Jun ३०, २०१८ १२:०५ Asia/Kolkata

29 जून का दिन ईरानी जनता और मानवता के इतिहास का एक कटु दिन है।

इसे रासायनिक व जैविक हथियारों से मुकाबले के अंतरराष्ट्रीय दिवस का नाम दिया गया है। वर्ष 1987 में 28 और 29 जून को इराक की बासी सरकार के युद्धक विमानों ने ईरान के पश्चिम में स्थित "सरदश्त" नगर के चार घनी आबादी वाले क्षेत्रों पर बमबारी की थी। इस बड़े हमले व जघन्य अपराध के तुरंत बाद दसियों लोग हताहत और हज़ारों घायल हो गये। जो लोग इन हमलों के कुछ ही देर बाद हताहत हो गये थे उन्हें कम समय तक पीड़ाओं को सहन करना पड़ा पंरतु जो लोग रासायनिक हथियारों से प्रभावित हुए उन्हें अधिक समय तक कठिनाइयों व पीड़ाओं का सामना करना पड़ा और आज भी कर रहे हैं। इराक की बासी सरकार के युद्धक विमानों ने सरदश्त नगर पर जो रासायनिक बमबारी की थी उसमें नगर के आठ हज़ार से अधिक लोग इन हमलों से प्रभावित हुए। जो लोग इन हमलों से प्रभावित हुए थे उनमें ध्यान योग्य संख्या बच्चों और महिलाओं की थी जिन्हें पूरी ज़िन्दगी उन्हें रासायनिक हथियारों से होने वाली पीड़ाओं का सामना करना पड़ा और पड़ रहा है। सद्दाम की सरकार ने आठ वर्षीय ईरान- इराक युद्ध के दौरान ईरान के खिलाफ पहली बार रासायनिक हथियारों का प्रयोग नहीं किया था बल्कि ईरान के सरदश्त नगर पर रासायनिक बमबारी से पहले सद्दाम ने बारमबार ईरानी सैनिकों के मोर्चों पर बमबारी की थी। उसकी वजह यह थी कि इराकी सैनिक रक्षात्मक स्थिति में थे और वे पीछे हटने पर बाध्य हो गये थे और ईरानी सैनिकों की पंक्ति को तोड़ने के लिए बारमबार रासायनिक हमला किया था। आठ वर्षीय ईरान- इराक युद्ध के दौरान इराक द्वारा ईरान पर किये गये रासायनिक हमलों के कारण एक लाख से अधिक लोग शहीद व घायल हो गये। रासायनिक हथियारों से जो लोग प्रभावित हुए थे तीन दशकों का समय बीत जाने के बावजूद वे अब भी इन हथियारों की पीड़ा झेल रहे हैं। इनमें से बहुत से प्रभावित लोग पिछले वर्षों के दौरान शहीद हो चुके हैं। एसा कोई महीना नहीं गुज़रता जिस दिन रासायनिक हथियारों से शहीद होने वाले किसी व्यक्ति की घोषणा न की जाये। सद्दाम ने ईरान के खिलाफ जो बारमबार रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया उसके लिए मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरने वाले अमेरिका और यूरोपीय देशों की नीतियां ज़िम्मेदार हैं। ये देश रासायनिक हथियारों के प्रयोग का आरोप सीरियाई सेना पर लगाते हैं और उस पर मिसाइलों से हमला करते हैं जबकि अभी तक उनका दावा सिद्ध नहीं हो सका है। आठ वर्षीय ईरान- इराक युद्ध के दौरान अमेरिका और पश्चिमी देशों ने न केवल छोटी सी आपत्ति सद्दाम के खिलाफ नहीं की बल्कि सद्दाम की भर्त्सना में संयुक्त राष्ट्र का प्रस्ताव भी पारित नहीं होने दिया।

ईरान- इराक युद्ध में अमेरिका और उसके यूरोपीय घटकों का पूरा प्रयास सद्दाम को पराजित होने से रोकना था और इन देशों ने सद्दाम को रासायनिक हथियारों की प्राप्ति में सहायता करने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं किया। इन देशों की यही सहायता इस बात का कारण बनी कि सद्दाम ने किसी प्रकार की चिंता व भय के बिना ईरान के खिलाफ बारमबार रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया। सरदश्त और हलब्चे नगरों के विभिन्न क्षेत्रों पर बारमबार सद्दाम के रासायनिक हमलों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। सद्दाम ने हलब्चे नगर पर जो रासायनिक हमला किया था केवल उसमें पांच हज़ार से अधिक लोग मारे गये थे। सद्दाम के हलब्चे नगर पर रासायनिक हमले से नौ महीने पहले राष्ट्रसंघ में एक प्रस्ताव पारित होने वाला था जिसे अमेरिका ने वीटो करके पारित होने से रोक दिया था। इस प्रस्ताव में रासायनिक हथियारों के प्रयोग में सद्दाम की भर्त्सना की गयी थी। इसी अमेरिकी सरकार ने जिसने वीटो करके सद्दाम के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने से रोक दिया था, वर्ष 2003 में इराक पर हमले का औचित्य दर्शाने के लिए कहा था कि सद्दाम के पास रासायनिक और सामूहिक विनाश के हथियार हैं। सद्दाम की सरकार का पतन होने से 6 महीने पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने इराक पर हमले का औचित्य दर्शाते हुए 7 सितंबर 2002 को अपने संबोधन के एक भाग में कहा था कि सद्दाम ने ईरान के खिलाफ और स्वयं इराक के 40 से अधिक गांवों के विरुद्ध रासायनिक हमलों का आदेश दिया था। इन हमलों में 20 हज़ार से अधिक लोग हताहत व घायल हुए थे।“ इस्लामी गणतंत्र ईरान के खिलाफ सद्दाम द्वारा रासायनिक हथियारों का प्रयोग एसा विषय नहीं था जिसकी सूचना अमेरिकी सरकार को अभी हुई हो। इसके अलावा जब ईरान- इराक युद्ध हो रहा था तब कभी भी व्यवहारिक रूप से अमेरिकी सरकार ने सद्दाम द्वारा रासायनिक हथियारों के प्रयोग का कोई विरोध नहीं किया। समाचार पत्र फाइनेन्शल टाइम्स ने 23 फरवरी वर्ष 1983 को अमेरिका की सैनिक  संस्था डीआईए की वर्ष 1980 की एक रिपोर्ट की ओर संकेत किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार बगदाद ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले भी रासायनिक हथियारों की प्राप्ति की चेष्टा में था।

वर्ष 1982 में इस्लामी गणतंत्र ईरान की सशस्त्र सेना और स्वयं सेवी बलों के जवानों ने इराकी सेना को करारा आघात लगाया और महत्वपूर्ण स्ट्रैटेजिक नगर खुर्रम शहर को इराकी सेना के कब्ज़े से स्वतंत्र करा लिया। ईरानी सेना की इस साहसिक कार्यवाही से पूरा समीकरण ईरान के हित में हो गया। इस परिवर्तन से सद्दाम के पूर्वी और पश्चिमी समर्थक इराक की बासी सरकार की हार से चिंतित हो गये। समाचार पत्र वाशिंग्टन पोस्ट ने 4 सितंबर 2013 को एक रिपोर्ट में लिखा था कि रिगन सरकार वर्ष 1983 में जब यह जान गयी थी कि ईरान की सशस्त्र सेना इराक के बसरा नगर पर नियंत्रण करना चाहती है तो उसने ईरानी सेना को आगे बढ़ने से रोकने का निर्णय किया। इस निर्णय को 26 नवंबर 1983 को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा की कार्यसूची में स्पष्ट किया गया है और कहा गया है कि हर ज़रूरी व कानूनी कार्यवाही के माध्यम से ईरान के मुकाबले में इराक की पराजय को रोका जाये। वर्ष 2003 में अमेरिका द्वारा इराक पर हमला करने से तीन महीने पहले वाशिंग्टन पोस्ट ने 30 सितंबर 2002 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जो इस बात की सूचक थी कि रिगन और सिनयर बुश इराक की सद्दाम सरकार के हाथों रासायनिक व जैविक हथियारों की बिक्री से सहमत थे। अमेरिका और उसके घटकों की ओर से सद्दाम की सहायता एसी स्थिति में जारी थी जब सुरक्षा परिषद के तत्कालीन प्रमुख कई बार ग़ैर अनिवार्य प्रस्ताव पारित करके सद्दाम द्वारा रासायनिक हथियारों के प्रयोग की भर्त्सना कर चुके थे परंतु चूंकि यह परिषद बड़ी शक्तियों विशेषकर अमेरिका के प्रभाव में है इसलिए वह कभी भी अनिवार्य प्रस्ताव पारित करके रासायनिक हथियारों के प्रयोग के कारण सद्दाम की भर्त्सना न कर सकी। सद्दाम द्वारा ईरान के सरदश्त नगर पर रासायनिक हमले से पहले 21 मार्च 1986 को सुरक्षा परिषद के अधिकांश सदस्य देशों ने एक प्रस्ताव तैयार किया और उसमें इराक द्वारा बारमबार रासायनिक हथियारों के प्रयोग की भर्त्सना की गयी थी और उस विज्ञप्ति को पारित कराने के लिए सुरक्षा परिषद में पेश किया गया परंतु अमेरिका ने उसके खिलाफ वोट दिया जिसके कारण वह विज्ञप्ति पारित न हो सकी। सुरक्षा परिषद के 10 अन्य सदस्य देशों ने इस विज्ञप्ति के पक्ष में मत जबकि ब्रिटेन, फ्रांस, आस्टेलिया और डेनमार्क जैसे देशों ने वोटिंग में भाग ही नहीं लिया।

 

रासायनिक हथियारों के बारमबार प्रयोग किये जाने के बावजूद अमेरिका ने सद्दाम की सहायता की। वर्ष 2003 में इराक पर हमले का औचित्य दर्शाने के लिए अमेरिका द्वारा इन्हीं हथियारों को बहाना बनाना मानवाधिकार की रक्षा के संबंध में अमेरिका के दोहरे मापदंड का सूचक है और अमेरिका एवं उसके घटकों को उनकी दोहरी नीतियों व झूठों के स्पष्ट हो जाने की कोई चिंता नहीं है। वर्ष 1991 में इराक द्वारा कुवैत पर हमला करने के बाद अमेरिकी सरकार सद्दाम द्वारा रासायनिक हथियारों के प्रयोग के विषय को भूल गयी। 11 सितंबर वर्ष 2001 की घटना के बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश, उप राष्ट्रपति डिक चेनी और रक्षामंत्री रम्स फिल्ड सहित बहुत से अमेरिकी अधिकारियों व राजनेताओं ने इराक पर हमले का समर्थन किया और इसके लिए उन्होंने यह बहाना किया कि इराक के पास सामूहिक विनाश के रासायनिक हथियार मौजूद हैं। इसी प्रकार इन अमेरिकी राजनेताओं ने इराक पर हमले के औचित्य में कहा था कि सद्दाम के अलकायदा से संबंध हैं। इराक पर हमले के समर्थक राजनेताओं ने 11 सितंबर की घटना के आरंभ में ही इराक पर हमले का फैसला कर लिया था।  इराक पर हमला करने से डेढ़ वर्ष पहले तक अमेरिका और ब्रिटेन कहते थे कि गुप्तचर रिपोर्टें इस बात की सूचक हैं कि इराक के पास सामूहिक विनाश के रासायनिक हथियार मौजूद हैं जबकि उनका यह दावा बिल्कुल झूठ और निराधार था।

 

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