ईरानी संस्कृति और कला- 20
ईरान एक ऐसा देश है जहां पर ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के साथ ही कल-कल बहती नदियां और झरने भी हैं।
यहां पर घने जंगल हैं तो मरूस्थलीय क्षेत्र भी पाए जाते हैं। अगर कहीं पर मरूस्थलीय क्षेत्र हैं तो फिर दूसरी ओर हरेभरे क्षेत्र भी मौजूद हैं। अधिक पहाड़ों के कारण ईरान के बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां पानी की कमी है किंतु वहां के परिश्रमी लोग, पानी की इस कमी को दूर करने के लिए भरसक प्रयास करते रहते हैं।
ईरान में प्राचीनकाल से बाग़ों का चलन रहा है। यहां पर आरंभ से निजी और सार्वजनिक बाग़ रहे हैं। बाग़ वे स्थान हैं जहां पर ईरानी आदिकाल से मनोरंजन करते आए हैं। बाग़ों को बनाने का चलन वैसे तो संसार के अन्य क्षेत्रों में भी पाया जाता है किंतु ईरान में इसे बहुत ही गंभीरता से लिया जाता था। इससे पहले हमने कहा था कि हज़ार साल पहले से ईरान में बाग़ लगाने का सिलसिला मिलता है। उस काल से यहां पर अलग-अलग प्रकार के एवं विविधतापूर्ण बाग़ लगाए जाते रहे हैं। ईरान में जो बाग़ रहे हैं वे सामान्यतः या तो समतल ज़मीन पर होते थे या फिर ऊंची-नीची ज़मीन पर लगाए जाते थे। कहीं-कहीं पर बाग़, किसी कृत्रिम झील या नहर के किनारे बनाए जाते थे। ईरान में समतल भूमि पर लगाए जाने बाल बाग़ों में बाग़े फ़ीने काशान का नाम लिया जा सकता है जबकि ऊंची-नीची धरती या टीले वाली भूमि पर जो बाग़ लगाए गए उनमें से बाग़े तख़्ते शीराज़ का नाम लिया जा सकता है। वे बाग़ जो किसी भी कृत्रिम झील या नहर के किनारे लगाए जाते थे उन्हें बाग़े आबी या पानी वाले बाग़ के नाम से जाना जाता था जिसका एक उदाहरण तबरीज़ नगर का ईलगुली बाग़ है। वैसे भी पहले बहुत से बाग़ नदियों के किनारे भी लगाए जाते थे। इसका एक उदाहरण काख़े आईने इस्फ़हान है जो ज़ायंदे रूद नदी के किनारे स्थित है।
ईरानी बाग़ों को उनकी उपयोगिता के हिसाब से भी वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे बाग़े मीवे, बाग़े सुकूनतगाही और बाग़े मज़ार। बाग़े मीवे या फलों वाला बाग़, आर्थिक दृष्टि से सबसे अच्छा बाग़ माना जाता है। इसमें लागत कम आती है जबकि इससे आय अधिक होती है। कुछ बाग़ एसे होते हैं जिन्हें बाग़े सुकूनतगाही कहते हैं अर्थात जहां इंसान रहता है वहां पर वह बाग़ बनवाए। ऐसे बाग़ पहले ज़माने में सामान्यत महलों में या फिर बड़े लोगों के यहां ही हुआ करते थे। वे लोग बड़े आलीशान घर बनाते और उसमें अपनी आसानी के लिए बाग़ बनवाया करते थे। उनके निकट इस बाग़ का महत्व आर्थिक दृष्टि से नहीं होता था। कुछ लोग मज़ारों के लिए बाग़ बनवाया करते थे। ऐसे लोग पहले आलीशान बाग़ लगवाया करते थे और फिर वहां पर एक स्थान क़ब्र के लिए निर्धारित कर देते थे। जब उनका देहान्त हो जाता था तो उन्हें उसी बाग़ के भीतर एक निर्धारित स्थान पर दफ़्न कर दिया जाता था। इतिहास में ऐसे कई महान लोग गुज़रे हैं जिनके मज़ार बाग़ों में हैं। उदाहरण स्वरूप ईरान के विश्व विख्यात कवि अत्तार नैशापूरी। उनका मज़ार नैशापूर में एक बाग़ में स्थित है।
ईरानी शैली में जो बाग़ लगाए जाते थे उनमें इस बात का ध्यान रखा जाता था कि दूर से सारा बाग़ दिखाई दे। इस प्रकार के बाग़ों में इमारतों के सामने का वातावरण बिल्कुल ही साफ दिखाई देता था और बीच में कोई रुकावट नहीं होती थी। इमारत की खिड़की से खड़े होकर पूरे बाग़ को सरलता से देखा जा सकता था। इमारत में सामने की ओर बड़े वृक्ष नहीं लगाए जाते थे जिसके कारण इमारत के भीतर से बाग़ का दृश्य बहुत ही मनमोहक दिखाई पड़ता था।
सामान्यतः बाग़ के विभिन्न क्षेत्रों में कूश्क नामक इमारत बनाई जाती थी किंतु मुख्य इमारत बाग़ के बीच में हुआ करती थी। इसकी विशेषता यह थी कि यह चारों ओर से दिखाई देती थी। हालांकि ऐसे बाग़ भी थे जो मुख्य इमारत के पीछे बनाए जाते थे। कोने में बनाया जाने वाला यह हिस्सा बाग़ वालों के लिए मनोरंजन का एक उपयुक्त स्थल होता था। वैसे ईरान के सभी बाग़ों में इमारत के सामने आयताकार रूप में हराभरा मैदान बनाया जाता था। इसके इर्दगिर्द हौज़ बनाए जाते थे जिनके दोनों ओर एक प्रकार के पेड़ या वनस्पतियॉ लगती जाती थीं। इस प्रकार इमारत के भीतर एक हराभरा दृश्य प्राकृतिक दृश्य उत्पन्न हो जाता था जिसके भीतर सुन्दर सा हौज़ बना होता था।
ईरानी बाग़ों को वर्गाकार या आयताकार दो भागों में बांटा जा सकता है। इस प्रकार के बाग़ों में लंबी आयु वाले पेड़ लाइन से लगाए जाते थे। इस लाइन में कहीं-कहीं पर कम आयु वाले छोटे पेड़ भी हुआ करते थे। यह ज्योमितीय व्यवस्था इतनी सूक्ष्म और अच्छी होती थी कि हर ओर से पेड़ एक लाइन में लगे दिखाई देते थे।
सामान्य रूप में पारंपरिक बाग़ों को बनाते समय उसमें तरह-तरह के पेड़ लगाए जाते थे। यह पेड़ बड़े भी होते थे और छोटे भी। बाग़ों में स्थानीय एवं विदेशी हर प्रकार के पेड़ लगाने का चलन था। ईरानी बाग़ों में अधिकतर चेनार के वृक्ष देखे जा सकते हैं। इस वृक्ष को ईरानी बाग़ों का मूल भाग भी कहा जाता है। यह पेड़ ईरान के पश्चिमी क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इनमें से कुछ पेड़ एसे भी हैं जिन्हें विदेशों से आयात किया गया है। उनका नाम ओरिएंटल प्लेन या फिर प्लेन ट्री है। इनकी ऊंचाई 30 सेंटीमीटर तक होती है। इस प्रकार के वृक्ष घुमावदार होते हैं जो छाते की भांति दिखाई देते हैं। इनको देखकर एसा लगता है कि मानो छोटे-छोटे पेड़ों और पौधों पर कोई हरा छाता रखा हुआ हो। चेनार का पेड़ नम जलवायु में बड़ी आसानी से फलता-फूलता है। ईरान के पारंपरिक बाग़ों में चेनार के पेड़ की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। ईरान में अब भी सड़कों के किनारे और पगडंडियों पर बहुत बड़ी संख्या में चेनार के पेड़ पाए जाते हैं।
बहुत से शोधकर्ताओं ने संसार में बाग़ों के बारे में दो आदर्श पेश किये हैं एक ईरानी आदर्श और दूसरा जापानी आदर्श। एसे में यह जानना रोचक होगा कि जापान में बाग़ बनाने के काम और ईरान में बाग़ बनाने में मूलभूत अंतर क्या है। जापानी बाग़ों के निर्माण में प्रकृति में मौजूद तत्वों का भरपूर प्रयोग किया जाता है लेकिन ईरान की बाग़ शैली इससे कुछ अलग है। जापानी बाग़ निर्माण शैली में रंग-बिरंगी वनस्पतियों, पत्थर की सीढ़ियों, कम गहराई वाले हौज़ तथा इसी प्रकार की चीज़ों का प्रयोग किया गया है। उनमें बांस, लकड़ी या पत्थर के छोटे पुलों को भी बनाया जाता है। इन बाग़ों में कृत्रिम छोटी झीलें और वनस्पतियों को भी इस्तेमाल किया गया है।
विगत में जापानी बाग़ों में घर भी बनाए जाते थे। इनको किसी सीमा तक प्रकृति के निकट लाने की कोशिश की जाती थी। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि जापानी बाग़, वास्तव में एक छोटी सी दुनिया है जिसमें प्रकृति के सारे ही तत्व मौजूद हैं। हालांकि ईरानी बाग़ निर्माण की शैली में बाग़, प्रकृति के बाहरी स्वरूप का प्रतीक नहीं होता बल्कि यह मनुष्य की स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा को साकार बनाने का एक प्रयास मात्र है।
ईरान के ऐतिहासिक नगरों के भीतरी दृश्य में केन्द्रीयता को विशेष महत्व प्राप्त रहा है। उदाहरण स्वरूप पुराने ईरानी नगरों के केन्द्रों में बाज़ार, स्कूल, मस्जिद, स्नानगृह और सरकार संचालन की इमारत केन्द्र में हुआ करती थी। अधिकतर शहरों में सड़कों के किनारे-किनारे पेड़ लगाए जाते थे और नगर के केन्द्रीय भाग को हराभरा बनाए रखा जाता था। इसके अतिरिक्त नगर के वे महत्वपूर्ण क्षेत्र जो मंहगे हुआ करते थे या जिन क्षेत्रों में लोग अधिक घूमने-टहलने जाते थे उनको पेड़ों और फूलों से सुसज्जित किया जाता था। इस प्रकार शहर का केन्द्र हराभरा दिखाई देता था। इस्फ़हान का चार बाग मार्ग इसका स्पष्ट उदाहरण है। ईरान की राजधानी तेहरान में भी अलमासिया, अलाउद्दौला व नासिर ख़ुसरो जैसे स्थल भी इसी प्रकार की सुन्दरता के नमूने हैं।
नगरों में चौराहों या मैदानों को विशेष महत्व प्राप्त रहा है। प्राचीन समय के शहरों के अध्ययन से पता चलता है कि शहर में चौराहे का होना बहुत अहम होता है। किसी शहर में चोराहों का पाया जाना उस शहर में ज़िन्दगी की रौनक़ का पता देता है। ईरान में अति प्राचीनकाल से यह परंपरा रही है कि बड़े चौराहों को पेड़, पौधों और वनस्पतियों से सजाया जाता था। पिछली कुछ शताब्दयों के दौरान बाग़ों में फव्वारों का चलन भी बढ़ने लगा जो सामान्यतः बाग़ के बीच में बनाए जाते थे। ईरान की राजधानी तेहरान में अनेक महत्वपूर्ण मैदान हैं। इनमें से कुछ मैदान जैसे आज़ादी मैदान ईरानी व इस्लामी वास्तुकला के संगम का नमूना होने के साथ साथ समकालीन वास्तुकला की पहचान भी हैं। ईरान के कुछ मैदान ऐतिहासिक अहमियत रखते हैं। ये मैदान सदियों से अनेक महत्वपूर्ण सामाजिक व राजनैतिक घटनाओं के साक्षी रहे हैं जैसे तेहरान में मैदाने तूपख़ाने, इस्फ़हान में मैदाने इमाम, यज़्द में मैदाने अमीर चख़माक़ और इसी प्रकार के कई अन्य ऐतिहासिक मैदान।