Aug २५, २०१८ १६:३५ Asia/Kolkata

ईरान में वास्तुकला ने अपने इतिहास में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं।

इसको स्वरूप देने में भौगोलिक परिस्थितियों तथा राजनीति और सामाजिक विषयों ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि ईरान की आम वास्तुकला में विभिन्न कालों के दौरान बहुत ही आंशिक परिवर्तन हुए हैं।  हालांकि इसी दौरान सरकार से संबन्धित वास्तुकला में बहुत अधिक परिवर्तन हुए हैं जिसका मुख्य कारण धन की बहुलता रही।  इस प्रकार की वास्तुकला में निर्माण के दौरान घर बनाने के बहुत मंहगे सामान का प्रयोग किया जाता था।  इन बातों के अतिरिक्त हर ऐतिहासिक काल में भी इमारतों का बाहरी और भीतरी स्वरूप बदलता रहा है।

हमने बताया था कि ईरान की वास्तुकला को छह भागों में बांटा जा सकता है। बाद के वर्षों में अर्थात 18वीं शताब्दी में ईरानी वास्तुकला में जो शैली प्रचलित हुई उसे ईरानी "मुख़तलित" या "बारूक" शैली कहा जाता है।  ईरान में बाद के वर्षों में इसी शैली का चलन बढ़ा और लंबे समय तक इसने ईरान में भवन निर्माण कला को प्रभावित किया। 

 

ईरान में बारहवीं हिजरी शताब्दी अर्थात 18वीं ईसवी शताब्दी, संघर्ष और उथल-पुथल की शताब्दी रही है।  इसी शताब्दी में अफ़ग़ान अतिक्रमणकारियों के हाथों ईरान की सफ़वी शासन श्रंखला का पतन हुआ और वर्षों तक विजयी पक्ष ने यहां पर रक्तपात किया।  बाद में 1735 में नादिर शाह ने सत्ता संभाली।  उन्होंने ईरान को अतिक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्ति दिलाई।  नादिर शाह ने ईरान में "अफ़शारिया" नामक श्रंखला की नींव डाली।  इसके बाद ईरान में "ज़ंदियों" की सत्ता अस्तित्व में आई जिसके काल में आरंभ से अंत तक तनाव और खींचतान रही।  इसी खींचतान के बीच "क़ाजार" शासन ने 1785 में जन्म लिया जिसने ईरान पर लगभग एक शताब्दी तक शासन किया।

क़ाजार शासनकाल में यूरोप के साथ संपर्क बहुत अधिक बढ़ गया था।  इस काल की विशेषताओं में व्यापार मे विस्तार तथा बिना सोचे-समझे यूरोप के अनुसरण जैसी बातों का उल्लेख किया जा सकता है।  क़ाजार शासन श्रंखला के एक शासक "नासेरुद्दीन शाह" ने सन 1834 में यूरोप की यात्रा की।  यूरोप की चकाचौंध ने नासेरुद्दीन शाह को बहुत प्रभावित किया।  इसका परिणाम यह निकला कि नासेरुद्दीन शाह जब ईरान वापस आए तो उन्होंने देश में कई परिवर्तन करवाए जिनकी शुरूआत वास्तुकला से हुई।

हालांकि यह बात सही है कि केवल नासेरुद्दीन की यूरोप यात्रा के कारण ही ईरान में कुछ परिवर्तन किये गए बल्कि पढ़ाई के लिए छात्रों को यूरोप भेजना तथा यूरोप और ईरान के राजनेताओ तथा व्यापारिकों का इधर-उधर आने जाने की भी इसमें भूमिका है।  दूसरी बात यह भी है कि 18वीं और 19वीं शताब्दी में यूरोप की औद्योगि क्रांति और यूरोपीय सरकारों के सामाज्यवाद ने अन्य देशों की तुलना में यूरोपीय देशों को वरीयता दे दी थी।

नासेरुद्दीन शाह के काल में ईरान में धनवानों और बड़े-बड़े लोगों के घर के डिज़ाइन, अधिकतर यूरोपीय वास्तुकला से प्रभावित होते थे।  मुहम्मद ख़ान सानेई जैसे ईरान के जाने माने वास्तुकार अपने काल में यूरोपीय शैली के आधार पर इमारतें बनाया करते थे।  वे अधिकतर इमारतों को वह फोटो देखकर बनाते थे जिनपर यूरोपीय इमारतों के चित्र बने होते थे  क्योंकि उस काल के वास्तुकार इमारतों को फ़ोटो में बनी इमारतों को देखकर ही बनाया करते थे ऐसे में यूरोपीय और ईरानी वास्तुकला का संगम उचित ढंग से नहीं हो सका।  यही कारण है कि बहुत से लोग उस काल की वास्तुकला शैली को "बारूके ईरानी" के नाम से जानते हैं।

हालांकि यह बात पूरे विश्वास के साथ नहीं कही जा सकती कि काज़ारी शासनकाल में ईरान में पारंपरिक वास्तुकला पूर्ण रूप से समाप्त हो गई थी क्योंकि देश में मस्जिदें, मदरसे, धर्मशालाएं, स्नानगृह और बाज़ार सबकुछ लगभग पुरानी वास्तुकला शैली में बने होते थे।  इस काल में जो चीज़ नई और ध्यान योग्य थी वह शहरों की वास्तुकला थी।  इस वास्तुकला को सामान्यतः महलों, सैन्य केन्द्रों और सरकारी इमारतों में ही देखा जा सकता था।

नासेरुद्दीन शाह के काल में ईरान में नगरों के बाहर सुन्दर एवं सजे-संवरे प्रेवशद्वार बनाने का चलन प्रचलित हुआ।  जो भी रास्ता किसी नगर से आरंभ होकर दूसरे नगर जाकर समाप्त होता था उसका नाम उसीपर रख दिया जाता था जैसे कि क़ज़वीन नगर से तेहरान को मिलने वाले मार्ग के अंत पर स्थित द्वार को दरवाज़े क़ज़वीन के नाम से जाना जाता था।  नगरों के आरंभ में स्थित यह प्रवेश द्वरा एक निर्धारित समय पर खुलते और बंद होते थे और इनपर विशेष प्रकार से टाइलों का काम किया जाता था।  वह वास्तुकला जिसे "मुख़तलित" कहा जाता है उसे अधिकतर तेहरान में राजओं के महलों में देखा जा सकता है।  यहां तक कि क़ाजारी शासन श्रंखला के समाप्त हो जाने के बाद भी उस काल की वास्तुकला शैली को प्रयोग किया जाता था।

क़ाजारी काल की वास्तुकला सामान्यतः चित्रकारिता और टाएल्स के काम पर आधारित थी।  इस काल से पहले तक टाएल्स पर जो वार्निश की जाती थी वह अधिकतर धातुओं की होती थी या फिर खुदानों से उसे प्राप्त किया जाता था।  जब पैकिंग के रूप मे वार्निश, रूस से ईरान आने लगी तो फिर टाएल्स के रंगों की गुणवत्ता का स्तर नीचे गिरने लगा।  इसका परिणाम यह निकला कि आयातित वार्निश से बनी इमारतों से जब वार्निश छूटने लगी तो फिर उनसे पहले प्राचीन शैली से बनी इमारतों का महत्व अधिक बढ़ गया।

बाद में टाइल्स पर बने उन चित्रों का स्थान "इस्लीमी" डिज़ाइन ने ले लिया जिनपर गुलदस्तों में गुलाब के फुलों के चित्र अंकित होते थे।  गिरजाघरों के बाहरी भागों, महलों के बाहरी हिस्सों यहां तक कि यूरोपीय चक्कियों पर भी टाएल्स का काम बहुत अधिकता में दिखाई देता था।  ईरान में यही वास्तुकला शैली इसके अशुद्ध होने को दर्शती है।  बाद में इस शैली में बेपरदा महिलाओं के चित्रों को भी शामिल किया गया जो ईरानी वास्तुकला से मेल नहीं खाती है।  बाद में धीरे-धीरे इस शैली में दीवारों और छतों के लिए शीशेकारी का काम किया जाने लगा जिनमें अन्य रंगों पर पीले, सफ़ेद और गुलाबी रंगों को वरीयता दी जाने लगी।

इस वास्तुकला की एक अन्य विशेषता यह थी कि पिरामिड के आकार की ढलुआ छतों का प्रचलन बढ़ने लगा जिसे असमान्य ढंग से ईरानी वास्तुकला से मिश्रित किया गया।  इस काल की वास्तुकला का स्पष्ट नमूना, तेहरान का "गुलिस्तान महल" है जिसे नासिरुद्दीन शाह के काल में यूरोपीय वास्तुकला से प्रभावित होकर बनाया गया था।

यह महल एक बहुत बड़ा काम्पलेक्स है जिसेक भीतर विभिन्न वास्तुकला शैलियों में कई इमारते हैं।  इमसें ठहरने का विशेष स्थल, नाटक प्रदर्शित करने का मंच, पुस्तकालय, शीशे का हाल, चीनी के बरतनों का विशेष स्थान और राजाओं के काल की धरोहरों को सुरक्षित करने वाला संग्रहालय और इसी प्रकार की कई इमारतें मौजूद हैं।  इन इमारतों की वास्तुकला सामान्यतः ईरान की प्राचीन वास्तुकला, इस्लामी काल की वास्तुकला और पश्चिमी वास्तुकला से मिश्रित है जिनको रंगारंग प्रकार से सुसज्जित किया गया है।

"ईरान की वास्तुकला की सैर" नामक किताब में मिलता है कि ईरान की बारूक वास्तुकला इसलिए बहुत रंगारंग है क्योंकि यह कई वास्तुकला शैलियों से प्रभावित है।  इसमें एसी इमारतें हैं जिनके प्रवेश द्वार से सीढ़ियों का क्रम आरंभ होता है और आगे जाकर दो हिस्सों में बंट जाता है वह रूसी वास्तुकला से प्रभावित है।  इस काल में विश्राम करने तथा मनोरंजन के उद्देश्य से "हौज़ख़ाने" बनाए जाते थे।

इन सभी विशेषताओं के बावजूद यह वास्तुकला क्योंकि ईरान की भौगोलिक स्थिति पर ध्यान दिये बिना और यहां की पारंपरिक वास्तुकला की अनेदखी करती है इसलिए आम लोगों ने इसका स्वागत नहीं किया।  जब क़ाजार शासन का अंत हो गया तो धीरे-धीरे यह भी अपने अंत को पहुंची।  इस वास्तुकला के कुछ नमूने इस समय केवल तेहरान में ही मौजूद हैं जिन्हें पर्यटकों और दर्शकों के लिए संग्रहालयों के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।

 

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