Oct ०७, २०१८ १६:०३ Asia/Kolkata

हमने शहरों के भीतर ईरानी वास्तुकला और डिज़ाइनों की विविद विशेषता और व्यवस्था के बारे में बताया था।

ईरान के प्राचीन शहरों की सड़कें, आयताकार मैदान और इसी प्रकार ईरान की ऐतिहासिक इमारतों के विदित रूप, ईरानी वास्तुकला में मौजूद व्यवस्था और क्रम के नमूने हैं। इसके अलावा स्वदेशी मसालों का प्रयोग भी एक तरह से किया गया और इसने इमारतों की बाहरी व्यवस्था को सुन्दर बनाने में बहुत अधिक मदद की है।  

 

ईरानी कला में चार पत्तियों या चार पर, चार फूल, चार किनारे, चार आयाम और चार बाग़ वाली डिज़ाइनों को विभिन्न चित्रों और डिज़ाइनों में विभिन्न रूपों में विस्तृत पैमाने पर देखा जा सकता है। चार दिशा में चार लाइनें या एक दूसरे को काटती हुई दो लाइनें, ईरानी डिज़ाइनों के आधार को कला के सभी क्षेत्रों में प्रदर्शित करती हैं। हज़ारों साल पहले ईरानियों ने एक दूसरे को काटती हुई दो लाइनों को चमकते सूर्य का प्रतीक और उसके प्रकाश को दुनिया पर छायी व्यवस्था का चिन्ह बताते हुए इसको अपनी कलाकृतियों में प्रयोग किया। इस्लाम धर्म से पहले और इस्लाम के बाद की ऐतिहासिक धरोहरों विशेषकर वास्तुकला में, इमारतों की सजावट और उसको सुन्दर बनाने में इस चीज़ को देखा जा सकता है।

एक चौकोर इमारत बनाने या एक चतुर्भुजीय इमारत पर एक गोल गुंबद का निर्माण करना, ईरानी वास्तुकारों के निकट चतुर्भुजीय डिज़ाइनों के महत्व का पता चलता है। पुनर्जागरण काल में और चौदहवीं तथा पंद्रहवीं ईसवी शताब्दी के काल में प्राचीन पश्चिमी वास्तुकला की विशेषता का अधिक नमूना है। इटली के वास्तुकार लियोन बैटिस्टा अलबर्टी अपनी वास्तुकला की पुस्तक में लिखते हैं कि धार्मिक इमारतों के नक्शे या तो गोल या गोलाई के रूप में होते थे क्योंकि गोलाई सैद्धांतिक रूप  में गणित का प्राकृतिक व पूर्ण स्वरूप है। फिर वह कहते हैं कि चर्चों को भी इसी प्रकार की उचित और समन्वित डिज़ाइनों से संपन्न होना चाहिए। अलबर्टी की नज़र में केवल गोलाई के नक्शे से लाभ उठाते हुए ही इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

अलबर्टी द्वारा अपनी वास्तुकला की किताब में यह दृष्टिकोण बयान किए जाने के बाद बहुत से चर्चा गोलाई में बने जिनका यूरोपीय जनता का भव्य स्वागत किया। अलबर्टी का विचार, पश्चिमी वास्तुकला में डिज़ाइनों और विचारों का पहला नमूना था जो गोलाई से लिए गये हैं।

अलबत्ता उसके बाद लियोनार्डो डावेन्ची ने चर्चो की डिज़ाइनिंग और उसके नक़्शे में अष्टभुजीय या चतुर्भुजीय डिज़ाइनों का भी प्रयोग किया किन्तु उन्होंने ओक़लीदस डिज़ाइन का भी प्रयोग किया जबकि ईरानी वास्तुकार प्राचीन ईरानी विचारधाराओं से लाभ उठाते हुए प्राचीन काल से ही चतुर्भुजीय डिज़ाइनों पर काम करते थे। इसी प्रकार पश्चिमी वास्तुकला में, बड़ी बड़ी इमारतों और आलीशान चर्चों को चतुर्भुजीय व अष्टभुजीय डिज़ाइनों के आधार पर बनाया गया है जबकि ईरान में मस्जिदों, महलों, सामान्य घरों और दूरदराज़ क्षेत्रों में स्थित इमामज़ादों की मज़ारों सहित बहुत ही इमारतों में चतुर्भुजीय डिज़ाइनों में बनाया गया है। ईरानी विचारों का अब तक यह जारी रहने को विभिन्न इमारतों में देखा जा सकता है और इससे पता चलता है कि यह चीज़ ईरान की धरती की असल है।

 

वास्तुकला में निकटता का अर्थ यह है कि किसी इमारत या बिल्डिंग  के दोनों ओर की डिज़ाइनें और केन्द्रीय लाइन, दूसरे ओर की तरह या समान हों। ईरानी वास्तुकला में चार ताक़ों के बारे में कहा जा रहा है कि उनमें निकटता होती है और हर चारों ओर से इमारत का स्वरूप एक जैसा ही होता है। यह निकट, इमारत के संतुलन और व्यवस्था को प्रदर्शित करता है।

ईरानी वास्तुकला के बारे में शोध करने वालों का कहना है कि वास्तुकल में निकटता, प्राकृतिक चीज़ों से लिए गये आदर्श हैं और प्रकृति में फैली व्यवस्था और संतुलन के आधार पर ली गयी है। इस विशेषता के कारण, इमारतों की सुन्दरता पर चार चांद लग जाते हैं।

अधिकतर वास्तुकार और विशेषज्ञों ने ईरानी इमारतों में पायी जाने वाली निकटता का उल्लेख करते हुए उसे ईरानी कलाकारों के विचारों में बयान किए जाने को बहुत उपयोगी और महत्वपूर्ण बताया। निकटता से हटकर ईरानी वास्तुकला की अन्य विशेषताओं में संतुलन का भी स्थान है और हम इस विषय की ओर यहां पर संकेत करने जा रहे हैं। हो सकता है कि इस इमारत के विभिन्न भाग एक दूसरे से न मिलते हों किन्तु पहली नज़र में वह इमारत संतुलित व समन्वित नज़र आएगी। इमारत के संतुलन का यह स्पष्ट उदाहरण इस्फ़हान के इमाम स्क्वायर या नक्शेजहां में देखा जा सकता है। इस स्क्वायर में इसका एक भी छोर दूसरे छोर से तनिक भी नहीं मिलता और उसमें तनिक भी निकटता नहीं पायी जाती किन्तु उसकी वास्तुकला के तत्व इतने सुव्यवस्थित और एक दूसरे के साथ इतनी जटिलता से लगाए गये हैं कि स्वयं ही भीतरी व्यवस्था अस्तित्व में आ गयी और देखने वाले को एक समान नज़र आता है।

इस्फ़हान के नक़्शे जहान या इमाम खुमैनी स्क्वायर में चार असली इमारतें हैं। नक्शे जहान नामक चौराहे के पूर्वी कोने पर और अली कापू इमारत के सामने और इमाम ख़ुमैनी मस्जिद के पास मस्जिदे शैख लुत्फुल्लाह स्थित है। यह मस्जिद दर्शकों के लिए अपनी सुन्दरता का जलवा बिखेरती है। बहुत से लोगों का मानना है कि यह मस्जिद दूसरी मस्जिदों की भांति केवल एक मस्जिद की भूमिका नहीं निभा रही है। इस मस्जिद के वास्तुकार ने इस मस्जिद में इस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर दिया है कि दूसरे धर्मों के अनुयाइयों का भी ध्यान इस मस्जिद में ईश्वरीय प्रकाश और परिज्ञान की ओर जा सकता है।

 

जब मस्जिदे शैख लुत्फुल्लाह की ओर देखते हैं तो सबसे पहले जिस ओर ध्यान जाता है वह यह है कि गुंबद के साथ इस मस्जिद में मीनार नहीं हैं जबकि दुनिया की जितनी भी प्रसिद्ध मस्जिदें हैं उन सबमें मीनारे हैं और मीनार को मस्जिद का अभिन्न अंग समझा जाता है।

मस्जिदे शैख लुत्फुल्लाह जहां टाइलों के काम का अद्वितीय नमूना है वहीं वास्तुकला का भी बेजोड़ उदाहरण है। इस मस्जिद का निर्माण उस समय किया गया था जब इस्फहान में चहार बाग़ और बाग़े हज़ार जरीब का निर्माण आरंभ हुआ था। यह मस्जिद इस्फहान नगर के दक्षिण में और सफ्फा नामक पर्वत के आंचल में स्थित है। इसी प्रकार यह मस्जिद चहार बाग नाम रोड के अंत में है। याद रहे कि इस समय चहार बाग नाम के रोड़ का अस्तित्व नहीं है और जब सफवी काल की वास्तुकला अपने शिखर पर थी तब इस मस्जिद का निर्माण पूरा हुआ और उससे लाभ उठाया जाने लगा। कहा जाता है कि मस्जिदे शैख लुत्फुल्लाह के निर्माण से पूर्व वहां पुराने ज़माने की एक मस्जिद का खंडहर था उसी पर इस मस्जिद का निर्माण किया गया है।

ऐतिहासिक दृष्टि से मस्जिदे शैख लुत्फुल्लाह का निर्माण शैख़ लुत्फुल्लाह मैसी की याद में किया गया है। शैख लुत्फुल्लाह बिन अब्दुल करीम या शैख लुत्फुल्लाह जबले आमिल शैख लुत्फुल्लाह मैसी के नाम से मशहूर हैं। वे लेबनान के मैसुल जबल के एक विद्वान और धर्मशास्त्री थे। शाह अब्बास ने शैख लुत्फुल्लाह के ज्ञान की चर्चा सुन रखी थी इसलिए शीया धर्म के प्रचार -प्रसार के लिए उसने उन्हें लेबनान से इस्फहान बुलाया। जब वह इस्फहान आकर रहने लगे तो शाह अब्बास ने इस्फहान में एक मस्जिद और मदर्से के निर्माण का आदेश दिया और जब मस्जिद का निर्माण पूरा हो गया तो वह शैख लुत्फुल्लाह के धार्मिक शिक्षा देने से विशेष हो गयी। इसी प्रकार शैख लुत्फुल्लाह इस मस्जिद में नमाज़े जुमा भी पढ़ाने लगे।

इस स्क्वायर के महत्व और इसकी उपलब्धियों के दृष्टिगत, इसफ़हान के अधिकतर लोग इस स्क्वायर से गुज़रते हैं, अलबत्ता यह विशेषता पहले भी नज़र आती है क्योंकि मस्जिद और बाज़ार अब भी सार्वजनिक लोगों के प्रयोग में है। इसी के साथ नक्शे जहान इमारत को देखने के लिए बहुत से पर्यटक और सैलानी आते हैं।

 

चूंकि घर में जीवन अपने हिसाब से जारी रहता है,  घर की वास्तुकला भी मस्जिदों और धार्मिक स्कूलों की भांति, ईरानी वास्तुकारों के क्रियाकलापों की अनुयायी होती है।  विभिन्न क्षेत्रों में चार हाल वाला प्रांगड़, ईरान के प्राचीन घरों की विशेषता है। इन घरों में मुख्य प्रांगड़, दरवाज़े और दक्षिणी और उत्तरी छोर में कमरे बने हुए हैं। हाल छोटे और कम महत्व वाला या छोटा बनाया जाता था जैसे शौचालय या स्टोर रूम जितना बड़ा, चीज़ें पूर्वी और पश्चिमी छोर में पाए जाते हैं।  अलबत्ता घर के विशेष महत्व के दृष्टिगत सामान्य रूप से प्रांगड़ का एक छोर, अधिक महत्व हासिल कर लेता है और उस पर विशेष ध्यान दिया जाने लगता है। ईरानी घरों में इस छोटे थे प्रांगड़ को घर आंगन के रूप में प्रयोग किया जाता है। घर आंगन, मुख्य प्रांगड़ से मिला हुआ होता है या कभी कभी उससे जुड़ा हुआ है। यह भूमिका, घरों के माहौल को विभाजित करने में ईरानियों के दृष्टिकोण को दर्शाता है। इस प्रकार से वह घर को भीतरी और बाहरी भाग में विभाजित कर देते हैं। इस विषय पर हम अगले कार्यक्रम में चर्चा करेंगे। (AK)  

 

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