क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-697
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-697
إِنَّ هَذَا الْقُرْآَنَ يَقُصُّ عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ (76) وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ (77) إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُمْ بِحُكْمِهِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ (78) فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ (79)
(निस्संदेह यह क़ुरआन बनी इसराईल से अधिकतर ऐसी बातें बयान करता है जिनके बारे में उनमें मतभेद है। (27:76) और निस्संदह यह (क़ुरआन) ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन और दया (का कारण) है। (27:77) (हे पैग़म्बर!) निश्चय ही आपका पालनहार उनके बीच अपने आदेश से फ़ैसला कर देगा और वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली और जानकार है (27:78) तो आप ईश्वर पर ही भरोसा कीजिए कि निश्चय ही आप स्पष्ट सत्य पर हैं। (27:79)
إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَى وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ (80) وَمَا أَنْتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَنْ ضَلَالَتِهِمْ إِنْ تُسْمِعُ إِلَّا مَنْ يُؤْمِنُ بِآَيَاتِنَا فَهُمْ مُسْلِمُونَ (81)
(हे पैग़म्बर!) निश्चय ही आप अपनी बात मुर्दों को नहीं सुना सकते और न ही बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हैं जब वे मुंह मोड़ कर जा रहे हों। (27:80) और न आप अंधों को उनकी गुमराही से हटाकर (सही) मार्ग पर ला सकते हैं। आप तो बस उन्हीं को (अपनी बात) सुना सकते हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाना चाहें। तो वही (सत्य के प्रति) नतमस्तक होते हैं। (27:81)