Mar ०३, २०१९ १२:५५ Asia/Kolkata

इस कार्यक्रम में हम इस्लामी क्रांति के पांचवे दशक के आरंभ होने पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के एक महत्वपूर्ण संदेश के बारे में बात करेंगे।

इस्लामी क्रांति के पांचवें दशक में प्रविष्ट होने के अवसर पर वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ईरानी युवाओं को संबोधित करते हुए एक महत्वपूर्ण भाषण दिया है जिसे "क्रांति के दूसरे चरण" का नाम दिया गया है।  अगले कुछ कार्यक्रमों में हम इसी भाषण के बारे में चर्चा करेंगे।

ईरान की इस्लामी क्रांति वास्तव में स्वतंत्रता प्राप्ति के मार्ग में बढ़ाया जाने वाला एक क़दम था जो अबसे 40 वर्ष पहले ईरानी जनता के संकल्प और स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में सफल सिद्ध हुआ।  वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति के पांचवे दशक की दहलीज़ पर पहुंचने के अवसर पर "क्रांति के दूसरे चरण" शीर्षक के अन्तर्गत जो महत्वपूर्ण भाषण दिया है उसमे इस्लामी क्रांति की अबतक की उपलब्धियां गिनवाई गई हैं।  इस भाषण में नवीन ईरान के निर्माण के लिए युवाओं को कुछ सुझाव दिये गए हैं।

चार दशकों के बाद अब इस्लामी क्रांति के मूल्यवान परिणाम सामने आने लगे हैं।  इस क्रांति ने महाशक्तियों के झूठे दबदबे की पोल खोल दी और अत्याचारग्रस्तों को वर्चस्वादियों के मुक़ाबले में खड़े होने का साहस दिया।  यह वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि है।  अपने संबोधन में युवाओं को संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता कहते हैं कि आप लोग इस्लामी क्रांति को उचित ढंग से समझने के लिए इतिहास का सहारा लें।  वे कहते हैं कि भविष्य में महत्वपूर्ण एवं मज़बूत क़दम उठाने के लिए विगत को उचित ढंग से पहचाना अनिवार्य है।  अगर इस मार्ग में थोड़ी सी भी ढिलाई बरती गई तो फिर सच्चाई के स्थान पर झूठ आ जाएगा जिसके परिणामस्वरूप भविष्य को अनचाही चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

ईरान की इस्लामी क्रांति ऐसी स्थिति में सफल हुई कि जब संसार पूरब और पश्चिम की दो शक्तियों के बीच बंटा हुआ था।  पश्चिमी ब्लाक में पूंजीवादी उदारवाद की विचाधारा पाई जाती थी और पूर्वी ब्लाक, क्मयूनिज़्म के हाथों चलाया जा रहा था।  उस समय इन दोनो शक्तियों ने पूरे संसार को आपस में दो भागों में बांट रखा था।  संसार के कुछ हिस्से का संचालन पश्चिम के हाथ मे था जबकि कुछ दूसरे हिस्से को पूरब से संचालित किया जाता था।  उस काल में संसार को दो भागों मे बंटे रहने के बावजूद पूरब और पश्चिम दोनों का प्रयास यही रहता था कि राजनीति, वैचारिक और आर्थिक दृष्टि से पूरे विश्व का संचालन उन्हीं के हाथों में होना चाहिए।  इस संबन्ध में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि एसे काल में कि जब पूरा संसार पूरब तथा पश्चिम में बंटा हुआ था, कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि एसे में कोई धार्मिक आन्दोलन सफल हो पाएगा लेकिन एसा कुछ हुआ।  ईरान की इस्लामी क्रांति ने पूरी शक्ति के साथ अपने प्रयास को आगे बढ़ाया, पारंपरिक समीकरणों की अनुपयोगिता सिद्ध की, धर्म तथा राजनीति के अलग होने की धारणा को समाप्त किया और इस प्रकार से एक आधुनिक युग का आरंभ किया।

इस क्रांति ने दो ध्रुवों में बंटे तत्कालीन संसार को तीन ध्रुवों में परिवर्तित कर दिया।  सोवियत संघ के विघटन के साथ ही संसार अब इस्लाम तथा वर्चस्ववाद के ख़ेमों में बंट गया।  इस बात ने संसार का अपना ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया।  इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही इस क्रांति से वर्चस्ववाद की शत्रुता तेज़ हो गई।  यह शत्रुता अमरीकी नेतृत्व में तेज़ी से दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी। 

मुहम्मद रज़ा शाह पहलवी के शासनकाल में ईरान, मध्यपूर्व में अमरीका का विश्वसनीय ठिकाना था।  अमरीका पर मुहम्मद रज़ा शाह पहलवी की निर्भरता इतनी अधिक हो चुकी थी कि वह उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता था।  क्योंकि मुहम्मद रज़ा शाह अमरीका और ब्रिटेन के समर्थन से सत्ता तक पहुंचा था इसलिए वह अमरीका का अंधा भक्त हो गया था।  वह हर काम अमरीका की इच्छा के बिना नहीं करता था।  उसके शासनकाल में ईरान के आम लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी जबकि उसी समय ईरान के भीतर हज़ारों अमरीकी सलाहकार महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए विलासितूपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे।  शाह के काल में अमरीका और इस्राईल के सहयोग से ईरान में गुप्तचर संस्था का गठन किया गया।  उस समय अमरीकी अपनी इच्छा के अनुसार ईरानियों से काम करवाते थे।  वे स्वयं तो अति संवेदनशील पदों पर आसीन थे जबकि ईरानियों को उच्च पदों पर नहीं रखते थे बल्कि उनको छोटे पदों पर नियुक्त किया करते थे।  शाह के काल में ईरानियों के धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मामलों को कोई महत्व नहीं दिया जाता था।  इस प्रकार पहलवी परिवार ने पांच दशकों पर ईरान में जीवन गुज़ारा।

ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता ने इस देश से लंबे समय से चले आ रहे एतिहासिक पतन को समाप्त कर दिया।  पहलवी और क़ाजार के काल में ईरान, को अपमानित किया गया और वह पिछड़े देशों में पहुंच गया किंतु इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ईरान ने प्रगति का मार्ग तै करना आरंभ किया।  ईरान से दूसरों पर निर्भर सरकार का ख़ात्मा हुआ और एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ।  राष्ट्रीय संकल्प को सम्मान मिला।  अब ईरान किसी दूसरे पर निर्भर देश न होकर एक आत्मनिर्भर देश बनकर उभरा।

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद अमरीका ने ईरान की लोकतांत्रिक सरकार को गिराने के लिए हरसंभव प्रयास किये।  अमरीका की इच्छा थी कि नवगठित लोकतांत्रिक सरकार को गिराकर ईरान में ठीक वैसी ही कठपुतली सरकार लाई जाए जैसी इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले थी।  अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अमरीका ने पहले तो ईरान की विभिन्न जातियों को प्रथकता के लिए प्रेरित किया।  वाशिग्टन ने तुर्क, कुर्द, अरब और तुर्कमन जातियों को प्रथकता के लिए उकसाने के उद्देश्य से पश्चिम, दक्षिण पश्चिम, पश्चिमोत्तरी तथा पूर्वोत्तरी ईरान में लोगों को लालच देकर अलगावाद की सोच को बढ़ाया।  हालांकि अमरीका ने इस काम के लिए बहुत पैसा और समय ख़र्च किया किंतु उसका परिणाम उसे वैसा नहीं मिला जैसा वह चाहता था बल्कि इसके बदले में ईरानी जनता अधिक एकजुट हुई।  इस षडयंत्र में विफल होने के बाद वर्चस्ववादी और उसके समर्थक ख़ामोश नहीं बैठे बल्कि उन्होंने दूसरे अन्य षडयंत्र आरंभ किये।  अबकी बार अमरीका ने सद्दाम को अत्याधुनिक हथियार देकर ईरान के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार किया।  सद्दाम ने ईरान पर हमला किया और यह युद्ध आठ वर्षों तक चला।  आठ वर्षों तक युद्ध जारी रहने के बावजूद ईरानी युवाओं के संकल्प में कोई कमी नहीं आई और वे स्वेच्छा से युद्ध के मोर्चों की ओर बढ़े।  इन युवाओं ने अपनी पूरी क्षमता के साथ देश की रक्षा की।  उन्होंने इतनी लंबी लड़ाई में ईरान की एक इंच ज़मीन भी दूसरों के हाथ नहीं लगने दी।  इस प्रकार से अमरीका और उसके समर्थकों को इस चरण में भी विफलता का ही मुंह देखना पड़ा।  लगातार विफलताओं के बावजूद अमरीका ने ईरान से अपनी शत्रुता नहीं छोड़ी।  अब उसने ईरान के विरुद्ध आर्थिक हथकण्डे के रूप में प्रतिबंधों का चयन किया।  इसी के साथ वाइट हाउस ने ईरानी युवाओं की धार्मिक पहचान को मिटाने के लिए साफ्ट युद्ध भी छेड़ा।  साफ्ट युद्ध के समानांतर ही उसने ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों की टारगेट किलिंग शुरू की।  इन सारे कामों से शत्रु का उद्देश्य, ईरान को प्रगति से रोकना था।  इतने षडयंत्रों के बावजूद अमरीका और उसके साथियों को ईरान के बारे में अपने निर्धारित लक्ष्य हासिल नहीं हो सके।  आज ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के 40 वर्षों के बावजूद ईरानी जनता, वरिष्ठ नेता के नेतृत्व में इमाम ख़ुमैनी के मार्ग पर आगे की ओर बढ़ रही है।

अपने बयान में वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद वर्चस्ववादियों के षडयंत्र के संदर्भ में कहा कि यह स्वभाविक था कि पथभ्रष्टता के मार्गदर्शक अपनी विफलता पर प्रतिक्रियाएं देते किंतु उनकी प्रतिक्रियाएं भी विफल रहीं।  उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार सारे ही षडयंत्र अपनाए किंतु ईश्वर की कृपा से सारे ही षडयंत्र विफल रहे।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन सब बातों के बावजूद देश की जनता इस्लामी क्रांति की सफलता की चालीसवीं सालगिरह मना रही है।  इस प्रकार ईरान की इस्लामी क्रांति अब अपनी विजय के पांचवें दशक में प्रविष्ट हो चुकी है।

 

 

 

 

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