Jun ०२, २०१९ १६:०६ Asia/Kolkata

ईरान की इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था चार दशक के भव्य जीवन के साथ नए चरण में दाख़िल होने जा रही है जो इस व्यवस्था की गतिशीलता का चरण है।

जैसा कि इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने "इस्लामी क्रान्ति का दूसरा क़दम" शीर्षक के तहत एक अहम घोषणापत्र पेश किया। पिछले छह कार्यक्रम में हमने इस घोषणापत्र पर सरसरी नज़र डाली और इस्लामी क्रान्ति के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का दृष्टिकोण बयान किया। अब आपको इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण के घोषणापत्र की अहमियत और उसके प्रभाव पर विस्तार से चर्चा करेंगे।       

इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण का घोषणापत्र इस नज़र से अहमियत रखता है कि यह इस्लामी गणतंत्र ईरान के इस्लामी सभ्यता की स्थापना और अंततः उसे मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के हवाले करने का ख़ाका पेश करता है। इस घोषणापत्र में इस उच्च आकांक्षा को व्यवहारिक बनाने के उपाय के वर्णन के लिए पिछले 40 साल के उतार चढ़ाव भरे मार्ग की ओर इशारा हुआ है कि किस तरह सभी मुश्किलों के बावजूद ईश्वर की कृपा और जनता के समर्थन व मौजूदगी से यह मार्ग तय हुआ और इस्लामी गणतंत्र को पोथे से एक विशाल पेड़ में बदल दिया है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस्लामी क्रान्ति की विशेषताओं के वर्णन में इसकी महा उपलब्धियों को संक्षेप में जवान नस्ल को बताते हैं और उन पर इस्लामी व्यवस्था के भविष्य को निर्भर बताते हुए इस संदर्भ में उनसे मूल्यवान अनुशंसाएं की हैं।

जैसा कि इस बात का उल्लेख किया कि आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के घोषणापत्र का विषय इस्लामी क्रान्ति के उज्जवल अतीत और भविष्य में उसकी प्रगति के मार्ग का चित्रण है। लेकिन हर बात से पहले इस बात का उल्लेख ज़रूरी है कि इस्लामी क्रान्ति क्या है और उसके बाद इस्लामी क्रान्ति की विशेषताओं और दूसरी क्रान्तियों और इसमें अंतर की समीक्षा करेंगे।

 

शब्दकोष में क्रान्ति का अर्थ स्थिति में बदलाव है। क्रान्ति की अनेक परिभाषाएं की गयी हैं जिनका सार है लोगों का क्रान्ति के उद्देश्य व आकांक्षाओं के लिए  संस्थाओं, संगठनों, संबंधों, देश के राजनैतिक व सामाजिक ढंचे में मूल बदलाव  के लिए शासन या सरकार को गिराने के लिए लोगों का कोशिश करना। इस परिभाषा के अनुसार, बहुत से आंदोलनों और विद्रोहों को क्रान्ति नहीं कहा जा सकता क्योंकि प्रायः इस तरह के आंदोलनों के लक्ष्य सीमित, सतही होता है और उनका कार्यक्रम स्पष्ट नहीं होता और कुछ सशस्त्र विद्रोह छोटे गुट की ओर से सत्ता हासिल करने के लिए होते हैं। अलबत्ता इस बीच क्रान्ति के तत्व और पृष्ठिभूमि भी बहुत अहमियत रखती है। एक आंदोलन उस वक़्त वजूद में आता है जब लोग मौजूदा स्थिति, भ्रष्टाचार, सरकार की अयोग्यता की वजह से अप्रसन्न हों। लेकिन सिर्फ़ अप्रसन्नता काफ़ी नहीं होती बल्कि उनके मन में उच्च उद्देश्य व आकांक्षा होनी चाहिए कि क्रान्ति को सही स्थिति की ओर मोड़ सकें। एक क्रान्ति के घटने की दूसरी शर्त लोगों का बलिदान देने के लिए तय्यार रहना और उनमें क्रान्तिकारी भावना व आत्म विश्वास का होना ज़रूरी है। अंत में यह कि एक सक्षम, दूरदर्शी व जागरुक हस्ती या संगठन मौजूद हो जिसकी बात सब लोग मानें ताकि क्रान्तिकारी फ़ोर्स को संगठित व एकजुट रख सके और उसे दिशा निर्देषित करके क्रान्ति को सफलता तक पहुंचाए। बहुत सी क्रान्तियां सफल नहीं होती क्योंकि उनमें क्रान्ति को सफल बनाने वाले एक या कई तत्व नहीं होते।

ईरान की इस्लामी क्रान्ति की तरह ऐसी कम क्रान्तियां होंगी जिनमें एक वास्तविक क्रान्ति की विशेषताएं मौजूद रहीं और उन्हें वजूद देने वाले तत्व के प्रभाव व्यापक व शक्तिशाली रहे। ईरान की जनता भ्रष्ट पहलवी शासन की नीतियों और आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सैन्य कार्यवाहियों से बहुत नाराज़ थी और अपनी इस्लामी सांस्कृति तथा इमाम ख़ुमैनी के जागरुकता लाने वाले उपदेश के आधार पर इस्लामी शासन चाहती थी। ईरानी जनता ने व्यवहारिक रूप से साबित किया कि इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए वह त्याग व बलिदान से लेकर शहादत को गले लगाने के लिए तय्यार है और उसके इमाम ख़ुमैनी को सच्चे, ईमानदार, सदाचारी, वीर व दूरदर्शी नेता के रूप में स्वीकार किया था। इन तत्वों के पहले से तय्यार होने की वजह से ईरान की इस्लामी क्रान्ति सफल हुयी और अमरीका, पश्चिमी सरकारों और इसी तरह क्षेत्र की उसकी पिट्ठु सरकारों का कड़े विरोध भी इस्लामी क्रान्ति को सफल होने से नहीं रोक सका। इस तरह यह क्रान्ति देश व विदेश के स्तर पर बहुत से बदलाव का स्रोत बनी।                     

क्रान्ति कई तरह की होती हैं। प्रायः उद्देश्य व आकांक्षा क्रान्ति का स्वरूप तय करते हैं। मिसाल के तौर पर फ़्रांसी की क्रान्ति की आकांक्षा स्वतंत्रता थी जबकि रूस की क्रान्ति मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर वजूद में आयी लेकिन ईरान की जनता की क्रान्ति जो 1979 में सफल हुयी, पहली क्रान्ति थी जिसका उद्देश्य इस्लाम व अध्यात्म था। इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस अंतर को साफ़ शब्दों में बयान करते हुए फ़रमाया थाः "दुनिया की दूसरी क्रान्तियों और ईरान की इस्लामी क्रान्ति के बीच अंतर है। दुनिया की दूसरी क्रान्तियां ईश्वर के लिए नहीं है। ईरान की इस्लामी क्रान्ति ईश्वर के लिए है। यह क्रान्ति आरंभ से ही अध्यात्म के लिए रही है। यह ईश्वर के नाम को ऊपर रखने के लिए थी और आख़िर तक इसी के लिए है।" इस आधार पर ईरान की इस्लामी क्रान्ति स्वतंत्रता, स्वाधीनता, ख़ुशहाली व सुरक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक आकांक्षाओं के साथ साथ आध्यात्मिक आकांक्षाओं को भी अहमियत देती है और इनकी तृप्ति को बहुत अहम मानती है। यही वजह है कि पिछले 4 दशकों में समाज में धार्मिक व आध्यात्मिक मूल्यों व विचारों को फैलाने के लिए बहुत कोशिश हुयी जिसका काफ़ी असर पड़ा।

ईरान की जनता की क्रान्ति की इस्लामी आकांक्षाएं हमेशा बाक़ी रहेंगी क्योंकि  ये इंसानी स्वभाव व प्रवृत्ति के अनुकूल है। क्योंकि इस तरह के मूल्यों को इंसान हमेशा से अहमियत देता रहा है। इस बारे में इस्लामी क्रान्ति के दूसरे चरण के घोषणापत्र में आया हैः "हर चीज़ के लिए एक उपयोगी समय सीमा की कल्पना की जा सकती हे लेकिन इस धार्मिक क्रान्ति की वैश्विक आकांक्षाएं इस नियम से अपवाद हैं। इन आकांक्षाओं की प्रासंगिकता कभी भी ख़त्म नहीं होगी क्योंकि मानव प्रवृत्ति सभी दौर में एक जैसी रहती है। आज़ादी, नैतिकता, अध्यात्म, न्याय, स्वाधीनता, सम्मान, तर्क और भाईचारे का संबंध सिर्फ़ किसी एक समाज या पीढ़ी से नहीं होता कि बस उस दौर तक चमके और फिर अपनी चमक खो दे। ऐसे लोगों की कल्पना नहीं की जा सकती जिनका इन मूल्यों से दिल भर जाए।"

इस्लामी क्रान्ति की आकांक्षाएं ऐसी हैं कि उनके आसानी से लागू होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मिसाल के तौर पर आज तक कोई भी व्यवस्था व देश  ऐसा नहीं है जो समाज में वास्तविक न्याय को क़ायम कर पाया हो। इसी तरह समाज में नैतिकता और अध्यात्म धीरे धीरे फैलता है। इसी तरह किसी इंसान या समाज के लिए यह कल्पना नहीं कर सकते कि वह नैतिकता व अध्यात्म की परिपूर्णतः तक पहुंच गया है और अब उसे और आगे जाने की ज़रूरत नहीं है। जैसा कि इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई बारंबार बल दे चुक हैं कि इस्लामी गणतंत्र ईरान न्याय, अध्यात्म, नैतिकता और इंसान की प्रवृत्ति के अनुकूल दूसरी पवित्र आकांक्षाओं को फैलाने की ओर क़दम बढ़ा रहा है और इस मार्ग में किसी भी कोशिश से पीछे नहीं हटेगा।

इस्लामी क्रान्ति के मूल्यों के बाक़ी रहने के रहस्य को समझने के लिए दो बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा। एक यह कि क्यों ज़्यादातर मुसलमान और ग़ैर मुसलमान भी इस जनक्रान्ति का समर्थन करते और उसे अपने लिए आदर्श मानते हैं। इस विषय की अहमियत उस वक़्त स्पष्ट होगी जब हम क्रान्ति के मूल्यों के ख़िलाफ़ क्रान्ति के विरोधी मीडिया के निराधार व द्वेषपूर्ण प्रचारों से अवगत हों जिनका प्रचार क्रान्ति के विरोधी मीडिया क्रान्ति की सफलता के पहले से करते आ रहे हैं।

दूसरा बिन्दु जिससे ईरान की इस्लामी क्रान्ति की आकांक्षाओं के इस्लामी व मानव प्रवृत्ति के अनुकूल होना स्पष्ट होता है वह 40 साल बीतने के बाद भी ईरान की मुसलमान जनता की इस क्रान्ति से निष्ठा है। ईरानी जनता ने इस दौरान बहुत सी कठिनाइयां झेलीं। विरोधियों व दुश्मनों के जनसंपर्क के साधन हमेशा इस कोशिश में लगे रहे कि ईरानी राष्ट्र  को यह समझाएं कि उसके क्रान्तिकारी नारे सही नहीं थे लेकिन ईरानी राष्ट्र आज भी अपनी क्रान्ति का समर्थन करता है। जैसा कि आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने क्रान्ति के दूसरे चरण के घोषणापत्र में कहाः दुनिया के पीड़ित राष्ट्रों में बहुत कम राष्ट्र नज़र आते हैं जो अपने काम को अंजाम तक पहुंचा सके और सरकारों को बदलने के अलावा क्रान्तिकारी आकांक्षाओं की रक्षा कर सके, लेकिन ईरानी राष्ट्र की भव्य क्रान्ति जो मौजूदा दजर की सबसे बड़ी क्रान्ति है एक मात्र क्रान्ति है जिसने अपनी आकांक्षाओं व उद्देश्य की तनिक भी अनदेखी नहीं की और इस तरह इस भव्य क्रान्ति को चालीस साल हो गए। ख़तरनाक दुष्प्रचारों के बावजूद इस क्रान्ति ने अपने मूल नारों की रक्षा की और अब यह क्रान्ति आत्म निर्माण, समाज निर्माण व सभ्यता की जड़ों को मज़बूत करने के दूसरे चरण में दाख़िल हो गयी है। यह ऐसी हालत में है कि दूसरी क्रान्ति के उद्देश्य या तो पूरे नहीं हुए या बहुत विलंब से पूरे हुए लेकिन उसमे कमी रही। मिसाल के तौर पर फ़्रांस की क्रान्ति के दसियों साल बाद भी वहां अत्याचारी शाही शासन बाक़ी रहा और जनता को उसके दृष्टिगत आज़ादी नहीं मिली जैसा कि रूस की साम्यवादी क्रान्ति भी जनता की आर्थिक व राजनैतिक आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सकी।