मस्जिद और उपासना- 40
कार्यक्रम में पहले मस्जिद के महत्व की चर्चा करने के बाद यज़्द की जामे मस्जिद के बारे में चर्चा की जाएगी।
हमने बताया था कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जब से पवित्र नगर मदीना में पहली मस्जिद बनाई उसके बाद से मस्जिद, मुसलमानों की एक मज़बूत छावनी के रूप में बदल गई। पैग़म्बरे इस्लाम अपने काल में मस्जिद में ही भाषण देते। यहीं से धर्म का प्रचार करते। मस्जिद में ही वे प्रतिनिधिमण्डलों से मिला करते थे। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम के काल में ही मस्जिद, मुसलमानों की मज़बूत छावनी में बदल चुकी थी। बाद में ख़ुली फ़ाओ के काल में भी मस्जिदें, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और शैक्षिक गतिविधियों का केन्द्र रहीं। उस काल में मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण फ़ैसले मस्जिदों में ही लिये जाते थे।

मुसलमानों को धार्मिक शिक्षा देने और अच्छाइयों के प्रचार-प्रसार तथा बुराइयों से रोकने के लिए किसी प्लेटफार्म की ज़रूरत थी। इसके लिए मस्जिद से बढ़कर कोई स्थान हो ही नहीं सकता था क्योंकि यह एसा स्थान था जहां पर सारे मुसलमान एकत्रित होते थे। मस्जिद के लिए उनके निकट विशेष महत्व था। मस्जिद में कही जाने वाली बातों को मुसलमान, बड़ी श्रद्धा से सुनते और उसपर अमल करते थे। एक मुसलमान का दायित्व बनता है कि वह स्वयं को इस्लामी नियमों के अनुरूप ढाले और इन बातों को दूसरों तक पहुंचाए। एसी बातों को सीखने और समझने का स्थल पहले मस्जिद ही हुआ करता था।

मस्जिद से ही मुसलमानों को इस्लामी शिक्षा दी जाती थी ताकि वे इस्लाम को उचित ढंग से समझें और उसको अपने जीवन में व्यवहारिक बनाएं। मस्जिद के माध्यम से इस्लामी शिक्षा प्राप्त करके मुसलमान का यह कर्तव्य है कि वह इस्लाम को हर प्रकार के आक्रमणों विशेषकर सांस्कृतिक आक्रमण से सुरक्षित रखे। वास्तव में सांस्कृतिक आक्रमण बहुत प्रभावशाली होता है। वर्चस्ववादी शक्तियों का यह बहुत प्रभावी हथियार है। वर्चस्ववादी शक्तियां, सांस्कृतिक आक्रमण के माध्यम से अपने लक्ष्य साधती हैं। किसी भी राष्ट्र की संस्कृति को बदलकर, बिना सैनिक आक्रमण किये उसे परास्त किया जा सकता है। इसके माध्यम से लोगों की सोच को बदल दिया जाता है। कभी-कभी सांस्कृतिक आक्रमण इतना अधिक तेज़ और प्रभावशाली होता है कि लोगों को इसका पता भी नहीं चलता और वे उससे प्रभावित भी नहीं होते।

धर्म के प्रचार और शिक्षा देने के केन्द्र के रूप में सांस्कृतिक हमलों का मुक़ाबला करने में मस्जिद की उल्लेखनीय भूमिका है। सांस्कृतिक आक्रमण इतने सुनियोजित ढंग से किय जाता है कि जिस समाज पर यह हमला हो रहा होता है उसे यह पता ही नहीं होता है कि उसपर आक्रमण किया जा रहा है बल्कि इस आक्रमण के परिणाम स्वरूप होने वाले परिवर्तन को लोग अपने ही समाज की देन समझने लगते हैं। एसे में कहा जा सकता है कि सांस्कृतिक आक्रमण की शैली को समझना और उसके मुक़ाबले की रणनीति अपनाना, इस्लामी समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए।

इस्लाम के शत्रुओं के षडयंत्रों को पहचनवाने और उसका मुक़ाबला करने के मार्गों का परिचय करवाना, मस्जिद की गतिविधियों की एक महत्वपूर्ण गतिविधि होनी चाहिए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भाषण, मजलिसें और बैठकें आयोजित करके समाधान ढूंढा जा सकता है। इन कार्यक्रमों में उपस्थित लोगों को धार्मिक बातें बताने के साथ ही नमाज़ियों को सांस्कृतिक आक्रमण की शैली और उससे होने वाली क्षति के बारे में बताया जा सकता है। इस प्रकार बहुत अच्छे तरीक़े से सांस्कृतिक आक्रमण का मुक़ाबला किया जा सकता है।
यज़्द की जामा मस्जिद, नौ शताब्दियों पुरानी है। एतिहासिक पुस्तकों में इसको कई नामों से याद किया गया है जैसे मस्जिदे जुमे शहरिस्तान, मस्जिदे जामे अतीक़, मस्जिदे जुमे क़दीम तथा मस्जिदे जामे नूर आदि।

इस मस्जिद को छठी हिजरी के दौरान बनाया गया था। एतिहासिक प्रमाणों से पता चलता है कि यज़्द की जामे मस्जिद को बनाने में बहुत लंबा समय लगा था। इसका मुख्य कारण यह था कि इस मस्जिद को कई लोगों ने मिलकर बनाया था। एसा लगता है कि यज़्द की जामे मस्जिद के पहले निर्माणकर्ता का नाम "उमर लैस" था जो सफ़ारी के शासक थे। लेकिन मशहूर यह है कि इसको "अलाउद्दौला" ने बनवाया था जो आलेबूये से संबन्धित थे। सन 474 हिजरी शमसी से 498 हिजरी शमसी तक वे यज़्द के शासक थे। बताया जाता है कि सन 724 हिजरी शमसी में यज़्द की जामा मस्जिद ध्वस्त हो चुकी थी। वर्तमान समय में जो मस्जिद मौजूद है उसे सैयद रुकनुद्दीन ने बनवाया था। इस महान एवं एतिहासिक मस्जिद की मरम्मत का काम बहुत बाद तक चलता रहा।

जिस वक़्त यज़्द की जामा मस्जिद के निर्माणकर्ताओं ने इसे बनाने का निर्णय लिया था उस समय उन्होंने इसे यज़्द नगर के भीतर बनवाया और इसके चारों ओर एक चारदीवारी बनाई। जिस भूमि पर यह मस्जिद बनी उसका क्षेत्रफल लगभग 9800 वर्गमीटर था। यज़्द की जामा मस्जिद की लंबाई 104 मीटर और चौड़ाई 99 मीटर है। इसके सात प्रवेश द्वार हैं। इस मस्जिद में एक बड़ा हाल और दो दालान हैं। इसका आंगन काफी बड़ा है।
मस्जिद के प्रवेश द्वार पर बना हुआ भाग इसका बहुत महत्वपूर्ण भाग है जो देखने योग्य है। इसकी ऊंचाई लगभग 52 मीटर है। इस मस्जिद की एक मीनार की मोटाई 8 मीटर है। इसपर जो काशीकारी की गई है वह वास्तव में देखने योग्य है। इसे बड़ी मेहनत और सूक्ष्मता के साथ बनाया गया है।

मस्जिद के मेहराब में की गई काशीकारी, इस मस्जिद के गुंबद में लगाई गई ईंटें तथा इसकी साज-सज्जा, हर देखने वाले को अपनी ओर आकृष्त करती है जिसकी ख्याति चारों ओर फैल चुकी है। यज़्द की जामा मस्जिद में जगह-जगह पर ईरान की विशेष शैली की फ़िरोज़े तथा इसी रंग की काशीकारी ने इसकी सुन्दरता में चार चांद लगा दिये हैं। मस्जिद में ईलख़ानी और तैमूरी काल के कुछ शिलालेख लटके हुए हैं। इसके गुंबद की ताक़ पर सूरए असरा की कुछ आयतें लिखी गई हैं। यज़्द की जामें मस्जिद के दर्शनीय स्थानों में से एक, उसके हाल की छत है जिसपर कूफ़ी लीपि में अल्लाह के 99 नाम लिखे गए हैं।

यज़्द की जामा मस्जिद को सुसज्जित करने में कुछ एसे प्रतीकों का प्रयोग किया गया है जिनका संबन्ध, शिया मुसलमानों की आस्था से है। इनमें ईरान के कुछ विशेष डिज़ाइन बने हुए हैं जो ईरान की वास्तुकला से संबन्धित हैं। इनमे पांच सितारे दिखाई देते हैं जो पंजेतने पाक की ओर तथा बारह कोणीय डिज़ाइन है जो बारह इमामों की ओर संकेत करता है। इसके अतिरिक्त 72 कोणीय भी एक डिज़ाइन है जो करबला के 72 शहीदों की ओर संकेत करता है। इसमें अतिरिक्त पैग़म्बरे इस्लाम और इमामों के नाम भी मस्जिद पर लिखे हुए दिखाई देते हैं।