Dec १२, २०१८ १६:३९ Asia/Kolkata
  • आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में क्षेत्रीय देशों के सहयोग की आवश्यकता

क्षेत्र के हालिया परिवर्तन इस बात के परिचायक हैं कि मध्यपूर्व के क्षेत्रीय देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के उद्देश्य से वर्चस्ववादी शक्तियां, आतंकवाद और अतिवाद को हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रही हैं। 

इन शक्तियों में अमरीका सर्वोपरित है।  इस समय न केवल क्षेत्र की परिस्थितियां बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय नियमों की भी यही मांग है कि आतंकवाद के समूल विनाश के लिए परस्पर सहकारिता को प्राथकमिकता दी जाए।  आतंकवाद के ख़तरों के ही कारण ईरान, असके विरुद्ध संषर्घ में पड़ोसी देशों के साथ सहयोग के लिए तैयार है।  ईरान ने व्यवहारिक रूप से भी यह सहयोग करके दिखा दिया है।  इराक़ और सीरिया में आतंकवादियों के मुक़ाबले में विजय ने सिद्ध कर दिया है कि परस्पर वास्तविक सहयोग करके क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को सुरक्षित किया जा सकता है।

सन 2015 में इस्लामी गणतंत्र ईरान, रूस, सीरिया और इराक़ ने आतंकवाद से संघर्ष के उद्देश्य से चार पक्षीय गठबंधन बनाया था।  इसी उद्देश्य से इन चार देशों की सुरक्षा समितियों की बैठक बग़दाद में इराक़ के रक्षामंत्रालय में आयोजित हुई थी।  इस बैठक में ईरान, इराक़, रूस और सीरिया की सशस्त्र सेनाओं के उप प्रमुखों ने भाग लिया था।  चार देशों की इस समिति ने हालिया वर्षों के दौरान इराक़ तथा सीरिया की संयुक्त सेना पर आतंकवादियों की गतिविधियों की गोपनीय जानकारी उपलब्ध कराई, सैकड़ों आतंकवादियों को हताहत करने और इसी प्रकार सीरिया तथा इराक़ में दाइश के पुनः प्रभाव को रोका।

ईरान के राष्ट्रपति ने सन 2017 में रूस के सूची नगर के शिखर सम्मेलन में कहा था कि क्षेत्र में ईरान की रणनीति, सहकारिता एवं सहयोग के आधार पर है, राष्ट्रों के साथ सहयोग के आधार पर और शांति के आधार पर है न कि युद्ध के आधार पर है।  उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान वह पहला देश था जिसने सीरिया की सरकार और जनता की प्रकार का जवाब दिया और आतंकवाद से मुक़ाबले के लिए आगे आया।  राष्ट्रपति रूहानी ने कहा था कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में हम पूरी तरह से गंभीर हैं।  उन्होंने कहा कि ईरान, क्षेत्रीय देशों की ओर से मांग की स्थिति में आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में उनकी सहायता करने के लिए तैयार है।  इस्लामी गणतंत्र ईरान की नीति, अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के अनुरूप है जो क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा की स्थिरता पर आधारित है।  इराक़ तथा सीरिया की सेना ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के सैन्य सलाहकारों की मदद और रूस के समर्थन से इराक़ और सीरिया से आतंकवाद का सफ़ाया कर दिया।

ईरान के संसद सभापति डाक्टर अली लारीजानी ने पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में आयोजित एक सम्मेलन में अमरीका के आतंकवाद विरोधी गठबंधन की उपस्थिति का उल्लेख करते हुए पूछा था कि इस दौरान आतंकवाद पतन की ओर बढ़ा है या वृद्धि की ओर ईरान के संसद सभापति ने स्पष्ट किया कि अमरीका ने आतंकवाद विरोधी जिस गठबंधन को अस्तित्व दिया उसका काम यह था कि वह अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद का सफ़ाया कर दे और साथ ही मादक पदार्थों के उत्पादन को रोका जाए।  उन्होंने कहा कि अमरीका के आतंकवाद विरोधी गठबंधन ने न तो आतंकवाद के सफाए में गंभीरता दिखाई और न ही मादक पदार्थों को समाप्त करने में गंभीरता का प्रदर्शन किया।

इस संदर्भ में ईरान के विदेशी संपर्क की स्ट्रैटेजिक परिषद के प्रमुख डाक्टर सैयद कमाल ख़र्राज़ी ने कहा था कि पश्चिमी एशिया के देशों की सुरक्षा एक-दूसरे से जुड़ी हुई है जिनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।  दूसरे शब्दों में क्षेत्रीय देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा को पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में परिभाषित किया गया है।  इसी आधार पर आतंकवाद का चौतरफ़ा मुक़ाबला करना ही ईरान तथा क्षेत्रीय देशों के साथ सहकारिता का आधार है।

यह वास्तविकता है कि अतिवाद और आतंकवाद का ख़तरा केवल क्षेत्रीय देशों तक सीमित नहीं है बल्कि यह ख़तरा, विश्व शांति के समक्ष भी मुंह बाए खड़ा है।  एक अमरीकी टीकाकार जेफ़्री साक्स अपने एक लेख में कहते हैं कि दाइश पर विजय कोई कठिन काम नहीं है बल्कि समस्या यह है कि अमरीका और उसके घटक, दाइश को अपना मुख्य शत्रु नहीं मानते।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने एक भाषण में कहा था कि वही हाथ जिन्होंने दाइश को जन्म देकर, सीरिया और इराक़ की जनता के विरुद्ध प्रयोग किया, अब वही हाथ दाइश की पराजय के बाद दाइश को अफ़ग़ानिस्तान स्थानांतरित कर रहे हैं।

ईरान की दृष्टि में आतंकवाद जैसे अभिषाप का समाधान, क्षेत्रीय देशों के आपसी गठबंधन और उसको सुदृढ़ करने से ही संभव है।  हालिया कुछ दशकों के दौरान पश्चिम ने क्षेत्रीय देशों के लिए ऐसे संकट उत्पन्न किये जिन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए ख़तरे पैदा किये।  क्षेत्र में अमरीका का सैन्य हस्तक्षेप एक ओर मध्यपूर्व में उसके प्रभाव में वृद्धि का कारण रहा वहीं पर दूसरी ओर इसने क्षेत्र की शांति और स्थिरता को नुक़सान पहुंचाकर यहां पर ग़ैर सार्थक प्रतिस्पर्धा आरंभ कर दी है।

अमरीका के एक जानेमाने टीकाकार नोआम चाम्स्की ने उस समय जब पेरिस में आतंकवादी हमला किया गया तो यह प्रश्न किया था कि अमरीका का लक्ष्य, आतंकवाद को बढ़ावा देना है या उसे समाप्त करना है?  वे कहते हैं कि अगर आप आतंकवाद को समाप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले यह सवाल कीजिए कि आतंकवाद क्यों है? इसका मुख्य कारण क्या है? इसकी जड़ें कहां हैं? बाद में उन्हें स्वयं इन सवालों का जवाब देना चाहिए।

ईरान के विदेशी संपर्क की स्ट्रैटेजिक परिषद के प्रमुख डाक्टर सैयद कमाल ख़र्राज़ी ने सन 2017 में अपने एक संबोधन में कहा था कि क्षेत्र की अस्थिरता से किसको लाभ पहुंच रहा है? इस स्थिति को स्थिर करने के लिए कौन प्रयासरत है?  कमाल ख़र्राज़ी ने कहा कि अगर ईरान, इराक़ और सीरिया की सहायता नहीं करता तो फिर यह देश दाइश के नियंत्रण में चले जाते।  ऐसे में फिर क्या होता? वे कहते हैं कि अगर इराक़ और सीरिया पर दाइश का नियंत्रण हो जाता तो फिर क्या यूरोप में शांति बाक़ी रह सकती थी?

आतंकवाद से संघर्ष के संदर्भ में इस्लामी गणतंत्र ईरान की ओर से अपने पड़ोसी देशों के साथ सहकारिता की तत्परता, कोई मौखिक नारा नहीं है बल्कि तेहरान ने यह बात व्यवहारिक रूप में सिद्ध भी कर दी है।  इराक़ और सीरिया में प्रतिरोधकर्ताओं की लगातार विजय यह बताती है कि वास्तविक सहकारिता, क्षेत्रीय शांति एवं स्थिरता को पुनः सुदृढ़ कर सकती है।

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