Jul ३१, २०१९ १४:४८ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कह चुके हैं कि ईरान की इस्लामी क्रांति के साथ वर्चस्ववाद की शत्रुता उतनी ही पुरानी है जितनी की इस्लामी क्रांति की आयु। 

अपनी वर्चस्ववादी प्रवृत्ति के दृष्टिगत वर्चस्ववाद, इस्लामी क्रांति को सहन नहीं कर सकता।  यह विचारधारा, इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर स्थापित होने वाली इस्लामी शासन व्यवस्था को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करती क्योंकि वह अत्याचार के विरुद्ध है।  इसी आधार पर स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने अमरीका को "बड़े शैतान" का नाम दिया।  अमरीका ने आरंभ से ही ईरान की इस्लामी शासन व्यवस्था को गिराने के लिए हर संभव प्रयास किये जो आज भी जारी हैं।  इस संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि अमरीकी सरकार, इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के जन्म से ही उसकी घोर शत्रु रही है और उसका लक्ष्य इस व्यवस्था को गिराना है।

ईरान की इस्लामी क्रांति को विफल बनाने के लिए अमरीका की पहली कार्यवाही, इस्लामी क्रांति के शत्रु गुटों को उकसाना और उनको इस व्यवस्था के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार करना था।  वाशिग्टन का यह मानना था कि विरोधी गुटों का समर्थन करके ईरान की इस्लामी क्रांति से अस्तित्व में आई नई इस्लामी सरकार को गिराकर ईरान के टुकड़े किये जा सकते हैं।  इस अमरीकी षडयंत्र के संदर्भ में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ईरान के विरुद्ध अमरीका ने पहला काम यह किया कि क्रांति विरोधी गुटों को हिंसक कार्यवाही के लिए सशस्त्र किया।  हालांकि अमरीकी इस बात को समझने में पूरी तरह से विफल रहे कि जब ईरान की क्रांतिकारी जनता उस तानाशाही व्यवस्था की कमर तोड़ सकती है जो हर हिसाब से सशक्त थी तो फिर उसके सामने छोटे-मोटे आतंकवादी गुटों की क्या बिसात है।  जैस ही ईरान में अमरीका का समर्थन प्राप्त आतंकवादी गुट सक्रिय हुए देश में स्वयंसेवी बलों ने इन प्रथक्तावादी गुटों का डटकर मुक़ाबला करके उनकी कमर तोड़ दी।  हालांकि अमरीका आज भी उन लोगों और गुटों का खुलकर समर्थन करता है जो इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरोधी हैं।  आतंकवाद से संघर्ष का दावा करने वाली यह सरकार आज भी एमकेओ नामक उस आतंकवादी गुट का समर्थन करती है जिसके हाथ हज़ारों ईरानियों के ख़ून से सने हुए हैं।

ईरान की इस्लामी क्रांति के विरुद्ध अमरीकी षडयंत्र का एक भाग यह रहा कि उसने इस्लामी सरकार को गिराने के लिए विद्रोह की योजना बनाई।  इस्लामी क्रांति की सफलता के अवसर पर इसी उद्देश्य से एक अमरीकी जनरल, "राबर्ट हायज़र" ईरान पहुंचे थे।  उनका उद्देश्य, ईरान की सेना की सहायता से क्रांति को विफल बनाना था।  लेकिन हुआ यह कि ईरान की तत्काल सेना ने क्रांति के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया जिसके कारण अमरीकी जनरल को उल्टे पांव वापस अमरीका जाना पड़ा।

इस्लामी क्रांति के विरुद्ध अमरीकी षडयंत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण आयाम, सद्दाम द्वारा उसपर सैन्य हमला करवाना था।  सद्दाम का यह सोचना था कि इस समय ईरान में क्रांति आई है और चारो ओर उथल पुथल मची हुई है ऐसे में ईरान पर हमला करके अपने लक्ष्य को सरलता से प्राप्त किया जा सकता है साथ ही ईरान के एक भाग पर नियंत्रण भी बनाया जा सकता है।  वह ईरान को खण्डित करके इस्लामी शासन व्यवस्था को गिराना चाहता था।  वाशिग्टन ने सद्दाम को युद्ध के लिए प्रेरित करने के साथ ही व्यापक स्तर पर उसका आर्थिक, सैनिक और प्रचारिक समर्थन भी किया।  ईरान की जनता ने स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हुए थोपे गए युद्ध में देश की रक्षा की।  अपने देश की रक्षा में ईरानी जनता ने हर प्रकार का सहयोग करके शत्रु के दांत खट्टे कर दिए।  इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई, इस्लामी क्रांति के दूसरे चरण नामक घोषणापत्र में इस विजय को देश की एकता और अखण्डता का मूल मंत्र बताते हुए कहते हैं कि आठ वर्षीय युद्ध में सद्दाम को परास्त करना वास्तव में एक चमत्कार से कम नहीं था क्योंकि उसे पूरे विश्व का खुला समर्थन प्राप्त था।

पिछले चालीस वर्षों के दौरान अमरीका ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरुद्ध जो बहुत ही महत्वपूर्ण हथकण्डा अपनाया वह आर्थिक प्रतिबंध थे।  इन आर्थिक प्रतिबंधों से वाशिग्टन का लक्ष्य ईरानी जनता को उकसाकर इस्लामी व्यवस्था का तख्ता पलटना था।  यह प्रतिबंध उस समय भी लागू थे जब ईरान के विरुद्ध आठ वर्षीय युद्ध थोपा गया था।  बाद के वर्षों में विभिन्न बहानों से इन प्रतिबंधों को बढ़ाया गया।  ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम में प्रगति के साथ ही अमरीका और उसके घटकों ने दुष्प्रचार करके इस वैज्ञानिक उपलब्धि को ख़तरनाक बताने का प्रयास किया हालांकि यह उपलब्धि अन्तर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी की देखरेख में अर्जित की गई।  बाद में परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर के बाद हालांकि यह प्रतिबंध दिखावटी रूप में हटा लिए गए किंतु व्यवहारिक रूप में बाक़ी रहे।  इस्लामी गणतंत्र ईरान इन अत्याचारपूर्ण प्रतिबंधों का सामना करते हुए अपने उसूलों पर आज भी अडिग है।  आर्थिक प्रतिबंधों ने हालांकि ईरान की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाले किंतु वरिष्ठ नेता के मार्गदर्शन से उनके प्रभावों को किसी सीमा तक कम किया जा सका है।  वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति के दूसरे चरण नामक बयान में स्पष्ट किया है कि देश की आर्थिक कठिनाइयां केवल आर्थिक प्रतिबंधों के कारण नहीं हैं।  प्रतिबंधों का कारण कड़ा प्रतिरोध और शत्रु के मुक़ाबले में शीश न झुकाना है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के विरुद्ध जो ख़तरनाक षडयंत्र रचे गए उनमे से एक, प्रचारिक युद्ध भी है।  यह युद्ध मीडिया के माध्यम से लड़ा जा रहा है।  पश्चिमी संचार माध्यम ईरान से संबन्धित वास्तविकताओं के बारे में न केवल यह कि झूठ बोलते रहते हैं बल्कि उन्होंने ईरानी जनता की सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक पहचान को लक्ष्य बनाया है।  इस बारे में क्रांति के दूसरे चरण नामक घोषणापत्र में कहा गया है कि पिछले चालीस वर्षों के दौरान शत्रु की रणनीति यह रही है कि वह अपने दुष्प्रचारों के माध्यम से ईरान की जनता ही नहीं बल्कि वहां के अधिकारियों के भीतर भी निराशा की भावना को जन्म दे।  इसके लिए उसने झूठी ख़बरें प्रसारित करना, शत्रुतापूर्ण व्याख्याएं करना, वास्तविकताओं को उल्टा दिखाना, उत्साहवर्धक ख़बरों को छिपाना, कमियों को बढा चढाकर पेश करना और इस प्रकार की बहुत से नकारात्मक विषयों को पेश करने को अपने कार्यक्रम में रखा।  पश्चिमी संचार माध्यमों का मुख्य लक्ष्य ईरान में पश्चिमी जीवन शैली को प्रचलित करना है।  पश्चिमी जीवन शैली को प्रचलित करके शत्रु, अनैतिक और अशिष्ट बातों को फैलाने के लिए अथक प्रयास कर रहा है।  इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि शत्रु के इस मनोवैज्ञानिक युद्ध से मुक़ाबले के लिए बहुत ही होशियारी से हर आयाम पर मुक़ाबला करने की आवश्यकता है।  उन्होंने कहा कि यह काम देश के युवाओं की ओर से आरंभ हो चुका है जो तेज़ी से फैल रहा है।

अमरीकी नेतृत्व में ईरान के विरुद्ध हर प्रकार के षडयंत्रों और दुष्प्रचारों के बावजूद इस्लामी गणतंत्र ईरान न केवल यह कि अपने मूल सिद्धातों से पीछे नहीं हटा बल्कि उसका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।  यही कारण है कि ईरान से मुक़ाबले की अमरीकी नीति परिवर्तित हो रही है।  इस बारे में वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ईरान को इस्लामी क्रांति के आरंभ की ही भांति आज भी वर्चस्ववादियों की नाना प्रकार की चुनौतियों का सामना है।  उन्होंने कहा कि ईरान के मज़बूत होने से यह चुनौतियां बढ रहीं हैं जैसे पश्चिमी एशिया से अमरीका के अवैध प्रभाव का कम होना, अवैध ज़ायोनी शासन का मुक़ाबला करने वाले इस्लामी प्रतिरोध का राजनैतिक एवं सैन्य समर्थन और पूरे क्षेत्र में अत्याचार ग्रस्तों का समर्थन करना आदि।  वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अब स्थिति यह हो गई है कि ईरान का मुक़ाबला करने के लिए अमरीका को बहुत बड़े गठबंधन की आवश्यकता है।  वे कहते हैं कि इस्लामी क्रांति के कारण वर्तमान समय में विश्व स्तर पर ईरान की स्थिति बहुत बढ़ी है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हमको इस बात का विश्वास है कि सच और झूठ के बीच इस संघर्ष में जीत सच की ही होगी इसमें हमें बिल्कुल भी शक नहीं करना चाहिए। बड़े वर्चस्ववादी शत्रु अर्थात लोभी अमरीका और इस्लाम के बीच युद्ध में जीत हमारी ही होगी।