Apr १६, २०१९ १२:२८ Asia/Kolkata

स्वेच्छा से अच्छा काम करना न केवल मनुष्य के मानस पर बल्कि शरीर पर भी लाभदायक प्रभाव डालता है।

उदाहरण स्वरूप उसका तनाव कम होता है, शरीर का सुरक्षा तंत्र कमज़ोर नहीं होता, विभिन्न रोगियों के मुक़ाबले में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत होती है, क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाएं कम होती हैं जिससे उसका मानसिक तनाव होता है। यह विषय अपनी देखभाल में विशेष महत्व रखता है।

हमने बताया था कि अपनी देखभाल का अर्थ होता है अपने स्वास्थ्य व प्रफुल्लता की रक्षा करना और हर दिन कुछ ऐसे छोटे छोटे काम करना जिनसे हमारा जीवन बेहतर व सुरक्षित रहे। मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित बनाने वाला एक विवेकपूर्ण व लक्ष्यपूर्ण काम, अच्छे व मानवताप्रेमी कार्य करना है जिसका अपनी नैतिक देखभाल में विशेष स्थान है।

हम सबके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उचित व पौष्टिक आहार, पर्याप्त व्यायाम व आराम और खाने-पीने की ग़लत आदतों से दूरी आवश्यक है। इसी के साथ हमारे विचार व हमारे विश्वास भी हमारे स्वास्थ्य और लम्बी आयु पर प्रभाव डालते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि मज़बूत नैतिक रुझान और सकारात्मक सोच से स्वास्थ्य बेहतर होता है। अमरीका के चिकित्सक, अध्ययनकर्ता और यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर डीन माइकल ओरनिश ने अत्यधिक अध्ययन व शोध के बाद कहा है कि नैतिक मामलों पर ध्यान और उन पर कटिबद्धता मनुष्य के शरीर विशेष कर उसके हृदय पर बड़े गहरे प्रभाव डालती है।

इस बारे में नैतिक व आध्यात्मिक आस्थाओं व लोगो में अवसाद के स्तर के संबंध पर किए जाने वाले अध्ययनों की तरफ़ भी इशारा किया जा सकता है। इन अध्ययनों के परिणामों से इस सच्चाई का पता चलता है कि नैतिक सिद्धांतों पर अधिक कटिबद्ध रहने वाले लोगों में अवसाद का स्तर उन लोगों से कम है जो केवल भौतिक व सांसारिक मामलों पर विश्वास रखते हैं।

 

वस्तुतः ईमान व प्रेम ऐसे पंख हैं जो मनुष्य को उसकी इंसानियत के चरम पर पहुंचाते हैं। अलबत्ता यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि नैतिकता व अध्यात्म से तात्पर्य केवल धार्मिक आस्थाएं नहीं हैं बल्कि नैतिकता व अध्यात्म के अर्थ धर्म से कहीं व्यापक है। दूसरे शब्दों में अध्यात्म एक ऐसी क्षमता है जो सभी लोगों में मौजूद होती है लेकिन उसे मज़बूत बनाने और परवान चढ़ाने की ज़रूरत होती है।

अच्छे और मानवता प्रेमी काम, मनुष्य में संतुष्टि की अच्छी भावना पैदा करते हैं। यह अच्छी भावना, मस्तिष्क में कुछ सकारात्मक परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होती है जिससे आंतरिक स्तर पर ख़ुशी की भावना पैदा होती है। आत्मिक स्वास्थ्य की यह अच्छी भावना, शरीर पर भी प्रभाव डालती है और मांस पेशियों में दर्द, खिंचाव और सिरदर्द में कमी का कारण बनती है। यह जानना भी रोचक होगा कि क्लिनिकल साइकलोजिकल साइंस जरनल Clinical Psychological Science journal नामक पत्रिका में प्रकाशित होने वाले एक शोध लेख के आधार पर जो लोग पूरे दिन में दूसरों के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हैं वे भावनात्मक दृष्टि से मज़बूत होते हैं और काम के कारण पड़ने वाले दबाव का प्रभाव उन पर कम होता है।

दस हफ़्तों तक एक छोटी परोपकारी गतिविधि में स्वेच्छा से भाग लेने वाले लोगों पर किए गए शोध के परिणामों के आधार पर उनके ख़ून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम हुई लेकिन जिन लोगों ने मानवता प्रेमी गतिविधियों में व्यापक रूप से भाग लिया था उनमें हृदय रोग में ध्यान योग्य कमी के लक्षण दिखाए दिए।

इसी प्रकार विभिन्न शोधों व अध्ययनों से पता चलता है कि दूसरों की भलाई के लिए अपना धन ख़र्च करने वाले दानी और मनुष्यों से प्रेम करने वाले लोग अधिक ख़ुश रहते हैं। एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पचास लोगों को हर हफ़्ते 25 डालर दिए और चार हफ़्तों तक उन पर नज़र रखी। फिर उन्हें निरुद्देश्य ढंग से दो गुटों में बांट दिया। एक गुट के लोगों से कहा गया कि वे अपने पैसे स्वयं पर ख़र्च करें जबकि दूसरे गुट के सदस्यों से कहा गया कि वे अपने पैसे दूसरों पर ख़र्च करें। इसके बाद अति विकसित यंत्रों से उनके मस्तिष्क का चित्र लिया गया। परिणामों से सिद्ध हुआ कि जिन लोगों ने दूसरों के लिए पैसे ख़र्च किए थे उनमें ख़ुशी की भावना अधिक थी।

 

अपनी मदद के नैतिक आयाम के संबंध में एक अन्य बात जिसकी तरफ़ इशारा करना चाहिए यह है कि जो व्यक्ति एक ग़रीब, अक्षम व ज़रूरतमंद की मदद करता है वह अपने आपको संपन्न व सक्षम महसूस करता है और उसका आत्म विश्वास बढ़ जाता है। दूसरी तरफ़ दूसरों की मदद करने और दूसरों की समस्याओं व कठिनाइयों का सामना करने से जीवन के संबंध में व्यक्ति के विचार बदल जाते हैं। जो दूसरों की मदद करता है, उनकी समस्याओं व कठिनाइयों का सामना करता है और ग़रीबों के कड़े जीवन के नज़दीक से देखता है, अपने जीवन पर उसकी संतुष्टि काफ़ी बढ़ जाती है और वह जीवन की अनुकंपाओं के कारण ईश्वर का अधिक कृतज्ञ होता जाता है।

क़ुरआने मजीद के सूरए इब्राहीम की सातवीं आयत के एक भाग में ईश्वर अपने बंदों से कहता है कि “अगर तुम अनुकंपाओं पर मेरे कृतज्ञ रहोगो तो निश्चित रूप से मैं उनमें बहुत अधिक वृद्धि करूंगा। और अगर तुमने कृतघ्नता दिखाई तो मेरा दंड अत्यंत कठोर है।“ क़ुरआने मजीद के व्याख्याकारों का कहना है कि कृतज्ञता के कई चरण हैं जिनमें सबसे पहला यह है कि इंसान दिल से यह माने की सभी अनुकंपाएं ईश्वर ने ही प्रदान की हैं। दूसरे यह कि ज़बान से कृतज्ञता प्रकट करे जैसे ईश्वर तेरा आभार जैसे वाक्य कहे। तीसरे यह कि ईश्वर ने धन, स्वास्थ्य और आयु इत्यादि जैसी जो अनुकंपाएं प्रदान की हैं उन्हें उपासना और लोगों की सेवा जैसे ईश्वरीय मार्ग में इस्तेमाल किया जाए। यहीं यह बात भी उल्लेखनीय है कि ईश्वर के प्रति कृतज्ञ रहने से उसका कोई लाभ नहीं है बल्कि उसने इसका आदेश हमारे प्रशिक्षण के लिए दिया है। इसी तरह कहा गया है कि जो लोगों का कृतज्ञ नहीं होता वह अपने पालनहार का भी कृतज्ञ नहीं हो सकता अतः कृतज्ञता के आदेश में नैतिक प्रशिक्षण का एक अहम बिंदु मौजूद है।

 

धार्मिक शिक्षाओं में दूसरों की मदद करने पर बहुत अधिक बल दिया गया है। क़ुरआने मजीद ने इस संबंध में बड़ी ही रोचक उपमा दी है। वह सूरए राद की आयत नंबर 17 में कहता है। जो कुछ लोग के लाभ में हो वह धरती में बाक़ी रहने वाला है और जो कुछ लाभदायक न हो वह पानी के ऊपर मौजूद झाग की तरह मिट जाने वाला है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम से पूछा गया कि ईश्वर के निकट सबसे प्रिय बंदा कौन है? उन्होंने उत्तर में कहाः वह जिसका अस्तित्व लोगों के लिए सबसे अधिक लाभदायक हो। इसी तरह उन्होंने एक अन्य स्थान पर कहा कि लोग, ईश्वर का परिवार हैं तो ईश्वर के निकट सबसे प्रिय वह है जो उसके परिवार को लाभ पहुंचाए और उन्हें ख़ुश करे। एक अन्य हदीस में पैग़म्बर ने कहा है कि एक व्यक्ति केवल इस लिए स्वर्ग में जाएगा कि वह लोगों के रास्तों से कांटे हटाया करता था।

वास्तविकता यह है कि मुनष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में ही उसकी क्षमताएं परवान चढ़ती व निखरती हैं। इंसान एक ज़ंजीर की कड़ियों की तरह हैं कि उनका जीवन और उनकी मज़बूती एक दूसरे से जुड़े रहने में है और वे एक दूसरे से कट कर या बेख़बर नहीं रह सकते। लोगों की सेवा करना सच्ची इंसानियत है। दूसरों की सेवा का अर्थ त्याग, बलिदान, कठिनाइयां व दुख सहन करना और अपने ही जैसों यानी मनुष्यों के साथ एकजुटता व जुड़ाव का आभास है। महान लोगों में दूसरों की सेवा की महान भावना अधिक दिखाई पड़ती है। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी कहा करते थे कि मुझे नेता के बजाए सेवक कहा जाए तो बेहतर है।

सबसे अहम बात यह कि अध्ययनों व शोधों से पता चलता है कि लोगों के साथ प्रेम और उनकी मदद की भावना स्थानांतरित होती है अर्थात अगर परिवार का कोई व्यक्ति दूसरों की मदद करता है तो परिवार के अन्य सदस्य भी इस ओर आकर्षित होते हैं। अगर हम किसी को दूसरों की मदद करते हुए देखते हैं तो अनचाहे ढंग से हम भी इस भले काम की ओर उन्मुख होते हैं। यही बात इसका कारण बनती हैं कि दूसरों की मदद से पैदा होने वाली सकारात्मक ऊर्जा, प्रेम, ख़ुशी और स्नेह उस पूरे समाज में फैल जाए जिसमें हम रह रहे हैं। इस प्रकार नैतिक व आत्मिक स्वास्थ्य के साथ ही सामाजिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता जाता है। (HN)