ईरान भ्रमण- 7
बुरूजर्द, लुरिस्तान प्रांत के आकर्षक व बड़े जनपदों में से एक है जो प्रांत के पूर्वोत्तरी भाग में स्थित है।
यह एक पर्वतीय क्षेत्र है जिसकी जलवायु बड़ी संतुलित है। समुद्र तल से इस क्षेत्र की ऊंचाई लगभग डेढ़ हज़ार मीटर है। जैसे जैसे दक्षिण की ओर बढ़िए ऊंचाई कम होती जाती है। इस जनपद क्षेत्र का केन्द्रीय नगर बुरूजर्द है जो इतिहास में अनेक उतार-चढ़ाव से गुज़रा है। बुरूजर्द के बसाए जाने के बारे में इतिहासकारों ने अलग अलग विचार व्यक्त किए हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इस क्षेत्र की हरियाली और अच्छी जलवायु के कारण लोग इस क्षेत्र में आकर बस गए।
कुछ इतिहसकारों का कहना है कि इस नगर को सासानी शासक फ़ीरोज़ ने बसाया था। इस्लाम का उदय हुआ तो चौथी शताब्दी हिजरी में अबू इसहाक़ इब्राहीम बिन मोहम्मद इस्तख़री ने अपनी पुस्तक मसालिकुल ममालिक में बुरूजर्द तथा वहां की जलवायु और भौगोलिक स्थिति का उल्लेख किया है। इस पुस्तक में बताया गया है कि बुरुजर्द बड़ी रोचक जलवायु वाला बड़ा शहर है। ऐसा शहर कि जहां के फल सभी क्षेत्रों में भेजे जाते हैं और वहां खजूर तथा केसर की बड़ी अच्छी खेती है।
लुरिस्तान की यात्रा करने वाले हर यात्री और पर्यटक को यहां की सुन्दरता और आकर्षक दृश्य अवश्य देखने चाहिए। लुरिस्तान की जलवायु आने वाले हर पर्यटक और यात्री को यहां के प्राकृतिक निखार के दर्शन कराती है। यात्री और पर्यटक यहां की सुन्दरता देखने के बाद आश्चर्यचकित हो जाते हैं। उदाहरण स्वरूप बूरूजर्द शहर की सुन्दरता जिसको बयान करने के लिए शब्द मौजूद नहीं हैं।
बूरूजर्द शहर का प्रवेश द्वारा एक मैदान है जिसके चारों ओर विभिन्न प्रकार के खानों और कबाब बेचने वालों की दुकानें हैं। इस स्थान पर नाश्ते और विश्राम करने के बाद गाड़ियों पार्क की और उसके बाद कपरगे जलडमरू की ओर निकल गये। बुरूजर्द के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में स्थित इस सुन्दर जलडमरू में एक स्थाई नदी बहती है जिसमें बहुत अधिक उतार चढ़ाव है जिसको केवल पैदल या साइकिल द्वारा ही पार किया जा सकता है। इस सफ़र के लिए हम पैदल ही निकल पड़े।
दोनों ओर पाकूब नामक कल कल करती नदी बह रही है। यह स्ट्रेट कपरगा नामक गांव के अंत से शुरु होता है और वनाई नामक क्षेत्र में समाप्त होता है। यह स्ट्रेट पर्वतारोहियों के लिए पर्वतारोहण करने हेतु सबसे सुन्दर और सबसे बेहतरीन रास्ता है। यहां पर गर्म पानी के दो सोते पाए जाते हैं, एक पत्थर का पुल था एक मख़फ़ी ग़ार अर्थात गुप्त गुफा और एक छोटा सा ताक़ मौजूद है।
यदि हम पश्चिमोत्तरी छोर से दक्षिणपश्चिम की ओर जाए तो हमें फ़दक नामक मनोरंजन स्थल या पार्क दिखाई पड़ता है। यह काम्पलेक्स चुग़ा नामक मनोरंजन टीले तक जाता है। यह पार्क बुरूजर्द का सबसे बड़ा पार्क समझा जाता है। इस पार्क में तीन छोटी छोटी झीलें या नदियां एक दूसरे से मिली हुई हैं जिसमें गुलरूद नामक नदी का पानी आता है और इसी पानी की वजह से पानी से भरी रहती है। यह झील पश्चिमी ईरान की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है।
अब हम चुग़ा टीले की ओर से फ़दक नामक पार्क से आगे बढ़ रहे हैं। यह टीला बूरूजर्द टीले की छत के नाम से प्रसिद्ध है और यह बहुत ही सुन्दर मनोरंजन स्थल है। यहां से हम बूरूजर्द शहर की सुन्दरता और शहर के सुन्दर दृश्यों को अच्छी तरह से देख सकते हैं। हमें चोग़ा टीले पर कुछ प्राचीन मूर्तियां नज़र आईं और जब हमने उनके बारे में पूछा तो कहा गया है कि यह मूर्तियां आरश कमान्गीरे की हैं। आरश की मूर्तियों के बग़ल में जंगली जानवरों की मूर्तियां बनी हुई नज़र आईं। चोग़ा टीले में कुछ आलीशान होटलों और गुमनाम शहीदों के मक़बरे देखे जा सकते हैं।
इस मनोरंजन स्थल के बाद हम दोपहर का खाना खाने के लिए कबाब की दुकान पर गये चूंकि हमने सुना था कि बूरूजर्द के कबाब दूसरी जगहों के कबाबों से बहुत ही अलग व स्वादिष्ट होते हैं तो हमने सोचा कि चलो आज इसे भी देख लेते हैं। सच कहें तो यह इतना स्वादिष्ट नर्म व अच्छा कबाब था कि इससे पहले तक खाए हुए सारे कबाब मैं भूल गया। यहां के मांस की ताज़गी, उनको सीख़ पर चढ़ाने की शैली और एक सीमा तक उन्हें भूनने के कारण इस क्षेत्र के कबाम अपनी पहचान अलग ही रखते हैं।
थोड़ा सा आराम करने के बाद हमने सुन्दर शहर बुरूजर्द में घूमने का फ़ैसला किया। हमने बूरूजर्द के दक्षिणपूरब से 15 किलोमीटर की दूरी पर तालाब बीशे दालान जाने का फ़ैसला किया। यह वह स्थान है जिसे तालाब बीशे दालून कहते हैं और यह स्थानीय और पलायनकर्ता पक्षियों के रहने का मुख्य स्थान है किन्तु इसके कुछ भाग पर खेती होने लगी जबकि दूसरे भाग पर अब भी पानी है और अनेक प्रकार के पक्षियों को यहां देखा जा सकता है।
खेद की बात यह है कि इस तालाब का आरंभिक क्षेत्रफल 930 हेक्टेयर था किन्तु अब 79 हेक्टेयर ही बचा है। यह तालाब, लोगों की अनदेखी के कारण अपनी अद्वितीय वनस्पति व जानवरों की शरणस्थली की विशेषता खो बैठा।
यहां के बाद से हम बूरूजर्द की जामे मस्जिद का रुख़ किया जो पश्चिमी ईरान की वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना पेश करती है। बुरूजर्द की एक रोचक एतिहासिक इमारत इस शहर की जामा मस्जिद है जो शहर के पूर्वी भाग में स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण तीसरी शताब्दी हिजरी में हुआ। मस्जिद के मेहराब के ऊपरी भाग में कूफ़ी लिपि में ईश्वर का नाम लिखा है। मस्जिद के मुख्य द्वार के ऊपर एक शिलालेख है जिसमें सन 1022 हिजरी क़मरी में सफ़वी शासक शाह अब्बास सफ़वी का आदेश लिखा हुआ है। साक्ष्यों से पता चलता है कि सफवी तथा क़ाजारी काल में इस मस्जिद की मरम्मत और इसका विस्तार हुआ।
बुरूजर्द की इमाम मस्जिद भी इस शहर की ऐतिहासिक इमारतों में गिनी जाती है। यह मस्जिद अति प्राचीन मस्जिद के खंडहर पर बनाई गई है और इसका संबंध क़ाजारी काल से है। मस्जिद के प्रांगड़ में बड़ा सा हौज़ है। इस मस्जिद में काजारिया काल की टाइलों और इन टाइलों पर विभिन्न सुंदर लिपियों में अंकित क़ुरआन की आयतों ने मस्जिद को विशेष आकर्षण प्रदान कर दिया है। इस मस्जिद में कुछ कोठरियां भी हैं जहां धार्मिक शिक्षार्थी रहते हैं।
ईरान में इस्लाम की आरंभिक शताब्दियों में आरंभिक काल में जो मस्जिदें बनीं उनमें से एक, बुरूजर्द की जामा मस्जिद है। कुछ लोगों का यह कहना है कि इसको एक प्राचीन अग्निकुण्ड पर बनाया गया है। हालांकि इस बारे में अभी तक कोई भी पुष्ट प्रमा नहीं मिल सका है। कुछ ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार यह कहा जाता है कि बुरूजर्द के प्राचीन शासक "हमूला बिन अली बुरूजर्दी" ने अब्बासी शासक "अबूदलफ़" को बुरूजर्द आने का निमंत्रण दिया था। वह अबूदलफ़ को बुरूजर्द के एक वीरान पड़े अग्निकुंड के पास ले गये। कहते हैं कि अबूदलफ़ ने उस स्थान पर पहुंचने के बाद कहा था कि यह मस्जिद का स्थल है।
बुरूजर्द की जामा मस्जिद शहर के पूरब में स्थित है। बताया जाता है कि मस्जिद की ऊंचाई धरती से 20 मीटर ऊंची है और विदित रूप से यह मस्जिद आरंभिक वर्षों में बनाई गयी है, इसमें अज़ान देने के लिए विशेष स्थान गुलदस्ता नहीं बना था जिसे 1209 हिजरी क़मरी में बनाया गया। इस इमारत की वास्तुकला, सासानी और इस्लामी काल की वास्तुकला से मिश्रित है। जब हम मस्जिद में प्रविष्ट होते हैं तो हमें ईंटों का बना हुआ एक बड़ा सा प्रांगड़ नज़र आता है और उसके बाद नौ ज़ीनों वाला एक सुन्दर सा मिंबर दिखाई पड़ता है जिस पर बड़ी सुन्दरता से शेर लिखे हुए हैं।
इस सुन्दर मस्जिद को उन लोगों को देखने का मैं सुझाव देता हूं जो भी वास्तुकला से प्रेम करते हैं। मस्जिद के बाद हम इमामज़ादा जाफ़र के दर्शन के लिए गये। यह इमामज़ादे, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की पीढ़ी से हैं। इस इमामज़ादे का मज़ार, शहर के सबसे प्राचीन क़ब्रिस्तान के पास स्थित है। यहां से मिलने वाले मिटटी के बर्तनों पर कूफ़ी लिपी में लिखा हुआ है। इमामज़ादे की मज़ार पर लिखी हुई शिलालेख की शैली, सल्जूक़ी शासन काल की वास्तुकला से मिलती है और वहां पर लिखी हुई तारीख़, 17 हिजरी क़मरी की तारीख़ है।
बाद के काल में बुरूजर्द की जामा मस्जिद का विस्तार, उस काल की राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों के आधार पर किया गया। इस मस्जिद के पूर्वी और पश्चिमी गलियारे उस स्थिति में उससे जोड़ दिये गए जब ग़रीबख़ाने का गुंबद गिर गया। इसका शीतकालीन हाल, तैमूरी काल में बनाया गया था। सफ़वी शासनकाल में उसके लिए सुन्दर प्रवेश द्वार बनवाए गए। बाद में क़ाजारी काल में मस्जिद के दक्षिणी छोर पर दो छोटे गुंबद बनाए गए।
उसके बाद हम कमालुद्दीन तबातबाई के ऐतिहासिक घर की ओर चल दिए। यह घर प्रसिद्ध धर्मगुरु श्रीमान कमालुद्दीन नबवी तबातबाई का था। यह धर्मगुरु अपने समय के प्रसिद्ध धर्मगुरुओं में गिने जाते थे और सैयद थे। इस घर की विशेषता यह है कि यह घर ईंट, टाइलों से बना है जबकि इसकी खिड़कियां लकड़ी की बनी हुई हैं। यह घर काजारी शासन काल के बड़े घरों की तरह है और अब इस घर को सांस्कृतिक धरोहर में रखा गया है और इसको शहर का संग्राहलय बना दिया गया है। यह घर तीन मन्ज़िला है, इसमें एक बड़ा प्रांगड़, कुछ हाल और एक शाह नशीन या बड़ा हाल है।
यह कहा जा सकता है कि बुरूजर्द के प्राचीन शहर में सुरक्षा की दो पट्टियां थीं जिससे पूरा शहर घिरा हुआ था। इसमें 57 टॉवर थे। उसके बाद हम शहर के बाज़ार की ओर चल पड़े। इस स्थान को स्थानीय भाषा में रासा कहा जाता है। बाज़ार में तरह तरह की दुकानें हैं जो पर्यटकों के ध्यान को अपनी ओर खींच लेती हैं। श्रोताओ कार्यक्रम का समय यहीं पर समाप्त हुआ हमें अनुमति दें। (AK)