Mar ११, २०१९ १६:४५ Asia/Kolkata

मनुष्य की प्रवृत्ति सभी कालों में इन्हीं नारों में निहित होती है।

स्वतंत्रता, नैतिकता, अध्यात्म, न्याय, स्वाधीनता, प्रतिष्ठा, बुद्धिमनी और भाईचारा इनमें से कोई भी एक किसी एक पीढ़ी या समाज से संबंधित नहीं है ताकि वह किसी काल में चमके और दूसरे काल में पतन का शिकार हो जाए। कदापि किसी ऐसे लोगों की कल्पना नहीं की जा सकती जो इन उपलब्धियों से परेशान हों।

इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान की महान व भव्य क्रांति ने दुनिया को अत्याचार पर विजय की शुभ सूचना दी। इस क्रांति ने दुनिया के कमज़ोर लोगों के दिलों में आशा थी किरण जगा दी। इस क्रांति ने यह दिखा दिया कि एकता, सहृदयता, सत्य पर डटे रह कर तथा ईश्वर पर भरोसा करके अत्याचार की बुनियादों को हिलाया जा सकता है और सफलता प्राप्त कर जा सकता है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई अद्वितीय विशेषताओं से संपन्न हैं जिसके कारण यह क्रांति बाक़ी और जारी है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी क्रांति के पांचवें दशक में प्रविष्ट होने के उपलक्ष्य में "दूसरा क़दम" नामक बयान जारी किया। वह कहते हैं कि दुनिया में अत्याचारग्रस्त राष्ट्रों में बहुत ही कम राष्ट्र क्रांति के लिए साहस जुटा पाते हैं और वह राष्ट्र जो उठ खड़े हुए और उन्होंने क्रांति लाई, उनमें से बहुत कम ही अपने काम को अंत तक पहुंचाने में सफल हुए और सरकारों को बदलने के अलावा क्रांति की उमंगों की रक्षा कर सके हों किन्तु ईरानी राष्ट्र की भव्य क्रांति जो वर्तमान दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे अधिक जनाधार वाली क्रांति है, एकमात्र क्रांति है जिसने गौरवपूर्ण चालीस वर्ष बिना किसी विश्वासघात के व्यतीत किया और समस्त चालों के मुक़ाबले में, अपनी प्रतिष्ठा उसके नारों की रक्षा की और आत्मनिर्माण, सभ्यता बनाने और समाज के गठन के दूसरे चरण में प्रविष्ट हुई।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में इस्लामी क्रांति दुनिया में पेश किया जाने वाला नया शब्द था। ऐसी क्रांति को इस्लाम और लोकतंत्र के मिश्रण से प्रकट हुई जिसने सारे समीकरणों को विफल बना दिया और दुनिया के सामने नया रास्ता पेश किया।

 

ईरान की जनता ने शाही सरकार के विरुद्ध अपने समस्त प्रदर्शनों में "अल्लाहो अकबर" "स्वाधीनता" और "स्वतंत्रता जैसे नारे लगाए और यह नारे यथावत जनता के बीच बहुत महत्व रखते थे। जनता शाही संस्थाओं में फैले व्यापक भ्रष्टताचार और अनैतिकता से उब चुकी थी और वह समाज में नैतिकता और अध्यात्म की सुगंध फैलाने के इच्छुक थे। यही कारण था कि उन्होंने इमाम ख़ुमैनी पर भरोसा किया और क्रांति की सफलता के बाद वे एेसी सरकार की स्थापना के इच्छुके थे जिसमें धर्म और संसार को एक साथ लेकर चलने का प्रावधान हो। जनता ने इस्लामी गणतंत्र के पक्ष में मतदान दिया ताकि इस्लामी शिक्षाओं को अपने जीवन, समाज और सरकार के वातावरण में रख सकें। यह क्रांति क्रूसेड क्रांति की भांति नहीं थी जो केवल धार्मिक उन्माद और ईर्ष्या पर आधारित थी और न ही धर्म विरोधी सरकारों की भांति थी जिसने ईश्वर और धार्मिक मूल्यों को किनारे लगा दिया था और केवल संसारिक मायामोह और सुखभोग पर ही बल देती थी। इस्लामी गणतंत्र ने लोकतंत्र और इस्लाम के सुन्दर मिश्रण को बहुत ही सुन्दर और संतुलित ढंग से पेश किया।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई का यह मानना है कि इस धार्मिक क्रांति के वैश्विक नारे, जो एक लेहाज़ से मनुष्य की प्रवृत्ति से निकले हुए नारे हैं, अमर हैं और कभी भी लाभहीन और अनुपयोगी नहीं होंगे। वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं कि मनुष्य की प्रवृत्ति सभी कालों में इन्हीं नारों में निहित होती है। स्वतंत्रता, नैतिकता, अध्यात्म, न्याय, स्वाधीनता, प्रतिष्ठा, बुद्धिमत्ता और भाईचारा इनमें से कोई भी एक किसी एक पीढ़ी या समाज से संबंधित नहीं है ताकि वह किसी काल में चमके और दूसरे काल में पतन का शिकार हो जाए। कदापि ऐसे लोगों की कल्पना नहीं की जा सकती जो इन उपलब्धियों से परेशान हों। वरिष्ठ नेता इस क्रांति के जारी और बाक़ी रहने का एक महत्वपूर्ण कारण इन्हीं नारों को क़रार देते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में इस क्रांति की अन्य विशेषताएं यह हैं कि इस्लामी क्रांति एक जीवित और इरादे वाली प्रक्रिया है। इस क्रांति के जीवंत होने और इरादे के साथ होने को सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में जनता की व्यापक उपस्थिति में सुन्दरता से देखा जा सकता है। ईरान की जनता ने देश के महत्वपूर्ण चुनावों में बढ़चढ़कर भाग लिया, चाहे ये चुनाव संसदीय चुनावों या हर चार साल में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव हों, इससे यह पता चलता है कि जनता इस्लामी व्यवस्था को आगे बढ़ाने और उसको विकसित करने के लिए मज़बूत इरदा रखती है।

इसी प्रकार जनता अधिकारियों के साथ मिलकर हर वर्ष 22 बहमन अर्थात 11 फ़रवरी को इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ की रैलियों में भव्य रूप से उपस्थित होकर राष्ट्रीय एकता का भव्य नमूना पेश करती है और इस्लामी क्रांति की सफलता के दिन यह दृश्य एक राष्ट्रीय जश्न में बदल जाता है। ईरान की जागरूक जनता दुनिया के राजनैतिक मामलों में भी बहुत संवेदनशील है और इन मामलों पर निरंतर नज़र रखे रहती है। ईरान की जनता और अधिकारी एक साथ मिलकर हमेशा से दुनिया के अत्याचारग्रस्तों के रक्षक थे और रहेंगे और साम्राज्यवादियों के मुक़ाबले में प्रतिक्रियाएं व्यक्त करते हैं और उनके लिए चुनौतियां खड़ी कर देते हैं।

 

ईरान की जनता और अधिकारी यमन, म्यांमार, सीरिया और इराक़ की अत्याचारग्रस्त जनता और दुनिया में जहां भी अत्याचार हो रहे हैं वहां की जनता के समर्थन में उठ खड़े होते हैं और दुनिया के अत्याचारग्रस्त लोगों के समर्थन में आवाज़ उठाते हैं। विश्व क़ुद्स दिवस की रैलियां और इन भव्य रैलियों में जनता और अधिकारियों की भव्य उपस्थिति, फ़िलिस्तीन की अत्याचार ग्रस्त जनता के समर्थन और अतिग्रहणकारी और बच्चों के हत्यारे ज़ायोनी शासन से दुश्मनी का सबूत पेश करती हैं। यह रैलियां हर वर्ष व्यापक स्तर पर निकाली जाती हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं कि दुनिया के अत्याचार ग्रस्तों के साथ यह वैश्विक और क्षेत्रीय काम, ईरान और ईरानियों के गर्व का कारण है और इस काम को हमेशा जारी रहना चाहिए।

 

इस क्रांति के जीवित होने और इरादे के साथ होना, ईरानी राष्ट्र के सुन्दर बर्ताव और उनके संकल्प तथा प्रयास के अलावा इस्लामी व्यवस्था और सरकार के सत्यप्रेम से भी संबंधित है। साम्राज्यवाद का विरोध, सत्य पर डटे रहना, अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की रक्षा तथा शांतिपूर्ण परमाणु तकनीक की प्राप्ति जैसी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धियां, वैश्विक स्तर पर इस्लामी गणतंत्र ईरान की मज़बूती का चिन्ह है। वर्तमान समय में क्षेत्र में शांति और स्थिरता की स्थापना में ईरान का महत्वपूर्ण राजनैतिक प्रभाव एक अटल सच्चाई है यहां तक कि दुश्मनों को भी मध्यपूर्व में ईरान की अद्वितीय भूमिका स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान की इस्लामी क्रांति की महत्वपूर्ण विशेषताएं जिसे उन्होंने दूसरे क़दम के अंतर्गत बयान की हैं। वह इस क्रांति पर पुनर्विचार न करने के साथ इसमें पाया जाने वाला लचीलापन है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस्लामी क्रांति एक जीवित और इरादे वाली प्रक्रिया है जिसका अर्थ है कि यह क्रांति हमेशा लचीली और अपनी ग़लतियों को सुधारने के लिए तैयार रहती है किन्तु कभी भी पुनर्विचार को स्वीकार करने वाली और रक्षात्मक शैली अपनाने वाली नहीं है।

वरिष्ठ नेता के इस बयान के लिए एक उदाहरण दिया जा सकता है और इस्लामी गणतंत्र ईरान के संविधान की ओर संकेत किया जा सकता है। संविधान, इस धार्मिक व्यवस्था के बाक़ी रहने और इसके बने रहने का महत्वपूर्ण स्तंभ है जो इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ से ही शहीद बहिश्ती जैसे दुनिया देखे हुए लोगों द्वारा बनाया गया। संविधान की इस किताब में ऐसे व्यापक व विस्तृत क़ानून हैं जिसकी धाराएं और अनुच्छेद कम या ज़्यादा करने योग्य हैं। इसका मतलब यह है कि देश का संविधान मज़बूत होने के साथ लचीला भी है जिसमें क़ानूनी ग़लतियों को सही करने और देश की क़ानून की कमियों को दूर करने की योग्यता पायी जाती है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की नज़र में इस्लामी गणतंत्र ईरान में जनता के धार्मिक ईमान के साथ इस्लामी मूल्यों का भी मिश्रण है किन्तु इसमें अपनी ग़लतियों को सुधारने की क्षमता भी पायी जाती है, आलोचनाओं को खुले दिल से स्वीकार करता है और उसे ईश्वर की अनुकंपा समझता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता बल देते हैं कि अल्लाह काा शुक्र है कि इस्लामी क्रांति जो जनता के धार्मिक ईमान से बनी है, कभी भी धार्मिक मूल्यों से दूर नहीं हुई।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस्लामी क्रांति की विशेषताओं को इस प्रकार बयान करते हैंः ईरान की इस्लामी क्रांति शक्तिशाली किन्तु दयालु, कृपालु यहां तक कि अत्याचारग्रस्त रही है, इस क्रांति ने कभी भी सीमा से अधिक बढ़ने या इधर उधर भटकने की ग़लती नहीं की जो बहुत सी क्रांतियों और आंदोलनों के लिए लज्जा का कारण बनी है। किसी भी युद्ध में चाहे अमरीका के साथ हो या सद्दाम के साथ हो, पहली गोली नहीं चलाई, इन सभी मामलों में, दुश्मन के हमले के बाद अपनी रक्षा की और सामने वाले पक्ष के हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया, यह क्रांति आरंभ से आज तक न बेरहम और रक्तरंजित रही और न ही उसने रक्षात्मक शैली अपनाई और न ही शंका ग्रस्त रही, पूरी शक्ति और साहस के साथ ज़ोरज़बरदस्ती करने वालों के सामने डट गयी और अत्याचार ग्रस्तों और कमज़ोरों की रक्षा की।

ईरानी राष्ट्र आरंभ से ही अतिथि सत्कार और कृपालु होने में प्रसिद्ध रहा है। ईरान की धरती शुरु से ही पर्यटकों और यात्रियों के लिए हमेशा से रोचक और आश्चर्यजनक रही है। यदि पर्यटक मिस्र के फ़िरऔनों की धरती को पिरामिड और क़ब्रों के रहस्य जानने का माध्यम समझते हैं, यदि भारत को विभिन्न धर्मों और जातियों के लिए जानते हैं, यूनान और यूनानियों को दर्शनशास्त्र और उनके देवताओं का अमर समझते हैं तो इन्हीं पर्यटकों ने ईरान और ईरानियों को कृपालु और दयालु पाया। ईरान के बारे में यात्रियों और पर्यटकों की बातों से पता चलता है कि यहां के लोग शक्तिशाली किन्तु दयालु हैं। यह वह धरती है जहां के रहने वाले कभी आधी दुनिया पर राज करते थे किन्तु कभी भी इन्होंने किसी को ग़ुलाम नहीं बनाया, किसी से युद्ध शुरु नहीं किया। (AK)