शैख़ कुलैनी- 1
शैख़ कुलैनी के नाम से प्रसिद्ध अबू जाफ़र मुहम्मद बिन याक़ूब बिन इस्हाक़ कुलैनी तीसरी शताब्दी हिजरी के दूसरे अर्ध में तथा चौथी शताब्दी हिजरी के पहले अर्ध के प्रसिद्ध शिया धर्मगुरु, हदीस के ज्ञानी और धर्मशास्त्री थे।
शैख़ कुलैनी के जन्म के बारे में सूक्ष्म जानकारी इतिहास में नहीं मिलती। प्राप्त सूचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हदीस के यह महान ज्ञानी 258 हिजरी क़मरी में, जो हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत का काल था, ज्ञान और धर्मावलम्बी परिवार में रय शहर के इलाक़े कुलैन में जन्मे थे। रय शहर ईरान के प्राचीन शहरों में से एक है।
शैख़ कुलैनी के पिता और मामू अपने काल के प्रसिद्ध धर्मगुरु और हदीस के ज्ञानी के थे। शैख़ कुलैनी ने अपनी आरंभिक शिक्षा इन्हीं दो महापुरुषों से अपनी जन्मस्थली कुलैन में प्राप्त की और उसके बाद आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए वह कुलैन से रय की ओर पलायन कर गये। उस काल में रय शहर ईरान के प्राचीन शहरों में से था और इस शहर में विभिन्न धर्मों और मतों के अनुयायी बड़े शांति और सुख के साथ एक दूसरे के साथ जीवन व्यतीत करते थे किन्तु इस सुख शांति में राजनीति छिपी हुई थी। इस्माईलिया मत, ईरान पर नियंत्रण स्थापित करने के उद्देश्य से अन्य धर्मों और मतों से अधिक पूंजीनिवेश कर रहा था और उसने अपने विचारों और दृष्टिकोणों के विस्तार और प्रचलन के लिए बहुत अधिक प्रयास शुरु कर दिए। यही कारण है कि रय शहर इस्माईलिया मत तथा शाफ़ेई, हनफ़ी और शीया धर्मों और मतों के वैचारिक टकराव के केन्द्र में बदल गया। शैख़ कुलैनी इस स्थिति में अपना ज्ञान प्राप्त करने के साथ दूसरे मतों और धर्मों के विचारों और दृष्टिकोणों से भी अवगत हुए बल्कि कुछ ऐसे मतों की वास्तविकताओं से भी अवगत हुए जो शीया मत के वास्तविक मार्ग से निकले हैं।
जवान शैख़ कुलैनी ने शहरे रय में उस काल के प्रसिद्ध और महान विद्वानों और धर्मगुरुओं से हदीस का ज्ञान प्राप्त किया और उन्होंने हदीसों से संबंधी चर्चाओं को सुनने और लिखने में अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को अपने गुरुओं के सामने खुलकर पेश किया। शैख़ कुलैनी ने अपनी आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए पवित्र नगर क़ुम का रुख़ किया और वहां पर उन्होंने बहुत से उन लोगों से हदीसें सुनी जिन्होंने सीधे इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम और हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की ज़बान से हदीसे सुनी थीं। उन्होंने अपने काल के प्रसिद्ध धर्मगुरुओं से ज्ञान प्राप्त किया। शैख़ कुलैनी ने शीया इमामों की हदसें एकत्रित करने के लिए बहुत से गांवों और शहरों की यात्रा की और जहां पर भी उनको हदीस के ज्ञानी के बारे में सूचना मिलती थी वह उस शहर या गांव की ओर जाते थे, चाहे वह शहर या गांव कितना ही दूर क्यों न हो। वह उक्त गांव या शहर में जाते थे और उस हदीस के ज्ञानी से हदीस सुनते और उसे लिख लेते थे।
कूफ़ा उन शहरों में से एक था जिसकी ओर ज्ञान प्राप्त करने और हदीसें एकत्रित करने के लिए पलायन किया जाता है। उस काल में कूफ़ा नगर विज्ञान और शिक्षा का बड़ा केन्द्र समझा जाता था। बहुत ही कम शोधकर्ता या हदीस के ज्ञानी होंगे जिन्होंने इस शहर की यात्रा न की हो और इस शहर के धर्मगुरुओं से ज्ञान प्राप्त न किया हो।

शैख़ क़ुलैनी उस काल के दसियों प्रसिद्ध धर्मगुरुओं और हदीसों के ज्ञानियों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद आख़िर में बग़दाद पहुंचे। उन्होंने अपनी यात्राओं के दौरान अपने ज्ञान और गुणों का भरपूर प्रदर्शन किया और दुनिया के सामने वास्तविक शिया की छवि पेश की। इसीलिए जब वह बग़दाद में प्रविष्ट हुए तो वह गुमनाम नहीं थे। शीया उनपर गर्व करते थे और सुन्नी समुदाय के लोग उन्हें देखने के लिए भीड़ लगाए हुए थे और उन्हें अच्छी और प्रशंसनीय नज़र से देख रहे थे। नज्जाशी के अनुसार कुलैनी अपने काल में रय शहर के प्रसिद्ध धर्मगुरुओं और बुद्धिजिवीयों में शुमार होते थे और वह हदीसों को एकत्रित करने और उसको जमा करने में सबसे भरोसेमंद व्यक्ति थे।
हर व्यक्ति का जीवन जिस काल में या जिस समय में वह जीवन व्यतीत करता है, हमेशा से पाठों, अनुभवों, कठिनाइयों, आरामों, परेशानियों, दुखों, ख़ुशियों, विजयों और पराजयों से भी प्रभावित होता है और उसके जीवन को इन सब चीज़ों का सामना करना पड़ता है। जीवन की डगर हमेशा समतल नहीं होती। मनुष्यों का अपने जीवन के समस्त चरणों में विभिन्न प्रकार की समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। जो व्यक्ति आवश्यक जानकारियों से संपन्न हो वह अपने विकास में केवल किसी प्रकार की रुकावट से चिंतित नहीं होते बल्कि वह समस्त रुकावटों को अपनी प्रगति के लिए एक परीक्षा समझता हैं और उसमें सफलता प्राप्त करता है।
शैख़ कुलैनी न व्यक्तियों में शामिल हैं जिन्होंने अपना विभूतिपूर्ण जीवन ईश्वर के मार्ग में संघर्ष में बिताया है। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के बयानों और उनके शिष्टाचारों को पुनर्जीवित करने के लिए बहुत अधिक संघर्ष किए। उन्होंने इस महत्वपूर्ण काम के लिए अपने माता पिता और समस्त निकटर्ती लोगों को छोड़ दिया और रय, पवित्र नगर क़ुम, कूफ़ा और अंत में बग़दाद की ओर पलायन किया और इस प्रकार ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्होंने बहुत कठिनाइयां और परेशानियां सहन कीं। शैख़ कुलैनी के निरंतर प्रयासों के कारण, ज्ञान के शिखर पर पहुंच गये और इस प्रकार ज्ञान में उनके जैसा उस काल में कोई भी व्यक्ति नहीं था। उन्होंने इतना अधिक प्रयास किया कि वह इतिहास में अपना नाम शीया मुसलमानों के हदीसों के सबसे वरिष्ठ ज्ञानकर्ता के रूप में दर्ज कराने में सफल रहे।
शैख़ कुलैनी उन व्यक्तियों में से एक हैं जिन्होंने इस्लाम और मुसलमानों की बहुत अधिक सेवाएं की हैं। उन्होंने बहुत सी पुस्तकें लिखकर जिनमें अलक़ाफ़ी सबसे महत्वपूर्ण है, इस्लाम धर्म और मुसलमानों तथा शीया मुसलमानों की बहुत अधिक सेवाएं की हैं। बहुत से शीया और सुन्नी समुदाय के बुद्धिजीवी जब शैख़ कुलैनी का नाम सुनते हैं तो वह उनके साहित्य, उनकी धर्म की सेवा, ज्ञान और गुणों के आगे नत्मस्तक हो जाते हैं। शैख़ कुलैनी को बहुत सी उपाधिमां मिली है जिनमें सेक़तुल इस्लाम सबसे महत्वपूर्ण है जिसका अर्थ होता है इस्लाम के भरोसेमंद। वह इस्लाम के पहले बुद्धिजीवी थे जिन्हें इस्लामी काल में सेक़तुल इस्लाम की उपाधि दी गयी।
जनता शैख़ कुलैनी को सच्चा और नैतिक गुणों से संपन्न व्यक्ति समझती थी। हदीसों और रिवायतों की पहचान में उनकी दक्षता इस सीमा तक थी कि सुन्नी और शीया सभी उनकों अपने धार्मिक शोध का केन्द्र समझते थे। यही कारण था कि उन्हें सेक़तुल इस्लाम की उपाधि दी गयी अर्थात वह जिन पर इस्लाम भरोसा करता है।
शैख़ कुलैनी ने अपने विभूतिपूर्ण जीवन में बहुत से प्रसिद्ध शिष्यों का प्रशिक्षण किया जिनमें से हर एक अपने समय का महान बुद्धिजीवी और प्रसिद्ध ज्ञानी बनकर सामने आया। उन्होंने ऐसे शिष्यों को इस्लाम और मुसलमानों के समक्ष पेश किया जिन्होंने इस्लाम धर्म के लिए बड़ी पुस्तकें लिखी और ज़बरदस्त शोध किए।

अपने मूल्यवान जीवन के 70 साल गुज़ारने के बाद जीवन की बहुत सी कठिनाइयों, परेशानियों और दुखों को सहन करने के बाद शैख़ कुलैनी इस दुनिया से गुज़र गये। उनके स्वर्गवास के समय के बारे में बहुत अधिक मतभेद पाया जाता है। एक कथन के अनुसार उनका स्वर्गवास शाबान 329 हिजरी क़मरी में हुआ जबकि एक अन्य कथन के अनुसार उनके जीवन का सूर्यास्त सन 328 हिजरी क़मरी में हो गया। उनके स्वर्गवास से न केवल शीया मुसलमान बल्कि अन्य इस्लामी मतों के अनुयायी भी दुखी हुए। उनके स्वर्गवास से पूरा इस्लामी जगत दुखी थी। बग़दाद के एक प्रसिद्ध धर्मगुरु अबू क़ीरात मुहम्मद बिन जाफ़र हसनी ने उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और शीया मुसलमानों ने बहुत ही दुख के माहौल में बग़दाद के बाज़ार में स्थित बाबुल कूफ़ा में उन्हें दफ़्न कर दिया।