दुनिया के विख्यात कलाकार पलायन को कैसा देखते हैं? - 2
अमेरिकी राजनेता और अमेरिकी लोग भी इस बात को पसंद करते हैं कि उन्हें पलायन करने वाले राष्ट्र के नाम से संबोधित किया जाये।
अमेरिका वह जगह है जिसका चयन कुछ लोगों ने बेहतर जीवन और आज़ादी आदि के कारण किया है परंतु अमेरिका में किन लोगों को आने की अनुमति दी गयी और जब वे अमेरिका पहुंचे तो उनके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया गया जब तक हम इस बात को न जानें तब तक हमारे लिए अमेरिका की वर्तमान स्थिति को जानना व समझना असंभव है।
सबल संभावना यह है कि जब आप इंटरनेट पर पलायन शब्द को तलाश करें तो बहुत सारी जानकारियां आपके सामने आयेंगी और उनमें से कुछ में यह बताया गया होगा कि पलायन करने या रहने के लिए सबसे अच्छा कौन सा देश है।
क्या आपने अब तक पलायन के बारे में कभी सोचा? पलायन के बारे में आपके मस्तिष्क में क्या है? क्या जो आपके मन- मस्तिष्क में है वह आपके आस -पास मौजूद वास्तविकताओं के आधार पर है? या जो दूसरों ने आपसे कहा है या संचार माध्यमों से जो सुना या पढ़ा है वह तस्वीर आपके मन -मस्तिष्क में है?
दिन- प्रतिदिन जानकारियों में होती वृद्धि और सरकारों तथा औपचारिक स्रोतों द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारियों से यद्यपि यह मदद मिली है कि इस ज़माने में पलायन सरल कार्य बन सके परंतु अब भी औपचारिक स्रोत सारी जानकारियों व वास्तविकताओं को बयान नहीं करते हैं। पलायन के संबंध में बहुत सी जो सामाजिक समीक्षाएं हुईं हैं वे इस बिन्दु पर बल देती हैं कि पलायन या उससे संबंधित चीज को समझने के लिए केवल आंकड़ों, लिखी हुई चीज़ों यहां तक एतिहासिक पुस्तकों को पढ़ने को काफी नहीं समझना चाहिये बल्कि इस संबंध में जो फिल्में बनी हैं उन पर भी ध्यान देना चाहिये। जो फिल्में हैं उनमें से अधिकांश एक समाज की परिस्थिति की सूचक और उसे बयान करती हैं और सामाजिक चीज़ के बारे में हम जो समीक्षा करते हैं उसके बारे में उसका बहुत प्रभाव हो सकता है।
सिनेमा में पलायन एक अच्छा व रोचक विषय है और बहुत सी फिल्मों में पलायन के कारणों और पलायनकर्ताओं के भविष्य की समीक्षा की गयी है और यह वह चीज़ है जिस पर अध्ययन के एक विषय के रूप में ध्यान दिया गया है।
जब से फिल्में बनायी जाने लगी हैं लगभग तभी से फिल्म बनाने वालों ने पलायन और पलायनकर्ताओं से संबंधित विषयों पर ध्यान दिया है और इस संबंध में बहुत सी फिल्में भी बनायी हैं और हमने इससे पहले वाले कार्यक्रम में उनमें से कुछ की ओर संकेत भी किया था।
इस बात को जानना रोचक होगा कि हालीवुड का संबंध भी पलायन के इतिहास से है। पलायनर्ता यहूदियों ने अधिकांशतः अपना बचपना निर्धन परिवारों में बिताया है और जर्मनी, पोलैंड, हंगरी और रूस में यहूदियों के जो ग़रीब मोहल्ले होते थे उनमें ये यहूदी रहते थे। 19वीं शताब्दी में अंत में अपनी आर्थिक दुर्दशा को बेहतर करने के लिए पूर्वी यूरोप से अमेरिका पलायन किया। आरंभ में जब यहूदी पलायन करके अमेरिका गये तो उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। पलायनकर्ता यहूदी न तो हर कार्य कर सकते थे और न ही मनमानी वहां जा सकते थे जहां उनका दिल चाहे। यह यहूदी न्यूयार्क और शिकागो में रहते थे। ये वे जगहें थीं जहां जंगल के कानून थे और हिंसा व निर्दयता आम बात थी। परिणाम स्वरुप वहां ज़िन्दगी बहुत सख्त थी परंतु पलायनकर्ता यहूदियों ने हर संभव मार्ग से पैसा कमाना अच्छी तरह सीख लिया था।
जो भी पलायन कर्ता यहूदी था वह कोई न कोई काम करता था कोई किसी के यहां काम करता था, कोई कपड़ा बेचने की दुकान में काम करता था तो कोई भंगारी आदि का काम करता था। उस समय इस प्रकार का कार्य करने वालों को समाज में इज्जत की नज़र से नहीं देखा जाता था। पलायन करने वाले दूसरे यहूदियों का यही हाल था परंतु इस रास्ते से उन्होंने पैसा कमाना अच्छी तरह सीख लिया था।
पलायनकर्ता यहूदी हमेशा काम बदलते रहते थे यहां तक कि उनमें से बहुत से नये उद्योग सिनेमा और थियेटर से जुड़ गये। जो ड्रामे होते थे अधिकांशतः उन्हें गरीब व निर्धत बस्तियों में दिखाया जाता था और ये मोहल्ले व बस्तियां ग़लत व अनुचित कार्यों के लिए उपयुक्त व बेहतर स्थान हुआ करते थे। इसके अलावा बहुत से परिवार इस बात को प्राथमिकता देते थे कि कोई दूसरा मनोरंजन होना चाहिये और पैसे वाले तथा गणमान्य वर्ग के लोग थियटर जाते थे।
उस वक्त थियटर में काम करना कोई इज़्ज़त का काम नहीं था और यही कारण है कि पलायन कर्ता यहूदियों के लिए उचित स्थिति उपलब्ध हो गयी थी। हमने अभी बताया कि पलायनकर्ता यहूदी हमेशा अपना काम बदला करते थे इसका एक फायदा यह हुआ कि वे लोगों की रुचियों और उनकी पसंद व नापसंद को अच्छी तरह जानते थे। इसलिए लोगों को ज्यादा से ज्यादा सिनेमा की ओर खींचने के लिए वे बहुत कुछ करते थे। जैसे वे थियेटर को खूब सजाते थे, उनमें लाइटिंग और संगीत आदि का अच्छा प्रबंध करते थे। इसी प्रकार वे थियेटर में मशहूर अभिनेताओं व अभिनेत्रियों का प्रयोग करते थे। ये समस्त चीज़ें थियटर में आने वालों के लिए रोचक व आकर्षण का कारण थीं। इस प्रकार थियेटर का काम फलने- फूलने लगा और यहूदी धीरे- धीरे फिल्म निर्माण के मैदान में भी आ गये। यहूदियों ने ड्रामे दिखाने और फिल्म बनाने के लिए अलावा फिल्म बेचने का भी काम शुरु कर दिया।
इसके बाद जो यहूदी सिनेमा उद्योग से जुड़ गये थे उन पर और दूसरे यहूदियों पर अमेरिकी अदालत ने दबाव डाला तो उन्होंने एक नया पलायन आरंभ किया। इस बार वे अमेरिका के पूर्वी तट से पश्चिमी किनारे यानी यानी केलिफोर्निया गये। केलिफोर्निया में चारों मौसम होते हैं और वह फिल्म बनाने के लिए बहुत उचित स्थान था। पलायनकर्ता यहूदियों ने वहां पर फिल्म बनाने के कई स्टूडियो बनाये और स्टूडियो के इस समूह को हालीवुड कहा जाने लगा।
हमने बताया था कि चार्ली चैप्लिन एक पलायनकर्ता था और उसने अपनी कुछ फिल्मों में पलायन की चर्चा की है और अमेरिकी समाज को टीका- टिप्पणी की दृष्टि से देखा है। एलिया काज़ान एक अन्य पलायनकर्ता फिल्म निर्माता है। इसने पलायन के विषय को विशेष दृष्टि से देखा है। एलिया काज़ान को 20वीं शताब्दी के मध्य में अमेरिकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति समझा जाता था। वह 20वीं शताब्दी का एक सफल पलायनर्ता था अलबत्ता कुछ का मानना है कि वह 20वीं शताब्दी का एक बदनाम पलायनकर्ता था। उसका जन्म 1909 में तुर्की के इस्तांबोल नगर में हुआ था और 1913 में वह न्यूयार्क चला गया। एलिया काज़ान ने 1940 के दशक में कई ड्रामे दिखाये और इन ड्रामों में उसने अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन किया कि अभिनेताओं से किस प्रकार काम लिया जा सकता है और उसकी कोशिशों का परिणाम था कि कई प्रसिद्ध व सफल ड्रामों को दिखाया गया था।
एलिया काज़ान की एक फिल्म “अमेरिका-अमेरिका” है। यह फिल्म उसने 1963 में बनाई है। इस फिल्म में उसने अपने चाचा की ज़िन्दगी और तुर्की के अनातोली से अमेरिका पलायन को दिखाया है और इस फिल्म के निर्माण में वह नये चेहरों को लाया है। “अमेरिका-अमेरिका” नाम की जो एलिया काज़ान की फिल्म है वह उसकी दूसरी फिल्मों से बुनियादी अंतर रखती है। यह उसकी बहुत अच्छी फिल्म है। इस फिल्म में पानी के जहाज़ में बैठे उन पलायनकर्ताओं को दिखाया गया है जो न्यूयार्क के एलिस द्वीप पहुंचते हैं। एलिया काज़ान इस फिल्म के एक भाग में अमेरिकी समाज में मौजूद वास्तविकताओं के एक भाग को उजागर करता है।
एलिया काज़ान ने” अमेरिका- अमेरिका” नाम की एक किताब भी लिखी है और उसी किताब के आधार पर इसी नाम की फिल्म भी बनाई है। इस फिल्म में एलिया काज़ान की वास्तविकता प्रेमी जो शैली है वह प्रशंसनीय है और अमेरिकी समाज में लोगों की जो जीवन शैली है उस पर उसने गम्भीर टीका- टिप्पणी की है। इस फिल्म का जो नायक है वह एक जवान है जिसने अमेरिकी समाज में रहकर अनुभव प्राप्त किया है। साथ ही वह अपनी मातृभूमि के बारे में भी नई जानकारियों को प्राप्त करता है।
अमेरिका के विपरीत द्वितीय विश्य युद्ध के बाद यूरोप ने अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पलायनकर्ताओं का स्वागत किया और दुनिया में पलायनकर्ताओं को स्वीकार करने वाला एक क्षेत्र बन गया परंतु हालिया तीन दशकों में और अफ्रीक़ा, एशिया और बालकन से पलायनकर्ताओं के रेले के बाद यूरोप पलायनकर्ताओं के संबंध में कड़ाई करने लगा और धीरे -धीरे आर्थिक और मानवीय पहलु कम हो गया और उसका स्थान राजनीतिक और सुरक्षा लक्ष्यों ने ले लिया। यूरोपीय देशों की ओर जिन लोगों ने पलायन किया उसका महत्वपूर्ण कारण इस महाद्वीप की आर्थिक स्थिति का बेहतर होना और विकासशील देशों में असुरक्षा, बेकारी और पिछड़ापन था। यूरोपीय संघ की ओर बेतहाशा पलायन इस बात का कारण बना कि यूरोपीय बाज़ार की जो आवश्यकता थी वह उससे भी अधिक हो गया। यूरोपीय देशों में पलायनकर्ताओं की संख्या में वृद्धि, विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों और दूसरी समस्याओं के अस्तित्व में आने का कारण बनी। साथ ही यूरोप में आर्थिक संकट के अस्तित्व में आने, सार्वजनिक सेवाओं के बजट में कमी आने के बाद और यूरोप में आम लोगों की अप्रसन्नता में वृद्धि होने के बाद पलायनकर्ताओं के साथ भेदभाव की नीति अपना ली गयी। इसी प्रकार यूरोप अमेरिका में 11 सितंबर को होने वाली घटना का दुरुपयोग करके पलायन को सुरक्षा और आतंकवाद से जोड़ दिया और वह पलायन तथा पलायनकर्ताओं से जुड़े मामलों के संबंध में कड़ाई से पेश आने लगा और इस संबंध में वह अपने कानूनों को सीमित करने के प्रयास में है। इस समय पलायन के संबंध में यूरोप की नीति अच्छे पलायनकर्ताओं को स्वीकार करने और स्वयं से यूरोप जाने वाले पलायनकर्ताओं को स्वीकार न करने की है।
यूरोपीय संघ ने पलायनकर्ताओं की समस्या का स्थाई समाधान करने की दिशा में अपनी नीति का आधार इस संघ के सदस्य देशों के क्षणिक हितों को बनाया है और दिन- प्रतिदिन पलायनकर्ताओं के संकट व समस्याओं को अधिक कर रहा है। हालिया कुछ दशकों में पलायन की ख़बरें यूरोपीय संचार माध्यमों की सुर्खियों में होती थीं और इस संबंध में कुछ फिल्में भी बनी हैं। उदाहरण स्वरूप एक फिल्म का नाम मैडिटेरियन है। इस फिल्म का निर्माण 2015 में हुआ था और इसमें अफ्रीका से इटली पलायन करने वालों की हालत को दिखाया गया है। इस फिल्म में एक एसे बाप को दिखाया गया है जो केवल अपनी बच्ची के साथ है और उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है। उसकी बच्ची अफ्रीका के बड़े मरुस्थल और भूमध्य सागर की कठिनाइयों को सहन करती है ताकि वह उस जीवन को प्राप्त कर सके जिसे उसने सोच रखा है जबकि उसके सोचे हुए और वास्तविक जीवन में ज़मीन- आसमान का अंतर है।
बोर्कीनाफासो का रहने वाला कूड्स सीहोन नाम का एक जवान है जो इस फिल्म में पलायनकर्ता का मुख्य रोल निर्भाता है। उसके रोल के साथ फिल्म आगे बढ़ती है। इस फिल्म में उस अजनबी देश की स्थिति दिखाई जाती है जो उन्हें पसंद नहीं होती है। फिल्म निर्माता यह नहीं बताता कि लोगों की सोच और मन- मस्तिष्क में क्या गुजर रहा है परंतु वह उन लोगों की दिनचर्या को बयान करता है जिन्हें समाज में कोई महत्व नहीं दिया जाता है और समाज में उन्हें किनारे लगा दिया गया है। मेडिटेरियन फिल्म वास्तव में उन इंसानों की सच्ची तस्वीर पेश करती है जो केवल अच्छे और एसे जीवन की खोज में हैं जिसमें इंसान रह सकता हो। बहरहाल यूरोप पलायन करने से भी यह खोज किसी परिणाम पर नहीं पहुंचती है।