ईरानी संस्कृति और कला- 10
ईरान में वास्तुकला पर शोध करने वाले एक बड़े शोधकर्ता दिवंगत उस्ताद मोहम्मद करीम पीरनिया ने ईरानी वास्तुकला को 6 शैली में विभाजित किया है और इस शैली में इस्फ़हानी शैली को अंतिम बताया है।
यह शैली दसवीं से तेरहवीं शताब्दी हिजरी तक प्रचलित रही और यह शैली अपने नाम के विपरीत आज़रबाइजान से शुरू हुयी लेकिन बाद में इसके उत्कृष्ट नमूने इस्फ़हान में वजूद में आए।
सफ़वियों ने 1502 ईसवी से 1736 ईसवी तक ईरान में हुकूमत की। सफ़वियों के पूर्वज आज़रबाइजान के थे और उनके पूर्वजों में सफ़ीयुद्दीन अर्दबीली का नाम मशहूर है जो पश्चिमोत्तरी ईरान के आज़रबाइजान क्षेत्र में रहते थे। सफ़ीयुद्दीन अर्दबीली एक आत्मज्ञानी हस्ती थी जिनके बहुत से मुरीद थे। सफ़वी शासन श्रंख्ला के संस्थापक शाह इस्माईजल शैख़ सफ़ीयुद्दीन के पोतों में थे। शाह इस्माईल ने विभिन्न क्षेत्रों पर चढ़ाई करके अपना शासन शुरू किया। शाह इस्माईल के दौर में ईरान में शिया मत को आधिकारिक रूप से मान्यता दी गयी हालांकि यहां पर शिया मत बहुत पहले से मौजूद था।
सफ़वी शासन ने एक राष्ट्रीय सरकार के गठन के अलावा, शिया मत का प्रचार, स्वदेशी उद्योग को बढ़ावा देना, व्यापार में विस्तार, इमारतों का निर्माण और विभिन्न कलाओं को प्रचलित करने जैसे काम किए। इस शासन काल में ईरान में बहुत अहम बदलाव का क्रम शुरु हुआ और इसका बेहतरीन रूप इस्फ़हान में प्रकट हुआ। सफ़वी शासकों द्वारा भव्य इमारतों, मैदानों, पुलों, सड़कों और तकिया नामक इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शोक समारोह के आयोजन के लिए विशेष स्थल के निर्माण ने इसे न सिर्फ़ ईरान के लिए एक आदर्श शहर बल्कि पूरब के लिए आदर्श बना दिया। उस समय इस्फ़हान ईरान की राजधानी हुआ करता था।
रूसी पूर्वविद् व्लादमीर मिनोर्स्की का मानना है कि सफ़वी, तुर्कमनों की दूसरी लहर के प्रतिनिधि थे जो जाति और सामाजिक संगठन की दृष्टि से ईरानी रुझान रखते थे। सफ़वी वास्तव में उसी तुर्क संस्कृति का भाग थे जिसके अधीन सभी क्षेत्रों में ईरानी आत्मा बसी हुयी थी।
धार्मिक वास्तुकला ईरान में सफ़वी काल की सबसे अहम कला थी जिस पर अतीत के वास्तुकला के नियम व सिद्धांत का प्रभाव था। इस्फ़हानी शैली में विशाल इमारत को इस तरह बनाते थे कि उसके केन्द्र में एक बड़ा प्रांगण और परिधि में चार ऐवान होते थे। ऐवान किसी भव्य इमारत के उस भाग को कहते हैं जिसका आगे का भाग खुला और बिना किसी द्वार और खिड़की के हो। वास्तुकला की इस शैली में इमारत का क्षेत्रफल बड़ा होना बहुत अहम था जिससे नई नई चीज़ों को पेश करने का मार्ग समतल रहता था। तेज़ ढलान वाली मेहराब जैसे सममितीय तत्वों की पुनरावृत्ति इस्फ़हानी वास्तुकला की बहुत सी इमारतों में दिखायी देती है। इस तरह की इमारतों के वास्तुकार भरी और ख़ाली जगहों में तालमेल को मद्देनज़र रखते थे जो दिखने में अच्छा लगता था और साथ ही समरूपता भी सुरक्षित रहती थी। मिसाल के तौर पर इस्फ़हानी वास्तुकला में कई इमारतों के बीच हौज़, बाग़ और प्रांगण जैसी ख़ाली जगहें होती थीं। इसी बात का मक़बरों और महलों के निर्माण में भी पालन होता था। इस्फ़हानी शैली में ज़मीन से छत के बीच की दूरी की डिज़ाइन इस तरह करते थे कि इसके बीच में ख़ाली जगह में खिड़की और इंटीरियर डेकोरेशन की चीज़ें होती थीं। मिसाल के तौर पर आली क़ापू जैसे महलों की इमारतों की बीच वाली मंज़िल को बाहर से इस तरह डिज़ाइन करते थे कि दूर से खुला हुआ वातावरण नज़र आता था।
इमारतों के बड़े क्षेत्रफल की वजह से इस्फ़हानी वास्तुकला में इमारत में नई नई चीज़ें बन सकीं। इस शैली में इमारत में रौशनी पहुंचने के लिए जो तरीक़ा अपनाया गया उससे हर देखने वाला हैरत में पड़ जाता है। इसकी मिसाल इस्फ़हान में शैख़ लुत्फ़ुल्लाह मस्जिद की वास्तुकला है। इस मस्जिद में सूर्य का प्रकाश इस तरह छन कर आता है कि मस्जिद के भीतर इंसान आध्यात्मिक माहौल महसूस करता है। इस मस्जिद में दाख़िल होने के लिए बनी तिरछी दहलीज़ मस्जिद लुत्फ़ुल्लाह के हॉल से जुड़ी हुयी है। यह हॉल ईरान में गुंबददार मस्जिदों के सबसे बड़े हॉलों में से एक है। लुत्फ़ुल्लाह मस्जिद के गुंबद से विराट आसमान का बड़ा सुंदर नज़ारा दिखने में आता है। गुंबद के भीतर मध्य भाग से सूरज की रौशनी छन छन कर आती है और पूरे हॉल में फैल जाती है। इस गुंबद की मशहूर पूर्वविद आर्थर पोप ने बहुत तारीफ़ की है।
इस्फ़हानी वास्तुकला शैली की एक विशेषता, सादी डीज़ाइन, आसान ज्योमितीय रूप और शिकस्ता लीपि का इस्तेमाल है जबकि आज़री शैली डीज़ाइन में जटिल ज्योमितीय डीज़ाइन का इस्तेमाल होता है। अंदर से ख़ाली गुंबद का निर्माण, सजावट के लिए सात रंग की टाइलों और मज़बूत व अच्छे मसालों का इस्तेमाल इस्फ़हानी वास्तुकला शैली की अन्य विशेषताएं हैं।
सात रंग की टाइल के लिए सफ़ेद चमकीली टाइल पर चित्र बनाते और रंग करते हैं और उसके बाद उसे भट्टी में पकाते हैं। उसके बाद मुख्य डीज़ाइन के आधार पर टाइल को दीवार या गुंबद पर चिपकाते हैं। कभी कभी छत के कुछ कोड़ में ईंट और लकड़ी का भी इस्तेमाल करते हैं जिसका नमूना इस्फ़हान के जोल्फ़ा क़स्बे में दिखाई देता है। इन इमारतों में लकड़ी के टुकड़े मछली के ऊपर के छिलके की तरह एक दूसरे के क़रीब क़रीब चिपकाए गए हैं। इस कला शैली से छत के किनारे बहुत सुंदर लगते हैं।
टाइलें ज़्यादातर नीले रंग की होती हैं जिन्हें लाजवर्द या आसमानी नीला कहा जाता है। लाजर्वद एक खनिज तत्व है जो काशान के निकट लाजवर्द नामक खान से निकलता था लेकिन बाद में वह भूकंप से तबाह हो गयी जिसकी वजह से टाइलों का सुंदर रंग फीका पड़ता गया और उसे सही नहीं किया जा सका।
इस्फ़हानी वास्तुकला शैली की एक और विशेषता यह है कि इसमें प्रवेश वाले कमरे के ऊपर रौशनदान बनाया जाता है और कभी कभी यह रौशनदान दोनों तरफ़ बने होते हैं ताकि रौशनी के साथ साथ वेन्टिलेशन भी होता रहे। ये रौशनदान कभी लकड़ी तो कभी खड़िया और मिट्टी के बने होते थे। ठंडे क्षेत्रों में इन रौशनदानों पर शीशे के छोटे छोटे टुकड़े और सुंदर ज्योमितीय डीज़ाइन बनी होती है।
इन सुंदर रौशनदानों के नमूने अर्दबील के चीनी ख़ाने, जोल्फ़ा के गिरजाघरों और इस्फ़हान के वान्क गिरजाघर में देखे जा सकते हैं। इन रौशनदानों पर रंग बिरंगे शीशों पर मछली, फूल, बूटे और पक्षियों के चित्र बने हुए हैं। इस्फ़हानी वास्तुकला की एक और विशेषता ओरोसी नामक विशेष खिड़की का निर्माण है। ओरोसी जालीदार खिड़की होती है जो गोल चौखट पर घूमने के बजाए ऊपर की ओर खुलती और केस में फ़िट होती है। ओरोसी खिड़की के सुंदर नमूने इस्फ़हान, काशान और यज़्द के घरों में अभी भी दिखाई देते हैं।
इस्फ़हानी वास्तुकला की शैली की एक और विशेषता यह है कि इस शैली के अंतर्गत इमारत में बाग़ीचा भी होता है। दरअस्ल इमारत बाग़ के बीचोबीच में होती है और उसकी छत मिट्टी की होती है। इस तरह की इमारत में चारों ओर खंबेदार बरामदे बने होते हैं। चेहलसुतून और हश्त बहिश्त नामक बाग़ इस्फ़हानी वास्तुकला कला शैली के सबसे सुंदर नमून माने जाते हैं। इसके अलावा तबस, बहशहर और माहान में भी इस शैली के बाग़ बनाए गए हैं। क्योंकि इन शहरों पर हमलावर जातियों ने हमले किए और सफ़वी शासकों ने ईरान पर अपनी ताक़त व वर्चस्व को दिखाने के लिए इस तरह की इमारतें बनवायीं। दूसरी ओर उत्तरी ईरान में बहशहर जैसे शहरों की इमारतें और बाग़ शीत व पतझड़ के मौसम में सफ़वी शासकों के ठहरने का स्थान होते थे।