 

(हे पैग़म्बर!) क्या आपने उसे देखा जिसने अपनी (आंतरिक) इच्छा को अपना प्रभु बना रखा है? तो क्या आप उस (के मार्गदर्शन) का ज़िम्मेदारी ले सकते हैं? (25:43)

 

 

أَمْ تَحْسَبُ أَنَّ أَكْثَرَهُمْ يَسْمَعُونَ أَوْ يَعْقِلُونَ إِنْ هُمْ إِلَّا كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ سَبِيلًا (44)

 

(हे पैग़म्बर) क्या आप यह समझते हैं कि उनमें से अधिकतर लोग (सत्य को) सुनते और (उसके बारे में) चिंतन करते हैं? वे तो बस चौपायों की तरह हैं, बल्कि उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट! (25:44)