मस्जिद और उपासना- 45
जैसा कि इससे पहले के कार्यक्रमों में हमने यह बताया था कि मस्जिद लोगों के बीच मेल-जोल व एकता क़ायम होने का केन्द्र है।
मस्जिद का द्वार सबके लिए खुला हुआ है। मस्जिद में समाज के हर वर्ग का व्यक्ति चाहे वह किसी जाति व वर्ण का हो, जा सकता है और सामूहिक रूप से नमाज़ के आयोजन के अवसर पर जिस पंक्ति में जहां चाहे खड़ा हो सकता है।
मस्जिद शांति व एकता के लिए एक पवित्र व सांस्कृतिक जगह है। यह जगह पवित्र होने की वजह से लोगों के बीच एक दूसरे के प्रति भ्रान्ति को दूर कर सकती है। लेकिन कभी कभी मस्जिद की यह उपयोगिता इस्लाम विरोधियों की ओर से रुकावटों के कारण बाधित हो जाती है। ऐसे माहौल में एक मस्जिद ऐसी भी है जो एकता व शांति के लिए बहुत सक्रिय है। यह मस्जिद जर्मनी में है जिसका नाम इमाम अली मस्जिद है। इस भव्य मस्जिद में विभिन्न मत और विभिन्न राष्ट्रों के मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं। यह मस्जिद धार्मिक व मानवीय गतिविधियों के लिए उचित जगह है। जर्मनी में "उपासना स्थलों के खुले द्वार" शीर्षक के तहत दो दिन का एलान हुआ है। एक दिन गिरजाघर और दूसरा दिन मस्जिद से विशेष है। 3 अक्तूबर जर्मनी में पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी एकता दिवस के रूप में घोषित है। जर्मनी की मुसलमानों की समन्वय परिषद यह दिन मनाती है।

इस दिन जर्मन मुसलमानों की समन्वय परिषद ग़ैर मुसलमान लोगों के सवालों के जवाब देने के अलावा हर साल एक विशेष विषय का चयन कर उसके बारे में विस्तार से चर्चा करती है। पिछले कुछ साल में इस परिषद की गतिविधियां पर्यावरण की रक्षा, सामाजिक, इस्लामी कला और पलायन से संबंधित ज़िम्मेदारियों पर केन्द्रित रही हैं। इस साल 3 अक्तूबर का नारा है "अच्छा पड़ोस और अच्छा समाज" । इस समारोह के आयोजन के बुकलेट में आया हैः "चूंकि आज इस्लाम में कम लोग ही पड़ोसी की अहमियत के बारे में जानते हैं, मुसलमानों की समन्वय परिषद के आरएम ने इस विषय को मस्जिद के खुले द्वार दिवस के नारे के रूप में चुना है।"
इमाम अली मस्जिद की लाइब्रेरी भी इस मस्जिद का बहुत अहम भाग है। इस मस्जिद में धर्म, इतिहास, संस्कृति, साहित्य और समाज के बारे में 5000 से ज़्यादा किताबे हैं। इस लाइब्रेरी की ज़्यादातर किताबें फ़ारसी, अरबी, जर्मन और अंग्रेज़ी ज़बान में हैं। पाठक इन किताबों को लाइब्रेरी के विशेष कमरे में पढ़ सकते हैं और चाहे तो घर ले जा सकते हैं। इस मस्जिद ने इस्लामी संस्कृति व विचार को पेश करने के लिए अब तक फ़ारसी, अरबी, तुर्क, बोस्नियाई और जर्मन ज़बान में अनेक किताबें प्रकाशित करायी हैं। इन किताबों में योरोपीय समाजों की ज़रूरत के अनुसार सवालों के जवाब दिए गए और इस्लामी संस्कृति के विभिन्न आयामों को पहचनवाया गया है।
मुसलमानों और ग़ैर मुसलमानों की ओर से इस्लाम के बारे में अलग अलग तरह के सवालों के मद्देनज़र जर्मन ज़बान में ब्रोशर तय्यार किए गए हैं जिनमें विभिन्न विषयों के बारे में इस्लाम के दृष्टिकोण को सटीक रूप मे बयान किया गया है। यह ब्रोशर लोगों के लिए फ़्री होते हैं। अलफ़ज्र नामक द्वैमासिक पत्रिका हैम्बर्ग में इस्लामी केन्द्र की ओर से प्रकाशित होती है। यह पत्रिका वर्ष 1982 से अब तक नियमित रूप से प्रकाशित होती आ रही है। इस पत्रिका की 3000 हज़ार प्रतियां प्रकाशित होती हैं। इस पत्रिका का कार्यालय इस इस्लामी केन्द्र के तहख़ाने में है।
इमाम अली मस्जिद में जुमे की नमाज़ होती है। जुमे की नमाज़ का विशेष भाषण अरबी, फ़ारसी और जर्मन ज़बान में दिया जाता है। जुमे की नमाज़ में बड़ी संख्या में मुसलमान आते हैं और हर हफ़्ते जुमे की नमाज़ का भव्य रूप में आयोजन होता है। इसके अलावा इस मस्जिद में ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा की भी नमाज़ें होती हैं। इन दोनों बड़े इस्लामी त्योहार में लोगों की मौजूदगी, धार्मिक कर्तव्य को अंजाम देने के साथ साथ मुसलमानों के बीच आपस में अच्छे संबंध व मेल-जोल की पृष्ठिभूमि भी मुहैया करती है।

इमाम अली मस्जिद में हर हफ़्ते पवित्र क़ुरआन की व्याख्या का क्लास भी होता है। ये क्लासें गुरुवार को फ़ारसी भाषा में और शनिवार को जर्मन भाषा में होती हैं जिसके बाद लोग सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ते हैं। अरबी भाषा में भी क्लासें आयोजित होती हैं जिनमें अरब मर्द और औरतें भाग लेती हैं।
हर महीने के पहले शनिवार को इस केन्द्र में अरबी भाषा में भाषण की एक सभा आयोजित होती है जिसमें विभिन्न अरब देशों के मुसलमान भाग लेते हैं। इस सभा में आम तौर पर किसी यूनिवर्सिटी का कोई प्रोफ़ेसर और एक धर्मगुरु भाषण देते हैं।
इमाम अली मस्जिद हैंम्बर्ग के इस्लामी केन्द्र के साथ हर कुछ महीने में विभिन्न विषयों पर सेमिनार आयोजित कराती है जिसका उद्देश्य इस्लामी विचारों का प्रचार व प्रसार और मुसमलानों को धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विषयों पर चर्चा के लिए प्लेटफ़ॉर्म मुहैया करना है। इस्लामी एकता सेमिनार, हज सेमिनार, इस्लामी बुद्धिजीवियों और उनकी रचनाओं की याद में सेमिनार और इस्लामी जगत व इस्लामी देशों से संबंधित मामलों के बारे में सेमिनार, इस मस्जिद में आयोजित होने वाले सेमिनार हैं।

इस मस्जिद में पवित्र क़ुरआन को पढ़ने की क्लासें, लड़कियों से विशेष इस्लामी आदेश की क्लासें, बच्चों और नौजवानों के लिए धार्मिक शिक्षा की क्लासें चलती हैं। आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा कि पूरे हफ़्ते ज़्यादातर जर्मन स्कूलों के छात्र अपने शिक्षकों के साथ पहले से तयशुदा कार्यक्रमानुसार मुसलमानों की धार्मिक आस्था से परिचित होने के लिए मस्जिद में आते हैं। हैम्बर्ग इस्लामी केन्द्र इस्लाम के बारे में छोटे छोटे भाषण आयोजित कराता है जिसके बाद लोग इस्लाम और मुसलमानों के बारे में सवाल करते हैं, जिनका जवाब दिया जाता है।
इसी तरह इस्लामी विषयों में रूचि रखने वाले विभिन्न जर्मन गुट पहले से तयशुदा कार्यक्रमानुसार इस केन्द्र में आते हैं और इन विषयों से संबंधित अपने सवाल केन्द्र के प्रतिनिधियों के सामने पेश करते हैं। वास्तव में इमाम अली मस्जिद में खुला द्वार दिवस एक ख़ास दिन से विशेष नहीं है बल्कि यह हमेशा का सुनियोजित कार्यक्रम है और हैम्बर्ग इस्लामी केन्द्र शनिवार और रविवार को 9 बजे से शाम 5 बजे तक सबके लिए खुला रहता है। 9 बजे से शाम 5 के बीच इस केन्द्र में एक न एक व्यक्ति ऐसा मौजूद रहता है जो लोगों के सवालों का जवाब दे सके।
इमाम अली मस्जिद में एक और अच्छा समारोह आयोजित होता है और वह इस्लाम क़ुबूल करने वालों से विशेष होता है। इस समारोह में कुछ लोगों के साथ ताज़ा मुसलमान व्यक्ति कलमा पढ़ता है जिसके बाद उसकी व्यक्तिगत जानकारी मस्जिद के कार्यालय में पंजीकृत होती है।
इस भव्य मस्जिद को ईरानी धर्मगुरु स्वर्गीय आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरुजर्दी के कोशिशों से बनाया गया। कुछ समय बाद स्वर्गीय आयतुल्लाह डॉक्टर शहीद बहिश्ती को इस मस्जिद के इमाम के रूप में भेजा गया जिसके बाद इस मस्जिद की गतिविधियां विस्तृत हुयीं और इस्लामी संस्कृति केन्द्र की स्थापना हुयी जिसका उद्देश्य सभी राष्ट्रों व मतों के मुसलमानों के बीच एकता व समरस्ता क़ायम करना है।

इस मस्जिद की इमारत के दो अहम भाग हैं। मस्जिद का मुख्य भाग गोलाकार है जिसके ऊपर 13.5 मीटर व्यास का 18 मीटर ऊंचा गुंबद है। यह हरे रंग का गुंबद सिमेंट का बना है जिस पर तांबे की कोट चढ़ी है। मस्जिद का हरे रंग का गुंबद बहुत ही आकर्षक लगता है।
मस्जिद के अंदर के हिस्से में जगह जगह पर शिलालेख हैं जिन पर पवित्र क़ुरआन के जुमा और इसरा नामक सूरे की आयतें सुल्स लीपि में लिखी हुयी हैं। इन आयतों के नीचे जर्मन ज़बान में उनके अनुवाद भी लिखे हुए हैं। इस मस्जिद में टाइल का काम ईरानी टाइल के काम के माहिर कलाकार उस्ताद अब्दुल हुसैन मिश्कात के हाथों अंजाम पाया है। मस्जिद का मेहराब ईंट और टाइल की कला का मिश्रित नमूना है। मेहराब के ऊपर अनआम नामक सूरे की 162वीं आयत लिखी है जिसमें ईश्वर कह रहा हैः "हे पैग़म्बरे कह दीजिए कि मेरी नमाज़, सारी इबादत, जीवन और मृत्यु ईश्वर के लिए है जो पूरी सृष्टि का रचयिता है।"

इस मस्जिद में रोज़ सामूहिक रूप से नमाज़ का आयोजन होता हैं। गुंबद के दोनों ओर दो मीनारे हैं जिन्हें गुलदस्ते अज़ान कहते हैं। यह गुल्दस्ता पैग़म्बरे इस्लाम के दौर में मदीने में अज़ान देने वाले हज़रत बेलाल की याद ताज़ा करता है। ये दोनों मिनारें भी सिमेंट की बनी हैं। मस्जिद का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर खुलता है और उसका बाह्य रूप सुंदर टाइल से सजा है। मस्जिद का यह प्रवेश द्वार मस्जिद के आस-पास के स्थान की तुलना में ऊंचे चबूतरे पर बना है जिस तक पहुंचने के लिए दोनों तरफ़ ज़ीने बने हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के सामने फ़व्वारा बना हुआ है जिससे बाहर का वातावरण आनंदित लगता है।
मस्जिद में भाषण के लिए विशेष हॉल, लाइब्रेरी, कार्यालय, वुज़ूख़ाना, शौचालय और बावर्चीख़ाना इस मस्जिद के अन्य भाग हैं।

भाषण के लिए विशेष हॉल मस्जिद के हॉल के बग़ल में है जिसमें लगभग 200 कुर्सियों की गुंजाइश है। इस हॉल में धार्मिक व वैज्ञानिक विषयों पर भाषण और सेमिनार होते रहते है और समानांतर अनुवाद का सिस्टम बनाया गया है। जिस जगह पर खड़े होकर वक्ता भाषण देते हैं वहां पर पवित्र क़ुरआन के नहल नामक सूरे की 125वीं आयत लिखी है जिसमें लोगों को ईश्वर की ओर तर्क व अच्छी शैली के साथ बुलाने का निमंत्रण दिया गया है।