Mar ०२, २०१९ १५:१५ Asia/Kolkata

हालिया कुछ दशकों विशेषकर शीत युद्ध के काल के बाद से अमरीका और यूरोप के बीच निकटता के बावजूद और जनवरी 2017 में अमरीका में डोनल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने से दो महाद्वीपों के बीच संबंधों में कई बार तनाव देखने को मिले और समय बीतने के साथ साथ यह मतभेद और तनाव गहराते ही जा रहे हैं।

अमरीका और यूरोप के बीच पाए जाने वाले मतभेदों में सबसे महत्वपूर्ण मतभेद ईरान के परमाणु समझौते और उसके बारे में बर्ताव है। यह विषय दो सम्मेलन अर्थात वार्सा सम्मेलन और म्युनिख़ सुरक्षा सम्मेलन में ईरान और परमाणु समझौते के बारे में यूरोप और अमेरिका के पूर्णरूप से विरोधाभासी रवैये में पूरी तरह से नज़र आता है।

ईरान का समग्र परमाणु समझौता, अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण समझौता समझा जाता है किन्तु अमरीका ने आठ मई 2018 को समझौते को विफल बनाने के लिए इससे निकलने की घोषणा कर दी। यूरोप के अनुसार परमाणु समझौते का तबाह होना और इस समझौते का स्थगन, दुनिया की सुरक्षा को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है और साथ ही यूरोप की कूटनयिक विश्वसनीयता पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देगा। यह बातें इस बात का कारण बनी कि यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोग्रेनी और यरोपीय संघ के राष्ट्राध्यक्षों ने परमाणु समझौते के महत्व के दृष्टिगत इसकी रक्षा की मांग की है। मोग्रेनी ने जनवरी 2019 में बयान दिया था कि ईरान के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के दो साल बीतने के बावजूद यह समझौता यथावत बाक़ी है और यह समझौता ईरान के परमाणु कार्यक्रम की  असैनिक प्रवृत्ति की गैरेंटी देता है।

हालिया कुछ सप्ताह विशेषकर ईरान के साथ व्यापारिक लेनदेन के चैनल इन्सटेक्स के लागू होने के बाद से परमाणु समझौते से निकलने के लिए यूरोपीय संघ और जर्मनी, फ़्रांस और ब्रिटेन पर आधारित तीन यूरोपीय देशों को विवश करने के लिए ट्रम्प सरकार का दबाव बढ़ा है। यह विषय विशेषकर अमरीका और पोलैंड की मेज़बानी से पोलैंड की राजधानी वार्सा में 13 और 14 फ़रवरी को होने वाली वार्सा बैठक के दौरान बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया।

 

वार्सा बैठक की प्रवृत्ति ही ईरान विरोधी थी। अमरीका के उप राष्ट्रपति माइक पेन्स ने परमाणु समझौते के बारे में यूरोप के बर्ताव की जमकर आलोचना की और जर्मनी, फ़्रांस और ब्रिटेन पर आधारित यूरोप के त्रिकोण तथा यूरोपीय संघ को ईरान पर लगे प्रतिबंधों को विफल बनाने का आरोप लगाया।

माइक पेन्स ने वार्सा बैठक के दौरान यूरोपीय संघ से मांग की कि वह ट्रम्प प्रशासन का अनुसरण करते हुए ईरान के साथ हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते से निकल जाएं। पेन्स ने ईरान को शांति और सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा ख़तरा क़रार दिया। अमरीका के उप राष्ट्रपति ने ईरान के साथ यूरोप के लेनदेन के लिए बने वित्तीय चैनल को ईरान के विरुद्ध अमरीकी प्रतिबंधों के उल्लंघन की कार्यवाही क़रार दिया। वार्सा बैठक में माइक पेन्स का बयानु जिसने ईरान के बारे में यूरोप और अमरीका के बीच मतभेद पर मोहर लगा दी है, वाशिंग्टन के ईरान विरोधी रवैये और यूरोप द्वारा परमाणु समझौते को रद्द करने के विरोध पर बड़े यूरोपीय देशों और यूरोपीय संघ की अनदेखी का चिन्ह है। यूरोप की ठंडी प्रतिक्रिया से पता चलता है कि माइक पेन्स की मांग को यूरोप की बड़ी शक्तियों के विरोध का सामना है।

जर्मनी के विदेशमंत्री के सलाहकार नेल्सन आनन ने कहा कि हमारा जवाब, बहुत साधारण है। यूरोप एकजुट होकर और बहुत ही सावधानीपूर्वक क़दम उठा रहा है, हमने दबाव और वार्ता के बारे में हिसाब किताब कर लिया है, यूरोप परमाणु समझौते पर बाक़ी रहेगा।

इस समय ईरान और परमाणु समझौते को लेकर अमरीका और यूरोप के बीच मतभेद संवेदेनशील चरण में पहुंच चुके हैं। ईरान एक्शन ग्रुप के प्रमुख ब्रायन हुक ने अमरीकी विदेशमंत्रालय में शरक़ुल अवसत नामक समाचार पत्र से बात करते हुए कहा कि ईरान के साथ सहयोग की शैली और तरीक़े के बारे में अमरीका और यूरोप के बीच मतभेद पाया जाता है।    

इन्हीं मतभेदों के कारण यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोग्रेनी और जर्मनी तथा फ़्रांस के विदेशमंत्रियों ने वार्सा बैठक में भाग नहीं लिया। यह मतभेद यहीं पर समाप्त नहीं हुए बल्कि 15 फ़रवरी को म्युनिख़ सुरक्षा कांफ़्रेंस के आयोजन तक जारी रहा।

ईरान से मुक़ाबले में तेज़ी लाने तथा परमाणु समझौते से यूरोप के निकलने के लिए वाशिंग्टन के वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव के बावजूद यूरोपीय संघ और यूरोप के तीन बड़े देशों के वरिष्ठ अधिकारियों का नया दृष्टिकोण इस बात का सूचक है कि वे परमाणु समझौते की रक्षा में दृढ़ संकल्पित हैं।

यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोग्रेनी ने शुक्रवार 15 फ़रवरी को म्युनिख़ सुरक्षा कांफ़्रेंस में कहा कि समस्त दबावों के बावजूद यूरोप परमाणु समझौते को पूर्ण रूप से लागू करना जारी रखेगा। उनका कहना था कि ईरान के साथ परमाणु समझौते की रक्षा, सुरक्षा का मुद्दा है।

यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोग्रेनी ने इसी प्रकार ईरान के विदेशमंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ से मुलाक़ात में परमाणु समझौते की रक्षा पर बल दिया।

अमरीकी दावों के विपरीत जो यह कहता है कि ईरान ने परमाणु समझौते पर अमल नहीं किया और परमाणु समझौते को ईरान की परमाणु गतिविधियों को नियंत्रित करेन के लिए एक प्रभावी और उपयोगी समझौता नहीं मानता, यूरोप का यह मानना है कि न केवल ईरान ने परमाणु समझौते के अपने समस्त वादों पर अमल किया है बल्कि परमाणु समझौता अपने लक्ष्यों की प्राप्ति अर्थात क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर टकराव और तनाव को फैलने से रोकने में भी सफल रहा है।

वास्तव में यूरोप की नज़र में परमाणु समझौता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुपक्षीय समझौते का एक सफल उदाहरण है। यूरोपीय संघ के इस दृष्टिकोण का यूरोप के कई बड़े देश समर्थन भी कर रहे हैं। जर्मनी के विदेशमंत्री हाइको मास ने शुक्रवार की रात म्युनिख़ सुरक्षा सम्मेलन में परमाणु समझौते से निकलने के लिए अमरीका द्वारा यूरोप को निमंत्रित किए जाने को रद्द कर दिया। श्री मास ने परमाणु समझौते से अमरीका के निकलने की आलोचना करते हुए कहा कि जर्मनी ने ब्रिटेन और फ़्रांस के साथ मिलकर अब तक परमाणु समझौते की रक्षा और इसको जारी रखने के लिए कई रास्ते तलाश किए हैं। उन्होंने परमाणु समझौते के बारे में यूरोपीय शक्तियों के वचनों को दोहराते हुए कहा कि परमाणु समझौते के बिना क्षेत्र अधिक सुरक्षित नहीं रह पाएगा और संयोग से स्पष्ट टकराव से निकट हो जाएंगे।

 

जर्मनी के इस मंत्री के दृष्टिकोण का समर्थन जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल ने किया। उन्होंने म्युनिख़ सुरक्षा सम्मेलन में परमाणु समझौते के समर्थन पर बल देते हुए कहा कि परमाणु समझौता, ऐसा सफल समझौता है जिसकी रक्षा किए जाने की आवश्यकता है।

अमरीका के उप राष्ट्रपति माइक पेन्स ने वार्सा सम्मेलन में अपने ईरान विरोधी बयान के बाद शनिवार 16 फ़रवरी को म्युनिख़ सुरक्षा सम्मेलन में बयान देते हुए ईरान पर ज़बरदस्त हमला किया। उन्होंने भाषण के दौरान ईरान को दुनिया में आतंकवाद का समर्थक अगुवा क़रार दिया। उन्होंने बल दिया कि यूरोप को ईरान के प्रति अपने समर्थन को रोक देना चाहिए।

अमरीका के उप राष्ट्रपति माइक पेन्स ने बल दिया कि अब समय आ गया है कि यूरोप, ईरान के परमाणु समझौते से निकल जाए। उन्होंने परमाणु समझौते से अमरीका के निकलने के बाद वाशिंग्टन की ओर से तेहरान पर लगाए गये प्रतिबंधों की ओर संकेत किया और कहा कि अब समय आ गया है कि यूरोप, इस संबंध में अधिक से अधिक सहयोग करे और ईरान विरोधी अमरीकी प्रतिबंधों को ख़राब करने की हर प्रकार की कार्यवाही रोक दें।

उनकी इस मांग का भी यूरोपीय संघ और यूरोप की तीन बड़ी शक्तियों ने कड़ा विरोध कर दिया। परमाणु समझौते से निकलने के लिए यूरोप से पेन्स की मांग ऐसी स्थिति में दोहराई गयी है कि यूरोप ने, इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते की रक्षा पर आधारित अपने दृष्टिकोण पर बारंबार बल दिया है।

यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोग्रेनी ने जो म्युनिख़ सुरक्षा सम्मेलन में भाग लेने वालों में से थीं, 16 फ़रवरी शनिवार को एक बार फिर इस बिन्दु पर बल देते हुए कहा कि यूरोपीय महाद्वीप ईरान के साथ परमाणु समझौते के वचनों पर दृढ़ता से प्रतिबद्ध है और 28 सदस्य देश परमाणु समझौते को शांति तक पहुंचने की एक गैरेंटी के रूप में देखते हैं।

दूसरी ओर इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने एनबीसी टीवी चैनल से बात करते हुए परमाणु समझौते के बारे में हर प्रकार की संभावित वार्ता का पूरी कड़ाई से खंडन किया और कहा कि परमाणु समझौता, 13 साल की वार्ता का परिणाम है, हम ऐसे समझौते तक पहुंचे जिसका 150 पृष्ठ दस्तावेज़ था न उस दो पृष्ठों वाले दस्तावेज़ की तरह था जो डोनल्ड ट्रम्प ने उत्तरी कोरिया के नेता के साथ किया था, ट्रम्प हर समझौते से, जिसके बारे में आप सोच सकते हैं निकल गये हैं।

 

ब्राएन हुक ने कहा कि वाशिंग्टन इसलिए परमाणु समझौते से निकला कि ताकि वह तेहरान के विरुद्ध अपना दबाव बढ़ा सके और ईरान पर अधिक से अधिक दबाव जारी रख सके। इन सबके बावजूद परमाणु समझौते से अमरीका के निकलने के बाद वाशिंग्टन की दुनियाभर में आलोचना हुई विशेषकर परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले पक्षों ने तो जमकर अमरीका की आलोचना की। परमाणु समझौते के सदस्यों ने अमरीका के बिना गुट 4+1 की परिधि में परमाणु समझौते को जारी रखेन और अमरीका की ओर से ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों के नकरात्मक दबाव को कम करेन के मार्ग तलाश करने तथा ईरान के साथ सहयोग जारी रखेन और परमाणु समझौते को बचाने पर बल दिया।

ट्रम्प प्रशासन में अमरीका और यूरोप के बीच मतभेद अपने चरम पर पहुंच गये हैं और दोनों पक्षों के बीच मतभेदों को दूर करने के लिए कोई सकारात्मक चीज़ नज़र नहीं आती। यही नहीं अभी वाशिंग्टन पर ट्रम्प दो साल और राज करेंगे और यूरोप इस कटु वास्तविकता को समझ चुका है कि निकट भविष्य में अमरीका के बर्ताव में परिवर्तन की कोई आशा नहीं है।

बहरहाल, चीन और वाशिंग्टन के वर्चस्व के विरोधी देशों जैसे अपने कुछ प्रतिस्पर्धियों की ओर से ट्रम्प सरकार की कार्यवाहियों और दृष्टिकोणों के कारण अमेरिका को न केवल आलोचनाओं का सामना है बल्कि अब तो यूरोप जैसे अमरीका के निकट घटक भी वाशिंग्टन के विरोध में उठ खड़े हुए हैं जिससे यह पता चलता है कि अमरीका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुरी तरह अलग थलग पड़ता जा रहा है। (AK)