Dec २३, २०१८ १७:४३ Asia/Kolkata

क़ुरआने मजीद ईमान वालों की कुछ विशेषताओं का उल्लेख करता है जिनमें से एक यह है कि वे व्यर्थ बातों व कार्यों से मुंह मोड़ लेते हैं।

ईरान के मुसलमान वास्तुकारों ने भी इन्हीं शिक्षाओं के प्रभाव में इस बात की कोशिश की है कि इमारतों के निर्माण में फ़ुज़ूल ख़र्ची और व्यर्थ कामों से दूर रहें। ईरान की वास्तुकला से संबंधित पुस्तकों के विशेषज्ञ मुहम्मद करीम पीर निया कहते हैं कि अन्य देशों में वास्तुकला से संबंधित कलाएं जैसे चित्रकारी या मूर्तिकला इत्यादि इमारत के लिए सजावट समझी जाती थीं लेकिन ईरान में कभी भी ऐसा नहीं था। चूने का काम, टाइलों का काम और ईंटों की सजावट, ईरान में इमारत के बुनियादी कामों में शामिल थे।

उदाहरण स्वरूप मरुस्थलीय और गर्म व सूखे क्षेत्रों में खिड़कियां तेज़ धूप को घर में आने से रोकती थीं और लोगों के शरीरों के लिए शरण और आराम का साधन थीं। लकड़ी के दरवाज़ों और खिड़कियों के छोटे-छोटे और रंग बिरंगे शीशे कमरों के अंदर हलकी रौशनी पहुंचाने का साधन होने के साथ ही बाहर से इमारत को भी सुंदर बनाते थे। इस प्रकार इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि ईरानी वास्तुकला में सुंदर शब्द का अर्थ प्रायः संतुलित होने और शोभा देने के अर्थ में होता था न कि आंखों को भला लगने के अर्थ में।

ईरान के वास्तुकार इमारतों की डिज़ाइनिंग और निर्माण में इस्लामी सिफ़ारिशों को अवश्य ध्यान में रखते थे लेकिन यह भी कहा जा सकता है कि इस्लाम से पूर्व के काल में भी ईरानी वास्तुकला में बड़ी हद तक व्यर्थ कामों से दूरी की जाती थी। उदाहरण स्वरूप चग़ाज़ंबील की प्राचीन इमारत में भी टाइलों का प्रयोग किया गया है लेकिन आज के विपरीत टाइलों का इस्तेमाल सजावट के लिए नहीं था। इस बड़ी इमारत में, जिसे कुछ लोग उपासना स्थल भी कहते हैं, दीवारों के निचले भाग को नीली टाइलों से ढांका गया है क्योंकि आते जाते समय लोगों का पैर दीवारों के निचले हिस्से से टकराता था अतः दीवार को घिसने से बचाने के लिए ईरानी वास्तुकारों ने टाइलों का इस्तेमाल किया था। यह अलग बात है कि टाइलों के कारण दीवारों की सुंदरता बढ़ गई है।

ईरानी वास्तुकला के नमूनों और उनके मूल तत्वों की समीक्षा से हमें पता चलता है कि ये तत्व यद्यपि इस क्षेत्र की वास्तुकला के इतिहास के एक निर्धारित कालखंड में बने हैं लेकिन अगले कालों में भी उन्होंने अपनी निरंतर उपस्थित से अपनी एक उन्नत और समय से हटकर पहचान बनाई है। जैसे व्यर्थ कामों से दूरी का सिद्धांत कई शताब्दियों तक लगातार छन छन कर इमारतों के अंदरूनी भागों तक पहुंच गया है। पिछली शताब्दियों में बहुत से ईरानी घरों में लोग कमरों की ज़मीन को हाथ के बुने हुए क़ालीन और अन्य चीज़ों से ढंकते थे और ज़मीन पर बैठा करते थे। इसी कारण वे लोग दीवारों पर टेक लगाया करते थे जिसके चलते कुछ समय बाद दीवारों का निचला हिस्सा घिस जाता था। ईरानी वास्तुकार दीवार को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए उसके नीचे से लगभग एक मीटर तक के भाग पर चूने और कतीरा का घोल लगा देते थे।

कतीरा एक पौधा है जो पेड़ से अलग होने के बाद खुली हवा में रहने से कड़ा हो जाता है और गोंद के उद्योग में इसका काफ़ी प्रयोग होता है। कतीरा गोंद को अधिक टिकाऊ बना देता है और दीवारों की मज़बूती का कारण बनता है। समय बीतने के साथ साथ दीवारों के निचले हिस्सों को चमकीले रंगों से रंगा जाने लगा और कभी कभी इन हिस्सों पर गुल बूटे भी बना दिए जाते थे। इस प्रकार से ये चित्रकला, हर चीज़ से ज़्यादा दीवारों की मज़बूती और उन्हें घिसने से बचाने के लिए होती थी, अलबत्ता इससे दीवारों और कमरों की सुंदरता भी बढ़ जाती थी।

 

मूल रूप से इमारत विशेष कर पारंपरिक घरों के विभिन्न भागों की देख भाल में लोगों की आस्थाएं बहुत प्रभावी रही हैं। ईरान के लोगों की एक आस्था, लोगों के व्यक्तिगत जीवन को महत्व देने और उनके सम्मान की रक्षा की रही है। इस बात ने ईरानी वास्तुकला को भी प्रभावित किया है। ईरानी वास्तुकार, एक या कई आंगनों के चारों ओर  इमारत के विभिन्न भागों की डिज़ाइनिंग करके, घर के आंतरिक भाग को बाहर के वातावरण से अलग कर देते थे और केवल एक दालान के माध्यम से इन दोनों भागों को जोड़ा जाता था। घर के भीतरी हिस्से बाहर से बिल्कुल भी दिखाई नहीं देते थे। यहां तक कि उनकी छतें भी ऊंची दीवारों से ढंकी होती थीं और अगर कोई छत पर आराम करता या सोता था तो उसे बाहर से नहीं देखा जा सकता था।

अलबत्ता ईरान के सभी घर इस तरह के नहीं होते थे। कुछ क्षेत्रों में ऐसे घर भी बनाए जाते थे जिनके भीतरी हिस्से भी बाहर से देखे जा सकते थे। इस प्रकार के घर अधिकतर खुली और हरियाली वाली जगह में बनाए जाते थे और दरवाज़े के सामने से बाग़ या हौज़ नज़र आता था। अलबत्ता ईरान की वास्तुकला में अधिकतर घर इस प्रकार बनाए जाते थे जिनका भीतरी भाग बाहर से दिखाई न दे।

जैसा कि हमने कहा ईरान की वास्तुकला में इमारत के भीतरी भागों को छिपाने की कोशिश की जाती थी लेकिन आपके लिए यह जानना रोचक होगा कि बहुत से इस्लामी देशों में भी यह विशेषता दिखाई देती है। अधिकतर इस्लामी देश और ऐतिहासिक शहर इसी विशेषता के साथ बनाए गए हैं। एक मुस्लिम लेखक नज्मुद्दीन बमात ने "इस्लामी शहर" नामक किताब में विस्तार से इस विषय की समीक्षा की है। वे इस विशेषता का एक कारण बताते हुए कहते हैं कि इस्लामी शहर में पहले चरण में किसी भी चीज़ से किसी घर के मालिक या उसमें रहने वाले के धन या उसकी संपत्ति का पता नहीं चलता था क्योंकि दरिद्रों व धनवानों के बीच एक जटिल जुड़ाव पाया जाता था। समकालीन नवीनतावाद का एक चिन्ह यह है कि घर और उसमें रहने वालों की हैसियत को समझा जा सकता है। उदाहरण स्वरूप शहारों के आर्थिक विभाजन से धनी लोगों या ग़रीबों के मुहल्लों का पता चल जाता है लकिन इस्लामी शहरों में शहरों का विभाजन पूरी तरह से भिन्न था। शहर के केंद्रों में मस्जिदों, स्कूल और बाज़ार होता था और उससे जितना दूर होते जाते थे, शहर की इमारतों की संख्या और भीड़ भाड़ कम होने लगती थी।

ईरान में भीतरी भाग नज़र न आने वाले घरों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहले प्रकार वाले अधिकतर पारंपरिक घरों के सभी कमरों के दरवाज़े और खिड़कियां आंगन की  ओर खुलती थीं लेकिन थोड़े बहुत घर, जो दरबारियों और धनवानों के होते थे, दो अलग-अलग भागों में बंटे होते थे। ये दोनों भाग एक दूसरे से जुड़े होने के साथ ही साथ किसी हद तक अलग भी होते थे और केवल घर के लोग, अंदरूनी भाग में जा सकते थे। इस प्रकार के घर के निर्माण का उद्देश्य आवाजाही पर नज़र रखना और बाहर से अंदर जाने के मार्ग को लम्बा बनाना होता था।

सफ़वी काल में कई बरस तक ईरान में रहने वाले प्रख्यात सैलानी शार्डन ने ईरानी घरों के बारे में लिखा है कि इन घरों का प्रवेश द्वार छोटा होता है और इन्हें देख कर यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि इनके पीछे इतने बड़े और सुंदर घर होंगे। यहां तक कि इन दरवाज़ों को सजाया भी नहीं जाता और घरों में प्रवेश के लिए जो दरवाज़े होते हैं वे अत्यंत साधारण होते हैं।

यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि इस्लामी शिक्षाओं में परिवारों की निजता की सुरक्षा पर बहुत बल दिया गया है और लोगों की अनुमति के बिना उनके घरों में जाना प्रतिबंधित है। क़ुरआने मजीद में मुसलमानों को आदेश दिया गया है कि वे दूसरों के घरों में उनकी अनुमति लेने से पहले प्रवेश न करें और प्रवेश करते समय घर वालों को सलाम करें। यहां तक कि बच्चों को भी अपने माता-पिता के एकांत का सम्मान करना चाहिए। धार्मिक शिक्षाएं लोगों को इन सिद्धांतों के पालन के लिए प्रोत्साहित करती हैं। इसी आधार पर ईरानी वास्तुकारों ने भी हमेशा इस बात की कोशिश की है कि घरों के निर्माण में इस्लामी सिद्धांतों और आदेशों का ध्यान रखें। (HN)

 

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