Mar ११, २०१९ १४:४९ Asia/Kolkata

दुनिया की क्रांतियों के बारे में जो विचारधारायें पाइ जाती हैं उन पर ईरान की इस्लामी क्रांति ने दो रूपों में प्रभाव डाला है।

ईरान की इस्लामी क्रांति का एक प्रभाव यह है कि उसने क्रांतियों के बारे में कुछ विचारकों के दृष्टिकोणों को संतुलित किया है जबकि इसका दूसरा प्रभाव यह है कि इस क्रांति ने यह सिद्ध कर दिया है कि सांस्कृतिक कारणों से भी क्रांति आ सकती है। रोचक बात यह है कि ईरान की इस्लामी क्रांति से पहले तक विचारक यह समझते थे कि क्रांतियों का मुख्य कारण आर्थिक समस्याएं होती हैं।

थेडा स्कापल (THEDA SKOCPOL) उन प्रसिद्ध विचारकों में से एक  हैं जिन्हें ईरान की इस्लामी क्रांति ने बहुत प्रभावित किया है और स्वयं उन्होंने इस बात को स्वीकार भी किया है। ईरान की इस्लामी क्रांति आने से पहले थेडा स्कापल का मानना था कि आम तौर पर क्रांतियां आर्थिक कारणों से होती हैं और साथ ही वह बल देकर कहती हैं कि क्रांतियां ग़ैर इरादी होती हैं यानी कोई जानबूझ क्रांति नहीं करता है बल्कि हालात ऐसे हो जाते हैं जिनकी वजह से क्रांतियां आ जाती हैं परंतु ईरान की इस्लामी क्रांति ने क्रांतियों के बारे में थेडा स्कापल के दृष्टिकोण को संतुलित कर दिया और साथ ही उन्होंने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति सोच- समझकर और जानकारी के साथ आयी थी। थेडा स्कापल ने ईरान में इस्लामी क्रांति और शिया इस्लाम के संबंध में लिखे गये अपने एक लेख में स्वीकार किया है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के संबंध में हमारे दृष्टिकोण कुछ आयामों से सही नहीं उतर रहे हैं और उसे वह अपने कानून व सिद्धांत के विरुद्ध मानती थीं। वह इस बारे में कहती हैं” ईरान की इस्लामी क्रांति कुछ आयामों से हमारे लिए कानून के विरुद्ध एक  असामान्य चीज़ है। निःसंदेह यह क्रांति एक प्रकार की सामाजिक क्रांति है परंतु इस क्रांति का विशेषकर उन घटनाओं के मध्य आना, जो शाह की सरकार के अंत का कारण बनीं, उन भविष्यवाणियों की चुनौती का कारण बनीं जिन्हें मैंने फ्रांस, रूस और चीन की क्रांतियों की समीक्षा के दौरान पेश किया था।“

 

वह ईरान की इस्लामी क्रांति में शीया धर्म और नेतृत्व की भूमिका पर विशेष ध्यान देती हैं और फ्रांस, रूस और चीन की क्रांति के संबंध में अपने पहले वाले दृष्टिकोण के खिलाफ वह यह मानने लगी कि यह क्रांति ज़बरदस्ती नहीं आयी बल्कि यह क्रांति लोगों और नेताओं की जानकारी व जागरुकता से आयी और उन्होंने यहां तक कहा कि अगर इतिहास में कोई क्रांति जानकारी व जागरूकता से आयी है तो वह ईरान की इस्लामी क्रांति है।

ईरान की इस्लामी क्रांति का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह है कि उसने यह सिद्ध कर दिया कि सांस्कृतिक कारणों से भी क्रांति आ सकती है और इस्लामी क्रांति से प्रभावित बहुत से विचारकों ने ईरान की इस्लामी क्रांति सहित दूसरी क्रांतियों के अस्तित्व में आने में धर्म और संस्कृति की विशेषता को महत्वपूर्ण बताया है।

माइकल फोको एक सांस्कृतिक विचारक हैं। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति पर विशेष ध्यान दिया है और ईरान की इस्लामी क्रांति के अस्तित्व में आने में संस्कृति एवं धर्म की जो भूमिका रही है उसकी उन्होंने समीक्षा की की। माइकल फोको के अनुसार ईरान की इस्लामी क्रांति वर्तमान समय की पहली क्रांति या उनके शब्दों में राजशाही व्यवस्था के खिलाफ पहला सबसे बड़ा विद्रोह और यथासंभव स्थिति में आधुनिकतम आंदोलन है। फोको बल देकर कहते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति को आर्थिक व भौतिक क्रांति का नाम नहीं दिया जा सकता क्योंकि पहली सरकार की आर्थिक कठिनाइयां व समस्यायें इतनी बड़ी नहीं थीं कि लोग उसकी वजह से आंदोलन करते। इस प्रकार फोको का मानना है कि धार्मिक आस्थाओं के अलावा कोई भी दूसरी चीज़ ईरान के लोगों को इस सीमा तक एकजुट नहीं कर सकती थी। उनका मानना है कि ईरान के लोग शीया और इस्लाम के साथ एसी शक्ति उत्पन्न करते थे जिसने विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस शाही सरकार को धराशायी कर दिया। फोको ईरान की इस्लाम क्रांति में नेतृत्व के विषय पर विशेष ध्यान देते हैं। वह ईरान की इस्लामी क्रांति के मार्गदर्शन में अपने एक लेख में स्वर्गीय इमाम खुमैनी की रचनात्मक भूमिका पर प्रकाश डालते हैं। वह स्वर्गीय इमाम खुमैनी को “पेरिस के पवित्र बूढ़े इंसान” की संज्ञा देते हैं। उनका मानना है कि ईरान के हर वर्ग के लोग उनसे प्रेम करते और श्रृद्धा रखते हैं। इसी प्रकार फोको स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैहि के बारे में लिखते हैं” इमाम ख़ुमैनी एक महान व मिथक व्यक्तित्व के स्वामी थे। क्योंकि किसी भी सरकार का प्रमुख और कोई भी राजनीतिक नेता यह दावा नहीं कर सकता कि उसके लोग उससे इस प्रकार का संबंध व श्रृद्धा रखते हैं चाहे उसे समस्त संचार माध्यमों का समर्थन ही क्यों न प्राप्त हो।

 

एक अन्य विचारक (NIKKI KEDDIE) निक्की केडी हैं जिन्हें भी ईरान की इस्लामी क्रांति ने प्रभावित किया है। उनका मानना है कि शाही सरकार के खिलाफ लोगों को खड़ा करने और आंदोलन में धर्मगुरूओं और संगठनों की उल्लेखनीय भूमिका है। उनका मानना है कि इसकी वजह भी शीया धर्म और उसकी आस्थाएं व शिक्षाएं हैं और उसकी तुलना दूसरे इस्लामी संप्रदायों से नहीं की जा सकती। वह ईरान के इतिहास में विद्वानों और धर्मगुरूओं की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण मानती और लिखती हैं कि अगर प्रथम श्रेणी का एक धर्मगुरू व मुजतहिद यह कह देता था कि सरकार की अमुक नीति बदलनी चाहिये या अमुक शासक बुरा कार्य कर रहा है तो उसका अनुसरण करने वाले उसकी बात मानते थे न कि केन्द्रीय सरकार की।

(HAMID ALGAR) हामिद अलगार भी ब्रिटेन के विचारक हैं और उन्होंने भी ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा में धार्मिक दृष्टि डाली है और इस क्रांति की जड़ों को धर्म में मानते हैं। हामिद अलगार इस सीमा तक ईरान की इस्लामी क्रांति से प्रभावित हैं कि उन्होंने अपने डाक्ट्रेड के थिसेज में स्वीकार किया है कि यह एक किताब है अलबत्ता अगर इसे अब लिखना होता तो शायद मैं बहुत सी बातों को बदल देता। यह ब्रिटेन के प्रसिद्ध विचारक ईरान की इस्लामी क्रांति के आधारों के बारे में कहते हैं कि क्रांति का आधार शीया धर्म है। इस दुनिया में बुराई और अत्याचार सदैव भलाई एवं न्याय के खिलाफ काम करते हैं और मुसलमानों को चाहिये कि न्याय को व्यवहारिक बनाने के लिए काम करें।

वास्तव में हामिद का मानना है कि ईरान के लोगों ने इससे पहले कि वे केवल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर किये गये अत्याचार पर रोयें, अत्याचार के मुकाबले में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शिक्षाओं से प्रेरणा ली थी और इसी वजह से वे ईरान की शाही सरकार के मुकाबले में उठ खड़े हुए।  

आयरलैंड के एक विचारक (FRED HALLIDAY) फ्रेड हेलिडे हैं जो ईरान की इस्लामी क्रांति को इतिहास की सबसे आधुनिक क्रांति मानते हैं और अपने दृष्टिकोण के पक्ष में कुछ प्रमाण लाते हैं। फ्रेड कहते हैं कि आयतुल्लाह इमाम खुमैनी ने अपनी धार्मिक बातों से धार्मिक और राष्ट्रवादी लोगों को पहलवी सरकार के खिलाफ एक पंक्ति में कर दिया। इसी तरह वह अपने दृष्टिकोण के पक्ष में कहते हैं कि ईरान के लोगों ने इतिहास का सबसे बड़ा जमावड़ा इमाम खुमैनी के स्वागत में किया था। इसी तरह वह कहते हैं कि इस्लामी क्रांति के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता इस सीमा तक है कि दुनिया की किसी भी क्रांतिकारी सरकार में नहीं है।

 

अमेरिका में रहने वाले एक ईरानी विचारक अली मीर सिपासी हैं। वह ईरान में सेक्युलर की विफलता की समीक्षा करते हैं। उनका मानना है कि सिक्युलर का ईरान में न केवल स्वागत नहीं हुआ बल्कि ईरानी लोगों ने उसे नकार दिया और उसे बंद गली का सामना हुआ। सेक्युलर को ईरान में बंदी गली का सामना क्यों हुआ? इस प्रश्न के जवाब में मिरसिपासी कहते हैं कि इस्लाम के मुकाबले में सेक्युलर बातें कमज़ोर थीं और संगठनों और नेताओं ने इस अवसर का लाभ उठाया और उन्होंने ईरान के अप्रसन्न लोगों को शाह के खिलाफ खड़ा कर दिया। इसी प्रकार वह कहते हैं कि एक राजनीतिक आइडियालोजी वाले आंदोलन के दिशा- निर्देशन का संबंध इमामत, इमाम ज़मान अलैहिस्सलाम की ग़ैबत और उसके राजनीतिक परिणाम व आस्था से है।

वाशिंग्टन के जार्ज टाउन विश्व विद्यालय के एक प्रोफेसर और अमेरिकी विचारक जॉन एस्पोसीटो हैं। उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति के बारे में कई लेख लिखे हैं। वह स्पष्ट शब्दों में इस विषय की ओर संकेत करते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति और शाह से संघर्ष का स्रोत शीया धर्म और उसकी शिक्षाएं हैं। वह इस संबंध में लिखते हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति की आइडियालोजी ईरानी और शीया थी। सन 680 ईसवी शताब्दी में अतिग्रहणकारी ख़लीफा यज़ीद द्वारा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को शहीद किये जाने को ईरान की इस्लामी क्रांति के लिए एक चिंगारी समझा जाता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एतिहासिक महाआंदोलन से अन्याय और अत्याचारियों के खिलाफ उठ खड़े होने की प्रेरणा मिलती है। जॉन एस्पोसीटो (JOHN ESPOSITO) ईरान की इस्लामी क्रांति की पहचान के बारे में कहते हैं कि ईरान ने दुनिया के सामने पहली सफल इस्लामी क्रांति पेश की। वह कहते हैं कि इस क्रांति का आधार इस्लाम, इस्लामी नारे जैसे अल्लाहो अकबर और धार्मिक एवं गैर धार्मिक नेतृत्व था। यह अमेरिकी विचारक कहता है कि ईरान की इस्लामी क्रांति धर्म के दिशा- निर्देशन में आने वाली पहली क्रांति है।

एक अन्य विचारक माइकल फ़िशर हैं। वह ईरान की इस्लामी क्रांति को धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से देखते हैं। वह इस क्रांति को कर्बला की घटना का एक सिलसिला मानते हैं। माइकल फ़िशर कहते हैं ईरान की इस्लामी क्रांति में कर्बला की घटना इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विश्वास और उनकी आस्था के लिए संघर्ष करने का आधार बन गयी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर्बला में शहीद हो गये और उनकी शहादत ने इंसानियत का अस्ली रूप पेश किया और अपने आप से बेगाना हो चुके ईरानी लोगों को पहचान, सामाजिक एकता और नई शक्ति का आभास कराया। सेक्युलर और उसके समर्थकों में इस्लाम एवं उसके पक्षधरों से मुकाबले की क्षमता नहीं थी इसलिए उसे किनारे कर दिया गया और इस्लामी क्रांति सफल हो गयी।

फ्रांस में रहने वाली एक ईरानी विचारक लैला इश्की हैं। वह भी ईरान के इस्लामी क्रांति का विश्लेषण करती हैं। वह कहती हैं ईरान की इस्लामी क्रांति केवल एक ऐतिहासिक और एक समय के भीतर समाप्त हो जाने वाली घटना नहीं है बल्कि वह बाकी रहने वाली घटना है। वह इसी दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न आयामों से ईरान की इस्लामी क्रांति की समीक्षा करती हैं। लैला इश्की कहती हैं कि शीयत ईरानी संस्कृति से जुड़ी हुई है और कभी भी ईरानियों ने शीयत के खिलाफ कदम नहीं उठाया है और अगर आंदोलन व प्रतिरोध भी किया है तो वह भी ख़िलाफ़त के विरुद्ध था न कि शीयत के।

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