Aug १८, २०१९ १३:५३ Asia/Kolkata

खुन्सार, इस्फ़हान प्रांत का एक हराभरा नगर है। 

उसके पास “गुलिस्तान कूह” नामक सुन्दर व हराभरा मैदान है जिसके कारण बहुत से पर्यटक वहां जाते हैं। वसंतु ऋतु में ट्यूलिप के दुर्लभ लाल और पीले रंग के पुष्प, नाना प्रकार की जड़ी बूटियों और सुन्दर चरागाहों ने गुलिस्तान कूह मैदान की सुन्दरता में चार चांद लगा दिये हैं। फूलों से भरे इस मैदान के विभिन्न क्षेत्रों में जो सोते बहते हैं उन्होंने भी इस मैदान की सुन्दरता में वृद्धि कर दी है।

ईरान के एक सुन्दर प्रांत इस्फ़हान की यात्रा को जारी रखते हुए हम इसी प्रांत के एक प्रमुख नगर का रुख करते हैं।  जब हम इस्फ़हान प्रांत से उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ते हैं तो 160 किलोमीटर की दूरी पर ईरान के केन्द्रीय मरूस्थल के पास एक नगर स्थित है जिसे ख़ुंसार कहते हैं।  यह नगर पूरी तरह से ईरान के एक बड़े बाग़ का प्रतीक है।  इस नगर में सड़कों के किनारे पेड़ इस प्रकार से लगे हैं जिन्हें देखकर लगता है कि सड़क के ऊपर धनुषाकार का चिन्ह बन गया है।  इन पेड़ों के नीचे शीतल हवा का आनंद लिया जा सकता है।  इन सड़कों से गुज़रते हुए राहगीरों को विशेष प्रकार की शांति प्राप्त होती है।

ख़ुन्सार नगर की जलवायु बहुत ही संतुलित है यह नगर समुद्र की सतह से 2250 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।  यहां पर अख़रोट और सर्व के पेड़ हैं।  इसके अतिरिक्त कई फलों के पेड़ भी यहां पर पाए जाते हैं।  यह ऐसा नगर हैं जहां के लोग बहुत ही अतिथि प्रेमी, कलाप्रेमी और गर्मजोश होते हैं।  ख़ुन्सार नगर में कई महान हस्तियों ने जन्म लिया है जिनमें धर्मगुरू, विद्वान, वैज्ञानिक और साहित्यकार आदि सभी शामिल हैं।

ख़ुन्सार शब्द फ़ारसी के दो शब्दों से मिलकर बना है।  ख्वान और सार।  ख्वान का अर्थ होता है सोता और सार का अर्थ होता है अधिक।  इसका कारण यह है कि यहां पर पानी के बहुत से सोते पाए जाते हैं।  इन सोतों में से कुछ इतने सुन्दर एवं आकर्षक हैं जिनका उल्लेख शब्दों में करना लगभग असंभव है।  ख़ुन्सार को बाग़ों के नगर के रूप में भी जाना जाता है।  इसको यदि धरती पर स्वर्ग की संज्ञा दी जाए तो यह अनुचित नहीं होगा।  इन नगर में प्राकृतिक आकर्षण हर ओर दिखाई देता है।  इस नगर में लगभग 450 सोते मौजूद हैं।  पानी के इन सोतों के ही कारण यह क्षेत्र बहुत हराभरा है।  ख़ुंसार नगर के प्राकृतिक आकर्षणों को देखने के बाद हम इस नगर की कुछ ऐतिहासिक इमारतों के दर्शन करेंगे।

हम अपनी यात्रा का आरंभ ख़ुंसार की जामा मस्जिद से करेंगे जिसे "मस्जिदे चहार राह" कहा जाता है।  यह मस्जिद, नगर से दक्षिण पूर्व में स्थित है।  यह कम से कम साढ़े तीन सौ साल पुरानी है।  सफ़वी शासनकाल में मस्जिदे चहार राह का पुनर्निमाण करवाया गया था।  ख़ुंसार की जामा मस्जिद, लगभग तीन हज़ार वर्गमीटर में बनी हुई है।  इसमें प्लास्टर आफ पैरिस का काम बहुत ही सूक्ष्मता से किया गया है।  इसमें कोई गुंबद नहीं है।  मस्जिद के उत्तरी भाग का दरवाज़ा लकड़ी का बना हुआ है।  इस दरवाज़े पर मुनब्बतकारी या तक्षणकला का काम किया गया है।  मस्जिद की मेहराब को हस्तकला के माध्यम से बहुत अच्छे ढंग से सजाया गया है।

ख़ुंसार की जामा मस्जिद

ख़ुंसार में एतिहासिक इमारतों की कमी नहीं है।  इन्हीं इमारतों में से एक इमारत का नाम "शेख अबा अदनान" है।  यह इमारत ख़ुंसार के "पार्क सरचश्मे" में स्थित है।  इस इमारत का संबन्ध सफ़वी काल से  है।  शेख अबा अदनान अपने काल के महान तत्वदर्शी थे।  उनका संबन्ध छठी हिजरी से था।  हालांकि शेख अबा अदनान का संबन्ध छठी हिजरी से है किंतु उनके मक़बरे का निर्माण सफ़वी काल में कराया गया था।  इस मक़बरे को बहुत ही साधारण ढंग से बनाया गया है।  यह बारह कोणींय इमारत है।  ख़ुंसार के पार्के चश्मे के उत्तर में स्थित इस इमारत के अंदर 6 अन्य आत्मज्ञानियों या तत्वदर्शियों की क़ब्रे हैं।

पार्क सरचश्मे

ख़ुंसार का पार्के सरश्चमे नामक पार्क लगभग 18 हेक्टेयर में फैला हुआ है।  यह नगर के दक्षिण में स्थित है।  इस पार्क को ख़ुंसार के महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल के रूप में देखा जाता है।  पार्के सरचश्मे के भीतर बहुत से सोते हैं जिनमे से "मरज़नगूश" "शुतरख़ून" और "पीर" नामक सोते, शेख अबा अदनान के मज़ार से काफ़ी निकट हैं।  पानी के इन सोतों के कारण पार्क के भीतर सदैव ही आनंदमयी वातावरण रहता है।  तरह-तरह के पेड़ों वाले इस घने जंगल ने यहां के दृश्य को बहुत अधिक आकर्षक बना दिया है।  पार्क के भीतर लोगों के बैठने के लिए विशेष प्रकार के प्लेटफार्म बनाए गए हैं जिनपर बैठकर मनमोहक वातावरण का आनंद लिया जा सकता है।  पार्के सरचश्मे में पाए जाने वाले सोतों में से एक सोता, ख़ुंसार में कृषि के लिए प्रयोग किये जाने वाले जल की आपूर्ति करता है।  इस सोते से ग्यारह नहरें निकली हैं।  यही नहरें अलग-अलग क्षेत्रों की जलापूर्ति करती हैं।  ख़ुंसार के सरचश्मे पार्क को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

शेख अबा अदनान

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने ख़ुंसार की यात्रा की हो किंतु वहां के सरंक्षित क्षेत्र "गुलिस्तान कूह" को न देखा हो।  इस संरक्षित क्षेत्र में वैसे तो नाना प्रकार के फूल हैं किंतु यहां पर दुर्लभ जाति के टूलिप्स पाए जाते हैं।  गुलिस्तान कूह वास्तव में एक दर्शनीय स्थल है जो खुंसार के दक्षिण में स्थित है।  ख़ुंसार नगर से इसकी दूरी केवल 10 किलोमीटर है।  यह हराभरा क्षेत्र बहुत ही शीतल जलवायु का स्वामी है।  वसंत ऋतु में गुलिस्तान कूह, रंग-बिरंगे फूलों से भरा होता है।  इस ज़माने में यहां पर आपको हर ओर फूल-ही फूल दिखाई देंगे।  देखने से एसा लगता है जैसे यहां पर फूलों की चादर बिछी हुई है।  गुलिस्तान कूह में पाए जाने वाले बहुत से फूल एसे भी हैं जिनसे दवाएं बनाई जाती हैं।  दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि इन फूलों के भीतर औषधीय गुण पाए जाते हैं।  ख़ुंसार के गुलिस्तान कूह की सुन्दरता अप्रैल तथा मई में अपने चरम पर होती है।  समय की कमी के कारण हम आपको ख़ुंसार में मौजूद अन्य प्राकृतिक एवं एतिहास स्थलों के बारे में विस्तार से नहीं बता पाएंगे।

कार्यक्रम के अंत में आपको कुछ एसी चीज़ों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हे लोग खुंसार से उपहार स्वरूप ले जाते हैं।  यहां से उपहार स्वरूप ले जाने वाली चीज़ों में सर्वोपरि शहद है।  ख़ुंसार का शहद पूरे ईरान में मश्हूर है।  यहां के कुछ ड्राई फ्रूट्स भी मश्हूर हैं जैसे बादाम, अख़रोट तथा सूखे आलूबुख़ारे आदि।  ख़ुंसार का एक अन्य उपहार गज़ है जो एक प्रकार की मिठाई होती है।  यह बहुत ही स्वादिष्ट मिठाई है।

ख़ुंसार में हस्तकर्धा उद्योग का भी चलन है।  यहां पर क़ालीनों की बुनाई, कच्ची मिट्टी के बरतन बनाने और क़ुरैशिया का काम भी प्रचलित है।  ख़ुंसार के क़ालीन को न केवल ईरान में बल्कि ईरान के बाहर भी ख्याति प्राप्त है।  यहां के सबसे मश्हूर क़ालीन का नाम सारूक़ है।  सारूक़ नामक क़ालीन की बुनाई ख़ुंसार के एक गांव में बहुत पहले से की जाती है।  इस गांव का नाम है "वीस्त"।  इस क़ालीन में कृत्रिम रंगों का प्रयोग न करके प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता है।  ख़ुंसार के वीस्त गांव में ढाई सौ से भी अधिक वर्षों से क़ालीन की बुनाई का काम जारी है।  यहां पर इस गांव के अतिरिक्त भी कई स्थानों पर क़ालीनों की बुनाई होती है किंतु सारूक़ नामक क़ालीन, वीस्त से ही विशेष है।  सारूक़ क़ालीन को सन 1391 हिजरी शमसी में पंजीकृत किया जा चुका है।