अल्लाह केख़ास बन्दे- 59
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 15 ज़िलहिज्जा सन 212 हिजरी कमरी में मदीने में हुआ था।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की एक प्रसिद्ध उपाधि हादी थी। उनके पिता हज़रत इमाम मोहम्मद तकी अलैहिस्सलाम थे। उनकी माता एक महान महिला थीं। स्वयं इमाम हादी अलैहिस्सलाम अपनी माता की विशेषताओं के बारे में कहते हैं" मेरी मां एक रहस्यवादी महिला थीं, वह स्वर्ग में जायेंगी और विशेष विशेषताओं व सदगुणों की स्वामी थीं। महान ईश्वर ने उनके अस्तित्व को शुद्ध कर दिया था ताकि शैतान न तो उन्हें उकसा हो सके और न ही उनके निकट हो सके। ईश्वर की नज़र में, जिसे कभी नींद नहीं आती है उनका बहुत ऊंचा स्थान था। उनसे कोई ग़लती नहीं होती थी। क्योंकि सच्चे, अच्छे और भले लोगों की मांयें इसी प्रकार की होती हैं।"
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एक सफल और संतुलित परिवार की बुनियाद रखने में माता- पिता की मौलिक भूमिका होती है और इस प्रकार के परिवार में जिन बच्चों की शिक्षा- प्रशिक्षा और लालन- पालन होता है उनमें विशेष प्रकार की विशेषताएं होती हैं। पवित्र कुरआन इस प्रकार के परिवार का चित्रण करते हुए कहता है" पालनहार हमें ऐसी पत्नियां और संतान प्रदान कर जिनसे हमें सुकून मिले और हमें सदाचारियों का मार्गदर्शक बना।"
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की विशेषताओं की चर्चा न केवल शीयों के मध्य थी और है बल्कि सुन्नी विद्वानों ने भी इमाम की प्रशंसा की है। जिन सुन्नी विद्वानों ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की प्रशंसा की है उनमें एक नूरुद्दीन इब्ने सब़्बाग़ हैं। वह इमाम की विशेषता के बारे में कहते हैं" कोई विशेषता नहीं है जिसका सर्वोच्चत्म स्वरूप इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के अंदर न हो उनके व्यक्तित्व में ऐसी विशेषता निहित है जिसने उनके अंदर मौजूद विशेषताओं को अद्वितीय बना दिया है और उनकी प्रवृत्ति हर प्रकार के दोष व अवगुण से पाक है और उनका व्यवहार संतुलित है। उनके व्यक्तित्व में प्रतिष्ठा, सुकून, धर्मशास्त्र, सदाचारिता, और पैग़म्बरे इस्लाम का ज्ञान एवं अलवी विशेषताएं नीहित थीं। वे दृढ़ संकल्प और उच्च इरादे के स्वामी थे और पद व स्थान की दृष्टि से कोई भी उनका समतुल्य नहीं था।"
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम जवाद अलैहिस्सलाम की भांति आठ वर्ष की उम्र में ही इमाम बन गये थे और इस छोटी सी आयु में ही उन पर लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व आ गया था परंतु जैसाकि हमने पिछले कार्यक्रम में कहा कि जिन लोगों का ज्ञान बहुत कम है और वे बहुत सतही सोच के स्वामी हैं उनके लिए इस बात को स्वीकार करना बहुत कठिन है कि इतनी कम उम्र में इंसान लोगों का मार्गदर्शक बन सकता है। इस प्रकार के लोगों का मापदंड उम्र है न कि बुद्धि। जबकि इंसान की बुद्धि और उसका ज्ञान उसके मूल्य व महत्व को निर्धारित करता है। अलबत्ता वह बुद्धि जिससे महान ईश्वर की उपासना की जाये और स्वर्ग प्राप्त होने का कारण बने। इससे हटकर हमने सतही सोच रखने वालों के जवाब में कहा था कि हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने पालने में कहा था कि मैं ईश्वर का बंदा हूं और ईश्वर ने मुझे पैग़म्बरे बनाया है। इसी प्रकार हज़रत यहिया को बचपने में नबी बनाया गया।
इस भूमिका को दोहराने से हमारा लक्ष्य दिमाग़ और बुद्धि को उस व्यापक ज़ियारत नामे के लिए तैयार करना है जिसे इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने यादगार के रूप में छोड़ा है।
विश्वस्त ऐतिहासिक पुस्तकों में आया है कि मूसा बिन इमरान नख़ई नाम के एक प्रख्यात शीया थे और उन्होंने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम से अनुरोध किया था कि जब इमामों की समाधियों के दर्शन के लिए जाते हैं तो उन्हें एसे ज़ियारतनामे की शिक्षा दें जो हर दृष्टि से परिपूर्ण और व्यापक हो। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने उनके अनुरोध का सकारात्मक उत्तर दिया और उन्हें जिस ज़ियारतनामे की शिक्षा दी वह ज़ियारते जामे कबीरा के नाम से प्रसिद्ध है। इमाम ने जिस ज़ियारत नामे की शिक्षा दी वह बहुत ही उद्देश्यपूर्ण कार्य था क्योंकि बनी अब्बास का पूरा प्रयास व षडयंत्र यह था कि लोगों के दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से जो प्रेम और श्रद्धा थी उसे खत्म कर दिया जाये और लोगों को उनसे प्रेम करने से रोक दिया जाये। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने इस शैतानी षडयंत्र को विफल बनाने के लिए ज़ियारते जामेअ कबीरा में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का चित्रण इस प्रकार से किया है कि उसका स्वीकार करना न केवल पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से शत्रुता करने वालों के लिए बहुत कठिन है बल्कि उन लोगों द्वारा स्वीकार करना भी कठिन है जिनका ईमान कमज़ोर है। इसके अलावा ज़ियारते जामेअ कबीरा अब्बासी शासकों विशेषकर मुतवक्किल के मुकाबले में इमाम के दृष्टिकोण को बयान करने वाली थी। मुतवक्किल वह अब्बासी शासक था जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से दुश्मनी करने और उनकी छवि को बिगाड़ कर पेश करने में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया था। मुतवक्किल वह अब्बासी शासक था जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अपनी दुश्मनी को प्रकट करने के लिए कई बार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र रौज़े को ध्वस्त करने का आदेश दिया और रौज़े के ध्वस्त होने के बाद क़ब्र पर हल चलवा कर उसमें पानी भर दिया ताकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रृद्धा रखने वाले लौट जायें और उनके रौज़े के पास एकत्रित न हों।
अब आप सबका आह्वान करते हैं कि आप लोग ज़ियारते जामेअ कबीरा के कुछ वाक्यों पर ध्यान दें। "हे पैग़म्बर के परिजनों तुम पर हमारा सलाम हो, तुम्हारा वह स्थान है जहां फरिश्ते आते- जाते हैं, ईश्वरीय संदेश नाज़िल होते हैं, आप ज्ञान, ईश्वरीय कृपा, सहनशीलता और दया व प्रतिष्ठा के स्रोत हैं"
ये विशेषताएं उन समस्त विशेषताओं व सदगुणों की परिचायक हैं जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में पायी जाती हैं और उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती और ये विशेषतायें पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को हर आयाम से दूसरों से भिन्न करती हैं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ज़ियारते जामेअ कबीरा के एक अन्य भाग में फरमाते हैं” मार्ग दर्शकों पर हमारा सलाम हो, अंधेरे के दीपकों पर हमारा सलाम हो, सदाचारिता की पताका, बुद्धि के स्वामी, इंसानों की शरणस्थली, पैग़म्बरों के उत्तराधिकारी, सर्वोत्तम आदर्श, लोक- परलोक के समस्त इंसानों और ईश्वर के प्रतिनिधियों पर उसकी कृपा की हो।
पिछली शताब्दियों और वर्तमान समय के अपरिहार्य अनुभव इस बात के सूचक हैं कि किसी भी धार्मिक नेता की पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से तुलना नहीं की जा सकती चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो परंतु खेद की बात यह है कि पूरे इतिहास में और इस समय लोगों ने न इनका अनुसरण किया और न कर रहे हैं। इमाम अली नकी अलैहिस्सलाम इस वास्तविकता का चित्रण करते हुए इस प्रकार कहते हैं” ईश्वर की ओर बुलाने वालों, ईश्वर की प्रसन्नता की ओर पथ प्रदर्शन करने वालों, ईश्वर के आदेशों का पालन करने वालों, ईश्वर की दोस्ती के पूर्ण प्रतीक, ईश्वरीय मार्ग में निष्ठा के स्पष्ट प्रतीक, ईश्वर के आदेशों को स्पष्ट करने वालों और ईश्वर के प्रतिष्ठित बंदों पर उसकी कृपा व दया हो और ईश्वरीय आदेशों के पालन करने में कोई भी उनसे आगे नहीं बढ़ सकता।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन के सूरे निसा की 59वीं आयत का अनुसरण करते हुए कहते हैं" हे ईमान लाने वालो! ईश्वर, उसके पैग़म्बर और जो साहेबाने अम्र हैं उनके आदेशों का पालन करो।"
इमाम ज़ियारते जामेअ कबीरा में कहते हैं" जिसने तुम्हारे आदेशों का पालन किया उसने ईश्वर के आदेशों का पालन किया और जिसने तुम्हारी अवज्ञा की उसने ईश्वर की अवज्ञा की और जिसने तुमसे प्रेम किया उसने ईश्वर से प्रेम किया और जिसने तुमसे दुश्मनी किया उसने ईश्वर से दुश्मनी की।"
यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि पवित्र कुरआन के सूरे शूरा की 22वीं आयत में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम करने के लिए कहा गया है। महान ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम को आदेश देता है कि हे पैग़म्बर कह दीजिये कि हमने जो धर्म बताया और सिखाया है इसके बदले में हमें कुछ नहीं चाहिये किन्तु यह कि तुम लोग मेरे अहले बैत से प्रेम करो।"
पवित्र कुरआन की इस आयत के अनुसार महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम के मध्य सीधा संबंध है और जो भी इस आयत के विपरीत अमल करता है वह पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अपनी दुश्मनी को प्रकट करता है और उसने महान ईश्वर के आदेश की अनदेखी की है और इस प्रकार के व्यक्ति के ईमान में संदेह करना चाहिये। वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से प्रेम का आदेश ईश्वरीय आदेश है और यह आदेश इस बात का सूचक है कि महान ईश्वर की दृष्टि में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का विशेष स्थान है क्योंकि महान ईश्वर ने किसी भी पैग़म्बर के परिजनों से प्रेम करने के बारे में इस प्रकार का आदेश नहीं दिया है।