आईएनएफ संधि के बारे में चर्चा
पिछले तीन दशकों के दौरान रूस तथा अमरीका के संबन्धों में तनाव बढ़ा है।
सोवियत संघ के विघटन के बाद से यह तनाव बढ़ता ही रहा है। 1990 के दशक में रूसी, अमरीका के बारे में कुछ अच्छी सोच रखते थे और उस समय तक इतना तनाव भी नहीं था जितना वर्तमान समय में पाया जाता है। पिछले तीन दशकों के दौरान मास्को और वाशिग्टन के बीच तनाव धीरे-धीरे बढ़ा जो अब अपने चरम पर पहुंच चुका है।
रूस और मास्को के बीच तनाव में जो वृद्धि हुई है उसके कई कारण हैं जैसे अमरीका की ओर से यूरोप में मिसाइल विरोधी सिस्टम का लगाना, उसके द्वारा मानवाधिकारों के समर्थन की आड़ में बार-बार रूस के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और नैटो का पूर्व में तेज़ी से विस्तार आदि। रूसी अब यह मानने लगे हैं कि अमरीका, अपनी पूरी क्षमता के साथ रूस को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है। पहले रूस में यह विचार पाया जाता था कि डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने से मास्को तथा वाशिग्टन के संबन्धों में बेहतरी आएगी किंतु जनवरी 2017 में ट्रम्प द्वारा अमरीका की सत्ता संभालने के बाद इसके विपरीत होना आरंभ हो गया। अब अमरीका की ओर से रूस के विरुद्ध कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य क्षेत्रों में विभिन्न ढंग से दबाव बनाए जा रहे हैं। इन्हीं दबावों में से एक, अमरीका की ओर से रूस का सैन्य मुक़ाबला करते हुए इस क्षेत्र में अपनी वरीयता बढ़ाना है। अमरीका का लक्ष्य रूस को हथियारों की प्रतिस्पर्धा में घसीटना है ताकि उसका पूर्व सोवियत संघ की तरह विघटन हो जाए।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 20 अक्तूबर सन 2018 को एलान किया था कि वाशिग्टन, आईएनएफ संधि अर्थात इन्टरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फ़ार्स से निकल रहा है। अमरीका का यह कहना था कि रूस की ओर से आईएनएफ जैसी महत्वपूर्व संधि का उल्लंघन किया जा रहा है ऐसे में अमरीका के पास इससे निकलने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं बचा है। ट्रम्प की इस घोषणा के बाद अमरीका के विदेशमंत्री माइक पोम्पियो ने 4 दिसंबर 2018 को यह घोषणा कर डाली कि वाशिग्टन 60 दिनों के लिए इस संधि को स्थगित कर रहा है ताकि इस बीच मास्को अपने वचनों को व्यवहारिक करके दिखाए अन्यथा अमरीका इस संधि से निकल जाएगा।
इस बारे में रूस के विदेश उपमंत्री सरगेई रियाबकोफ कहते हैं कि अमरीका की बातों से स्पष्ट हो चुका है कि वह आईएनएफ संधि से निकलने के लिए बहाने ढूंढ रहा है और उसने इस संधि से निकलने का मन बना लिया है। 60 दिनों की समय सीमा गुज़रने के साथ ही अमरीकी विदेशमंत्री ने 1 फरवरी 2019 को बताया कि 2 फरवरी से 180 दिन के लिए अमरीका ने आईएनएफ संधि को विलंबित कर दिया है। उन्होंने यह भी कहा कि रूस ने यदि आईएनएफ संधि से संबन्धित अमरीका के दृष्टिगत शर्तों को पूरा नहीं किया तो छह महीनों के बाद अमरीका इससे पूरी तरह से निकल जाएगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अमरीका ने आधिकारिक रूप में आईएनएफ संधि के प्रति अपनी ओर से वचन पालन न करने का एलान कर दिया है।
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने मास्को के विरुद्ध कड़ी नीति अपनाते हुए एलान किया है कि रूस की ओर से आईएनएफ संधि के उल्लंघन की स्थिति में मास्कों के विरुद्ध वे सैन्य विकल्प का मार्ग अपना सकते हैं। ट्रम्प के कथनानुसार वाशिग्टन के नेटो सहयोगी उनके इस फैसले का समर्थन करते हैं कि अमरीका, आईएनएफ संधि से निकल जाए। इसका कारण यह है कि सबको इससे होने वाली हानि के बारे में अच्छी तरह से पता है। ट्रम बल देकर कहते हैं कि रूस यदि आईएनएफ संधि की शर्तों को पूरा नहीं करता है तो अमरीका अगले छह महीने में इससे निकल जाएगा और हमने 2 फ़रवरी 2019 से इस संधि से निकलने की तैयारी आरंभ कर दी है। अमरीका की ओर से आईएनएफ संधि को स्थगति करने की घोषणा के बाद नैटो की ओर से बयान जारी करके एलान किया गया कि हम अमरीका के इस क़दम का स्वागत करते हैं। हालांकि यूरोप ने इसपर अपनी नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की है। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी मोग्रीनी का कहना है कि यूरोप, महाशक्तियों के बीच टकराव का अखाड़ा नहीं बनना चाहता।
अमरीकी एलान पर रूस की ओर से बहुत ही तीव्र प्रतिक्रिया सामने आई है। मास्को का मानना है कि अमरीका का यह फैसला अन्तराष्ट्रीय संघियों के उल्लंघन की अमरीकी नीति का ही भाग है। ट्रम्प सरकार अबतक कई अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों से निकल चुकी है। रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने अमरीका की ओर से पेरिस जलवायु समझौते, यूनेस्को और ईरान के साथ शांतिपूर्ण समझौते जैसे अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों से निकलने की ओर संकेत करते हुए कहा कि अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों से निकलना अब वाशिग्टन की रणनीति बन चुकी है। रूसी अधिकारी बारंबार यह एलान कर चुके हैं कि आईएनएफ जैसी महत्वपूर्ण संधि से अमरीका का निकलना बहुत ख़तरनाक है। उनका कहना है कि इससे संसार में शस्त्रों की प्रतिस्पर्घा फैल जाएगी। रूस ने अमरीका पर आईएनएफ समझौते के लिए परिस्थिति को अधिक ख़राब करने का भी आरोप लगाया।
रूस के विदेश उपमंत्री रियाबकोफ ने बल देकर कहा है कि उनका देश आईएनएफ के प्रति कटिबद्ध रहा है। मास्को का मानना है कि संयुक्त राज्य अमरीका की यह अभिलाषा रही है कि मास्को का पूरी तरह से निशस्त्रीकरण कर दिया जाए। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह मिसाइल के क्षेत्र में रूस के लिए अधिक से अधिक सीमितताएं थोपने के प्रयास में है। इसी बीच रूसी राष्ट्रपति विलादिमीर पुतीन ने 2 फरवरी 2019 को एलान किया है कि आईएनएफ को स्थगित किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि अब के बाद से रूस एसे मिसाइलों का उत्पादन करेगा जो आईएनएफ के हिसाब से प्रतिबंधित थे। पुतीन ने रूसी मंत्रियों से कहा है कि वे आईएनएफ के बारे में अमरीका के साथ किसी भी प्रकार की कोई वार्ता आरंभ न करें। पुतीन का कहना है कि हमारा जवाब मुंहतोड़ होगा। इसी बीच अमरीका के घटकों की ओर से एलान किया गया है कि वे भी इस संधि से अपना सहयोग बंद कर रहे हैं।
अमरीका और सोवियतं संघ ने शीतयुद्ध के दौरान सन 1987 में परमाणु हथियार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे जिसे आईएनएफ या इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्स के नाम से जाना जाता है। यह जून 1988 से लागू हुआ था। यह समझौता वाशिग्टन और मास्को को इस बात की अनुमति नहीं देता कि वे यूरोप में बैलिस्टिक या क्रूज़ मिसाइल लगाएं। यह संधि 500 से 550 किलोमीटर तक की मध्यम दूरी की मिसाइलों की तैनाती को रोकने पर आग्रह करती है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान रूस और अमरीका एक दूसरे पर मध्यम दूरी की मारक क्षमता वाले मिसाइलों के उल्लंघन का आरोप लगाते आ रहे हैं।
अमरीका ने रूस पर आईएनएफ के उल्लंघन के बहाने उन रूसी कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगाए जिनकी मिसाइल बनाने में भूमिका रही थी। अमरीका ने रूस पर यह कहते हुए आईएनएफ के उल्लंघन का आरोप लगाया कि उसने यूरोप में क्रूज़ मिसाइल तैनात किये हैं। अमरीका का यह भी दावा है कि रूस द्वारा यूरोप में तैनात किये गए क्रूज़ मिसाइलों की मारक क्षमता 500 किलोमीटर है। हालांकि रूस का कहना है कि यह क्षमता 480 किलोमीटर है। इससे पहले अमरीका ने यह एलान किया था कि वाशिग्टन, रूस द्वारा आईएनएफ के उल्लंघन की समीक्षा करने जा रहा है कि यूरोप में उसने मिसाइल क्यों तैनात किये और क्यों उनकी मारक क्षमता को बढ़ाया? रूस भी बारंबार अमरीका पर मध्यम मार्ग की मारक क्षमता वाले मिसाइलों के समझौते के उल्लंघन का आरोप लगा चुका है। मास्को का कहना है कि यूरोप में अमरीका की ओर से बी-61-12 नामक मिसाइल व्यवस्था का लगाया जाना भी परमाणु समझौते का उल्लंघन है। रूस का यह भी कहना है कि एमके-41 मिसाइलों को लांच करने के लिए लांच पैड का बनाया जाना भी आईएनएफ का उल्लंघन है क्योंकि इससे "टामहाक" प्रकार के क्रूज़ मिसाइलों को लांच किया जा सकता है। यह लांचपैड रोमानिया और पोलैण्ड में अमरीका के एंटी मिसाइल सिस्टम के अन्तर्गत तैनात हैं।
अमरीका की ओर से आईएनएफ संधि को विलंबित करने के साथ अमरीकी सरकार न केवल यह कि ज़मीन से ज़मीन में मार करने वाले कम दूरी और मध्यम दूरी के मिसाइल कार्यक्रम को विस्तृत करेगी बल्कि यह भी कहा जा रहा है कि अमरीका इस प्रकार के मिसाइलों को फिर यूरोप में तैनात करना चाहता है। यह एसा विषय है जिसपर रूस का चुप बैठना संभव नहीं है। एक जानेमाने राजनैतिक टीकाकार "हाइन्ज़ गाएर टेनर" का कहना है कि मध्यम दूरी की मिसाइल संधि से अमरीका के निकल जाने से परमाणु युद्ध का ख़तरा बना रहेगा।
वास्तव में यह कहा जा सकता है कि यूरोप महाद्वीप अब अमरीका तथा रूस की मिसाइल एवं परमाणु शस्त्रों के युद्धस्थल में बलद चुका है। अमरीका ने रूस को नियंत्रित करने के उद्देश्य से विभिन्न क्षेत्रों में क़दम उठाए हैं जिनमें सैन्य क्षेत्र सबसे प्रमुख है। मास्को के अनुसार ट्रम्प सरकार अमरीका की नई परमाणु शस्त्रों की डाक्ट्रीन के अन्तर्गत रूस तथा चीन से मुक़ाबले के लिए नए परमाणु शस्त्र और मिसाइल बनाने जा रही है। यह कहा जा सकता है कि ट्रम्प की ओर से आईएनएफ संधि को विलंबित करने से अमरीका को अपनी दृष्टिगत युद्धनीति को व्यवहारिक करने में सहायता मिलेगी। एसा लगता है कि अमरीका अब बिना किसी रोकटोक के अधिक से अधिक विध्वसंक शस्त्रों के निर्माण का इच्छुक है। इस बारे में ट्रम्प का कहना है कि जबतक रूस और चीन अपने परमाणु शस्त्रों को विकसित करते रहेंगे उस समय तक अमरीका अपने परमाणु शस्त्रों को विकसित करेगा।
अमरीका का मुख्य उद्देश्य यह है कि वह स्वतंत्र होकर अपनी इच्छा के अनुसार हथियार बनाता रहे और संसार की कोई भी संधि उसके इस मार्ग की बाधा न बन सके। इसी बीच शस्त्रों को नियंत्रित करने वाली किसी भी संधि या समझौते के विरोध में अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जान बोल्टन की भूमिका उल्लेखनीय है। उनका यह मानना है कि अमरीका को एक महाशक्ति के रूप में बिना किसी रोकटोक के हथियार बनाने चाहिए ताकि उसकी सैन्य शक्ति का लोहा सब मानें।
इस बारे में एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि अमरीकियों की भी भांति यूरोपीय ही यही मानते हैं कि रूस की ओर से आईएनएफ का उल्लंघन किया जा रहा है किंतु इसका हल इस संधि से निकल जाने में नहीं बल्कि रूस को यह बात मनवाने के लिए वार्ता का मार्ग अपनाया जाना चाहिए। वाशिग्टन का मानना है कि चीन को भी आईएनएफ से जुड़ना चाहिए क्योंकि वह छोटी और दूर की मारक क्षमता वाली मिसाइल व्यवस्था को बनाने में तेज़ी से काम कर रहा है। हालांकि रूस का यह मानना है कि फ़्रांस और युरोप भी इस संधि का भाग बनें क्योंकि वे परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं। पुराने अनुभवों से पता चलता है कि रूस इस प्रकार की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों पर ख़ामोश बैठा नहीं रहा है बल्कि इस संबन्ध में उसने जैसे को तैसा वाली नीति अपनाई है। इन सभी बातों के दृष्टिगत कहा जा सकता है कि अमरीका और रूस के बीच में इस प्रकार का टकराव, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अशांति और अस्थिरता का कारण बन सकता है।