Jul २१, २०१८ १५:२४ Asia/Kolkata

ज़्यादातर लोग अपने जीवन में कुछ सवालों का जवाब चाहते हैं।

इसमें साधारण लोगों से लेकर विचारक भी शामिल हैं। लोगों को अपने जीवन के विभिन्न चरणों में कुछ ऐसे सवालों का सामना होता है कि अगर उन्होंने उसकी अनेक बार अनदेखी की हो लेकिन अंत में उसके बारे में सोचने पर मजबूर हो जाते हैं। जैसे सृष्टि और सृष्टि के रचयिता के बारे में यह सवाल ज़्यादातर लोगों के मन में उठता है कि क्या इस सृष्टि में किसी रचयता की मौजूदगी के चिन्ह हैं। ये इंसान के मूल सवालों में शामिल है। दार्शनिक मत, इब्राहीमी और ग़ैर इब्राहीमी धर्मों ने भी इस तरह के सवालों के जवाब दिए हैं।

इस्लाम ने सभी को सृष्टि के बारे में चिंतन मनन करने के लिए प्रेरित किया है और सृष्टि के बारे में दृष्टिकोण पेश किया है।

सृष्टि की सच्चाई के बारे में जो बातें हम आपको बताने जा रहे हैं उसमें वरिष्ठ धर्मगुरुओं के विचारों व बयानों के ज़रिए आपको सृष्टि के बारे में दोबारा सोचने के लिए प्रेरित करेंगे और इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करेंगे कि हमारे आस-पास मौजूद चीज़ें एक रचयिता के वजूद का पता देती हैं।

आज इंसान अपने दैनिक जीवन को उबाऊ महसूस करता है। ऐसे बहुत लोग मिलते हैं जो अपने व्यवसाय में दैनिक कामों के बार बार दोहराए जाने के कारण जीवन को नीरस महसूस करते हैं। वह सोकर जल्द उठने, कार्यालय में मेहनत करने और बदलाव लाने में किसी तरह की प्रेरणा महसूस नहीं करते। यहां तक कि पारिवारिक जीवन में मियां बीवी भी कुछ साल बाद आरंभिक जीवन की तरह अपने जीवन में रोमांच महसूस नहीं करते और जीवन को ऊबाऊ समझने लगते हैं। कभी कभी यह नीरसता बहुत से अहम मामलों को प्रभावित करती है। मिसाल के तौर पर इसी नीरसता की वजह से प्रकृति और सृष्टि को भी हम सतही नज़र से देखने लगते हैं। हालांकि खान पान, प्रजनन, दैनिक काम, आराम और हर जीव जन्तु की ज़रूरतों को पूरा करना एक आकर्षक काम है और इनसे बहुत से असमान्य व अनोखे रहस्यों से पर्दा उठता है लेकिन हम आस-पास की प्रकृति पर अधिक ध्यान नहीं देते। वास्तव में हम वनस्पतियों की उत्पत्ति, जानवरों के जीवन यहां तक कि अपने जीवन को सरसरी नज़र से देखते हैं इसलिए यह हमें नीरस लगता है।

खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि हम सूर्योद्य और सूर्यास्त, पानी, पहाड़, ज़मीन की परिक्रमा और मौसमों की आवाजाही को एक आम बात समझते हैं हालांकि इन सबके पीछे एक बहुत बड़ी शक्ति व विज्ञान का हाथ है और इनके न होने से हर इंसान का जीवन ठप्प पड़ जाएगा। क्या हमने कभी अपने आप से यह सवाल किया अगर किसी दिन सूरज डूबे और दुबारा न निकले तो इंसान का अंजाम क्या होगा? सृष्टि में इस व्यवस्था का पैदा करने वाला कौन है?

आज यह सवाल कुछ लोगों के लिए क्यों अहमियत नहीं रखता कि जिस दुनिया को अपनी पूरी उम्र में देखता है और अपने निरीक्षण व जिज्ञासा से उसने जो ज्ञान हासिल किया और उससे उसने जो दिन प्रतिदिन अधिक फ़ायदा हासिल किया है, ये किस तरह वजूद में आया? क्या इस बात की संभावना है कि दाना, पानी, मिट्टी और प्रकाश के बीच संबंध एक संयोग है और यह संयोग हमेशा इसी तरह बाक़ी रहे?

ज़रा इस सृष्टि पर फिर से नज़र डालें। हालांकि इंसानों में समानता और हमारे आंतरिक व बाह्य अंगों का वजूद, हमारे लिए एक आम बात हो गयी हो लेकिन हम सवाल और उनके जवाब के ज़रिए सृष्टि की महानता और उस ज्ञान को हासिल कर सकें जो इंसान को एक रचयिता की याद दिलाए और इंसान अपने जीवन में नीरसता के बजाए रस का आभास करे।  

 

सबसे पहले अपने शरीर के सबसे ऊपरी भाग के बारे में सोचें और ख़ुद से सवाल करें कि हमारी यह खोपड़ी कई टुकड़ों में क्यों है अखंड क्यों नहीं है?

ज़रा अध्ययन से यह बात समझ में आ जाती है कि यह अंदर से खोखली है और कई टुकड़ों में बनी है। अगर यह कई टुकड़ों में न होता तो जल्द ही टूटकर तबाह हो जाती।

क्या हमने कभी सिर के बाल के सिर पर होने के बारे में कभी सोचा?

आपके लिए यह जानना रोचक होगा कि बाल इसलिए सिर पर हैं क्योंकि इसकी जड़ से तेल मस्तिष्क में पहुंचता है। बाल की जड़ से वाष्प बाहर निकलती है और जो गर्मी व ठंडक मस्तिष्क को लगती है वह इसकी वजह से दूर हो जाती है।

कभी नाक के बनने के पीछे किसी तरह की युक्ति नज़र आती है? ज़रा ध्यान दें तो समझ जाएंगे कि नाक का सुराख़ नीचे की ओर इसलिए है ताकि मस्तिष्क से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ नीचे आए। अगर नाक का सुराख़ ऊपर की तरफ़ होता तो अपशिष्ट पदार्थ न तो बाहर निकलते और न ही किसी तरह की ख़ुशबू समझ में आती।

क्यों सारे दांत एक जैसे नहीं पैदा हुए? क्या बेहतर न था कि सभी एक तरह के होते?

सामने के दांत तेज़ होते हैं ताकि खाने को मुंह के अंदर ले जाएं और चबाने वाले दांत चौड़े होते हैं ताकि खाने को पीस डालें। इसलिए दांतों का एक शक्ल में न होना बेहतर है और सारे दांत अपना अपना काम अच्छी तरह अंजाम देते हैं।    

क्या कभी शरीर रचना के बारे में सोचकर हैरत नहीं होती? क्या सिर के बाल के सिर पर होने तथा हाथ की हथेली का बिना बाल का होना युक्तिपूर्ण नहीं लगता?

यक़ीनन युक्तिपूर्ण है। जिसने हाथ बनाए, दोनों हाथ की हथेलियों को बिना बाल के बनाए ताकि उनसे गर्मी, सर्दी, नर्मी और खुरदुरे पन को महसूस कर सकें। अगर हाथ की हथेली में बाल होते तो इंसान जब किसी चीज़ पर हाथ फेरता तो उसे सही तरह महसूस न कर पाता। आपको यह बात आश्चर्यजनक लगी या नहीं?

हम आपकी सेवा में अपने शरीर के बारे में बहुत ही साधारण सी बात पेश करते हैं। मिसाल के तौर पर अगर शरीर के किसी अंग में घाव हो जाए या कट जाए तो उसमें से ख़ून आता है और पीड़ा महसूस होती है। यही चीज़ बाल और नाख़ून में नज़र नहीं आती?

आपके लिए यह जानना रोचक होगा कि चूंकि नाख़ून और बाल बढ़ते हैं और उन्हें छोटा करना होता है इसलिए किसी तरह का एहसास नहीं होता। अगर इंसान को बाल और नाख़ून काटने में दर्द महसूस होता तो उसके पास दो रास्ते होते या तो उन्हें बढ़ने के लिए छोड़ देता और न काटना या उन्हें दर्द सहते हुए काटता।  

 

कभी आपने सोचा कि घुटना बाहर की तरफ़ क्यों झुकता अंदर की ओर क्यों नहीं?

जिसने इंसान को पैदा किया उसने ऐसे सिस्टम से घुटना बनाया कि झुकते वक़्त वह बाहर की ओर मुड़े ताकि इंसान आसानी से रास्ता चले और उसे चलने में किसी तरह की मुश्किल न हो अगर ऐसा न होता तो रास्ता चलते वक़्त गिर गिर पड़ता।

कभी मुंह में बनने वाली राल के बारे में आपने सोचा? क्या यह निरर्थक लगती है? क्या आप जानते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर ने यह सिस्टम बनाया कि मुंह की राल मुंह से नीचे की ओर जाए ताकि मुंह और गला तर रहे, सूखने न पाए। अगर ये हिसा गीला न रहे तो इंसान बहुत जल्द मर जाता क्योंकि मुंह में पानी ही नहीं बचता कि इंसान उससे अपने सूखे खाने को नर्म करके निगल सके। आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा यह राल उस सधी सवारी की तरह है जो खाने को अपने साथ लेकर उसके अंतिम गंतव्य अर्थात अमाशय में पहुंचाती है। इसके अलावा यह तरी पित्ताशय और ब्लैक बाइल में पहुंचती जो इंसान के लिए लाभदायक है। क्योंकि अगर पित्ताशय सूख जाए तो इंसान मर जाएगा।

जब इंसान को अपने शरीर के हर अंग में किसी न किसी तरह की युक्ति नज़र आती है तो उसके पास इस बात को मानने के सिवा कोई चारह नहीं रह जाता कि इन अंगों का बनाने वाला एक सर्वज्ञानी व सर्वशक्तिमान है। जिसने बड़े प्रेम से इंसान के शरीर को बहुत ही अच्छे सांचे में बनाया और हर अंग के लिए विशेष काम निर्धारित किए हैं। उस मेहरबान रचयिता ने छोटी सी छोटी बातों पर ध्यान दिया है। उसने कान को घुमावदार बनाया है ताकि इंसान जब किसी आवाज़ को सुने तो कान के पर्दे तक पहुंचने से पहले आवाज़ का ज़ोर टूट जाए और कान के पर्दे को किसी तरह का नुक़सान न पहुंचे। अगर हम सरसरी निगाहों से आस पास चीज़ों को देखना छोड़ कर उनके बारे में सोच विचार करें तो धीरे धीरे हम अपने आस-पास की प्रकृति में व्यवस्था व सूक्ष्मता को समझने लगेंगे। वह दुनिया जो हर दिन हमें उबाऊ लगती है उसमें हमें आकर्षण नज़र आने लगेगा और हम समझ जाएंगे कि एक मेहरबान रचयिता को हमारी चिंता है कि हम अच्छा जीवन बिताएं और उसने किसी तरह की कमी नहीं की है।

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