Dec २४, २०१८ १७:२९ Asia/Kolkata

इससे पहले हमने आपको शहरों की बनावट और शहरों में बनी इमारतों की डिज़ाइनिंग में ईरानी कलाकारों की सूझबूझ और सूक्ष्म तैयारियों के बारे में बताया था।

आज भी इन्हीं विशेषताओं पर अपनी चर्चा जारी रखेंगे। आज हम ईरानी वास्तुकला में सुन्दरता की पहचान और प्रकाश के महत्व पर चर्चा करेंगे।  प्रकाश का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व रहा है। जीवन को जारी रखने में प्रकाश की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस विषय के महत्व को मनुष्य प्राचीन काल से ही समझता रहा है। सूर्य का प्रकाश, प्राकृतिक प्रकाश का सबसे अच्छा और सर्वोच्च साधन है। इसीलिए दुनिया के समस्त क्षेत्रों या धरतियों या खेतीहारी ज़मीनों के निवासी सूर्य के प्रकाश का बहुत अधिक सम्मान करते हैं।  

थोड़ा बहुत दुनिया के बहुत से धर्मों में प्रकाश का सम्मान किया जाता है। पवित्र क़ुरआन में हम पढ़ते हैं कि अल्लाह ज़मीनों और आसमानों का प्रकाश है।

कुछ प्राचीन सूत्रों में मिलता है कि प्रकाश से जीवन पैदा हुआ है और प्रकाश व अंधकार के बीच लड़ाई हुई जिसमें प्रकाश को सफलता मिली। यहां तक कि शायरों ने भी अपनी सूक्ष्म कलपनाओं और परिकलपनाओं से प्रकाश को हर मैदान का विजेता क़रार दिया है और प्रकाश को जीवन और आशा के स्रोत और किरण के रूप में याद किया है।

इस्लामी इतिहास और दर्शनशास्त्रों में बताया गया है कि प्रकाश, परालौकिक दुनिया का स्रोत है और परालौकिक संसार का प्रतीक है। ईरानी वास्तुकारों ने भी प्रकाश के महत्व को समझते हुए इमारतों और बिल्डिंगों के निर्माण और अपनी धरोहरों को सुन्दरता प्रदान करने तथा उनके बीच समन्वय बरक़रार रखने के लिए प्रकाश को बहुत अधिक महत्व दिया है।

प्राचीन काल में इमारतों का प्रकाश, अधिकतर प्राकृतिक प्रकाश द्वारा पूरा होता था। सामान्य रूप से रात के सीमित समय में, घरों के भीतर के कुछ स्थान शहरों या गावों की कुछ बाहरी जगहों को प्रकाशित करने के लिए मशाल या दीप का प्रयोग किया जाता है। रात में कृत्रिम प्रकाश से लाभ उठाने में होने वाली कठिनाइयों और सीमित्तिओं के कारण, मानव समाज प्राकृतिक प्रकाश के महत्व को स्वीकार करने लगा और उससे अधिक से अधिक लाभ उठाने लगा।  यही कारण है कि रात में चौदहवीं की रात के चांद के प्रकाश से लाभ उठाया जाता है और कुछ इमारतों विशेषकर आवासीय इमारतों में इसी लक्ष्य को पूरा करने के उद्देश्य से महताबी नामक स्थान की डिज़ाइनिंग की जाती थी। फ़ारसी भाषा में महताब, चांद को कहा जाता है और महताबी, चांद का प्रकाश आने के स्थान को कहा जाता है।

अतीत में मरुस्थलीय, गर्म और शुष्क क्षेत्रों में ईरानी इमारतों की डिज़ाइनिंग, सूरज के प्रकाश से लाभ उठाने के उद्देश्य से ही बनायी गयी थी। ठंडक में प्रयोग होने वाले घरों के अधिकतर भाग, प्रांगड़ के उत्तरी छोर पर तथा धूप लेने के लिए ही बनाए जाते हैं। घर के इन भागों को ठंड की बैठक कहा जाता था ताकि इस मौसम में धूप या सूरज का प्रकाश अधिक से अधिक आ सके और सूरज की गर्मी से अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सके। इसी प्रकार से गर्मी के मौसम में अधिक धूप या सूरज की अधिक गर्मी से बचने के लिए विभिन्न प्रकार की पहलें भी कीं और कई चीज़ो का आविष्कार किया। उदाहरण स्वरूप  घर के कुछ भाग को दक्षिणी प्रागड़ में बनाया जाता था जो सूरज से पीछे हो और गर्मी के मौसम में ठंडा रहे। इसी प्रकार सूरज के प्रकाश को कमरे में प्रवेश को नियंत्रित करने के लिए लंबी और चौड़ी साएदार चीज़ों से लाभ उठाया जाता है।  दीवारें और जालीदार चीज़ें, डिज़ाइनदार खिड़कियां और छोटे रंगीन शीशे, अधिक गर्मी के मौसम में ज़्यादा प्रकाश आने से रोकने के लिए लिए ईरानी वास्तुकार गर्मी के मौसम में इमारत के भीतर प्रयोग करते थे।

 

ईरान के दक्षिणपूर्वी क्षेत्र सीस्तान व ब्लोचिस्तान प्रांत में स्थित प्राचीन क्षेत्र बर्न सिटी है जिससे ईसा पूर्व दूसरी व तीसरी सहस्त्राब्दी में बिनाया गया था। यह स्थान विभिन्न ईरानी जातियों के रहने का स्थान था। यह शहर प्राचीनकाल के विकसिततम शहरों में एक था। वहां पर बाक़ी बचे घरों को देखने के बाद पता चलता है कि भीषण गर्मी के कारण कमरों को बिना खिड़कियों के ही बनाया गया था और केवल एक प्रवेश द्वार का संपर्क बाहर से था। 1300 से 1400 ईसा पूर्व तक एलामी काल की प्राप्त होने वाली शीशे की खिड़कियों को देखकर पता चलता है कि इन खिड़कियों को इमारत के भीतरी भाग को प्रकाशमयी बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था।

ईरानी वास्तुकला में पाये गये दरवाज़ों और पिंजड़ों के नमूनों और प्रमाणों सहित प्राचीन दस्तावेज़ों में प्राचीन दुर्गों के मानचित्र ओर संकेत किया जा सकता है। प्रसिद्ध आशूरी मानचित्र में भी खिड़कियां देखी जा सकती हैं जिन्हें टावर के ऊपर बनाया गया ताकि उसके द्वारा प्रकाश अंदर भेज सके। हख़ामनेशी काल की प्रसिद्ध धरोहर प्रेसपोलिस में दरवाज़ों के ऊपर यहां तक कि छत पर रोशनदान बने हुए हैं जिनके द्वारा महल में सूरज का प्रकाश प्रविष्ट होता है।

प्रोफ़ेसर वुलफ़ांग के शोध से पता चलता है कि प्रेसपोलिस महल के झुके हुए भागों को बहुत ही सूक्ष्मता से बनाया गया है। इस प्रकार की डिज़ाइनों से ऐसी छाया बनती है जिसके आधार पर साल के पहले दिन और विभिन्न फ़सलों के आरंभिक दिन का पता चलता है।

अशकानी शासन काल की इमारतें विशेषकर महलों में लकड़ी की छतें हुआ करती थीं और घर में बनी चंद्रमा की डिज़ाइन के रोशनदानों से घर के हर क्षेत्र में प्रकाश पहुंचाया जाता है। यह रोशदान पूर्वी हिस्से में खुलते हैं। सासानियान काल के अधिकतर घरों की छतें, गुंबदाकार होती थीं। इन गुंबदों के नोक पर रोशनदान बने हुए होते थे जिसमें कभी कभी आग जलाने के लिए जगह विशेष की जाती थी। उस काल में ईरान के दक्षिण में और ख़ूज़िस्तान में बनने वाली इमारतों में छतों में पिंजड़े होते थे जिससे प्रकाश घर में आता था।

इस्लाम धर्म के उदय के बाद घरों के निर्माण की नई शैली के कारण विभिन्न प्रकार से प्रकाश का प्रयोग होने लगा। ईरानी वास्तुकला के नमूनों का पता लगाने के लिए महलों का रुख़ न कीजिए बल्कि उस काल में बने हुए घरों को देखें जो ईरानी वास्तुकला और तथा वास्तुकारों द्वारा प्रकाश से लाभ उठाए जाने के तरीक़ो को अच्छी तरह समझ सकते हैं।

ईरानी वास्तुकला में प्रकाश के प्रयोग के लिए जिन तत्वों का प्रयोग किया जाता है उनके विभिन्न नाम हैं। उनमें रोशनदान, खिड़की इत्यादि की ओर संकेत किया जा सकता है। इन रोशनदानों और खिड़कियों के नाम विभिन्न कालों में अलग अलग होते थे किन्तु हाल, बरामदा, चिलमन, सायबान जैसी चीज़ो को इमारत के भीतर बनाया जाता है।

 

ईरानी इमारतों में प्रकाश के प्रयोग और उसको नियंत्रित करने की शैली से अवगत होने के बाद हम इस संबंध में ईरानी वास्तुकारों की कुछ पहलों और आविष्कारों की ओर संकेत करेंगे जिससे आप ईरानी वास्तुकारों की क्षमताओ और कलाकारी से अवगत परिचित हो सकेंगे।

ईरान का बदलता हुआ जलवायु, तेज़ और दहकता हुआ सूरज, बर्फ़ीली हवाएं और बर्फ़बारी की वजह से इमारतों में दरवाज़े और खिड़कियों के अलावा निवासियों को सुरक्षित रखने के लिए अतिरिक्त स्थान भी बनाया जाता था। प्राचीन काल की ईरानी इमारतों में प्लास्टर आफ़ पेरिस या लकड़ी की खिड़कियां और रोशनदान बनाए जाते थे और बाहर से उसे टाइलों या पक्की मिट्टी से ढांक दिया जाता था। इससे फ़ायदा यह होता था कि जब सूरज की रोशनी खिड़की पर पड़ती है तो वह खिड़की की डिज़ाइन वाले हिस्से से छन छन कर एक साथ प्रकाश दूसरी तरफ़ पड़ता है जिसके कारण कमरे या इमारत के भीतर हर जगह को अच्छी तरह से देखा जा सकता है किन्तु इससे आप इमारत के बाहर से भीतर कुछ भी नहीं देख सकते। इस प्रकार की खिड़कियों को शब्बाक कहा जाता है।

हूरनू, प्रकाश से भरपूर लाभ उठाने के लिए ईरानी वास्तुकारों की पहल का दूसरा नाम है। यह स्कूलों और बाज़ारों जैसे सार्वजनिक स्थलों पर बने गुंबद की नोक है जिसे सामान्य रूप से ढंका नहीं जाता और यह बड़े दायरे के रूप में खुलता है। कुछ स्थानों पर इस रोशनदान को शीशे से ढंग दिया जाता है ताकि प्रकाश भीतर जा सके किन्तु बाज़ारों में इन खिड़कियों में शीशे नहीं होते और ठंडी हवा इसी के द्वारा आती है। (AK)         

 

 

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