दुनिया के विख्यात कलाकार पलायन को कैसा देखते हैं? - 4
सीरिया के एलेप्पो नगर की एक दीवार पर लिखा एक वाक्य, सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था।
दीवार पर यह लिखा थाः " मातृभूमि, होटल नहीं है कि जब उसमें सेवा ठीक न हो तो उसे छोड़ दिया जाए, हम यहीं रहेंगे।" यह वास्तव में सीरिया के उन नागरिकों के विचार का प्रतिनिधित्व करता है जो अपने देश में रहे और जिन्होंने आतंकवादियों से लड़ कर अपने देश की रक्षा की। वैसे यह विचार, किसी एक देश या राष्ट्र से संबंधित नहीं है। हर देश में इस प्रकार के लोग होते हैं जो हर हाल में और समस्त कठिनाइयों के बावजूद अपने ही देश में रहना पसन्द करते हैं। अपनी मातृभूमि से प्रेप को राष्ट्रवाद भी कहा जाता है लेकिन यहां पर यह भी स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि राष्ट्रवाद वही भला है जिसका अर्थ अपनी मातृभूमि से प्रेम होता है और बस। यदि इसमें अन्य देशों की जनता से घृणा का भाव शामिल हो जाए तो फिर वह राष्ट्रवाद, देश प्रेम नहीं कुछ और होता है। निश्चित रूप से देशप्रेम की भी सीमा होती है और उसके लिए मान्यताओं व मानवीय मूल्यों पर भी ध्यान देना आवश्यक है किंतु यह भी एक वास्तविकता है कि पलायन को एक व्यक्तिगत अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। यदि यह पलायन अंतरराष्ट्रीय नियमों के आधार पर हो तो फिर उसके मार्ग में बाधा भी नहीं उत्पन्न की जा सकती।
अन्य देशों के फिल्मोद्धयोग की भांति ईरान में भी हालिया दशकों में पलायन के विषय पर काफी अच्छी और प्रभावी फिल्में बनायी गयी हैं। पिछले कार्यक्रमों में हमने बताया था कि ईरानी फिल्म निर्माताओं ने, ईरान में उपस्थित पलायनकर्ताओं के विषय पर कई फिल्में बनायी हैं। हमने उनमें से कुछ फिल्मों का उल्लेख भी किया था। आज के कार्यक्रम में भी हम इसी प्रकार की कुछ फिल्मों का परिचय करा रहे हैं।
ईरान में पिछले कुछ दशकों के दौरान, पलायन के विषय पर भांति- भांति की फिल्में बनी हैं यहां तक कि कामेडी फिल्मों में भी इस विषय को उठाया गया है। इन फिल्मों को देख कर पलायन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। " नीची ऊंचाई" नामक फिल्म को लगभग तीन दशक पहले बनाया गया था। इस फिल्म को तीन दशक पहले पलायन की स्थिति की जानकारी के लिए एक अच्छा स्रोत कहा जाता है। इस फिल्म की पटकथा अस्गर फरहादी ने लिखा है और फिल्म का निर्देशन , इब्राहीम हातमी क्या, ने किया है। इस फिल्म में जासिम नाम के एक व्यक्ति की कहानी दिखायी गयी है जो पलायन की उत्सुकता तथा अच्छे जीवन और बेहतर रोज़गार के सपने संजोए अपने सभी रिश्तेदारों के साथ विमान में यात्रा करता है। वह उस विमान को हाईजैक करने की योजना रखता है। इस फिल्म में पलायन को बेहतर जीवन की आकांक्षा की पूर्ति का साधन दिखाया गया है और इसके खतरों पर प्रकाश डाला गया है हालांकि गतंव्य पर पहुंचने के बाद भी अच्छे भविष्य की कोई गांरटी नहीं होती।
ईरान के प्रसिद्ध फिल्मकार, दाऊद मीर बाक़ेरी की पहली फिल्म, " आदम बर्फी" या " बर्फ का आदमी" नामक फिल्म में अब्बास खाकपूर नाम के एक एसे व्यक्ति की कहानी बतायी गयी है जिसे अपना भविष्य, अमरीका में नज़र आता है और इस देश तक पहुंचने के लिए बहुत अधिक प्रयास करता है। वह भांति भांति के रूप बदलता है यहां तक कि महिला बन कर तुर्की के एक नागरिक से विवाह करके अमरीका जाने का भी प्रयास करता है। इस फिल्म में हर हाल में पलायन करने के प्रयास की आलोचना की गयी है और फिल्म में पलायन के क्रूर और नकरात्मक रूप को बहुत अच्छे तरीक़े से दर्शाया गया है।
निश्चित रूप से पलायन के विषय को जिस महत्वपूर्ण फिल्मनिर्माता ने उठाया है वह अस्गर फरहादी हैं। इन्होंने " नीचे ऊंचाई" " एली के बारे में " अतीत" और " नादिर से सीमीन का अलगाव" नामक फिल्मों में पलायन के विषय को उठया है। इन फिल्मों में अस्ग़र फरहादी ने पलायन की भावना और कारकों पर प्रकाश डाला है। " नादिर से सीमीन का अलगाव" नामक फिल्म में नादिर और सीमीन नामक दंपत्ति की विवादों से भरी जीवनी है। सीमीन, पलायन करना चाहती है लेकिन उसका पति, नादिर, ईरान नहीं छोड़ना चाहता। नादिर का पिता बीमार है और वह अपने पिता को इस हाल में नहीं छोड़ना चाहता। उनकी एकलौती बेटी के पास दो कठिन विकल्पों में से एक विकल्प चुनने का अवसर है। मां के साथ पलायन करे या फिर पिता के साथ अपने देश में रहे। फिल्म के अंत में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि बेटी ने क्या फैसला किया। " नादिर से सीमीन का अलगाव" नामक फिल्म, पलायन के बारे में वास्तविकता पर आधारित एक अत्यन्त महत्वपूर्ण फिल्म है।
" अतीत" नामक फिल्म भी, असगर फरहादी की एक अन्य फिल्म है जिसमें पलायन पर चर्चा की गयी है किंतु यह चर्चा, मुख्य कहानी के साथ साथ , पलायनकर्ताओं के बच्चों की समस्याओं पर प्रकाश डालती है जिनका जन्म एक नये देश में हुआ है। इस फिल्म में पलायन कर्ताओं की सच्चाई से हमें अवगत कराया जाता है कुछ इस प्रकार से कि फिल्म देखने वाला यह कहने पर मजबूर हो जाता है कि जगह बदलने से अतीत नहीं बदलता। इस प्रकार की सभी फिल्मों में यह दिखाया गया है कि रोज़गार, व्यक्तिगत समस्याएं और जीवन शैली आदि वे कारण हैं जिनकी वजह से लोग युरोपीय या अमरीकी देशों की ओर पलायन करने का फैसला करते हैं लेकिन इस फैसले के बावजूद अधिकांश फिल्मों में पलायन को , समस्याओं का तत्कालिक और गलत समाधान दर्शाया गया है। ईरानी फिल्मों में अधिकांश पलायनों का अंजाम अच्छा नहीं होता। वास्तव में इस ओर संजोए जाने वाले सपनों के विपरीत, उस पार कोई स्वप्नलोक नहीं होता इसी लिए ईरानी सेनेमा में पलायन को एक कभी न खत्म होने वाली कटुता के रूप में देखा जाता है। ईरान में पलायन पर बनने वाली जिन फिल्मों का हमने उल्लेख किया है उनमें भी, मुख्य भूमिका निभाने वाला पलायन कर्ता, अपना सपना पूरा नहीं कर पाता।
ईरान में गत चालीस वर्षों के दौरान लगभग 45 एसी फिल्में बनी हैं जिनमें पलायन पर चर्चा की गयी है। अधिकांश फिल्मों में, ईरान छोड़ने के बाद, पलायनकर्ताओं के जीवन को दर्शाया गया है। इन में से अधिकांश फिल्मों में पलायनकर्ता, गंतव्य पर पहुंचने और सच्चाई से सामना करने के बाद, सुरक्षा के लिए पुनः अपने देश लौट आता है। सामूहिक रूप से यह कहा जा सकता है कि इन सभी फिल्मों में अधिकांश पलायनकर्ताओं का संबंध, मध्यमवर्ग या उस से ऊपर के वर्ग से संबंध रखने वालों से होता है जबकि सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है। अधिकांश फिल्मों में पलायनकर्ता, या तो डाक्टर है या फिर कलाकार। सभी फिल्मों में डाक्टरों को पुरुष, सकारात्मक और स्मार्ट व हैंडसम दिखाया गया है। फिल्मों में दिखाया गया है कि ईरान में क्रांति के बाद और इराक़ की ओर से ईरान पर युद्ध थोपे जाने के बाद, पलायनकर्ताओं का पहला गुट, उन डाक्टरों का था जिनकी मोटी कमाई थी और वह ईरान से भाग गये लेकिन सच्चाई इससे अलग है। ईरान में एसा कुछ नहीं हुआ और अधिकांश डाक्टरों ने, युद्ध के दौरान मोर्चे पर जाकर घायलों का उपचार किया। इसी प्रकार, इस तरह की अधिकांश फिल्मों में, पलायन को पारिवारिक रूप में दिखाया गया है जिसपर अधिक अध्ययन की ज़रूरत है। ईरानी सेनेमा में एक तरफ यह दिखाया जाता है कि पलायनकर्ता भाग रहे हैं और दूसरी तरफ यह कि पलायन अच्छा फैसला नहीं है लेकिन फिर आखिर में सब अच्छा हो जाता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दो तिहाई फिल्मों में, पलायन को नकारात्मक रूप में पेश किया गया है और निर्माताओं ने इन फिल्मों में पलायन को मौत की ओर क़दम और एक बहुत बड़ी गलती बताया है किंतु जैसे जेसै यह फिल्में वर्तमान से निकट होती जाती हैं उसमें नकारात्मकता की कमी नज़र आने लगती है।
ईरानी सेनेमा में समाज की चुनौतियों से मुकाबले के लिए पलायन, अधूरा समाधान है। ईरानी फिल्मों में इस विचार को बहुत अच्छी तरह से पेश किया गया है लेकिन महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इन फिल्मों में इस पलायन के विकल्प की ओर संकेत नहीं किया गया है। खेद की बात है कि आत्म विश्वास, राष्ट्र निर्माण की भावना तथा देश को पर्यटक की दृष्टि से न देखने की भावना का ईरानी फिल्मो में अभाव है। हालिया वर्षों में तो पलायन के विषय को प्रायः कामेडी के रूप में पेश किया गया है जिन्हें बाक्स आफिस को ध्यान में रख कर बनाया गया है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पलायन कर्ताओं में पश्चिम में आदर्शलोक की कोरी कल्पना की सच्चाई को बड़े अच्छे और सच्चे रूप में, ईरानी सेनेमा में चित्रण किया गया है। ईरानी सेनेमा में हालांकि दर्शकों से यह कहा जाता है कि मातृभूमि से भागने से, समस्याओं से छुटकारा नहीं मिलता और पलायन, सफलता की कुंजी नहीं है लेकिन इसके बावजूद दर्शक को एसी दशा में छोड़ दिया जाता है जहां उसमें अपने देश में रुक कर देश को बनाने की भावना मज़बूत नहीं होती। इस लिए वर्तमान समय में ईरानी सिनेमा में पलायन के विषय पर बनने वाली फिल्मों के लिए सब से अधिक ज़रूरी यह है कि उसमें उन चोटियों को दिखाया जाए जिस पर विजय, देश में रुक कर और संघर्ष करके ही प्राप्त की जा सकती है।