ईरानी संस्कृति और कला- 12
अबतक हमनें ईरान में विभिन्न प्रकार की वास्तुकला शैली के बारे में आपको बताया।
हमनें पिछले एक हज़ार वर्षों के दौरान प्रचलित वास्तुकला शैलियों के बारे में चर्चा की थी। हमने यह भी बताया कि इसमें किस प्रकार से परिवर्तन होते गए। शोध करने से यह पता चलता है कि हर देश की वास्तुकला सामान्यतः उस देश की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होती है।
अब से हम एतिहासिक धरोहर के रूप में ईरान की वास्तुकला की समीक्षा करेंगे जिसमें जीवित आत्मा वास करती है। हम इस बात का भी प्रयास करेंगे कि अगले कुछ कार्यक्रमों में ईरान की वास्तुकला के कुछ रहस्यों के बारे में आपसे चर्चा करते हुए ईरान की इमारतों की विशेषताओं से अवगत करवाएं। एसी इमारतें जो एक प्राचीन परंपरा के आधार पर बनाई जाती हैं और परिवर्तनों के बावजूद उनमें बहुत सी संयुक्त बातें पाई जाती हैं। इन संयुक्त समानताओं को हम, एक वाक्य की संज्ञा दे सकते हैं। एसी स्थिति में शब्दों के अलग-अगल अर्थ पर ध्यान देने के अतिरिक्त हमें यह भी मालूम होना चाहिए कि उनका प्रयोग कहां-कहां और किन अर्थों में होता है अर्थोत भवन या इमारत के भागों के बारे में सुनकर यह समझ में आ जाता है कि वह कौनसी इमारत है।
उदाहरण स्वरूप जब हम यह बताना चाहते हैं कि दीवार, खिड़की, छत और गुंबद आदि सब किसी एक इमारत के हिस्से हैं तो हमको पता होता है कि इनका एक-दूसरे से विशेष संपर्क है। इन नियमों को हम किसी भाषा की व्याकरण भी कह सकते हैं। जिस प्रकार से एक वाक्य के अलग-अलग शब्द आपस में मिलकर एक वाक्त बनते हैं और एक मतलब देते हैं। इससे लोगों के मन में एक व्यवस्था का विचार सामने आता है। वास्तुकला से संबन्धित नियम भी किसी सीमा तक एक ज्योमितीय व्यवस्था का अनुसरण करते हैं जिसके कारण वास्तुकला में प्रयोग की गई शैली का सरलता से पता चल जाता है।
किसी वास्तुकला की शैली को पहचानने का एक अन्य रास्ता उसके अन्य हिस्सों की पहचान है। उदाहरण स्वरूप गुंबद, मीनार, ताक़ और मेहराब आदि से मिलकर मस्जिद बनती है। अर्थात गुंबद, मीनार, ताक़ और मेहराब आपस में मिलकर जो अर्थ देते हैं वह है उपसनागृह या मस्जिद। इस प्रकार एक इमारत का विशलेषण करने के लिए उसके हिस्सों का जानना ज़रूरी है। इस कार्यक्रम में हम ईरान में वास्तुकला के महत्व, उसके स्थाई मूल्यों की ओर संकेत करेंगे।
फ़ारसी भाषा में "नज़म" शब्द का अर्थ होता है सुव्यवस्था या अनुशासन। इसे विधि, क़ानून और रीति भी कहा जाता है। सामान्यतः किसी इमारत की पहचान के लिए यह जानना ज़रूरी है कि उसके विभिन्न हिस्सों का एक-दूसरे से क्या संबन्ध है। सारे के सारे धर्म, सरकारें और विचारधाराएं भी सुव्यवस्था के बारे में बात करती हैं। यह सब इसको सृष्टि के रूप लेने का मुख्य कारण मानते हैं। एसे में यह कहा जा सकता है कि सृष्टि और सुव्यवस्था में चोली-दामन का साथ है।
इस बारे में आस्ट्रेलिया के वास्तुकला के एक जानकार "कोलार" कहते हैं कि एक इमारत, बर्फ के टुकड़े, पेड़ या एक मोती जैसी है जिसके भीतर एक ज्योमितीय व्यवस्था दिखाई देती है। वास्तुकला के इतिहास का अध्ययन बताता है कि शहरों के निर्माण में एक प्रकार की सुव्यवस्था को देखा जा सकता है। यह सुव्यवस्था, वास्तव में सृष्टि में पाई जाने वाली सुव्यवस्था से ली गई है।
इलाही सुव्यवस्था उसको कहा जाता है जिसे ईश्वर ने अस्तित्व दिया हो। यह व्यवस्था पूरी सृष्टि में दिखाई देती है। मनुष्य को सदैव ही इसकी पहचान के लिए प्रेरित किया गया है। उचित यह होगा कि मनुष्य अपनी दिनचर्या में इसे शामिल करे या इसके आधार पर अपना जीवन गुज़ारे। इस परिभाषा में कुछ विदित विसंगतियां भी तब ही होती है कि जब प्राकृतिक व्यवस्था में विघ्न पड़ता है।
"नज़्मे इंसानी" ऐसी व्यवस्था को कहा जाता है जिसको, लोगों को एक-दूसरे के साथ संपर्क बनाए रखने के उद्देश्य से मनुष्यों के ही हाथों बनाया जाता है। इसके कारण सामजिक व्यवस्था सुचारू रूप से चलती है।
इस्लामी दृष्टिकोण के अनुसार मनुष्यों की व्यवस्था को भी ईश्वरीय व्यवस्था के अन्तर्गत होना चाहिए क्योंकि यह व्यवस्था सोचने और समझने वाले लोगों ने बनाई है और मनुष्य को ईश्वर ने पैदा किया है।
विशेषज्ञों के अनुसार हर धर्म में बताई गई सुव्यवस्था, इमारतों या नगरों के बनाने वाले नक्शों पर प्रभाव डालती है। कुछ जानकारों ने किसी एक इमारत या नगर की बनावट को मनुष्य के शरीर से संज्ञा दी है। उन्होंने मनुष्य के लिए तीन मुख्य भाग माने हैं जैसे सिर, बदन और हृदय। इस प्रकार से एक भाग को सत्ता का केन्द्र, एक को आध्यात्म का केन्द्र और तीसरे को कार्य तथा व्यापार का केन्द्र बताया है। शरीर को संचालित करने वाली व्यवस्था पर धर्मगुरूओं ने ही विशेष ध्यान दिया है। इसके प्रभाव को इस्लामी वास्तुकला में स्पष्ट ढंग से देखा जा सकता है। ईरान में इस्लामी काल के दौरान की वास्तुकला में एसे उदाहरण मिल जाएंगे जिनको देखकर पता चलता है कि ईरानी वास्तुकारों ने बहुत से अवसरों पर शरीर का संचालन करने वाली व्यवस्था का अनुसरण किया है।
मुसलमानों के एक विख्यात इतिहासकार "इब्ने ख़लदून" ने एक शब्द का बहुत प्रयोग किया है और वह है, "मदनियत"। मदनियत को सभ्यता कहा जाता है। कहते हैं कि मदनियत का संबन्ध शहरी जीवन से अधिक है। शहर या नगर, एक सुव्यवस्थित जीवन का आदर्श है। यह सुव्यवस्थित जीवन, मरूस्थल में जीवन गुज़ारने या पलायन का जीवन व्यतीत करने के मुक़ाबले में है। वास्तव में मरूस्थलों, जंगलों या पहाड़ों का वातावरण तो अलग-अलग होता है किंतु वहां पर वैसी सुव्यवस्था नहीं दिखाई देती जैसी नगरों में होती है।
ईरान में इस्लाम के आगमन से पहले और उसके बाद सुव्यवस्थित नगरों का अस्तित्व रहा है। इससे पता चलता है कि ईरान में सभ्यता शताब्दियों से रही है।
ईरान का प्रचीन नगर "हेग्मताने" या आधुनिक नगर इस्फ़हान, तेहरान, शीराज़, तबरेज़ और रेइ आदि सभी इस्लामी मूल्यों के स्वामी हैं जहां पर सुव्यवस्था को वरीयता प्राप्त है। एक हिसाब से हर नगर एक घर के समान है। ईरानी संस्कृति में घर का मतलब होता है शांति का स्थल जहां पर परिवार शांति और चैन से जीवन गुज़ारते हैं।
"इस्लामी शहर" नामक पुस्तक के लेखक "नजमुद्दीन बमाट" के अनुसार इस्लामी शहरों में सड़कें, आगे जाकर एक दीवार से मिल जाती हैं। इसकी इमारतें सुन्दर हैं। यह इमारतें भीतरी वातावरण से प्रभावित हैं। इस प्रकार बाहर का दृश्य बहुत मनमोहक दिखाई देता है। बाहर से यह इमारतें एक प्रकार की बनी हुई सादी और साधारण दिखाई देती हैं जिनके रहने वालों को बाहर वाले नहीं देख सकते। यह बात, घर को लेकर मुसलमानों की आस्था को प्रकट करती है।