May २५, २०१९ १६:३० Asia/Kolkata

तीन चीज़ें ईरान की इस्लामी क्रांति के महत्वपूर्ण उद्देश्य थीं और इन्हीं चीज़ों को दृष्टि में रखकर इस्लामी क्रांति आई थी।

इस्लामी क्रांति के बाद काफी सीमा तक ये उद्देश्य व्यवहारिक हो गये हैं परंतु जो चीज़ महत्वपूर्ण प्रतीत हो रही है वह इस्लामी क्रांति से प्राप्त होने वाली बड़ी- बड़ी उपलब्धियों की सुरक्षा है जिसके लिए ईरानी लोगों ने बहुत प्रयास किये हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने सभी लोगों का आह्वान किया है कि वे ईरान की स्वाधीनता और आज़ादी की रक्षा करें। इनको परिभाष्ति करते हुए वरिष्ठ नेता कहते हैं” राष्ट्रीय स्वाधीनता का अर्थ राष्ट्र और सरकार का विश्व की वर्चस्वादी सरकारों द्वारा अपनी मांगों व इच्छाओं के थोपे जाने से स्वतंत्र रहना है सामाजिक आज़ादी का अर्थ यह है कि फैसला करने, उस पर अमल करने और उसके बारे में सोचने का अधिकार समाज के समस्त लोगों को है। यह दोनों चीज़ें इस्लामी मूल्य हैं। दोनों चीज़ें ईश्वर द्वारा इंसान को प्रदान के गये उपहार हैं। इनमें से किसी को भी सरकारों ने लोगों को उपहार में प्रदान नहीं किया है और सरकारों की ज़िम्मेदारी है कि वे इन दोनों चीज़ों को लोगों के लिए उपलब्ध करायें।“

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने स्वाधीनता और आज़ादी की जो परिभाषा बयान की है उसमें कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हैं। पहला यह कि स्वाधीनता स्वयं एक प्रकार की आज़ादी है किन्तु वह विदेशी क्षेत्र में है विदेशियों के वर्चस्व और अन्याय से आज़ाद होना है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने स्वाधीनता और आज़ादी की जो बात कही है उसमें दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु उनका ईश्वरीय होना है। इस्लाम के अनुसार आज़ादी ईश्वरीय उपहार है जो इंसान के जन्म के आरंभ से उसे प्रदान की गयी है और किसी व्यक्ति या सरकार ने उसे इंसान को नहीं दिया है। अलबत्ता इस्लाम में जो आज़ादी है उसका अर्थ पश्चिम में प्राप्त आज़ादी से अधिक गहन व व्यापक है और इसमें नैतिक व आध्यात्मिक आज़ादी भी शामिल है किन्तु इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई इस आज़ादी को उपलब्ध कराने को सरकारों की ज़िम्मेदारी मानते और सचेत करते हुए कहते हैं कि इस्लामी मूल्यों के आधार पर जो आज़ादी होगी उसे कानून, नैतिकता और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ नहीं होना चाहिये और स्वाधीनता भी ऐसी नहीं होनी चाहिये कि बाहर की दुनिया से संबंध ही विच्छेद हो जाये।

 

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने क्रांति के दूसरे क़दम के घोषणापत्र में जो सिफारिशें की हैं उनका सीधा संबंध देश की स्वाधीनता से है और ईरान की विदेश नीति में मुख्य रूप से तीन चीज़ों को ध्यान में रखा जाता है। एक इज़्ज़त दूसरे तत्वदर्शिता और तीसरे मसलहत व हित। वरिष्ठ नेता ने इन तीनों चीज़ों की घोषणा अपने नेतृत्व के आरंभिक काल में ही की थी और सदैव इस के प्रति सचेत थे कि सही तरह से उस पर अमल किया जाये।

इज़्ज़त के सिद्धांत के आधार पर ईरान की विदेश नीति में एसा कोई कार्य अंजाम नहीं दिया जाना चाहिये जिससे ईरानी राष्ट्र की गरिमा व प्रतिष्ठा को आघात पहुंचे और बहुत ही होशियारी व तत्वदर्शिता के साथ अंतरराष्ट्रीय सतह पर इस इज़्ज़त की सुरक्षा की जानी चाहिये। इसी प्रकार मसलहत या हित का जो सिद्धांत है ईरान की विदेश नीति को चाहिये कि वह इस प्रकार कार्य करे जिससे ईरानी जनता की प्रतिष्ठा को आघात न पहुंचे। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इन तीनों सिद्धांतों पर अमल करने के परिणाम में प्राप्त होने वाली कुछ उपलब्धियों की ओर संकेत करते हुए सरकार का आह्वान करते हैं कि पश्चिमी सरकारों के साथ संबंधों में वह इन तीनों सिद्धांतों पर अधिक से अधिक ध्यान दे और इन सरकारों पर भरोसा न करे।

“क्रांति का दूसरा चरण” विज्ञप्ति में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने एक अन्य विषय पर बल दिया है और वह आर्थिक मज़बूती व विकास है। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई ने इस विषय के आरंभ में आर्थिक महत्व के बारे में कहा है कि अर्थ व्यवस्था एक महत्वपूर्ण व निर्णायक चीज़ है। मज़बूत अर्थ व्यवस्था, मज़बूत व सकारात्मक बिन्दु है और वह वर्चस्व स्वीकार न करने का देश का महत्वपूर्ण कारक है जबकि कमज़ोर अर्थ व्यवस्था विदेशियों व दुश्मनों के प्रभाव, पैठ जमाने और हस्तक्षेप की भूमिका है।“

 

इस प्रकार एक मज़बूत अर्थ व्यवस्था के बिना एक देश की राजनीतिक स्वाधीनता भी पूरी व सुदृढ़ नहीं है। ईरान की इस्लामी क्रांति के आने का एक कारण शाह की अत्याचारी सरकार की कमज़ोर अर्थ व्यवस्था थी। इसी कारण इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद आर्थिक समस्याओं और लोगों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए बड़े- बड़े कदम उठाये गये परंतु दुश्मनों विशेषकर अमेरिका की ओर से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध, राजनीतिक दबाव, इराक द्वारा ईरान पर थोपा गया आठ वर्षीय युद्ध और इसी प्रकार देश के कुछ अधिकारियों के कमज़ोर क्रिया- कलाप इस बात के कारण बने कि ईरान आर्थिक दृष्टि से उस स्थान पर नहीं पहुंच पाया जिस पर वह पहुंचना चाहता है। अलबत्ता इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि ईरान ने गत चालिस वर्षों के दौरान अर्थ व्यवस्था सहित विभिन्न क्षेत्रों में ध्यान योग्य प्रगति की है और बड़ी बड़ी उपलब्धियां अर्जित की हैं। रोचक बात यह है कि ईरान ने विभिन्न क्षेत्रों में जो उपलब्धियां हासिल की हैं वे उस समय की हैं जब दुश्मनों की ओर से ईरान पर प्रतिबंध थे और हैं।

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक दृष्टि से विश्व में ईरान का 18वां स्थान है। उसने तांबा, एल्मूनियम, सीमेन्ट और पेट्रोकेमिकल जैसे उद्योगों में उल्लेखनीय प्रगति की है। गेहूं, जौ और चावल जैसे मूल ज़रूरत और कृषि उत्पाद हैं का 90 प्रतिशत भाग का उत्पादन देश के भीतर किया जाता है जबकि बहुत से कृषि और बाग़ उत्पादों का निर्यात भी किया जाता है। वंचित क्षेत्रों में सुविधाएं उपलब्ध कराना देश के अधिकारियों की एक चिंता रही है। इस संबंध में जो सफलाएं मिली हैं उनकी तुलना इस्लामी क्रांति की सफलता के पहले के काल से नहीं की जा सकती। जिन गांवों की गणना पहले वंचित क्षेत्रों में होती थी अब वहां के 80 प्रतिशत लोगों को शुद्ध पेयजल प्राप्त है, 81 प्रतिशत गांवों में गैस की पाइप लाइन हो गयी है और उन सबको बिजली प्राप्त है। दूसरे शब्दों में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद देश में विकास और कल्याण के जो कार्य हुए हैं उसकी वजह से देश में लोगों के जीवित रहने की उम्मीद व उम्र 77 साल हो गयी है। यह उपलब्धियां प्रतिबंधों के काल में हासिल हुई हैं। अलबत्ता वरिष्ठ नेता इन प्रतिबंधों को चुनौतियां समझते हैं। उनका मानना है कि देश की अर्थ व्यवस्था के क्षेत्र में मौजूद कमियों का सुधार करके इनके प्रभाव को कम यहां तक कि खत्म किया जा सकता है। वरिष्ठ नेता का मानना है कि सबसे बड़ी आर्थिक समस्या तेल की आय पर निर्भर होना है और यह देश की अर्थ व्यवस्था का बहुत ही कमज़ोर बिन्दु हो गया है।

वरिष्ठ नेता बल देकर कहते हैं कि देश की अर्थ व्यवस्था के समाधान का मार्ग देश के अंदर है और इस आधार पर उन्होंने वर्षों पहले प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था का सुझाव पेश किया। वर्ष 2014 में देश के विभिन्न विभागों द्वारा कार्यक्रम बनाये गये और वरिष्ठ नेता के माध्यम से उसे सरकार के समक्ष पेश किया गया। वरिष्ठ नेता ने क्रांति के दूसरे चरण की विज्ञप्ति में प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था की विशेषता को इस प्रकार बयान किया कि देश की अर्थ व्यवस्था का विकास अंदर से किया जाये और उसके विकास का आधार देश की नालेजबेस्ड कंपनियां हों, अर्थ व्यवस्था का निजीकरण हो। हर विभाग का सरकारीकरण न किया जाये और देश की आर्थिक क्षमताओं का प्रयोग करके विदेशी कंपनियां लगायीं जायें और ये चीज़ें इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण समाधान हैं।

 

इसी प्रकार इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता प्रतिरोधक अर्थ व्यस्था की नीतियों को व्यवहारिक बनाने के लिए देश के भीतर बनने वाली वस्तुओं के कई साल से अधिक उत्पादन पर बल दे रहे हैं। साथ ही वरिष्ठ नेता इन वस्तुओं की गुणवत्ता को उत्तम बनाये जाने पर बल देते हैं और साथ ही देश के भीतर बनने वाली वस्तुओं की खरीदारी के लिए लोगों को भी प्रोत्साहित करते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने जारी वर्ष का जो नाम उत्पादन को बढ़ावा देने वाला रखा उसे भी इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है किन्तु भ्रष्टाचार से मुकाबला किये बिना न तो वांछित अर्थ व्यवस्था तक पहुंचा जा सकता है और न ही आर्थिक क्षेत्र में मौजूद कठिनाइयों व समस्याओं को दूर किया जा सकता है विशेषकर इसलिए कि ईरान की इस्लामी क्रांति का स्रोत ही उच्च इस्लामी व मानवीय मूल्य हैं और इन मूल्यों का मुख्य आधार न्याय है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता “क्रांति का दूसरा चरण” शीर्षक के अंतर्गत विज्ञप्ति में इस बात की ओर संकेत करते हैं कि न्याय समस्त ईश्वरीय दूतों के उद्देश्यों में सर्वोपरि रहा है और इस्लामी गणतंत्र में उसका विशेष स्थान है। वरिष्ठ नेत बल देकर कहते हैं इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इस दिशा में बड़े कदम उठाये हैं और अलबत्ता उसकी व्याख्या व स्पष्टीकरण में अधिक कार्यो को अंजाम दिया जान चाहिये। वरष्ठि नेता के अनुसार ईरान में न्याय के विस्तृत होने की दिशा में होने वाली कार्यवाहियों को उल्टा दिखाने के लिए दुश्मनों की ओर से जो कार्यक्रम बनाया गया है उसे विफल बनाया जाना चाहिये।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ईरानी अधिकारियों के मध्य भ्रष्टाचार के अधिक होने पर आधारित दुश्मन के निराधार प्रचार को ध्यान में रखते हुए बल देकर कहते हैं कि दूसरी सरकारों विशेषकर शाह की अत्याचारी सरकार के मुकाबले में ईरान की इस्लामी सरकार के अधिकारियों के मध्य भ्रष्टाचार बहुत कम है जबकि शाह की सरकार नीचे से उपर तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। ईश्वर की कृपा से इस व्यवस्था के अधिकांश कर्मचारी, अधिकारी और ज़िम्मेदार स्वयं को भ्रष्टाचार से सुरक्षित रखे हुए हैं। हालांकि जो भ्रष्टाचार है भी वह भी स्वीकार्य नहीं है। इस बात को सबको जान लेना चाहिये कि आर्थिक पवित्रता की शर्त इस्लामी सरकार के समस्त अधिकारियों की वैधता है।“ दूसरे शब्दों में वरिष्ठ नेता इस्लामी व्यवस्था में थोड़े से भ्रष्टाचार को भी अधिक मानते हैं। उन्होंने बारमबार बल देकर कहा है कि निगरानी रखने वाले तंत्रों को पूरी शक्ति व गम्भीरता के साथ इस बुनियादी मुश्किल से मुकाबला करना चाहिये। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि भ्रष्टाचार से मुकाबला उस प्रयास का प्रभावी भाग है जिसे इस्लामी व्यवस्था को न्याय स्थापित करने की दिशा में करना चाहिये।“

इस आधार पर इस्लामी गणतंत्र ईरान में पश्चिम की लिबरल अर्थ व्यवस्था के विपरीत आर्थिक विकास अकेले काफी नहीं है और इस विकास को इस प्रकार होना चाहिये कि न्यायपूर्ण ढंग से समस्त लोगों को उससे लाभांवित होना चाहिये और वंचितता, तथा आर्थिक और सामाजिक वर्गभेद को यथा संभव कम से कम होना चाहिये। वरिष्ठ नेता ने “क्रांति के दूसरे चरण” शीर्षक के अंतर्गत विज्ञप्ति में कहा है कि इस्लामी गणतंत्र में पैसा कमाना न केवल अपराध नहीं है बल्कि उसका प्रोत्साहन भी किया गया है परंतु सार्वजनिक स्रोतों के वितरण में भेदभाव करना और आर्थिक घोटाला करने वालों को अवसर देना बहुत कड़ाई के साथ मना है क्योंकि अगर सार्वजनिक स्रोतों के वितरण में भेदभाव से काम लिया गया तो इन सबका परिणाम अन्याय होगा। इसी प्रकार वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि जिन वर्गों का समर्थन किया जाना चाहिये उनसे निश्चेत रहना किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।