Jul २१, २०१८ १५:४० Asia/Kolkata

जैसाकि हमने पिछले कार्यक्रम में बताया था कि मस्जिद, एक उपासना स्थल होने के साथ ही साथ लोगों के प्रशिक्षण का भी केन्द्र है।

 मस्जिद, एसे लोगों के एकत्रित होने का स्थल है जो धार्मिक मान्यताओं पर आस्था रखते हों और वास्तविकता की पहचान के लिए प्रयासरत रहते हों।  कुछ ऐसी संयुक्त विशेषताएं, मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वालों के मन में पाई जाती हैं जो उनके भीतर एसी शक्ति उत्पन्न करती हैं जिनके माध्यम से नमाज़ी, विभिन्न क्षेत्रों में सार्थक काम करने में सक्षम रहते हैं।

वे क्षेत्र जिनमें नमाज़ी सार्थक एवं सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं उनमें से एक सांस्कृतिक क्षेत्र है।  यह ऐसा क्षेत्र है जिसपर हमला करने के लिए इस्लाम के शत्रुओं ने योजनाएं बना रखी हैं।  यह ऐसी योजनाए हैं जिनको तैयार करते समय अत्याधुनिक रणनीति अपनाई गई है।  इस व्यापक सांस्कृतिक हमले का मुक़ाबला करने के लिए मुसलमानों के पास मज़बूत कार्यक्रम होना चाहिए।  वह स्थान जहां से सांस्कृतिक हमलों का मुक़ाबला किया जा सकता है उनमें से एक मस्जिद है।

 

ऐसी मस्जिद जिसके नमाज़ी आस्था और जानकारी के हिसाब से समृद्ध हों वे सांस्कृतिक हमलों का डटकर मुक़ाबला कर सकते हैं।  इस बारे में स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी का कहना है कि यदि मस्जिद और इसी प्रकार के इस्लामी केन्द्र मज़बूत हों और उनके भीतर भय न पाया जाता हो तो वे अमरीका और सोवियत संघ से नहीं डरेंगे।  वे कहते हैं कि वास्तव में उस दिन से डरना चाहिए जिस दिन तुम इस्लाम को पीठ दिखाओ और मस्जिद से मुंह मोड़ लो।

किसी संस्कृति की सुरक्षा करने के लिए उसके बारे में जानकारी बहुत ज़रूरी है।  यदि किसी देश के लोग अपनी संस्कृति को भलिभांति पहचानते हों और उसके मज़बूत एवं कमज़ोर आयामों पर भी उनकी नज़र हो तो आक्रमणकारी संस्कृति कभी भी अपना प्रभाव नहीं बना सकेगी।  मस्जिद, गूढ़ धार्मिक शिक्षा के माध्यम से धर्म की आवश्यक पहचान को मुसलमानों तक पहुंचाती है।  इस प्रकार की पहचान मनुष्य की आस्था को सुदृढ़ बनाती है।  मस्जिद से मिलने वाली शिक्षाएं, मनुष्य की जानकारियों को बढ़ाती हैं।  इसी मालूमात या जानकारी से एक चीज़ जन्म लेती है जिसे "ग़ैरते दीनी" कहा जाता है।  ग़ैरते दीनी वह चीज़ है जो एक प्रभावशाली हथियार के रूप में आक्रमणकारी संस्कृति का मुक़ाबला करती है।

सांस्कृतिक आक्रमण को विफल बनाने में जो चीज़ें प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं वे इस प्रकार हैं जैसे मस्जिदों में धार्मिक बैठकें करना, लोगों को क़ुरआन के बारे में बताना, युवाओं को इस्लामी शिक्षाओं से सुसज्जित करना, इमामों और ईश्वरीय दूतों की जीवनी पर प्रकाश डालना और महापुरूषों के जन्मदिवस तथा उनके स्वर्गवास के अवसरों पर कार्यक्रम आयोजित करना।  आज के युवाओं में मस्जिद से दूरी का मुख्य कारण शुद्ध इस्लामी शिक्षाओं से दूरी है।  यदि युवाओं की धार्मिक आवश्यकताओं को मस्जिद के इमामों के माध्यम से उचित और आधुनिक शैली में पूरा किया जाए तो ऐसे में सांस्कृतिक आक्रमण को रोकने के लिए मस्जिद बहुत ही उपयुक्त स्थल है।

 

जैसाकि पहले ही बताया जा चुका है कि मस्जिद को बहुत से कामों के लिए प्रयोग किया जा सकता है।  यदि मस्जिद जैसे स्थल से बुराइयों को रोकने और अच्छाइयों को फैलाने का काम पाबंदी से होता रहे तो समजा से किसी तक बुराइयों को रोका जा सकता है।  इस्लामी व्यवस्था में लोगों का यह दायित्व बनता है कि वे एक-दूसरे को भलाई करने के लिए प्रेरित करने के साथ ही दूसरों को बुराई से दूर रखने के भी प्रयास करते रहें।  जिन मस्जिदों के इमाम जनता के माध्यम से चुनकर लाए जाते हैं वे निःसंकोच समाज में प्रचलित बुराइयों का विरोध कर सकते हैं।  ऐसे लोग जिनके मन बीमार हैं अर्थात जो पाप करने की ओर उन्मुख रहते हैं वे अच्छे लोगों की संगत में पाप करने से बचते हैं और अच्छाइयों की ओर उन्मुख होने लगते हैं।  इसी प्रकार वे लोग जिनका ईमान कमज़ोर है वे लोग मस्जिद से प्रेरणा लेकर अपने ईमान को मज़बूत कर सकते हैं।  इस प्रकार मस्जिदों में मुसलमानों की उपस्थिति, पाप से उनके बचने का कारण बनती है।

बुरूजर्द नगर ईरान के केन्द्रीय नगरों में से है।  ईरान में इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में आरंभिक काल में जो मस्जिदें बनीं उनमें से एक, बुरूजर्द की जामा मस्जिद है।  कुछ लोगों का यह कहना है कि इसको एक प्राचीन अग्निकुण्ड पर बनाया गया है।  हालांकि इस बारे में अभी तक कोई भी पुष्ट प्रमा नहीं मिल सका है।  कुछ एतिहासिक प्रमाणों के अनुसार यह कहा जाता है कि बुरूजर्द के प्राचीन शासक "हमूला बिन अली बुरूजर्दी" ने अब्बासी शासक "अबूदलफ़" को बुरूजर्द आने का निमंत्रण दिया था।  वह अबूदलफ़ को बुरूजर्द के एक वीरान पड़े अग्निकुंड के पास ले गये।  कहते हैं कि अबूदलफ़ ने उस स्थान पर पहुंचने के बाद कहा था कि यह मस्जिद का स्थल है।

 

इतिहास में मिलता है कि बुरूजर्द की जामा मस्जिद कई चरणों और कई कालों में बनकर तैयार हुई।  इस मस्जिद के निर्माण के आरंभिक काल में इसमें वुज़ूघर, जल भण्डार, शरणस्थल और कुछ अन्य इमारते थीं।  हालांकि इसकी कुछ इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं।  मस्जिद का वुज़ूघर, इसके निकट ही बनाया गया है।  इसका एक बड़ा प्रवेश द्वार है।  पहले यह "ग़रीबख़ाने" के नाम से मशहूर है।  यह स्थान विगत में ग़रीबों और बेघरों का शरणस्थल था।  वे लोग जिनके पास रहने के लिए कोई शरण स्थल नहीं होता था वे इस ग़रीबख़ाने में आते थे।

बुरूजर्द की जामा मस्जिद उन गिनीचुनी मस्जिदों में से है जिनमे एक बड़ा हाल है।  हालांकि मस्जिद के आंगन के पड़ोस में एसी इमारतें हैं जो विभिन्न मौसम में यात्रियों का शरणस्थल रही हैं।  मस्जिद के पूरब और पश्चिम में स्थित हाल को वास्तुकारों ने कुछ इस प्रकार से बनाया है कि वे जाड़े के मौसम में गर्म और गर्मी के मौसम में ठंडे रहते थे।  इसको इस प्रकार से इसलिए बनाया गया था ताकि नमाज़ियों को अधिक से अधिक सुविधा उपलब्ध कराई जा सके।

 

बाद के काल में बुरूजर्द की जामा मस्जिद का विस्तार, उस काल की राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थतियों के आधार पर किया गया।  इस मस्जिद के पूर्वी और पश्चिमी गलियारे उस स्थिति में उससे जोड़ दिये गए जब ग़रीबख़ाने का गुंबद गिर गया।  इसका शीतकालीन हाल, तैमूरी काल में बनाया गया था।  सफ़वी शासनकाल में उसके लिए सुन्दर प्रवेश द्वार बनवाए गए।  बाद में क़ाजारिया काल में मस्जिद के दक्षिणी छोर पर दो छोटे गुंबद बनाए गए।

 

बुरूजर्द की जामा मस्जिद के अन्य दर्शनीय स्थलों में से एक, उसमें रखा मिंबर है जो लकड़ी का बना हुआ है।  नौ सीढ़ियों वाला यह मिंबर, हर देखने वाले को अपनी ओर आकृष्ट करता है।  मिंबर के ऊपर 1068 हिजरी क़मरी लिखा हुआ है।  इस मस्जिद में पत्थरों के कुछ शिलालेख हैं।  बताया जाता है कि बुरूजर्द की जामा मस्जिद के प्राचीनतम शिलालेख का संबन्ध तीसरी हिजरी शताब्दी के अन्तिम और चौथी हिजरी शताब्दी के आरंभिक काल से है।  इसी मस्जिद में दो अन्य पत्थर के शिलालेख हैं जो 1209 हिजरी क़मरी से संबन्धित बताए जाते हैं।

सफ़वी काल के शासक अब्बासी द्वीतीय का आदेश, मस्जिद के पश्चिमी प्रवेश द्वार पर लटका है जिसपर 1022 हिजरी लिखा है।  कविता के रूप में भी एक शिलालेख है जो मिंबरख़ाने के गुंबद पर है।  इसपर सन 1069 हिजरी लिखा हुआ है।  मस्जिद के दो दरवाज़े हैं जो पूरब और पश्चिम में स्थित हैं।  पश्चिमी द्वार, सफवी शासनकाल से संबन्धित है।  मस्जिद के एक दरवाज़े पर, जो वर्तमान में गुंबदख़ाने और हाल को आपस में मिलाता है, सन 1092 क़मरी लिखा हुआ है।  इसके पूर्वी दरवाज़े पर बहुत ही सुन्दर ढंग से कंदाकारी की गई है।  यह छोटे बाज़ार के किनारे है।  एक समय में यह शहर के लोगों के आने जाने का केन्द्र था।

 

बुरूजर्द की जामा मस्जिद, ईरान पर सद्दाम की ओर से थोपे गए युद्ध के दौरान इराक़ी युद्धक विमानों की बमबारी में क्षतिग्रस्त हुई थी।  इस मस्जिद का उत्तरी भाग बमबारी से नष्ट हो गया था।  इसी प्रकार से विभिन्न भूकंपों और बाढ़ से भी बुरूजर्द की जामा मस्जिद को नुक़सान पहुंचा था।  सन 1385 के भूकंप में इस मस्जिद के कुछ भाग टूट गए जिसके कारण इसका 50 प्रतिशत भाग नष्ट हो गया।  वर्तमान समय में बुरूजर्द की जामा मस्जिद की मरम्मत का काम चल रहा है।