Jul ३०, २०१९ १५:२२ Asia/Kolkata

हमने बताया था कि शराब पीना या मदिरापान करना, एक ख़तरनाक बर्ताव और अपराध, दुर्व्यवहार, हत्या, आत्महत्या और ड्राइविंग के समय मौत का कारण बनता है क्योंकि अल्कोहल के मन और मस्तिष्क पर बहुत ख़राब प्रभाव पड़ते हैं और इससे मनुष्य का व्यक्तित्व और उसके बर्ताव बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं। 

यहां पर इस बात का उल्लेख भी महत्वपूर्ण है कि चूंकि अल्कोहल या शराब मनुष्य में सही फ़ैसला करने की शक्ति कम कर देती है इसीलिए शराब पीने वाला व्यक्ति बहुत से अपराध और त्रासदियां अंजाम दे बैठता है।

हमने बताया था कि अल्कोहल का प्रभाव आपके शरीर पर उसकी पहली घूंट से ही शुरू हो जाता है। अर्थात शराब की थोड़ी सी भी मात्रा का सेवन करने से वह मनुष्य के खून में मिल जाती है और निर्जलीकरण का कारण बनती है। अधिक मात्रा अल्कोहल पीने से आपको उच्च रक्तचाप, अनियमित हृदय धड़कन और कभी-कभी दिल का दौरा भी पड़ सकता है, जिसके कारण आपकी जान भी जा सकती है।

शराब पीने वालों की किडनी ख़राब होने की संभावना अधिक होती है, क्योंकि शराब पीने से मूत्र निर्माण ज्यादा होता है, जिससे किडनी पर अधिक दबाव पड़ता है। लम्बे समय तक लगातार शराब का अत्यधिक सेवन करने से किडनी ख़राब हो सकती हैं।

शराब कालीवर पर सीधा असर पड़ता है, क्योंकि शराब सबसे पहले लीवर में ही पहुंचती है। चूँकि अल्कोहल (alcohol) का 90% विघटन लीवर में ही होता है, इसलिए जब आप बहुत अधिक मात्रा में शराब का सेवन करते हैं तो आपका लीवर खराब (liver damage) हो सकता है।

शरीर को जान बूझकर किसी भी प्रकार से नुक़सान पहुंचाना जिसके चिन्ह और प्रभाव नज़र आएं उसे सेल्फ़ हर्म या सेल्फ इंज्युरी  कहते हैं। मनुष्य पहला नुक़सान जो स्वयं को पहुंचाता है वह संयोगवश हो या किसी की देखा देखी यह काम किया गया हो किन्तु जब मनुष्य मानसिक दबाव की कमी का आभास करता है और अपना क्रोध छोड़कर, भीतरी प्रसन्नता का आभास करते हुए या अपने ऊपर नियंत्रण की भावना का आभास करता है। शरीर पर चाकू या किसी तीखी चीज से कट लगा लेना,बाहों या उंगलियों को दांतों से काटना,अपनी आंखों को बहुत ज्यादा प्रेस करना,किसी तरह का जहर खा लेना,किसी जलती या गर्म चीज से खुद को जला लेना, पुराने घावों को खुद ही बार-बार कुरेदकर ताजा कर लेना, शरीर पर बहुत ज्यादा पियर्सिंग या टैटू करवाना, दीवार पर सिर ठोंकना या अपने ही बाल बेदर्दी से नोचना, किसी भारी चीज से खुद को मारना या अपनी हड्डी तोड़ लेना, आदि।

जब हम बुरी तरह से अपनी भावनाओं में घिर जाते हैं, तो इससे छुटकारा पाने के लिए सेल्फ़ हर्म या सेल्फ इंज्युरी  का सहारा लेते हैं। कभी मनुष्य पाप या शर्म की भावना के कारण स्वयं को नुक़सान पहुंचाता है। इस आधार पर यह दोनों भावनाएं, ख़ुद को नुक़सान पहुंचाने का कारण बनती है। अलबत्ता जब कोई व्यक्ति ग़ुस्से में रहता है या अपने सगे संबंधियों की मौत या मुसीबत के समय स्वयं को मारता पीटता है लेकिन इस काम को सेल्फ इंज्युरी  या सेल्फ़ हर्म नहीं कहा जाता।

 

सेल्फ इंज्युरी  कि जिसे कुछ लोग स्वयं पर हिंसा का नाम देते हैं, किसी विशेष वर्ग, जाति सा सांस्कृतिक, सामाजिक व आर्थिक वर्ग से विशेष नहीं है किन्तु निर्धनता, नस्लीभेदभाव, लिंग भेद, समस्याएं, सामाजिक और आर्थिक सीमित्ताएं तथा पारिवारिक मतभेद जैसे कारक इस सेल्फ इंज्युरी  जैसी समस्याओं के जनक माने जाते हैं। बताया जाता है कि सेल्फ इंज्युरी  का अधिकतर शिकार युवा होते हैं किन्तु बाक़ी उम्र में साठ साल तक यह समस्या देखी गयी है।

इंसान की मानसिक अवस्था का गड़बड़ाना प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरह से उसके पूरे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है। कई बार दिमाग का नियंत्रण इस कदर गड़बड़ाता है कि वह खुद को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं चूकता। सेल्फ हार्म या इंज्युरी डिसऑर्डर इसी श्रेणी में आता है, लेकिन थोड़ी सतर्कता और सही इलाज से पीड़ित को इससे बाहर भी निकाला जा सकता है।

चूंकि यह मुख्य तौर पर मनोविज्ञान से जुड़ी समस्या है अत: काउंसलिंग इसमें बहुत मददगार साबित हो सकती है। इसके अलावा पीड़ित के साथ भावनात्मक तौर पर किसी की उपस्थिति भी उसे उबरने में मदद कर सकती है। कई बार चूंकि पीड़ित अनजाने में खुद पर इतना अत्याचार कर सकता है कि उसकी जान पर भी बन आए। अत: उसे अकेला छोड़ना घातक हो सकता है।

सही इलाज के अलावा पीड़ित की मनोदशा को समझने और धैर्य रखकर उसका साथ देने से लाभ मिल सकता है। चिकित्सक इस तकलीफ में मनोवैज्ञानिक तौर पर इलाज करने के साथ ही चोट के लिए भी औषधियों का उपयोग करते हैं। इसके लिए पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस थैरेपी, बिहेवियर थैरेपी, सायकोथैरेपी, फैमिली थैरेपी तथा दवाइयों का उपयोग होता है क्योंकि अक्सर यह चोट उग्र मानसिक आवेश और जुनून के पलों में पहुंचाई जाती है, अत: ऐसे पलों को टाल कर भी बहुत हद तक परेशानी पर काबू पाया जा सकता है। कोशिश करें कि पीड़ित जिस जगह पर रह रहा है वहां कोई भी चोट पहुंचाने लायक वस्तु न छोड़ें, उसके आस-पास सकारात्मकता और जीवन से भरपूर क्षण पैदा करें ताकि वह खुशी भरा जीवन जीने की ओर बढ़ सके।

सेल्फ इंज्युरी, सेल्फ हार्म या सेल्फ कटिंग या सेल्फ म्यूटिलेशन की जद में आने वाले पीड़ित जाने-अनजाने खुद को चोट पहुंचाते हैं और इसके परिणाम में अक्सर उनके शरीर पर कटने, जलने या चोट के निशान नजर आते हैं। अक्सर शरीर के टि्श्यूज को इससे नुकसान पहुंचता है। यह एक उलझन भरी मानसिक स्थिति है। इस पीड़ा से गुजर रहे लोग अक्सर कई तरह के उपाय अपनाते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि सेल्फ़ इंज्युरी को आप एक प्रकार का नशा कह सकते हैं जिसके लिए डाक्टर के पास जाना बहुत आवश्यक है। यही कारण है कि सेल्फ़ इंज्युरी की कई वजहें हो सकती हैं। कुछ मनोचिकित्सकों का यह मानना है कि यह विषय एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चला जाता है। उदाहरण स्वरूप कुछ परिवार अपने बच्चों को यह संदेश देते हैं कि वह अपने शरीर का ध्यान रखें और वे स्वयं भी अपनी सुरक्षा के लिए बहुत संवेदनशील होते हैं। कुछ परिवार साहसी और निडर होते हैं, वह अपने शरीर के बारे में हर प्रकार का सौदा करने को तैयार हो जाते हैं और यही चीज़ अपने बच्चो को भी पहुंचा देते हैं। जैसा कि कुछ लोगों का यह मानना है कि जीवन दर्दनाक है और स्वयं को नुक़सान पहुंचा कर शांति प्राप्त की जा सकती है और वह जाने अनजाने में अपने बच्चों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करते हैं।

कुछ विशेषज्ञ इस प्रकार का काम करने के कारण बयान करते हैं। यह काम नहीं बल्कि नशा है, अर्थात काम के बाद शांति का आभास जिसे नशे का नाम दिया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप जब पैरा ग्लाइडर से लोग उड़ते हैं, तो हवा में उड़ने से पहले उनमें डर रहता है किन्तु जब वह सुरक्षित ज़मीन पर उतर जाते हैं तो उन्हें बहुत अच्छा लगता है और यही अच्छा लगना उन्हें दोबरा हवा में उड़ने के लिए प्रेरित करता है।

जो लोग सेल्फ़ इंज्युरी का शिकार होते हैं वह अनेक कारणों से इस काम को अंजाम देते हैं। वह यह समझते हैं कि इस काम से वह अपनी परेशानियों और समस्याओं को दूर करके शांति का अभास करता है। मनुष्य यह सोचता है कि वह अपने शरीर को नुक़सान पहुंचाकर सुख व शांति का आभास कर सकता है।

इस आधार पर सेल्फ़ इंज्युरी के उपचार का एक मार्ग यह है कि व्यक्ति यह समझे कि वह अपनी भावनाओं को कुछ शब्दों द्वारा बयान करे। इस व्यक्ति को क्रोध और ग़ुस्से की हालात से बचना चाहिए और यदि वह इन हालात में अपने क्रोध पर नियंत्रण कर लेता है तो वह स्वयं को इन हालात से बचा सकता है और ख़ुद को ख़ुश रख सकता है।  (AK)

 

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