मसऊद साद सलमान हमदानी- 4
हमने बताया कि अमीर सअदुद्दौला अबून्नजम मसऊद सलमान हमदानी गज़नवी व सलजूक़ी काल से अत्याधिक प्रसिद्ध शायर थे जो भारत में रहते थे।
वह मूल रूप से ईरान के हमदान क्षेत्र के थे लेकिन उनके पिता शाही दरबार में कार्यरत थे इस लिए उनका जन्म सन 1046 - 1033 के बीच लाहौर में हुआ था । मसऊद ने लाहौर और गज़नी में प्रसिद्ध गुरुओं से साहित्य व कला के अलावा घुड़सवारी , तीर का कमान चलाना तथा रण कौशल भी सीखा। मसऊद सअद अपनी योग्यता की वजह से युवाकाल में ही दरबार से जुड़ गये और सुलतान इब्राहीम के आदेश से वह राजा के बेटे सैफुद्दीन महमूद के साथी बन गये और उसी के साथ भारत चले गये। मसऊद सअद सलमान , सैफुद्दीन महमूद के निकट अत्याधिक महत्व रखते थे लेकिन ईर्ष्यालुयों ने इतनी शिकायतें की कि अन्ततः सुल्तान इब्राहीम गज़नवी के आदेश से युवराज, सैफुद्दौला और उसके सभी साथियों और निकटवर्तियों को जेल में डाल दिया गया। उनके साथ मसऊद सअद थी थे और इस तरह से मसऊद सअद को अपनी आयु के क़ीमती दस वर्ष जेल में बिताने पड़े। इस दौरान मसऊद की हर कविता में अपने परिवार से दूरी का उनका दर्द झलकता है। जेल से रिहाई के बाद वह राजदरबार से दूर हो गये और बड़े- बड़े पद प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया किंतु शाही दरबार से पूरी तरह से वह दूर नहीं हो पाए और पूरी उम्र , दरबार में सांस्कृतिक गतिविधियों में बिता दी। उन्होंने अपनी आयु के अंतिम दिनों में गज़नवी दरबार के पुस्तकालय की ज़िम्मेदारी संभाल ली थी। अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार मसऊद सअद सलमान ने , सन 1121 या 1122 ईसवी में गज़नी में अंतिम सांस ली।
मसऊद सअद की कविताओं में क़सीदा अर्थात दूसरों की प्रशंसा और जेल में बिताए पलों जैसे दो भाव सब से अधिक नज़र आते हैं। जेल में कही गयी उनकी कविताओं के बारे में हमने पिछले कार्यक्रम में चर्चा की थी। फारसी साहित्य में " हबसिया" उस कविता को कहते हैं जो जेल में कही गयी हो और जिसमें समस्याओं और कठिनाइयों का वर्णन हो। इस प्रकार की कविता वास्तव में कवि के व्याकुल मन से निकलती है और यह एक पीड़ित मनुष्य के दिल की आवाज़ होती है जो पीड़ा व दर्द में डूबी हुई होती है। कवि इस प्रकार से अपने मन की पीड़ा, काल कोठरी की तकलीफों, अपने निर्दोष होने और शासकों के अन्याय व अत्याचार से लोगों को बेहद प्रभावशाली तरीक़े से अवगत कराता है।
ईरान में ऐसे बहुत से कवि गुज़रे हैं जिन्होंने अपनी आयु का एक भाग , जेल में बिताया था और उस दौरान की तकलीफों और समस्याओं को कविता के रूप में लोगों के सामने पेश किया। अलबत्ता इस प्रकार की कविताओं में कवियों ने केवल अपनी पीड़ा का ही वर्णन नहीं किया है बल्कि बहुत से कवियों ने अपनी इस प्रकार की कविताओं में उस काल के राजनीतिक वातावरण और परिस्थिितियों का भी बहुत अच्छी तरह से चित्रण किया है। इस प्रकार के कवियों में मसऊद सअद सलमान, खाक़ानी, शेरवानी और नासिर खुसरो का नाम लिया जाता है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि " हबसिया" कविता में भाषा, शब्द और कविता का भाव भिन्न होता है लेकिन इस प्रकार की कविताओं में प्रायः विषय और तत्व एक समान होते हैं। मसऊद सअद सलमान, ऐसे पहले फारसी भाषा के हबसिया शैली में कविता लिखने वाले ईरानी कवि हैं जिन्हें राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों ने जीवन के बहुमूल्य 18 साल " सू" " दहक" " नाय" और " मरंज" जेलों में बिताने पर विवश कर दिया। लेकिन यह समय इस लिए भी महत्वपूर्ण हो गया क्योंकि इस दौरान और जेल में रह कर उन्हों ने फारसी साहित्य में एक नयी काव्य शैली को जनम दिया।
मसऊद सअद ने जेल में क़ैद के दौरान कटु अनुभवों, पीड़ा और दुख दर्द को अलग अलग शैलियों में बयान किया है। कभी उन्होंने शिकायत की तो कभी अतीत पर हसरत की तो कभी अपने अकेलेपन और परिजनों से दूरी पर आंसू बहाए। उन्होंने अपनी मनोदशा को कविता के रूप में ढाल दिया और यूं फारसी साहित्य में कविता की एक नयी शैली बन गयी। मसऊद सअद सलमान की कविताओं में अपने देश और अपनों से दूरी का दर्द सब से अधिक नज़र आता है इसके साथ ही उनकी कविताओं को पढ़ कर यह पता चलता है कि उन्हें अतीत में अपने सुख व सुविधा को महत्व न देने का बेहद दुख था। उन्होंने अपनी कविताओं में बार बार यह दोहराया है कि उन्होंने अपने अतीत की क़द्र नहीं की और उनके पास जो कुछ था, जब वह हाथ से चला गया तब उन्हें उन चीज़ों का महत्व समझ में आया। इस तरह से उनकी कविताओं में मनुष्य के स्वभाव के एक एेसा पहलू उजागर होता है जो बहुत से लोगों के लिए समस्या जनक है।
हालांकि जेल और यातना का कविताओं में वर्णन बहुत अच्छी चीज़ नहीं है और यह मनुष्य की कोमल प्रवृत्ति से मेल नहीं खाती लेकिन इसके साथ यह भी एक सच्चाई है कि इस प्रकार की कविताओं में, कवि का वह भाव और वह संदेश भी छुपा होता है जिसे वह खुल कर नहीं कह पाता। इसके साथ ही इस प्रकार की कविताओं में मानव स्वभाव का अनोखा और नया रूप नज़र आता है और विशेषज्ञ इसे किसी भी कवि का अत्याधिक सच्चा व शुद्ध भाव कहते हैं क्योंकि इसमें बनावट की कहीं कोई गुंजाइश नहीं होती। कवि जेल की दीवारों के पीछे अपने मन की गहराइयों में हो रही उथल पुथल को उसके असली रूप में लोगों के सामने कविता के रूप में पेश कर देता है इसके साथ ही वह अपने मन की उन इच्छाओं और मन में उठने वाले उन पछतावों के तूफान से भी लोगों को अवगत कर देता है जो आम हालात में वह कभी न करता।
मसऊद सअद की इस प्रकार की कविताओं को , प्रसिद्ध साहित्यकार उस्ताद ज़र्रीन कूब द्वारा वर्णित शुद्ध कविता का रूप कहा जा सकता है। इस दौरान और जेल की यातनाओं के दौरान मसऊद सअद ने जो कविताएं कही हैं उनमें , आम हालात में कही गयी उनकी कविताओं की तुलना में कहीं अधिक सच्चाई व शुद्धता व स्पष्टता है। मसऊद सअद सलमान ने जेल में कही गयी अपनी सभी कविताओं में धनवानों और शक्तिशाली लोगों का नाम तक नहीं लिया है और न ही उनकी प्रशंसा की है, न किसी की तारीफ की न ही किसी से कुछ मांगा है बल्कि इस प्रकार की सभी कविताओं में उन्होंने जेल की कठिनाइयों, परदेसी होने के दर्द, जेल की लंबी लंबी रातों, अपने बच्चों से दूरी और अपने निर्दोष होने की बात की है और चूंकि यह सब कुछ उन पर गुज़रा था और अपनी ऊपर गुज़रने वाली मुसीबत को पूरी सच्चाई के साथ उन्होंने कविता में पिरोया है इस लिए उनकी इस प्रकार की कविताए बेहद प्रभावशाली हैं और यही वजह है कि फारसी साहित्य में उनकी इस प्रकार की कविताओं की मिसाल नहीं मिलती ।
मसऊद सअद सलमान की कविताओं में जगह जगह अतीत की यादें नज़र आती हैं, वह बार बार अपने अतीत को याद करते, अपने बच्चों को अपने दोस्तों को याद करते और फिर दुख के सागर में डूब जाते और उनकी आंखों से आंसू जारी हो जाते, वीराने में एक दूरस्थ्य क़िले में कै़द वह स्वंय को इतना अकेला पाते हैं कि कहते हैं कि इस किले की जेल में उनका अकेलापन इतना अधिक है कि दोस्त तो दोस्त उसकी याद भी उनसे मिलने नहीं आती और अब उनकी दोस्ती , दुख व यातना से हो गयी है जो एसा दोस्त है जो कभी उनका साथ नहीं छोड़ता। एक कविता में वह कहते हैं कि मेरा दुख, प्यारे दोस्त की तरह , हर रात मेरे पास लिपट कर सो जाता है।
मसऊद सअद की कविताओं में हसरत और आकांक्षाओं की भी भरमार है। बीती आयु पर अफसोस, मौत का डर, गिरते स्वास्थ्य का अफसोस, अपनों से दूरी का दर्द, परदेसी होने की पीड़ा आदि उनकी कविताओं में जगह जगह नज़र आती है। इतने सारे दुख 18 वर्षों तक मसऊद सअद के साथ कुछ इस तरह से रहे कि वह उनके अस्तित्व का हिस्सा बन गये और फिर वह एकांतवासी हो गयी तथा निराशा उनके मन में घर कर गयी थी और उम्मीद की एक किरण भी उन्हें नज़र नहीं आती थी। दुख से छुटकारा और पीड़ा के निदान के लिए कोशिश करते करते वह थक हार कर बैठ गये थे अपनी एक कविता में कहते हैं कि अब तो दुख बांटने वाला कोई नज़र नहीं आता और न ही कोई जाना पहचाना चेहरा नज़र आता है। उनकी निराशा की यह दशा हो गयी थी कि वह अपनी मृत्यु की कामना करने लगे थे क्योंकि उन्हें रिहाई की उम्मीद नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब हो चुका था, आंखों से सही से सुझाई नहीं देता था लेकिन जेल की कठिनाइयां थीं कि खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं। एक कविता में वह कहते हैं कि इन दुखों में ईश्वर की सौंगंध मुझे जान की कीमत पर मौत का सौदा करना अच्छा लगता है।