परमाणु समझौते से अमरीका के निकलने का विषय
अमरीका ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि कभी भी उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने 8 मई मंगलवार को ईरानी समय के अनुसार साढ़े दस बजे रात को महीनों के प्रोपेगैंडे के बाद आख़िरकार संयुक्त समग्र कार्य योजना या परमाणु समझौते को परिणामहीन बताते हुए इस समझौते से निकलने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। ईरान और गुट पांच धन एक के बीच परमाणु समझौता हुआ था जिसकी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने पुष्टि भी की थी। जेसीपीओए, ईरान और गुट पांच धन एक के बीच सहयोग का परिणाम है। इसके बाद राष्ट्रपति रूहानी के कथनानुसार परमाणु समझौते का एक उल्लंघनकर्ता और रोड़े अटकाने वाला तत्व अमरीका परमाणु समझौते से निकल गया है।
परमाणु समझौते के एक पक्षकार के रूप में अमरीका ने वादा किया था कि वह सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव क्रमांक 2231 के अनुसार ईरान के विरुद्ध लगाए गये प्रतिबंधों को समाप्त कर देगा और कोई भी ऐसी कार्यवाही नहीं करेगा जो ईरान की आर्थिक गतिविधियों और ईरान में पूंजीनिवेश के मामले में रुकावट पैदा करे चूंकि जेसीपीओए की 26, 28 और 29 अनुच्छेदों में इन वचनों पर बल दिया गया किन्तु 8 मई की रात अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने समस्त वचनों को धता बताकर परमणु समझौते से निलकने के आदेश पर हस्तक्षार कर दिए।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने 8 मई को डोनल्ड ट्रम्प के परमाणु समझौते से निकलने के फ़ैसले के तुरंत बाद ईरानी राष्ट्र को टेलीवीजन द्वारा संबोधित करते हुए कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अब तक परमाणु समझौते के अपने वचनों पर अमल किया है। उनका कहना था कि अमरीका ने कभी भी इस समझौते के अपने वचनों पर अमल नहीं किया और पहले से ही यह अनुमान लगाया जा रहा था कि अमरीका परमाणु समझौते से निकल जाएगा।
डाक्टर हसन रूहानी ने कहा कि जेसीपीओए बाक़ी रहेगा और हम अपने दूसरे सहयोगियों के साथ शांति के मार्ग पर आगे बढ़ेंगे और यदि हमारे हित पूरे नहीं हुए तो उन हालात में हम नया फ़ैसला करेंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि ट्रम्प की हरकत, ईरान पर आर्थिक दबाव डालने का एक मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा है।
जेसीपीओए से एक पक्षीय रूप से निकललने की अमरीकी कार्यवाही ऐसी स्थिति में है कि अभी तक ज़ायोनी शासन को छोड़कर दुनिया के विभिन्न देशों ने परमणु समझौते के प्रति अपने समर्थन की घोषणा की है। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोग्रेनी ने ट्रम्प के फ़ैसले के बाद पत्रकारों से बात करते हुए बल दिया कि ईरान के साथ परमाणु समझौता 12 साल के कूटनयिक प्रयासों का परिणाम है और यह समझौता पूरी दुनिया का समझौता है। उन्होंने ईरानी अधिकारियों से मांग की है कि वह किसी को भी इस समझौते को तबाह करने की अनुमति न दें।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी ने 28 आधिकारिक रिपोर्टों में बल दिया है कि ईरान की परमाणु गतिविधियां कभी भी दिगभ्रमित नहीं रखीं और जेसीपीओए के बाद आईएईए की दस रिपोर्टों में भी बल दिया है कि ईरान जेसीपीओए में वर्णित अपने समस्त वचनों पर प्रतिबंध रहा है।
अमरीका का दावा है कि ईरान ने बैलेस्टिक मीज़ाइलों का परीक्षण करके संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का सम्मान नहीं किया है और इस बहाने से जिसका परमाणु समझौते और परमाणु वार्ता से कोई लेना देना नहीं है, परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के समय से ही ईरान के विरुद्ध नये प्रतिबंध लगा दिए ।
अमरीका विशेलेष्क जेम वाल्श का कहना है कि मामला बहुत साधारण है, ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में अमरीका की सूचना समाज वरषों से ये दावे कर रहा था किन्तु कभी भी उसने एक प्रमाण भी पेश नहीं किए जिनसे सिद्ध होता हो कि ईरान गुप्त परमाणु कार्यक्रम रखता है किन्तु जब समझौता हो गया, तो मीडिया ने कभी भी इस दावे पर टिप्पणी नहीं और यह नहीं कहा कि यह सभी दावे मनगढंत थे।
12 साल तक झूठा आरोप लगाने के बाद अमरीका की गुप्तचर संस्था सीआईए के पूर्व प्रमुख और वर्तमान विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने अपनी योग्यता की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक में इन दावों के झूठा होने को स्वीकार किया और कहा कि परमाणु समझौते से पहले कोई भी ऐसा प्रमाण नहीं था जिससे यह सिद्ध होता हो कि ईरान परमाणु हथियारों की प्राप्ति की ओर बढ़ रहा है और इस बात के भी सबूत नहीं थे कि परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के बिना भी ईरान इस प्रकार की क्षमता प्राप्त कर सकता है किन्तु अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने परमाणु समझौते में बाक़ी रहने के लिए जो शर्तें रखी हैं वह केवल एक बहाना था। सैन्य प्रतिष्ठानों तक पहुंच, सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव की अनदेखी करते हुए परमाणु समझौते के कुछ अनुच्छेदों में परिवर्तन और ईरान की मीज़ाइल क्षमताओं को सीमित करने जैसी अतार्किक मांगों से पता चलता है कि अमरीका, परमाणु समझौते में सुधार से आगे के लक्ष्य साधने के प्रयास में है।
अमरीका की ईरान विरोधी नीतियों और यूरोपीय संघ की डावांडोल नीतियों की यह मांग है कि अमरीका के बिना परमाणु समझौते के बाद की संभावित हरकतों की सटीक समीक्षा करके उसके अनुसार नई नीतियां अपनाई जाएं। ट्रम्प को बहुत मूर्ख, पागल और यहां तक कि बच्चा तक कहा गया कि जो दिखने में तो बड़ा हो गया है किन्तु वह बौद्धिक रूप से अभी भी बचकानी हरकत करता है। सवाल यह पैदा होता है कि क्या यह ग़ुडा टैक्स, ही ईरान से अमरीका की मांग है। इसका जवाब स्पष्ट है। इसका लक्ष्य, ईरानी राष्ट्र पर फिर से वर्चस्व जमाने की अमरीका की मन की इच्छा है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने अपने दिल की इस भ्रांति को तेज़ी से व्यवहारिक बनाने का प्रयास शुरु कर दिया और उन्होंने सभी को "चाहिए" शब्द से जोड़ दिया जबकि अमरीका की ज़ोरज़बरदस्ती का इतिहास पहले ही गुज़र चुका है। यह ऐसी हालत में है कि अमरीका की शत्रुतापूर्ण नीतियां विशेषकर हालिया दिनों में ट्रम्प के फ़ैसले कभी इधर और कभी उधर रहे हैं।
इसका पहला आयाम अमरीका की खुली दुश्मनी है जिससे पता चलताहै कि समस्त धमकियों और चेतावनियों के बावजूद उस पर वह बल देता रहा और आख़िर में उसने मूर्खतापूर्ण कार्यवाही करते हुए भारी प्रयासों से प्राप्त होने वाले समझौते को एक पल में तोड़ दिया। अमरीका के व्यवहार का दूसरा पहलू जेसीपीओए की आड़ में मुख्य व्यवस्था के विरोध की नीति को छिपाना है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने एक सा पहले व्यवस्था के अधिकारियों से मुलाक़ात में इस वास्तविकता को इस प्रकार बयान किया था। उनका कहना था कि हमारे बहुत से मामले अमरीका के साथ मूल रूप से हल योग्य नहीं हैं, इसका कारण भी यही है कि अमरीका की हमारे साथ समस्या, स्वयं हम हैं, अर्थात इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था, समस्या यही है, न परमाणु ऊर्जा की कोई समस्या है, न मानवाधिकार से कोई समस्या है, अमरीका की मुख्य समस्या इस्लामी गणतंत्र है।
यदि हम अमरीका के व्यवहार पर नज़र डालें तो हमको पता चलेगा कि इस प्रकार के व्यवहार परमाणु समझौते से पहले भी थे। दूसरे शब्दों में यूं कहा जाए कि यह ईरान से अमरीका की दुश्मनी का ही परिणाम है। अमरीका धोखाधड़ी द्वारा इस प्रकार काम करता है ताकि उस पर बहुपक्षीय जेसीपीओ के अनुच्छेदों के उल्लंघन का आरोप न लगे किन्तु जेसीपीओए को ख़त्म करने की उसकी जल्दबाज़ी के अतार्किक और अस्वीकार्य कारणों ने उसके सारे हिसाब किताब बिगाड़ दिए क्योंकि ईरान ने परमाणु तकनीक के क्षेत्र में कोई भी ग़ैर क़ानूनी काम नहीं किया और दुनिया के परमाणु कार्यक्रमों पर नज़र रखने वाली एकमात्र संस्था के रूप में आईएईए ने भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण होने और ईरान द्वारा परमाणु समझौते पर पूर्णरूप से अमल करने पर बल दिया है। परमाणु रिएक्टर और बिजलीघरों की आवश्यकता के परमाणु ईंधन के उत्पादन के लिए यूरेनियम के संवर्धन के स्तर को बढ़ाने सहित आईएईए की निगरानी में जेसीपीओए से पहले की परमाणु गतिविधियों में ईरान का वापस आना, एक स्वीकार्य हक़ है जिसको प्राप्त करना सबका मूल अधिकार है।
प्रत्येक दशा में ईरान की नज़र में उत्तर और प्रतिक्रिया दोनों ही निर्धारित है। परमाणु समझौते की रक्षा के लिए ईरान की डेडलाइन तभ तक है जब उसके राष्ट्रीय हित सुरक्षित हों और जब परमाणु समझौता इस परिधि से निक जाएगा तो ईरान भी निश्चित रूप से परमाणु समझौते में बाक़ी नहीं रहेगा ।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ और प्रोफ़ेसर नासिर हादियान परमाणु समझौते के बारे में कहते हैं कि यह दबाव इस्राईल की वजह से हैं। ट्रम्प, ईरान में सरकार परिवर्तन की नीति को आगे बढ़ा रहे हैं और इस बारे में ईरान के संबंध में अमरीका की नीतियां छह बातों पर केन्द्रित हैं। इस्राईल, इस्राईली लाबियां, सऊदी अरब, सऊदी अरब की लाबियां, आतंकवादी गुट एमकेओ और नियो कन्ज़रवेटिव धड़े। इन धड़ों ने अमरीका के विभिन्न राष्ट्रपतियों के काल में ईरान को विश्व समुदाय के लिए मुख्य खत़रे के रूप में पेश करने का प्रयास किन्तु ट्रम्प धमकियों और भ्रांतियो को मिलान वाले हैं ताकि यह परिणाम निकाल सकें कि ईरान में ऐसी व्यवस्था है जो समस्याजनक है। इस्राईल के दबाव में रहने वाला अमरीका, पहले से अधिक ईरान में सरकार परिवर्तन का प्रयास करने लगा।
इस्लामी क्रांतिं की सफलता के बाद से अब तक ईरानी राष्ट्र ने कभी भी अमरीका पर विश्वास नहीं किया और जेसीपीओए के संबंध में अमरीका के उल्लंघनों से इसकी पुष्टि हो गयी कि अमरीका पर कभी भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
अमरीका के कारंगी थिंक टैंक और न्यू अमेरिकन सेक्युरिटी सेन्टर के विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि ईरान, पश्चिमी एशिया या मध्यपूर्व में अमरीकी हितों के लिए एक कठिन और गंभीर चुनौती समझा जाता है और अमरीका को इस चुनौती का समाधान करने के लिए तेहरन के संबंध में एकमत और व्यापक रणनीति बनानी होगी।
वर्तमान समय में परमाणु समझौते से निकलकर अमरीका ने ईरान के संबंध में व्यापक और एकमत रणनीति का मौक़ा ही खो दिया। अमरीका ने इस मामले में उल्लंघन करके अपने सामने मौजूद चुनौती को और कठिन कर दिया। अमरीका, इस समय ईरान और परमाणु समझौते के दूसरे पक्षों के विभिन्न विकल्पों और टकराव का मुक़ाबला करने पर विवश है क्योंकि अमरीका द्वारा परमाणु समझौते से निकलने की संभावित कार्यवाही के लिए दूसरे पक्षों ने विभिन्न विकल्प की बात कहीं थीं और अब अमरीका को इसके लिए स्वयं को तैयार करना चाहिए। इस्लामी गणतंत्र ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लमी के सांसदों ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के नाम अपने पत्र में बल दिया कि जनता और अधिकारियों को कभी भी किसी हालत में दुश्मनों को इस बात की अनुमति नहीं देनी चाहिए कि वह ईरान पर अपनी ग़ैर क़ानूनी इच्छाओं को थोप सकें। (AK)