Oct ०७, २०१८ १२:४० Asia/Kolkata

डोनाल्ड ट्रम्प जब से अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तबसे उन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ और मानवाधिकार परिषद जैसी संस्थाओं व संगठनों के बारे में कड़ा रवइया अपना रखा है और उनके क्रिया- कलापों पर प्रश्न चिन्ह लगा रखा है।

ट्रंप ने अमेरिका द्वारा विभिन्न देशों एवं संगठनों को दी जा रही सहायताओं की ओर संकेत किया और बल देकर कहा कि इसके बाद अमेरिका इन सहायताओं पर पैनी नज़र रखेगा और अब वाशिंग्टन केवल अमेरिका के मित्र देशों की ही सहायता करेगा।

ट्रंप ने जहां एक ओर राष्ट्रसंघ और उससे संबंधित संगठनों व संस्थाओं के क्रिया- कलापों पर सवाल उठाया है वहीं दूसरी ओर अमेरिकी सरकार राष्ट्रसंघ का प्रयोग हथकंडे के रूप में कर रही है। अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों विशेषकर राष्ट्रसंघ में अमेरिकी राजदूत निकी हेली ने बारम्बार इस अंतरराष्ट्रीय मंच का प्रयोग दूसरे देशों यहां तक कि स्वयं इस संगठन से जुड़े संगठनों व परिषदों पर हमले के लिए किये हैं। वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन और सुरक्षा परिषद की बैठक में अमेरिकी अधिकारियों के क्रिया -कलापों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। रोचक बात यह है कि इस वर्ष सुरक्षा परिषद की जो बैठक हुई उसकी अध्यक्षता अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया और ईरान के साथ जो परमाणु समझौता हुआ है और इस परमाणु समझौते के समर्थन व पुष्टि में सुरक्षा परिषद ने जो प्रस्ताव पारित किया है उसका पालन करने वाले देशों को ट्रंप ने चेतावनी भी दी। दूसरे शब्दों में इस वर्ष सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता उस व्यक्ति ने की जो सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का पालन करने वाले देशों को धमकी भी दी। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जब राष्ट्रसंघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन में भाषण देने और सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता करने वाले थे तो इसके पहले बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार किया गया और माहौल बनाया गया और इसी वजह से बहुत से राजनेता और राजनीतिक विशेषज्ञ ट्रंप के बयान के संबंध में संवेदनशील हो गये थे। राष्ट्रसंघ की महासभा की 73वीं बैठक 24 सितंबर से आरंभ हुई जो न्यूयार्क में 27 सितंबर तक चली। इस बैठक के दौरान 93 राष्ट्राध्यक्षों, 41 प्रधानमंत्रियों और 55 देशों के विदेश मंत्रियों ने भाषण दिया।

राष्ट्रसंघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन में ट्रंप की 25 सितंबर की उपस्थिति पर सवाल किये गये। उसका एक कारण यह था कि वह राष्ट्रसंघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन में आधा घंटा देर से पहुंचे जिसकी वजह से दूसरे देशों के नेताओं के भाषण देने के कार्यक्रम में विघ्न उत्पन्न हो गया। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण के आरंभ में एसा दावा किया जो राष्ट्रसंघ की महासभा के वार्षिक अधिवेशन में मौजूद नेताओं और अधिकारियों की हंसी और उपहास का कारण बना। ट्रंप ने दावा किया कि उनका क्रिया- कलाप अमेरिका के दूसरे राष्ट्राध्यक्षों से बेहतर है। उनकी यह बात बहुत से नेताओं की हंसी का कारण बनी। ट्रंप ने दावा किया कि अर्थ व्यवस्था और सैनिक क्षमता के बारे में उनकी सरकार के क्रिया- कलाप सफल रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि हमने एक वर्ष में सैनिक बजट में ध्यान योग्य वृद्धि कर दी है और अगले वर्ष में भी ऐसा ही होगा और इसका अर्थ अमेरिकी सेना की शक्ति में वृद्धि और अमेरिका का मज़बूत होना है। यद्यपि वर्ष 2019 के लिए अमेरिका के सैनिक बजट में अभूतपूर्व ढंग से 716 अरब डालर की वृद्धि कर दी गयी है उसके बावजूद अमेरिकी सेना को बहुत सी चीज़ों की कमी का सामना है। साथ ही अमेरिकी अर्थ व्यवस्था के बेहतर होने के संबंध में ट्रंप ने जो दावा किया उस पर सवाल उठाये गये। जो सवाल किये गये उनमें से एक सवाल यह था कि जो कंपनियां टैक्स देने वालों के धन से चलती हैं उनसे संबंधित रोज़गार के अवसरों के समाप्त होने की प्रक्रिया में बराक ओबामा और जार्ज डब्ल्यू बुश के राष्ट्रपति शासन काल की अपेक्षा तीन गुना की वृद्धि हो गयी है। इस आधार पर छोटी और औसत दर्जे की कंपनियों के बंद होने का क्रम जारी है। कुल मिलाकर जब से ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं तबसे एक लाख 33 हज़ार अमेरिकियों को काम से निकाले जाने का पत्र मिल चुका है। श्रम वर्ग के जिन लोगों ने ट्रंप का समर्थन किया और उन्हें वोट दिया रोज़गार के संबंध में उनके लिए ट्रंप का रवइया बड़ा निराशाजनक रहा।

 

 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रसंघ की महासभा में जो भाषण दिया था उसमें एक महत्वपूर्ण विषय ईरान और उसका शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम था। ट्रंप ने जैसे ही राष्ट्रसंघ के मुख्यालय में प्रवेश किया और अपना भाषण आरंभ करने से पहले उन्होंने ईरान के बारे में पूछे गये एक प्रश्न के जवाब में कहा कि ईरान के पास अपना रवइया बदलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। साथ ही उन्होंने ईरान के साथ अच्छे संबंध हेतु अपनी इच्छा की ओर संकेत किया और कहा कि यह कार्य अभी नहीं होगा। ईरान के बारे में ट्रंप ने जो कहा, उससे पहले राष्ट्रसंघ में अमेरिकी राजदूत निकी हेली ने कहा था कि यह देश यानी ईरान अब भी एक समस्या है और विश्व के हर संकटग्रस्त क्षेत्र में ईरान की भूमिका दिखाई पड़ती है। अतः ईरान और मध्यपूर्व में उसकी भूमिका के बारे में चर्चा अमेरिकी राष्ट्रपति के भाषण का केन्द्र बिन्दु होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने राष्ट्रसंघ की महासभा में अपने भाषण के दौरान एक बार फिर ईरानी अधिकारियों के अपमान के साथ ईरान पर दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान न करने का आरोप लगाया और विश्व की सरकारों का आह्वान किया कि वे ईरान पर आर्थिक दबाव डालने के अमेरिकी कार्यक्रम से जुड़ जायें। साथ ही उन्होंने दावा किया कि परमाणु समझौता ईरान के आर्थिक हित में है।

परमाणु समझौते में यह भी तय हुआ था कि प्रतिबंधों के समाप्त हो जाने की स्थिति में ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम के एक भाग को रोक देगा और यूरोप की ओर से जो प्रतिबंध ईरान पर लगाये गये थे उसे वर्ष 2016 में समाप्त कर दिया गया। साथ ही अमेरिका ने जो प्रतिबंध ईरान पर लगा रखा था उसे समाप्त करने की दिशा में वह सदैव रुकावटें खड़ी करता रहा। ट्रंप ने परमाणु समझौते को ईरान को फ्री में मिल जाने वाले उपहार की संज्ञा दी और कहा कि जिस समय वह परमाणु समझौते से निकल गये मध्यपूर्व के बहुत से देशों ने उनके इस फैसले का समर्थन किया। ट्रंप ने अपने भाषण के एक अन्य भाग में कहा कि परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के बाद के वर्षों में ईरान के सैनिक बजट में लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी। जानकार राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि परमाणु समझौते के बाद ईरान के सैनिक बजट में वृद्धि के बारे में ट्रंप ने झूठ बोला है। सिप्री संस्था की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में ईरान का सैन्य बजट लगभग 11 अरब डालर और 2017 में 14 अरब डालर था जो 30 प्रतिशत की वृद्धि है। वास्तव में ईरान के सैनिक बजट में वृद्धि के बारे में जिस आंकड़े का दावा ट्रंप ने किया उससे यह वृद्धि कम रही है। साथ ही ट्रंप ने एक बार फिर इस्लामी गणतंत्र ईरान का अपमान किया और उस पर निराधार आरोप मढ़ा। इसी प्रकार ट्रंप ने ईरान को अलग- थलग करने के लिए दूसरे देशों का आह्वान किया और कहा कि 5 नवंबर से ईरान के खिलाफ नये प्रतिबंधों का आरंभ होगा और उसका लक्ष्य ईरान के तेल की बिक्री को कम करना है।

 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में उत्तर कोरिया का भी नाम लिया और कहा कि जब से उन्होंने उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग ऊन से भेंट की है उसके बाद से इस देश ने अच्छा कार्य अंजाम दिया है परंतु ट्रंप का यह दावा वास्तविकता से अधिक मेल नहीं खाता है। क्योंकि जब से सिंगापुर में उन्होंने किम जोंग ऊन से मुलाकात की है विदित में प्यूंगयांग ने अपना मिसाइल और परमाणु परीक्षण कार्यक्रम रोक रखा है। ट्रंप ने इसी प्रकार दावा किया कि उत्तर कोरिया ने अपनी कुछ परीक्षण साइटों को ध्वस्त कर दिया है और उसे उन्होंने उत्तर कोरिया के साथ वार्ता में प्रगति का चिन्ह बताया जबकि उत्तरी कोरिया का यांग ब्यून परमाणु प्रतिष्ठान सक्रिय है और इसी प्रकार साक्ष्य इस बात के सूचक हैं कि यूरेनियम के संवर्द्धन के लिए गोपनीय परमाणु प्रतिष्ठान भी उत्तरी कोरिया में मौजूद हैं।

वास्तव में जैसाकि अपेक्षा की जा रही थी कि अमेरिका यह चाहता है कि जो समझौते उत्तरी कोरिया के साथ हुए हैं उस पर प्यूंगयांग एक पक्षीय रूप से अमल करे। अमेरिका के इसी रवइये के कारण उत्तरी कोरिया के साथ जो समझौते हुए थे उनका क्रियान्वयन खटाई में पड़ गया है। उत्तरी कोरिया के अधिकारियों का मानना है कि प्यूंगयांग और वाशिंग्टन के मध्य जो समझौते हुए थे और उनमें जो कुछ तय हुआ था उनमें से किसी एक पर भी अमेरिका ने अमल नहीं किया है इसके विपरीत अमेरिका उत्तरी कोरिया के खिलाफ प्रतिबंधों की अवधि में वृद्धि करके उसे और कड़ा बनाये जाने की नीति पर अमल कर रहा है। अतः दोनों देशों के मध्य होने वाले समझौते पर क्रियान्वयन व्यवहारिक रूप से बंद पड़ा है। ट्रंप ने अपने भाषण में स्पष्ट शब्दों में उत्तरी कोरिया के खिलाफ राष्ट्रसंघ के प्रतिबंधों को और कड़ा किये जाने की बात की और ट्रंप के इस रवइये से प्यूंगयांग के लिए नकारात्मक संदेश जाता है।             

 

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसी प्रकार तेल का निर्यात करने वाले देशों के संगठन ओपेक के संबंध में ग़ैर कूटनयिक भाषा का प्रयोग किया और कहा कि ओपेक वह संगठन है जो विश्व के दूसरे देशों की जब कतरता है। ट्रंप के अनुसार तेल की मंडी पर ओपेक का एकाधिकार है। मैं इस प्रकार की चीज़ को पसंद नहीं करता हूं और किसी दूसरे को भी इसे पसंद नहीं करना चाहिये। उन्होंने कहा कि अमेरिका ओपेक के बहुत से देशों का समर्थन करता है जबकि ये देश तेल के मूल्यों में वृद्धि करते हैं और मैं इसके बाद इस प्रकार की चीज़ को सहन नहीं करूंगा। यह ऐसी स्थिति में है जब अमेरिकी राष्ट्रपति की इस प्रकार की मांग को ओपेक के सदस्य देशों की ओर से कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। ट्रंप यह कल्पना कर रहे हैं कि मध्यपूर्व में वाशिंग्टन के घटक विशेषकर सऊदी अरब तेल के उत्पादन में वृद्धि की क्षमता रखता है। इसके बावजूद मौजूद साक्ष्य इस बात के सूचक हैं कि तेल की पैदावार में वृद्धि और उसकी कीमतों को कम करने के संबंध में ट्रंप के प्रयास को गम्भीर बाधाओं का सामना है। सऊदी अरब और रूस ने कहा है कि अभी तेल की पैदावार में वृद्धि संभव नहीं है। दूसरे शब्दों में व्यवहारिक रूप से उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति के आह्वान को रद्द कर दिया है। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री ख़ालिद अलफालेह ने इस बारे में कहा कि सऊदी अरब तेल के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा यद्यपि उसके पास अधिक तेल उत्पादन की क्षमता मौजूद है परंतु अभी यह कार्य ज़रूरी नहीं है। इसी मध्य रूस के ऊर्जा मंत्री एलेक्ज़ेन्डर नोवाक ने भी कहा है कि अभी फौरन तेल के उत्पादन की वृद्धि की कोई ज़रूरत नहीं है। अमेरिका और चीन के मध्य व्यापारिक युद्ध और ईरान के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध तेल की मंड़ी की सामने नई चुनौतियां हैं।

ट्रंप ने अपने भाषण के एक अन्य भाग में राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद और अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की आलोचना की और राष्ट्रसंघ की मानवाधिकार परिषद को कलंक टीका बताया। ट्रंप ने कहा कि जब तक मानवाधिकार परिषद में उनके दृष्टिगत सुधार नहीं किया जायेगा तब तक वह दोबारा इस परिषद में शामिल नहीं होंगे। इसी प्रकार उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय की आलोचना की और कहा कि जिस कारण अमेरिका मानवाधिकार परिषद से निकला है उसी कारण वह अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करेंगे। इसी प्रकार ट्रंप ने राष्ट्रसंघ की भी आलोचना की और इस संघ को दी जाने वाली सहायता को कम यहां तक कि बंद करने की धमकी दी। अमेरिका ने अगस्त 2018 में मानवाधिकार परिषद पर आरोप लगाया था कि वह इस्राईल के खिलाफ भेदभाव से काम लेती है और इस बहाने से ट्रंप इस परिषद से निकल गये। राष्ट्रसंघ में अमेरिकी राजदूत निकी हेली ने पहले ही कहा था कि अमेरिका केवल उसी स्थिति में मानवाधिकार परिषद में बाकी रहेगा जब इस परिषद में आवश्यक सुधार होगा। निकी हेली के दावे के अनुसार यह स्पष्ट है कि जब वाशिंग्टन के दृष्टिगत सुधार नहीं हुआ तो अमेरिका इस परिषद से निकल गया।

 

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