ईरानी संस्कृति और कला- 23
इसके बाद से आप ईरान में वास्तुकला के विभिन्न नमूनों व प्रकारों से परिचित होंगे।
बाज़ार, मस्जिद, महल, क़िले, कारवांसराय, पुल और ईरानी हम्माम। इस समय पूरे ईरान में बहुत सी इमारतें जो ईरानी वास्तुकला के आधार पर बनी हैं। इनमें से कुछ सांस्कृतिक धरोहर की अहमियत रखती हैं इसलिए उनकी देखभाल की जा रही है जबकि इनमें से कुछ अभी भी अपनी पारंपरिक उपयोगिता के साथ बाक़ी हैं। ऐतिहासिक बाज़ार उन इमारतों में हैं जो ईरान में बहुत से शहरों में लोगों के आर्थिक लेन-देन का स्थल समझी जाती हैं और कुछ हद तक ये बाज़ार अपने विगत के स्वरूप को बचा पाए हैं।
ईरान के मुईन शब्दकोष के अनुसार, बाज़ार अस्ल में वाज़ार था जिसका अर्थ है वस्तुओं और खाद्य पदार्थ की ख़रीदारी का स्थान। इसी तरह दहख़ुदा शब्दकोष में है कि बाज़ार शब्द पहलवी भाषा में भी लेन-देन के स्थान को कहा जाता है और फ़्रांसीसी व पुर्तगाली भाषा में यह शब्द ईरानियों से लिया गया है।
अतीत में बाज़ार एक दूसरे के सामने दो लाइनों में बनी अनेक दुकानों को कहा जाता था और ज़्यादातर जगहों पर ये दोनों लाइनें छत से जुड़ी होती थीं। कुछ लेखकों ने इसे लेन-देन का मैदान या व्यापारियों की गली भी कहा है।
ईरानी बाज़ार अपनी विशेषताओं की वजह से दुनिया भर में मशहूर रहा है और इसका उल्लेख कहानियों व उपन्यासों में भी मिलता है। बहुत से लेखक और पर्यटक जब ईरान की विशेषता बयान करते थे तो ईरानी बाज़ार का उल्लेख ज़रूर करते थे। ईरानी व्यापारियों की ईमानदारी और पेशेवराना नैतिकता का तक़ाज़ा था कि वे एक जगह पर एक दूसरे के निकट दुकान लें और हर वर्ग बाज़ार के विशेष भाग में विशेष उत्पाद की आपूर्ति करे। वे ग्राहकों को इस बात का अवसर देते थे कि वे एक ही चीज़ के विभिन्न नमूनों को देखें, आपस में उनकी गुणवत्ता को परखें और पूरी आज़ादी से ज़रूरत की चीज़ का चयन करें।
ईरान में बाज़ार इस तरह वजूद में आया और सरकारी व धार्मिक प्रतिष्ठानों, शहरी व ग्रामीण मार्गों और मैदानों के बग़ल में क़ायम हुए और उनके आस-पास लोग घर बनाकर बसने लगे।
अगर इतिहास पर नज़र दौड़ाएं तो पाएंगे कि आर्थिक मामले उन अहम विषयों में शामिल हैं जिन पर इतिहासकारों ने ध्यान दिया है और इनमें आने वाले बदलाव के विभिन्न चरणों का उल्लेख किया है। बाज़ार आर्थिक मामले में ज़्यादातर उत्पादन की शैली से जुड़ा रहा है। ईरान सहित एशिया में उत्पादन की शैली शहरी, ग्रामीण या क़बायली ताने बाने की वजह से विभिन्न रूपों में प्रकट हुयी है। मिसाल के तौर पर शहरों में बाज़ार इस तरह वजूद में आया कि इससे शहरी नागरिकों की ज़रूरत को पूरी करने के साथ साथ ग्राम वासियों की ज़रूरतों की भी आपूर्ति करे। इन बाज़ारों में ग्रामवासी अपने उत्पाद शहरी नागरिकों को बेचते थे और उसके बदले में अपनी ज़रूरत की चीज़ें ख़रीदते थे।
क़ज़्वीन के मैदानी इलाक़े में हुयी खुदायी में एक स्थान का नाम तप्पे ज़ाग़े अर्थात ज़ाग़े टीला है। यह टीला 5 और 6 सहस्राब्दी ईसापूर्व सभ्य लोगों के निवास की गाथा सुनाता है। साक्ष्यों से पता चलता है कि इस इलाक़े में कृषि उत्पाद की बहुतायत थी और लोग मिट्टी व धातु की चीज़ों के उत्पादन में भी दक्ष थे। इन लोगों के हाथ के बने नमूनों से पता चलता है। ये साक्ष्य दर्शाते हैं कि ये लोग इन चीज़ों को केन्द्रीय बाज़ार बेचने के लिए भेजा करते थे।
इस तरह का एक और नमूना काशान में सियल्क नामक टीले से बरामद हुआ है। इस ऐतिहासिक टीले में पुरातात्विक खुदाई के दौरान बड़े बड़े सीपों और समुद्री शंख के टुकड़े बरामद हुए हैं जो फ़ार्स खाड़ी के तटों के हैं और इस टीले से फ़ार्स खाड़ी के तट की दूरी कई सौ किलोमीटर है। छोटी छोटी सीपियों से बने गले के हार जो इस इलाक़े में बरामद हुए हैं, इस प्राचीन क्षेत्र के बाज़ारों में व्यापार के चलन का पता देते हैं।
बहुत से पुराजनविद इन चीज़ों के मद्देनज़र उस दौर की अर्थव्यवस्था व व्यापार में सामाजिक हालात का ख़ाका तय्यार किया है। क्योंकि उनका मानना है कि बाज़ार के वजूद में आने का मतलब यह नहीं है कि शहर भी ज़रूर वजूद में आए बल्कि मानव समुदाय के वजूद मे आने से वस्तुओं का लेन-देन व क्रिय विक्रय वजूद में आया।
ये साक्ष्य दर्शाते हैं कि ईरान में उत्पत्तिस्थान में निवास का सबसे स्पष्ट प्रतीक बाज़ार है। ईरान में बाज़ार शहर के वजूद का स्तंभ थी कि जिसमें आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन धड़कता था। बाज़ार ही शहर के मुख्य द्वार को आपस में जोड़ती थी। इस तरह स्थायी बाज़ार शहर में दाख़िल होने वाले मुख्य मार्ग की लंबाई में होती थी। यह बाज़ार शहर के दरवाज़े से शुरु होता और उसके केन्द्र में जाकर ख़त्म होता था।
बाज़ार के तीन मुख्य अंग होते थे। एक भाग उत्पादन, वाणिज्य और सेवा से संबंधित गतिविधियों का, दूसरा भाग विभिन्न इकाइयों को एक दूसरे से अलग करने और ग्राहकों के आने जाने का और तीसरा बाज़ार के विभिन्न भागों में लोगों के इकट्ठा होने की जगह, जैसे मस्जिद, चाय का होटल। ईरान के प्राचीन बाज़ारों में भी गर्मी और सर्दी के मौसम में विभिन्न वर्गों के लोगों के इकट्ठा होने की जगहें होती थीं।
ईरान में पारंपरिक बाज़ार हमेशा शहरी व ग्रामीण प्रतिष्ठानों और मस्जिद, हम्माम, स्कूल इत्यादि जैसी जगहों के पास बनाए जाते थे और उनका आपस में संपर्क होता था। लेकिन मौजूदा दौर के बदलाव की वजह से बाज़ार की वास्तुकला भी कुछ हद तक बदल गयी है। मिसाल के तौर पर सड़क, मोटरसाइकिल के गुज़रने के लिए जगह या भूमिगत रेल अर्थात मेट्रो ट्रेन के निर्माण की वजह से बाज़ार की संरचना बदल गयी है क्योंकि नागरिकों के आवासीय स्थल पर मूलभूत बदलाव आ गया है जिसकी वजह से इस सामाजिक जगह का शहर की अन्य जगहों से संपर्क का रूप बदल गया है।
अतीत में बाज़ार की लंबायी निर्धारित नहीं होती थी। यह शहर की व्यापकता और बाज़ार की रौनक़ पर निर्भर होती थी। बाज़ार के मुख्य मार्ग की लंबायी छोटे और मध्यम आकार के शहरों में कुछ सौ मीटर होती थी जबकि बड़े शहरों में यह लंबायी एक किलोमीटर से ज़्यादा होती थी। बाज़ार की चौड़ायी पांच से 10 मीटर के बीच होती थी। बाज़ार की इमारत के निर्माण में वास्तुकला की बेहतरीन शैली और मसालों का इस्तेमाल होता था। ज़्यादातर खंबे पत्थर या ईंट के होते थे जबकि छत को चूने और ईंट से बिछाते थे। बाज़ार में बड़े चौराहे पर गुंबद बनाए जाते थे जो ऊंचे होते थे और हवा व रोशनी के आने के लिए उसमें खिड़कियां बनी होती थीं। बाज़ार की ऊपरी छत पर मिट्टी और भूसे का मसाला लगाते थे क्योंकि यह मसाला गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसम के अनुकूल होता है। प्राचीन समय में बाज़ार का फ़र्श मिट्टी का होता था जो समय बीतने के साथ सख़्त हो जाता था लेकिन धीरे-धीरे पत्थर और ईंट बाज़ार और दुकानों के फ़र्श पर बिछाए जाने लगे।
जो बाज़ार शहर के मुख्य मैदान के पास होते थे उनका मुख्य द्वार मैदान की तरफ़ से होता था। इन मुख्य दवारों की वास्तुकला का ईरान की दूसरी ऐतिहासिक इमरतों के मुख्य द्वारों की वास्तुकला से तुलना की जा सकती है। इनमें से ज़्यादातर मुख्य द्वार टाइल, ईंट, प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से मुक़र्रनस नामक विशेष डीज़ाइन, शिलालेख और आर्केड नामक डीज़ाइन से सुसज्जित हैं। इस तरह के मुख्य द्वार के नमूने तेहरान का विशाल बाज़ार है कि जिसका प्रवेश घर बहुत सुंदर और वास्तुकला की डीज़ाइनों से भरा हुआ। आज भी ग्राहक इसे देस कर ठहर जाते हैं।
इन प्रेवश द्वार से बाज़ार के मुख्य मार्ग तक जाते हैं। बाज़ार में गलियारे 4 से 6 मीटर चौड़े हैं। उनके दोनों ओर दुकाने बहुत ही व्यवस्थित तरीक़े से बनी हुयी हैं। इन जगहों को उनकी विविधतापूर्ण गतिविधियों के मद्देनज़र अलग अलग आकार व डीज़ाइन में बनाया गया है। इनमें से कुछ दुकानों में भूमिगत भंडारकक्ष, स्टोर रूम या ऊपरी भाग में बालकनी बनी हुयी है। इनमें से ज़्यादातर दुकानों की छत लकड़ी और उनके द्वार भी लकड़ी के थे जिन्हें हालिया कुछ दशकों के दौरान नए दरवाज़ो से बदल दिया गया है। इन दुकानों के भीतर रौशनी छत में बने रौशनदान से पहुंचती है।