मार्गदर्शन- 84
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यदि मुस्लिम राष्ट्र, इन अद्वितीय और अपार संभावनाओं और क्षमताओं के साथ न आंशिक मामलों में बल्कि एक पूरे विषय पर एक साथ हो जाएं तो इस्लामी राष्ट्र का विकास और प्रगति पूरी हो जाएगी और इस्लामी जगत की एकता के विश्वस्तर पर से पैग़म्बरे इस्लाम की महानता व प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
मुसलमानों के बीच एकता हमेशा से इस्लाम के महान बुद्धिजीवियों, विचारकों, सुधारकें और धर्मगुरुओं की एक बड़ी चिंता का विषय रहा है। मुसलमानों के बीच एकता से अभिप्राय यह है कि मुसलमान, एकेश्वरवाद, पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम, पैग़म्बरे इस्लाम की सुन्नत और उनका आचरण, प्रलय पर ईमान जैसी संयुक्त धार्मिक चीज़ों की रक्षा और इन पर अमल करते हुए मुसलमान आपस में मेलजोल रख सकते हैं और धार्मिक, राजनैतिक, जातीय इत्यादि विभिन्न प्रकार के मतभेदों से बच सकते हैं जो मुसलमानों की कमज़ोरी का कारण बनते हैं।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी को वर्तमान युग का बड़ा विचारक और सुधारवादी कहा जा सकता है जो सांस्कृतिक और राजनैतिक विचारों में एकता के साथ महत्वपूर्ण स्थान के स्वामी थे। उन्होंने मुसलमानों की एकता और एकजुटता को इस्लाम की शक्ति, प्रतिष्ठा और मज़बूती का कारण बताया है और वह बहुत अधिक इस्लामी एकता पर बल दिया करते थे। ईरान के इस्लामी क्रांति के ध्वजवाहक वरिष्ठ नेता आयतुल्लहिल उज़मा ख़ामेनेई भी इमाम ख़ुमैनी की भांति इस्लामी एकता पर बहुत अधिक बल देते हैं जो इस्लामी नियमों और पवित्र क़ुरआन के आधारों से प्राप्त होता है।
मुस्लिम महापुरुषों की नज़र में एकता, इस्लाम धर्म की रक्षा का महत्वपूर्ण स्रोत है। यदि हम यह कहें कि वरिष्ठ नेता और इमाम ख़ुमैनी ने मुसलमानों की एकता का अह्वान केवल संयुक्त दुश्मनों के मुक़ाबले में खड़े होने के लिए किया है तो यह बहुत बड़ी ग़लती होगी क्योंकि इस बात से मन में जो बात आती है वह यह है कि यदि कोई दुश्मन न हो तो मुसलमानों के बीच एकता की कोई आवश्यकता नहीं है और एक दूसरे से दूर और विरुद्ध रहा जा सकता है जबकि संयुक्त दुश्मनों का अस्तित्व, मुसलमानों के लिए एकता के महत्व को कई गुना कर देता है।
इस्लाम धर्म की मुख्य शिक्षाओं में एकता बहुत महत्वपूर्ण समझी जाती है और यह शिक्षाएं मुसलमानों से चाहती हैं कि न केवल आपस में मेलजोल रखें बल्कि ग़ैर मुस्लिम लोगों से भी मांग करती है कि इंसान होने के नाते एक दूसरे से मेलमिलाप रखे। पवित्र क़ुरआन मुसलमानों के बीच एकता पर बल देता है। पवित्र क़ुरआन अपनी प्रकाशमयी आयतों में मुसलमानों को एकता और मतभेद से दूर रहने का निमंत्रण देती हैं। इस्लाम धर्म कभी भी आपस में मतभेद और दूरियों को स्वीकार नहीं करता। पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 64 में आया है कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और मतभेद से बचो।
पैग़म्बरे इस्लाम, इमामों, धार्मिक नेताओं और मार्गदर्शकों का आचरण भी मुसलमानों के बीच एकता को मज़बूत बनाने के लिए संयुक्त बिन्दुओं पर भरोसा करने पर केन्द्रित रहा है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, मुसलमानों के बीच एकता और एकजुटता को उन दायित्वों में समझते हैं जो इस्लाम धर्म की मुख्य शिक्षाओं से निकले हैं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारा, हमारे धार्मिक सिद्धांतों में से है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में मुसलमानों के बीच एकता और मतभेदों से उनकी दूरी, वर्चस्ववादी व्यवस्था की ज़ोरज़बरदस्तियों के मुक़ाबले में सामूहिक रूप से डट जाने और दुनिया में छिने गये अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए उचित माहौल पैदा करती है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं के आधार पर बयान करते हैं कि अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और मतभेद से बचो। अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ना, हर मुसलमान के लिए एक दायित्व है किन्तु क़ुरआन इसी को पर्याप्त नहीं समझता, जहां हमें अल्लाह की रस्सी पकड़ने का आदेश दिया जाता है उसी के साथ हमसे कहा जाता है कि अल्लाह की रस्सी साथ मिलकर पकड़ो, हम सब मिलकर अल्लाह की रस्सी पकड़ें, यह एकता और साथ मिलने की कार्यवाही, एक दूसरा अनिवार्य कार्य है। इस आधार पर एक मुसलमान को चाहिए कि वह अल्लाह की रस्सी पकड़े और इस प्रक्रिया को उसे दूसरे मुसलमानों के साथ मिलकर मज़बूत करना चाहिए। हमको अल्लाह की रस्सी पकड़ने की प्रक्रिया को सही ढंग पहचानना चाहिए और उसको सही तरीक़े से अंजाम देना चाहिए।
सूरए बक़रह की आयत संख्या 256 में अल्लाह कहता है कि धर्म में किसी भी प्रकार की ज़ोरज़बरदस्ती नहीं है, मार्गदर्शन, पथभ्रष्टता से अलग और स्पष्ट हो चुकी है, अब जो व्यक्ति भी ताग़ूत अर्थात मूर्ती या शैतान का इन्कार करके अल्लाह पर ईमान ले आए वह उसकी मज़बूत रस्सी से जुड़ गया हो जिसके टूटने की संभावना नहीं है और ईश्वर अधिक सुनने वाला और जानने वाला है। यह आयत अल्लाह की रस्सी पकड़ने का अर्थ हमें बताती है। किस प्रकार से अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ा जाए? अल्लाह पर ईमान और शैतान का इन्कार करके, आज दुनिया का सबसे बड़ा शैतान अमरीका है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता विवरण देते हुए कहते हैं कि आज इस्लामी जगत की सबसे बड़ी समस्या यह है कि विश्व साम्राज्यावाद, पिछली दो शताब्दियों से इस बात में अपना हित देख रहे हैं कि मुसलमान राष्ट्रों के बीच मतभेद पैदा करें ताकि इन देशों की संपत्ति लूट सकें और मुस्लिम देशों को उन प्रगतियों से रो दें जो उनका अधिकार है। वरिष्ठ नेता का मानना है कि विश्व शक्तियों ने विज्ञान और तकनीक से जो हथियार बनाए उनका लक्ष्य इस्लामी देशों की लूटपाट क़रा दिया। वरिष्ठ नेता दुनिया में इस्लामी देशों की रणनैतिक स्थिति और उनमें मौजूद संपत्ति की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि आज मुस्लिम भौगोलिक क्षेत्र, दुनिया के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में है। इन क्षेत्रों में स्थित प्राकृतिक संसाधनों के लेहाज़ से दुनिया के सबसे अमीर देशों में हैं। आज यूरोप के लिए एशिया का दरवाज़ा, एशिया और अफ़्रीक़ा के लिए यूरोप का द्वार, एशिया और यूरोप के लिए अफ़्रीक़ा का दरवाज़ा, मुसलमानों से संबंधित है। मुसलमानों के पास यह क्षेत्र रणनैतिक क्षेत्र और धरती है, जिसमें तेल, गैस सहित अनेक प्राकृतिक संभावनाएं मौजूद हैं जिसकी आज मनुष्य को अपनी सभ्यता को बेहतर बनाने के लिए प्रतिदिन आवश्यकत होती है।
इन संभावनाओं के पाए जाने के कारण हर दिन नये रूप में विश्व साम्राज्यवाद इस्लामी देशों पर हाथ डालता रहता है। साम्राज्यवादी शक्तियों ने अब तक शिया और सुन्नी मुसलमानों को लड़ाकर और मुसलमानों को एक दूसरे का दुश्मन बनाकर मुस्लिम देशों में वर्चस्व जमाने और उनमें अपना प्रभाव पैदा करने के प्रयास किया है।
मुसलमानों के दुश्मनों पर पैनी नज़र रखने वाले इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता एक महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करते हैं। वरिष्ठ नेता कुछ साल पहले ही अमरीकी राजनेताओं की बात की ओर सबका ध्यान केन्द्रित कराते हुए कहते हैं कि जब वह नये मध्यपूर्व की बात कर रहे थे, तो उस वक़्त किसी को भी यह पता नहीं था कि वह मध्यपूर्व में कौन सी योजना बना रहे हैं। क्या काम करेंगे कि उसका नाम नया मध्यपूर्व होगा, साम्राज्यवादियों के इस प्रकार के बयान के क्या लक्ष्य हैं? इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मध्यपूर्व की ताज़ा स्थिति देखने के बाद दुश्मनों की योजना समझ में आ जाती है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि नया मध्यपूर्व अर्थात, युद्ध का मध्यपूर्व, आतंकवाद का मध्यपूर्व, द्वेष वाला मध्यपूर्व, रूढ़ीवाद वाला मध्यपूर्व, एक दूसरे से युद्ध में व्यस्त मध्यपूर्व, सीरिया में युद्ध है, इराक़ में युद्ध है, लीबिया में युद्ध है, इन समस्त देशों में आतंकवाद फैल गया है, तुर्की में आतंकवाद है, दूसरे स्थानों पर आतंकवाद है, यह है नया मध्यपूर्व, यह वही चीज़ है जिसका वह प्रयास कर रहे थे, जी हां, अब इनकार कर रहे हैं लेकिन इंसान के आंखें होती हैं, मनुष्य के बुद्धि होती है, देखता है, परखता है, शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच युद्ध छेड़ दें, देश के भीतरी तत्वों को सशस्त्र करके, राष्ट्रों और सरकारों की जान के पीछे डाल दें, यह उनका नया मध्यपूर्व है, अमरीका को पहचानें।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अब समय आ गया है कि इस्लामी जगत बुद्धि के नाख़ून ले और इस्लाम को सीधे ईश्वरीय रास्ते और मुक्तिदाता के रूप में चुने, मज़बूती के साथ इस्लाम के मार्ग पर क़दम बढ़ाए और संयुक्त दुश्मनों के मुक़ाबले में जिससे समस्त इस्लामी गुटों को नुक़सान पहुंचा है, अर्थात विश्व साम्राज्यवाद और ज़ायोनिज़्म, एक जुट खड़े हो जाएं और एक आवाज़ में नारा लगाएं और एक रास्ते का चयन करें। (AK)