ईरानी संस्कृति और कला-18
ईरान की वास्तुकला में एसी विशेषताएं पाई जाती हैं जिनकी तुलना यदि अन्य देशों की वास्तुकला से की जाए तो हमें उनकी विशिष्टताओं का पता चलेगा।
इन विशेषताओं में उचित डिज़ाइनिंग, अच्छी संरचना और डिज़ाइनिंग के साथ ही उसकी सादगी का उल्लेख किया जा सकता है। इस प्रकार की विशेषताएं, ईरान की वास्तुकला को प्रदर्शित करती हैं। इन सारी बातों के साथ ही ईरान की वास्तुकला आदिकाल से ही प्रकृति से प्रभावित रही है।
सृष्टि की रचना और उसमें पाई जाने वाली प्रकृति, आरंभ से ही वास्तुकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत रही है। मानव ने जब से घर बनाकर रहना सीखा है उस समय से उसकी वास्तुकला प्राकृति से प्रभावित रही है। प्रकृति ने मानव को वास्तुकला के क्षेत्र में रचनात्मकता प्रदान की है अर्थात ईश्वर की रचना को देखते हुए वास्तुकारों ने नए-नए विचार प्राप्त किये हैं। प्राकृति हमेशा और हर जगह मौजूद है जो सदैव ही वास्तुकारों के लिए प्रेरणास्रोत रही है। दूसरी ओर मानव समाज सदैव प्रगति की ओर अग्रसर रहा है और उसकी इस प्रगति में भी प्रकृति का प्रभाव देखा जा सकता है।
घरों के बनाने में प्राकृतिक तत्वों का प्रयोग आदिकाल से होता आया है। आरंभिक काल में मनुष्य ने मिट्टी, पानी तथा पत्थर के संयोग से इमारतें बनाईं थी जो साधारण सी होती थीं। अति प्राचीनकाल से मनुष्य, प्रकृति में पाई जाने वाली चीज़ों को सम्मान देता आया है जैसे पानी, आग, पेड़, पहाड़, नदी, सूरज और चांद आदि। प्राचीनकाल के अधिकांश उपासना स्थल पहाड़ों के किनारे या उनके ऊपर, नदियों के किनारे या किसी पवित्र पेड़ के किनारे हुआ करते थे। उस काल के लोग इन्हीं चीज़ों को माध्मय बनाकर उपासना करते और इनके निकट बलि चढ़ाया करते थे।
पुरानी आस्था से अलग हटकर अगर देखा जाए तो प्रकृति में पाई जाने वाली बहुत सी वस्तुओं को वास्तुकला में प्रयोग किया जाता रहा है। ईरान की वास्तुकला में भी इनको स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है। ईरान की भवन निर्माण शैली विगत से सांस्कृति, परंपराओं और भौगोलिक स्थिति के अनुकूल रही है जिसमें धार्मिक आस्था की भी छाप दिखाई देती है। पुराने ज़माने में ईरान के शिल्पकारों का प्रयास घर के भीतरी भाग को सुसज्जित करने में रहता था। वे लोग घर के बाहरी रूप को कोई विशेष महत्व नहीं दिया करते थे। उस ज़माने में घर के भीतरी भाग को इसलिए अधिक सुसज्जि किया जाता था क्योंकि घरवालों का अधिकतर काम इसके भीतरी भाग से होता था न कि बाहरी भाग से।
अगर हम ईरान की प्राचीन वास्तुकला को देखें तो पाएंगे कि ईरान के पुरानी घरों में आंगन अवश्य हुआ करता था। घर के इस आंगन में एक छोटा सा हौज़ और छोटा सा बाग़ होता था। हौज़ के पानी और बाग़ के पेड़ को वास्तव में घर के भीतर प्राकृति का प्रतीक माना जाता है। घर के भीतर इस प्रकार का दृश्य, आनंददायक होता था। घर के भीतर की खिड़कियां, आगन की ओर खुलती थीं। इस प्रकार कमरे के भीतर से ही घर में प्रकृति के दर्शन हो जाते थे। ईरानी घरों के भीतर जो यह दृश्य पाया जाता था वह पूर्ण रूप से प्रकृति से प्रभावित था।
पूर्वी मामलों के एक जानकार "आर्थर पोप" का मानना है कि कलात्मक रचनाओं में तीन कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 1-राष्ट्रों की संस्कृतिकयां 2- उनकी धार्मिक आस्थाएं या मान्यताएं 3- पुरानी पीढ़ियों की परंपराएं। वास्तव में ईरानी वास्तुकार भवन निर्माण की शैली में संस्कृति और लोगों की परंपराओं को अवश्य दृष्टिगत रखते थे। वे लोग भवनों की डिज़ाइनिंग में सामान्यतः दो शैलियों का प्रयोग करते थे यथार्थवादी और आदर्शवादी। यथार्थवादी शैली के अन्तर्गत वास्तुकार की नज़र पूर्ण रूप से इमारत की वास्तविक सुन्दरता और उसके विदित स्वरूप पर होती थी। यही कारण है कि ईरानी वास्तुकार इमारतों की डिज़ाइनिंग में उसके एक भाग को प्राकृतिक तत्वों से सुसज्जित किया करते थे।
यह बात हम आपको बता चुके हैं कि ईरान के पुराने घरों में एक आंगन और बाग़ हुआ करता था। आंगन में पाए जाने वाले बाग़ में अधिकतर फूलों और फलों के पेड़ लगाए जाते थे जिनके कारण घर का वातावरण आनंदित करने वाला हो जाता था। ईरानी वास्तुकार घरों के भीतर पेड़ों को उचित ढंग से लगाने पर बल देते थे ताकि घर के भीतर से उसका दृश्य सुन्दर दिखाई दे। घरों में बनाए जाने वाले बाग़ में पेड़ों को सामान्यत एक सीध में लगाया जाता था जिससे उनकी सुन्दरता में चार चांद लग जाते थे।
ईरानी वास्तुकला में पानी की एक विशेष भूमिका रही है। ईरानी संस्कृति में जल को बहुत महत्व प्राप्त है। ईरान में प्राकृतिक और भौगोलिक विविधता के कारण यहां पर पानी प्राप्त करने के अलग-अलग स्रोत रहे हैं। प्राचीनकाल में ईरान में भूमिगत नहरें हुआ करती थीं जो बहुत से घरों के नीचे से बहती थीं। यह भूमिगत नहरें जिन्हें क़नात भी कहा जाता है ज़मीन के काफ़ी अंदर होती थीं। जिस घर के नीचे से वे गुज़रा करती थीं वहां के घर वाले अपनी आवश्यकता के अनुसार ही उनसे पानी ले लिया करते थे।
ईरान के मश्हूर प्राचीन बाग़ों में से एक, "बाग़े तख़्ते शीराज़" है। इस बाग़ को (गूरकानियान) काल में लगाया गया था। यह बाग़, शीराज़ नगर के पश्चिमोत्तरी क्षेत्र में स्थित है। यह सीढ़ीदार बाग़ है। इस बाग़ में छोटे-छोटे फुव्वारे हैं जिनका पानी बाग़ से गुज़रकर एक हौज़ में जा गिरता है। बाग़ के भीतर पानी की जो नालियां हैं उनके किनारे तराशे हुए पत्थर लगे हुए हैं। बाग़ के भीतर बनाई गई सड़क के चारों ओर चेनार और नारंगी के पेड़ लगे हुए हैं। बाग़ के अंदर जो मुख्य इमारत बनी हुई है वह बाग़ के सबसे ऊंचे हिस्स पर बनी है। इस इमारत के भीतर से पूरे बाग़ को बड़ी आसानी से देखा जा सकता है जो बहुत ही सुन्दर दृश्य पेश करता है।
ईरान में घरों के भीतर जो हौज़ बनाए जाते थे वे कहीं पर गोल तो कही पर चौकोर, कहीं पर विषमकोंण के तो कहीं पर आयताकार हुआ करते थे। इनको सामान्यतः पत्थरों से बनाया जाता था। घर के लोग इनके किनारे भी बैठा करते थे। हौज़ के किनारे पत्थर की नालियां होती थीं। जब हौज़ का पानी भर जाता था तो वह इन नालियों के माध्यम से घर के बाहर या फिर बाग़ और फुलवारी में चला जाता था। हौज़ का पानी सामान्यतः पीने के लिए नहीं होता था बल्कि उसको बाग़ की सिंचाई या दूसरे कामों के लिए प्रयोग किया जाता था। बहुत से हौज़ में छोटे-छोटे फुव्वारे भी लगाए जाते थे।
ईरानी घरों में हौज़ के अतिरिक्त "हौज़चा" भी हुआ करता था। यह सामान्यतः आठ कोणींय होता था। इसके इर्दगिर्द दो या चार कमरे बने होते थे। कमरों के दरवाज़े हौज़ की ओर खुलते थे। कमरों के आगे बैठने के लिए चबूतरे बने होते थे। हौज़ के ऊपर बादगीर लगे होते थे। यह बादगीर, वातावरण को ठंडा करने का काम करते थे।
ईरानी घरों और बाग़ों में बनाए जाने वाले हौज़चे का संबन्ध लोगों की आर्थिक स्थिति से होता था। इसका कारण यह है कि विगत में ईरान में कुछ एसे हौज़चे बनाए गए जिन्हें आज भी याद किया जाता है। बाग़े फ़ीने काशान, बाग़े दिलगुशा, काख़े हश्त बहिश्ते काशान, ख़ाने सज्जादीहाए काशान तथा ख़ानए गुलशन ज़वारे एसे स्थान हैं जहां पर बनाए गए हौज़चे बहुत मश्हूर हुए और आज भी उनको याद किया जाता है। इनकी बनावट में बड़ी निपुरणता से कला का प्रयोग किया गया है जिसके कारण उनकी सुन्दरता में चार चांद लग गए हैं। इनकी सुन्दरता के बारे में बहुत से कवियों ने कविताएं भी कही हैं।