Aug १३, २०१९ १६:२३ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति की सफलता की 40वीं वर्षगांठ के अवसर पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने दूसरे क़दम के अंतर्गत एक बयान जारी किया जिसमें समाज में अध्यात्म के विस्तार की आवश्यकता पर बहुत अधिक बल दिया गया।

यह क्रांति इस्लाम और धार्मिक मूल्यों को ऊपर उठाने और अध्यात्म के बोलबाले के नारे के साथ अस्तित्व में आई और स्वभाविक सी बात है कि यह क्रांति सफलता के बाद नैतिकता, अध्यात्म जैसे उच्च मानवीय गुणों को, विशेष रूप से अहमियत दे।

अध्यात्मिक व आत्मिक आस्थाएं, भौतिकता से आगे की चीज़ हैं और इसके कारण मनुष्य स्थाई व वास्तविक शांति व प्रफुल्लता का आभास करता है क्यों कि यह शांति और प्रफुल्लता क्षणिक ख़ुशी से बहुत बेहतर होती है। नैतिकता, अध्यात्म का महत्वपूर्ण भाग और उसका परिणाम है और इसको पसंदीदा गुणों का संग्रह कहा जाता है जो स्थाई रूप से मनुष्य के अस्तित्व में रखा गया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई एक साधारण से बयान में नैतिकता और अध्यात्म को इस प्रकार बयान करते हैं कि अध्यात्म का अर्थ ख़ुद में और समाज में निष्ठा, बलिदान, भरोसे और ईमान जैसे अध्यात्मिक मूल्यों को बढाना है। नैतिकता का अर्थ, भलाई चाहना, क्षम याचना, दीन दुखियों की मदद, सच बोलना, साहस, विनम्रता, आत्म विश्वास और अन्य भली बातों का ध्यान रखना है।

ईश्वरीय धर्मों विशेषकर इस्लाम धर्म ने हमेशा से ही सही मार्ग पर नैतिकता और अध्यात्म की ओर लोगों को आमंत्रित किया है। यह धर्म लोगों को शिखर पर पहुंचाने के प्रयास में रहा है। यही कारण है कि एक सच्चे मुसलमान को चाहिए कि वह अध्यात्मिक व नैतिक गुणों से सुसज्जित होकर आगे की ओर क़दम बढ़ाए और इस्लामी गणतंत्र ईरान, इस प्रकार के अध्यात्मिक माहौल को पैदा करने और इस उच्च मार्ग पर क़दम बढ़ाने के लिए भूमि प्रशस्त करने को अपना दायित्व समझता है।

अध्यात्म और नैतिकता, मनुष्य के जीवन को आत्मा और नई जान प्रदान करता है और दुनिया के झमलों और नैतिक पतन के बीच उसकी रक्षा करता है।  जो व्यक्ति स्वयं को सृष्टिकर्ता से निकट करता है और दूसरे संसार को हमेशा रहने का स्थान समझता है, वह इस दुनिया में यह प्रयास करता है कि भला और अच्छा इंसान बने और स्वर्ग प्राप्ति के उद्देश्य से ईश्वर की प्रसन्नता हासिल करे और इसी प्रयास में उसके दिन रात गुज़रते रहते हैं।

जैसा कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि नैतिकता और अध्यात्म, समस्त व्यक्तिगत व समाजिक तथा समाज की आवश्यकता की सारी गतिविधियों को गति प्रदान करने वाले होते हैं। नैतिकता और अध्यात्म के होने से जीवन का माहौल, भौतिक चीज़ों की कमी के बावजूद स्वर्ग बन जाता है और यदि अध्यात्म और नैतिकता न हो और भौतिक चीज़ों से संपन्न हो तब भी मनुष्य का महौल नरक बन जाता है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता दूसरे क़दम के अंतर्गत जारी बयान में कहते हैं कि समाज में नैतिक अंतरात्मा और अध्यात्मिक चेतना, जितना अधिक बढ़ेगी उतना समाज में अधिक विभूति आएगी। इस्लामी क्रांति ने उस समय में अध्यात्मवाद, नैतिकता और ईश्वर की यह चान का ध्वज फहराया कि पश्चिमी जगत इस अध्यात्मिक माहौल से दूर था।

 

हर चीज़ पर भौतिक नज़र, दुनिया की सुन्दरता पर ध्यान, उपयोक्तावाद, अवैध यौन संबंध में व्यापक प्रचलन, परिवार की पवित्र ईकाइ के आधारों का डांवाडोल होना,विभिन्न प्रकार के नशों और शराब की लत, अपराध तथा हिंसा में उल्लेखनीय वृद्धि, पीड़ित राष्ट्र के स्रोतों की लूटपाट, युद्ध और जनसंहार, यह सब के सब पश्चिम के नैतिक और अध्यात्मिक पतन के चिन्ह हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई क्रांति के दूसरे क़दम के अंतर्गत अध्यात्म के विस्तार को महा जनक्रांति की महत्वपूर्ण उपब्लधि क़रार दिया और लिखते हैं कि इस्लामी क्रांति ने नैतिकता और अध्यात्म को आम लोगों में बहुत तेज़ी से बढ़ाया दिया। यह ऐसी स्थिति में था कि इस्लामी क्रांति से पहले, पहली शासन व्यवस्था ने समाज में भ्रष्टाचार फैलाने, धर्म, अध्यात्म और नैतिकता को अलग थलग करने में किसी भी प्रकार के प्रयास से संकोच नहीं किया और इस विषय ने क्रांति और उसके नेता इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के जनता की आत्मा और उनके अध्यात्म को बदलने के चमत्कार को और अधिक प्रदर्शित कर दिया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में कहते हैं कि  यदपि पहलवी शासन काल में भ्रष्टाचार और अनैतिकता फैलाने के लिए बहुत अधिक प्रचार किया जाता था और इससे जनता के ईमान को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचा और जनता का मध्यवर्ग विशेषकर युवाओं का जीवन पश्चिम के नैतिक पतन से द्रष्ति हो गया था किन्तु इस्लामी गणतंत्र ईरान में धार्मिक और नैतिक बर्ताव से विशेषकर युवा वर्ग आकर्षित किया और माहौल धर्म और नैतिकता के हित में हो लिया।

अलबत्ता इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, इस संबंध में इस्लामी गणतंत्र ईरान  के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की भूमिका से निश्चेत नहीं हैं और अपने बयान में कहते हैं कि अध्यात्म और नैतिकता फैलाने की बेहतरनी प्रक्रिया, संघर्ष के दौरान और इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद इमाम ख़ुमैनी के बर्ताव और व्यवहार में हर चीज़ से अधिक प्रचलित थी। ऐसी अध्यात्मिक व परिज्ञानी हस्ती के हाथ में ऐसे देश की लगाम थी जिसकी जनता की आस्था बहुत गहरी और मज़बूत थी।

यह बहुत ही महत्वपूर्ण बिन्दु है कि सरकारें ज़बरदस्ती लोगों को धर्म और अध्यात्म तथा भौतिकवाद की ओर नहीं ले जा सकतीं। वे जो कर सकती हैं वह विशेष आस्था और संस्कृति की ओर लोगों के रुझान के लिए भूमि प्रशस्त करना है। इसीलिए पश्चिम में लोग ईश्वर के इन्कार, भौतिकवाद और सीमा से बढ़कर आनंद प्राप्त करने के उत्सुक हो रहे हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान लोगों को उच्च मानवीय व ईश्वरीय लक्ष्यों तक पहुंचाने, अध्यात्म और नैतिकता के शिखर पर पहुंचाने को अपना महत्वपूर्ण दायित्व समझता है। क्रांति के दूसरे क़दम के अंतर्गत जारी होने वाले बयान में हम पढ़ते हैं कि नैतिकता और अध्यात्म, अलबत्ता आदेश और निर्देश से हासिल नहीं होता, इसीलिए सरकारें इन सबको ज़ोर ज़बरदस्ती और शक्ति के बल पर नहीं लागू कर सकतीं किन्तु पहले उन्हें स्वयं ही नैतिक व अध्यात्मिक मूल्यों से संपन्न होना चाहिए और फिर उसके बाद समाज में इसके प्रचलन की भूमि प्रशस्त करनी चाहिए।  सरकारों को चाहिए कि सामाजिक संस्थाओं को इस बारे में अवसर दें और उनकी मदद करें और नैतिकता व अध्यात्म विरोधी संस्थाओं से तार्किक व बौद्धिक रूप से लड़ें। संक्षेप में यह कि इस बात की अनुमति न दें कि नरक वाले लोग, जनता को ज़ोरज़बरदस्ती और धोखे से नरक में न ले जाएं।

पिछले 40 वर्ष के दौरान नैतिक अच्छाइयों और धार्मिक संस्कृति को फैलाने में इस्लामी गणतंत्र ईरान के काम ने ईरानी समाज पर बहुत अधिक प्रभाव डाला है। क़ुरआनी औरर इस्लामी संस्कृति के प्रचार व प्रसार के मुख्य केन्द्र के रूप में मस्जिदें व्यापक स्तर पर बनाई गयीं। लोगों को जागरूक करने और लोगों को एकत्रित करने के लिए इस्लामी क्रांति के दौरान इस पवित्र स्थल का महत्व अच्छी तरह से पता है। जैसा कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने अपने एक महत्वपूर्ण बयान में कहा कि मस्जिदें मोर्चा हैं और इन मोर्चों की रक्षा की जानी चाहिए।

इस्लामी क्रांति के बाद ईरान में मस्जिदों की संख्या तीन गुना बढ़ गयीं और मस्जिदों में एक साथ नमाज़ पढ़ने और व्यापक स्तर पर जनता की उपस्थिति में भाषण सक्रिय रूप से आयोजित होते थे। इसी प्रकार इन पवित्र स्थलों में जिन्हें हदीसों में धरती पर ईश्वर का घर कहा गया है, पवित्र क़ुरआन की तिलावत करने, दुआ पढ़ने और अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

ईरान में मस्जिदों में एक साथ नमाज़ पढ़ने के अतिरिक्त अन्य धार्मिक काम भी अंजाम दिए जाते हैं। उदाहरण स्वरूप मस्जिदों को विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक गतिविधियां अंजाम देने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। ईश्वर की उपासना करने के लिए मस्जिद में कई दिनों तक रहने को एतेकाफ़ कहा जाता है। ईरान की मस्जिदों में हर साल एतेकाफ़ का प्रबंध भी किया जाता है ताकि बंदा इस दौरान एकांत में सीधे रूप से अपने ईश्वर से अपने दिल की बात बयान कर सके। रोचक बात यह है कि एतेकाफ़ का कार्यक्रम न केवल यह कि दिन प्रतिदिन और भी भव्य ढंग से आयोजित हो रहा है बल्कि एतेकाफ़ में शामिल होने वाले सबसे अधिक युवा होते हैं।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई क्रांति के दूसरे क़दम के अंतर्गत इस संबंध में कहते हैं कि पवित्र प्रतिरक्षा के दौरान सहित विभिन्न कठिन मैदानों में युवाओं का संघर्ष, दुआ, ईश्वरीय गुणगान तथा भाईचारे और बलिदान की भावना के साथ रहा, इन युवाओं ने इस्लाम के उदय के काल की घटनाओं को जीवित और दुनिया के सामने बहुत ही बेहतरीन ढंग से पेश किया। माता पिता, पति पत्नी सभी ने अपने धार्मिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए अपने प्यारों को युद्ध के विभिन्न मोर्चों पर भेजा, अपने दिल पर पत्थर रखा और उसके बाद जब उन्होंने अपने प्यारों और लाडलों को ख़ून में लथपथ देखा तो इस कठिन क्षण में ईश्वर का आभार भी व्यक्त किया। (AK)