Jul १७, २०१९ १९:४५ Asia/Kolkata

हमने विभिन्न कालों में ईरान के नगरों के रूप और ढांचे के बारे में चर्चा की थी।

इस दौरान हमने कुछ इमारतों और उनकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला था। हर नगर और उसकी शिल्प कला और निर्माण शैली वास्तव में विभिन्न कारकों के अंतर्गत होती है। अर्थ व्यवस्था, संपन्नता, मौसम, भौगोलिक स्थिति, संस्कृति व धर्म जैसे विभिन्न कारक हैं जो किसी क्षेत्र के विशेष निर्माण कला को आकार व रूप देते हैं। ईरान में गत सदियों में हर नगर में कुछ विशेष प्रकार के स्थल हुआ करते थे जो प्रायः नगर के मध्य में होते थे। यह स्थल , सरकारी क़िला, बाज़ार, मस्जिद होते थे और उनके आस पास आवासीय क्षेत्र होते थे जहां आम लोग रहते थे।

 

सरकारी दुर्ग प्रायः एक निर्धारित स्थल पर होता था और उसके चारों ओर ऊंची ऊंची दीवारे होती थीं और विशालकाय  दरवाज़ा होता था जिसकी वजह से देखने वाला बड़ी आसानी से यह समझ जाता था कि यह सरकारी दुर्ग है। इस प्रकार की निर्माण कला में , प्रायः शासक और राजा का निवास , उसके निकट रिश्तेदारों और बड़े अधिकारियों के घर तथा कार्यालय आदि उसी दुर्ग में स्थित होते थे।

 

दुर्ग को फारसी में " अर्ग" कहते हैं जिसका अस्ली अर्थ, बड़े से क़िले के भीतर एक छोटा क़िला होता है। इस छोटे से किले में बुर्जियां होती हैं जहां खड़े होकर सिपाही पहरा देते हैं। ईरान में प्राचीन क़िले वास्तव में  प्राचीन असिरिया काल से संबंध रखते हैं जिसके लिए खुरासाबाद क़िले का उदाहरण दिया जाता है किंतु अब केवल उसका नाम ही बचा है। ईरान के इतिहास में विभिन्न कालों में तथा इसी प्रकार इस्लामी जगत में , बहुत से दुर्ग बनाए गये। वर्तमान ईरान, मिस्र, सीरिया, तुर्की  यहां तक कि बैतुलमुक़द्दस में भी विभिन्न क़िले बनाए गये। अस्ल में दुर्ग की शिल्पकला को स्पष्ट करना थोड़ा कठिन काम है क्योंकि दुर्गों को विभिन्न आाकारों और शैलियों में बनाया जाता रहा है और फिर विभिन्न कालों में उनकी मरम्मत हुई जिसकी वजह से धीरे धीरे उनका आरंभिक रूप कि जिसमें उन्हें बनाया गया था, खत्म हो गया और कुछ चिन्हों से ही यह पता लगाया जा सकता है कि उस क़िले का आरंभिक रूप क्या रहा होगा।

 

यह तो निश्चित है कि दुर्ग को सैनिक उपयोग के लिए बनाया जाता था और सैनिकों के लिए एक प्रकार से छावनी होता था। यही वजह है कि दुर्ग के भीतर जो राजा का महल होता या अतिथियों के स्वागत के लिए जो भवन बनाया जाता उसका रूप दुर्ग के रंग व रूप से बिल्कुल अलग होता था। सैनिक प्रयोग की वजह से या फिर रोब व दबदबे के लिए , दुर्ग को हमेशा ऐसा बनाया जाता था कि उसे देख कर मज़बूती का आभास हो और कठोरता साफ नज़र आये। दुर्ग के विभिन्न हिस्सों के बारे में तरह तरह की डरावनी कहानियां, काल कोठरियों और यातना गृह के बारे में क़िस्से यह बताते हैं कि जिस जगह क़िला होता था वहां के आस पास के लोगों में उसका कितना भय होता था।

 

 

क़िले की दीवारें और मुख्य द्वार प्रायः ऊंचे होते थे क्योंकि उनका सैनिक महत्व था ताकि बाहर से किसी के लिए भीतर घुसना सरल न हो। इन ऊंची दीवारों में थोड़ी ऊंचाई पर छोटे छोटे रौशनदान बनाए जाते थे जहां से किले के बाहर नज़र रखी जा सकती थी। किले की दीवार बेहद मोटी बनायी जाती थी जिसे तोड़ना बड़ा मुश्किल काम होता था और उसमें समय लगता। किले का दरवाज़ा भी केवल कुछ विशेष अधिकारियों की अनुमति से ही खुलता और बंद होता था।

 

 ईरान की विशेष भौगोलिक स्थित है और ईरानी पठार, मेसोपोटामिया और सिंधु जैसे दो हरे भरे मैदानों के बीच में स्थित है इस लिए सदा ही विभिन्न जातियों और समुदायों के आवागमन का मार्ग रहा है। कभी कभी यह आवागमन, विवाद और युद्ध का भी कारण बनता था या फिर बहुत सी जातियां , ईरान पर धावा बोलने के लिए ही इस क्षेत्र की यात्रा करती थीं। कैस्पियन सागर के पूर्व से ईरान आने वाली मसागति जाति के लोगों, मंगोलों, तैमूर और पूरब से उज़बेक लोगों के आक्रमणों को इसी प्रकार के युद्धों में समझा जाता है। पश्चिम से भी एलेक्ज़ेंडर के आक्रमण और रोम व उस्मानी साम्राज्य के निरंतर आक्रमणों की वजह से ईरान की राजनीतिक व सैनिक सुरक्षा के लिए हमेशा खतरा बना रहता था। इसी लिए इस प्रकार के खतरनाक क्षेत्र में रहने की वजह से ईरानियों ने मज़बूत कि़लों के निर्माण को अपनी ज़रूरत समझा।

ईरानी क़िलों को जहां निर्माण क्षेत्रों की दृष्टि से दो भागों में बांटा जा सकता है वहीं उन्हें , निर्माण में प्रयोग किये जाने वाले मसालों के लिहाज़ से भी अलग अलग क़िस्मों में बांटा जा सकता है। मैदानी इलाक़ों में बनने वाले क़िलों की मुख्य डिज़ाइन चौकोर या आयताकार होती है जिसके चारों कोनों पर गोल गोल बुर्जियां बनायी जाती थीं। इन क़िलों में गारे और कच्ची ईंटों का प्रयोग किया जाता था और बहुत ही कम किले मिलेंगे जिनमें पक्की ईंटों का भी प्रयोग किया गया हो। इस प्रकार के किलों की दीवारें बेहद मोटी हुआ करती थीं जिन्हें बनाने में कच्ची ईंटों का प्रयोग किया जाता था यह दीवारें इतनी मोटी बनायी जाती थीं कि कहीं कहीं उनकी मोटाई चार मीटर तक भी मिलती है। इस प्रकार के कुछ क़िलों के चारों ओर , खाई खोदी जाती थी और क़िले तक पहुंचने के लिए अस्थाई पुलों का इस्तेमाल किया जाता था जिन्हें ज़रूरत पड़ने पर हटा भी लिया जाता था। दूरस्थ्य क्षेत्रों में खतरा होने पर आस पास के ग्रामीण और किसान भी क़िले में जाकर पनाह लेते थे और खतरा टलने तक वहीं रहते थे। ईरान के केन्द्र में स्थित नतन्ज़ में " हन्जन" नामक क़िला इसी प्रकार का एक किला है जहां कुछ बरस पहले तक स्थानीय लोग रहते थे। उसकी बुर्जी और दीवारें बहुत बड़ी हैं। दीवार के अंदर टेढ़ी मेढ़ी गलियां हैं जो अन्त में जाकर किले के मुख्य मार्ग में जाकर मिल जाती हैं। किले के एक भाग में दो मंज़िला इमारतें भी हैं जहां निचली मंज़िल में पशुओं को रखा जाता, खाना पकाया जाता या फिर सामान रखा जाता जबकि कमरे और अतिथिगृह ऊपर भाग में होता था।  इस प्रकार के किले अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग तरीक़ों और मसालों से बनाये गये हैं और उनका डिज़ाइन भी ज़रूरत के हिसाब से अलग अलग है।

 

ईरान में बनाए जाने वाले दूसरे प्रकार के क़िले हैं वह हैं जो पहाड़ी क्षेत्रों में बनाए जाते थे। इस प्रकार के किलों में प्रायः बिना कटाई के पत्थर होते थे जो पहाड़ों से या फिर  नदियों से लाए जाते थे। इन पत्थरों को चूने से मज़बूत किया जाता था। पहाड़ी किले के बाहर गहरी खाई होती थी ताकि दुश्मन के लिए खाई को पार करके क़िले में प्रवेश संभव न हो। दीवारों और बुर्जियों के छोर पर धनुष चलाने वालों के लिए कंगूरे बनाए गये होते थे जहां वह दुश्मनों पर तीर बरसाते थे। उत्तरी ईरान के गीलान प्रान्त में रूदखान किला, उन पहाड़ी क़िलों में से है जिन्हें इस शैली में बनाया गया है। क़िलों में शासक का आवास, टीले के ऊपरी हिस्से पर होता था और लोगों के घर, भंडार, बैरक  और मस्जिद आदि निचले हिस्सों  में और मुख्य द्वार से निकट बनाए जाते थे।

 

ईरान सहित विश्व के कई क्षेत्रों में इस प्रकार के क़िलों को विशेष रूप से रक्षा के लिए बनाया गया है और उनकी शैली थोड़ा भिन्न है । इस प्रकार के क़िलों को दो या तीन चार मंज़िला बनाया जाता था और वह चौकोर होते थे। निचली मंजिल की दीवारें बेहद मोटी होती थीं और उन्हें पत्थर से बनाया गया होता था। इस प्रकार के क़िलों में एक प्रवेश द्वार होता था। हवा और रौशनी के लिए बेहद छोटे छोटे रौशनदान बने होते थे और वह इतने ऊपर होते थे जहां तक पहुंच संभव नहीं होती और प्रायः एक ईंट के आकार के होते थे। किले के भीतर सीढ़ियां बनायी गयी होती थीं जो पूरी तरह से लकड़ी की होती थीं। इस प्रकार के किलों के भीतर की निर्माण शैली, आवासीय घरों की भांति होती थी और किले के बाहरी भाग का भयावह रूप, अंदर नज़र नहीं आता था। इस प्रकार के क़िले, बलकान, सीरिया और ईरान के दक्षिणी क्षेत्रों में नज़र आते थे जिनमें से कुछ आज तक  बचे हैं।

 

इस्फहान के निकट " क़ूरतान" किला ज़ायन्दे रूद नदी के तट पर विशाल क़िला है जिसे कच्ची ईंट और गारे से बनाया गया दुनिया का दूसरा सब से बड़ा भवन कहा जाता है। यह क़िला " वरज़ने" नामक क्षेत्र में स्थित है। इस क़िले को " क़ूरतान " या " गूरतान" नामक गांव में बनाया गया है और उसके निर्माण की तारीख चौथी हिजरी क़मरी सदी और दसवीं ईसवी सदी है। लेकिन वहां पर मिले मिट्टी के बर्तनों और कुछ अन्य चीज़ों की वजह से कई पुरातत्व विदों ने इस क़िले को हख़ामनी काल से संबंधित बताते हैं। ईरान के इतिहास में बताया गया है कि बहराम पंचम या बहराम गूर के सत्ता काल में इस इलाक़े में एक किला था जिसे बाराम शाह कहा जाता था। इस सैनिक क़िले में हथियारों और सामारिक चीज़ों का एक बड़ा भंडार था जिसके अवशेष आज भी इस क्षेत्र में मिलते हैं। पचास बरस पहले तक, क़ूरतान गांव के सारे लोग, इसी क़िले में रहते थे लेकिन फिर धीरे धीरे वह इस किले से निकल गये और बाहर अपने घर बना लिये। किले के बचे हुए भागों में लोगों के रहने के लिए मकानों के ज़बरदस्त डिज़ाइन और उन्हें दुश्मनों और डाकुओं से बचाने के लिए किये गये उपायों के चिन्ह नज़र आते हैं। (Q.A.)

 

 

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