May १२, २०१९ १२:४५ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रान्ति शक्ति, गतिशीलता और प्रेरणा के साथ पांचवे दशक में दाख़िल हो गयी है।

इस्लामी क्रान्ति चालीस साल गुज़रने और इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण की शुरुआत के साथ ही आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने एक बयान में देश में व्यापक संभावनाओं व क्षमताओं की ओर इशारा किया और मार्ग को जारी रखने तथा मार्ग में मौजूद रुकावटों को दूर करने के लिए अहम बिन्दु ओं को बयान किया। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने "क्रान्ति के दूसरे चरण" नामक बयान में क्रान्ति द्वारा तय हुए मार्ग का जवानों से उल्लेख किया और भविष्य के संबंध में आशावान दृष्टि के साथ क्रान्ति के उद्देश्य को बताए। उन्होंने इस बयान में इस्लामी क्रान्ति की विभूतियों का उल्लेख किया जिनमें से कुछ का हमने पिछले कार्यक्रम में वर्णन किया था।  अब आपको आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की नज़र में इस्लामी क्रान्ति की कुछ दूसरी बर्कतों से परिचित कराने जा रहे हैं।

ईरान में पहलवी शाही शासन में समाज के विभिन्न वर्गों के बीच खाई बहुत गहरा गयी थी। उस समय देश की संपत्ति और ज़्यादातर सुविधाएं राजधानी तेहरान में और शाही परिवार के हाथ में थी। जीवन की मूल सुविधाएं ख़ास तौर पर चिकित्सा क्षेत्र की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। बहुत से गावों में तो चिकित्सक भी नहीं थे। ईरान में टीकाकरण की प्रक्रिया भी सुचारू नहीं थी और बाल मृत्युदर का आंकड़ा चिंताजनक था। विश्व बैंक के अनुसार, ईरान पर आठ साल की थोपी गयी जंग और 4 दशकों की पाबंदियों व आर्थिक दबाव के बावजूद ईरान में इस्लामी क्रान्ति के बाद सामाजिक विषमता और आय में असमानता में कमी आयी।

योरोप और अमरीका की यूनिवर्सिटियों और वैज्ञानिक संस्थाओं ने ईरान की इस्लामी क्रान्ति के बारे में अपने शोध में इस बात को स्वीकार किया कि इस्लामी क्रान्ति से निर्धन लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ। ये शोध अमरीका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के अध्ययन और वर्ल्ड बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों पर आधारित हैं। वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसारः "हमने 1977 से 2004 के बीच ईरान में ग़रीबी में आए बदलाव की प्रक्रिया की समीक्षा की जिसमें रोज़ाना 2 डॉलर आय को मानदंड क़रार दिया। समीक्षाएं बताती हैं कि वर्ष 1977 अर्थात इस्लामी क्रान्ति से दो साल पहले ईरान में 28 फ़ीसद शहरी परिवार और 25 फ़ीसद शहरी लोग निर्धन रेखा के नीचे जीवन बिता रहे थे। 1977 में गांव में निर्धन रेखा के बीच जीवन बिता रहे परिवारों और ग्रामवासियों का फ़ीसद क्रमशः 66 और 60 था।" कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि 80 से 90 के दशक में गांव में बिजली, पानी और गैस पहुंचाने के लिए व्यापक पूंजिनिवेश और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में मदद तथा शिक्षा में विकास से ईरान में इस्लामी क्रान्ति के बाद सामाजिक विषमता में बहुत कमी आयी। जंग के बाद कृषि उत्पादों की निर्धारित मूल्य पर ख़रीदारी की नीति अपनायी गयी जिससे किसानों की आय में वृद्धि हुयी। 2004 में निर्धनता में बहुत कमी आयी। दैनिक 2 डॉलर आय के मानदंड के अनुसार, वर्ष 2004 में शहर सिर्फ़ 1 फ़ीसद और गांव में 7 फ़ीसद लोग अत्यधिक निर्धनता में जीवन बिता रहे थे।

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई क्रान्ति का दूसरा क़दम नामक बयान में राष्ट्रीय संसाधन के न्यायपूर्ण वितरण को इस्लामी क्रान्ति की बर्कतों में गिनवाया। उनका मानना हैः "इस्लामी क्रान्ति से राष्ट्रीय संसाधन के वितरण में न्याय का पलड़ा भारी हुआ।" इसके साथ ही वरिष्ठ नेता देश में न्याय तंत्र के क्रियाकलाप में और बेहतरी आने पर बल देते हुए कहाः मुझे शिकवा है कि इस्लामी व्यवस्था में अदालत जैसे क़ीमती मूल्य को सबसे आगे होना चाहिए लेकिन अभी तक नहीं है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि न्याय की स्थापना के लिए कोई काम नहीं हुआ है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता बल देते हैः "सच्चाई यह है कि अन्याय के ख़िलाफ़ इन चार दशकों में संघर्ष की उपलब्धियों की विगत के किसी भी दौर से तुलना नहीं की जा सकती। उद्दंडी शाही शासन में देश की आय और सेवा के बड़े भाग पर राजधानी में रहने वाले एक छोटे से गुट या उनके जैसे देश के दूसरे क्षेत्रों में मौजूद लोगों का क़ब्ज़ा था। ज़्यादातर शहरों ख़ास कर सुदूर व ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मूल रचनाओं और सुविधाओं से वंचित थे। इस्लामी गणतंत्र केन्द्र से पूरे देश में संपत्ति और सेवा पहुंचाने में दुनिया की सबसे कामयाब सरकारों में रही है। सड़क निर्माण, आवास निर्माण, औद्योगिक केन्द्र की स्थापना, कृषि में सुधार, देश के सुदूर क्षेत्रों में पानी, बिजली, स्वास्थ्य केन्द्र, विद्यालय, बांध, बिजली घर और इस तरह की चीज़ों को पहुंचाना वास्तव में ऐसी उपबल्धियां हैं जिन पर गर्व किया जाना चाहिए। अलबत्ता इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के मद्देनज़र न्याय को जो हज़रत अली की ख़िलाफ़त का अनुसरण करने में रूचि रखती है, इन सब चीज़ों से अधिक अहमियत हासिल है। जिसे लागू करने में आप जवानों से उम्मीद है।"

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की नज़र में इस्लामी क्रान्ति की एक और उपलब्धी समाज में नैतिकता व अध्यात्म का आम होना है। उनका मानना है कि इस्लामी क्रान्ति से समाज में अध्यात्म और नैतिकता का स्तर बहुत बेहतर हुआ।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की नज़र में इमाम ख़ुमैनी के सदाचारी व्यक्तित्व और क्रान्ति के पूरे संघर्ष के दौरान और क्रान्ति की सफलता के बाद उनके उच्च व्यवहार से समाज के विभिन्न वर्गों में अध्यात्म बढ़ा। इमाम ख़ुमैनी के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैः इंसान के शरीर में ऐसे आत्मज्ञानी व सदाचारी व्यक्ति के हाथ में देश की लगाम आयी कि जिस देश की जनता की आस्था बहुत मज़बूत थी। हालांकि पहलवी शासन काल में भ्रष्टाचार व अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले प्रचार से उससे बहुत नुक़सान पहुंचा और पश्चिम की नैतिक बुराइयां मध्यम मर्ग के लोगों ख़ास तौर पर युवा वर्ग तक पहुंच चुकी थीं, लेकिन इस्लामी गणतंत्र के धार्मिक व नैतिक दृष्टिकोण ने तय्यार मन विशेष रूप से जवानों को अपनी ओर सम्मोहित किया और धार्मिक व नैतिक माहौल बन गया।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता समाज में अध्यात्म के चलन को पवित्र रक्षा के काल सहित सहित दूसरे कड़े क्षेत्रों में युवा वर्ग के संघर्ष का ऋणी मानते हैं। ये जवान ईश्वर की प्रार्थना व दुआ के साथ साथ भाईचारे व बलिदान की भावना से भी ओत प्रोत थे। इन जवानों ने अपने व्यवहार से इस्लाम के आगमन के आरंभिक दौर की याद ताज़ा कर दी थी जिसका बाद की नस्लों पर बहुत असर पड़ा। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की नज़र में समाज में आध्यात्मिक माहौल बनाने में शहीदों और जियालों क साथ शहीदों व घायल हुए वीर सपूतों के परिवार के सदस्यों का भी योगदान रहा है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैः मां-बाप और बीवियों ने धार्मिक कर्तव्य परायणता की भावना की वजह से जेहाद के मोर्चों पर जाने वाले अपने प्रियजनों की याद से मन को हटाया और जब ख़ून में लतपथ उनके शवों को देखा तो इस मुसीबत पर ईश्वर का आभार व्यक्त किया।                   

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की नज़र में देश में अध्यात्मिक माहौल बढ़ने की मिसाल मस्जिदों और दूसरे धार्मिक स्थलों में अभूतपूर्व रौनक़ है। इस बारे में आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई मस्जिद में एतेकाफ़ नामक विशेष उपासना, इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर पैदल चलना, विभिन्न धार्मिक समारोहों के आयोजन में विस्तार, अनिवार्य व ग़ैर धार्मिक दान का उल्लेख करते हैं जिनमें हर साल बेहतरी आ रही है। आज हज़ारों की संख्या में छात्र, जवान वर्ग, उस्ताद, मर्द और औरत मस्जिद में एतेकाफ़ के लिए अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे हैं। इस समय देश के निर्माण और विकास संगठन के कैम्प हज़ारों स्वंयेसवी जवानों से भरे हुए हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता नमाज़, रोज़ा और हज जैसी उपासना में जवानों की व्यापक भागीदारी को इस्लामी क्रान्ति की अन्य बर्कत गिनवाते हैं। वह इमाम हुसैन के चेहलुम के अवसर पर पद यात्रा कर दर्शन करने वालों की बड़ी संख्या को इस्लामी क्रान्ति की एक अन्य आध्यात्मिक उपलब्धि बताते हैं।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं कि जैसे जैसे पश्चिम में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है ईरान में अध्यात्म व नैतिकता बढ़ रही है। वह कहते हैः "ईरान में अध्यात्मिक विकास ऐसे दौर में हुआ जब पश्चिम और उसका अनुसरण करने वाले देशों में नैतिक पतन और मर्द औरत को भ्रष्टाचार की ओर खींचने के पश्चिम के व्यापर प्रचार की वजह से दुनिया के बहुत बड़े भाग में नैतिकता व अध्यात्म को हाशिए पर ढकेल दिया गया। यह इस्लामी क्रान्ति और इस्लामी व्यवस्था का चमत्कार है।"         

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की नज़र में इस्लामी क्रान्ति की एक अन्य बर्कत विश्व साम्राज्य का दिन प्रतिदिन बढ़ता विरोध है। इस्लामी क्रान्ति के नेताओं ने ईरानी जनता को कठिनाइयों को सहन करना और दुश्मन के मुक़ाबले में दृढ़ता दिखाना सिखाया और इस मार्ग में जवान आगे आगे रहे। जनता साम्राज्य के ख़िलाफ़ डटी हुयी है और कठिनाइयों को सहन कर साम्राज्यवादियों को वर्चस्व जमाने से रोक रही है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण के बयान में कहते हैः "दुनिया की एकाधिकार जमाने वाली शक्तियों ने, जो दूसरे देशों की स्वाधीनता में हस्तक्षेप और उनके मूल हितों की बर्बादी में अपना जीवन देखती हैं, इस्लामी व क्रान्तिकारी ईरान के मुक़ाबले में अपनी अक्षमता को स्वीकार किया है। ईरानी राष्ट्र इस्लामी क्रान्ति   की छत्रछाया में अमरीका के पिट्ठुओं व ग़द्दारों को राष्ट्र से निकाल बाहर किया और उसके बाद से आज तक विश्व साम्राज्य को दुबारा वर्चस्व जमाने से रोके रखा।"

 

 

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