Aug १८, २०१९ १५:४४ Asia/Kolkata

हमने ख़तरनाक व्यवहार के बारे में आपको बताया था।

हमने आपको यह भी बताया था कि ख़तरनाक व्यवहार के समाज और मनुष्य की सुरक्षा पर परोक्ष या अपरोक्ष नकारात्मक प्रभाव किस प्रकार पड़ता है। इस प्रकार के बर्ताव यदि मनुष्य की दिनचर्चा का भाग बन जाएं तो वह मनुष्य की जीवन शैली को असुरक्षित कर देता है। इन्हीं ख़तरनाक बर्तावों में असुरक्षित यौन व्यवहार है।

ख़तरनाक यौन संबंध, एक से अधिक पार्टनर से असुरक्षित यौन संबंध से पैदा होने वाला ख़तरा है। एड्स की बीमारी का एक मुख्य कारण असुरक्षित यौन संबंध है। असुरक्षित यौन संबंधों का अर्थ है, सेक्स के दौरान सावधानियां न बरतना और उससे जुड़ी बीमारियों के संपर्क में आ जाना। एड्स का एक बड़ा कारण एक से ज्यादा साथी से संबंध बनाना।  फिर चाहे वह महिला हो या पुरूष दोनों को ही एक से ज्यादा पार्टनर के साथ संबंध बनाने से संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा यदि किसी भी एक पार्टनर का मन नहीं हैं तो संबंध जोर-जबरदस्ती से न किया जाए। असुरक्षित यौन संबंधों के दौरान यौन संचारित रोगों के होने का खतरा बना रहता है। पुरूष या महिला में से किसी को यौन संबंधी इंफेक्शेन होने से भी संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।

एड्स का मतलब है उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण (Acquired Immune Deficiency syndrome)। एड्स HIV मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (Human immunodeficiency virus) से होता है जो इंसान के शरीर की प्राकृतिक प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर करता है। एचआईवी शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता पर आक्रमण करता है। जिसका काम शरीर को संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु से होती हैं, से बचाना होता है। एच.आई.वी. रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर हमला करता है। ये पदार्थ मानव को जीवाणु और विषाणु जनित बीमारियों से बचाते हैं और शरीर की रक्षा करते हैं। जब एच.आई.वी. द्वारा आक्रमण करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षय होने लगती है तो इस सुरक्षा कवच के बिना एड्स पीड़ित लोग भयानक बीमारियों क्षय रोग और कैंसर आदि से पीड़ित हो जाते हैं और शरीर को कई अवसरवादी संक्रमण यानि आम सर्दी जुकाम, फुफ्फुस प्रदाह इत्यादि घेर लेते हैं। जब क्षय और कर्क रोग शरीर को घेर लेते हैं तो उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।

जो व्यक्ति एचआईवी संक्रमित हो ज़रूरी नहीं है कि वह एड्स में ग्रस्त हो क्योंकि अभी उसकी बीमारी स्पष्ट नहीं हुई है किन्तु वह लंबे समय तक अपने शरीर में एड्स के वायरस रख सकता है और समाज को स्वस्थ्य और तंदुरुस्त नज़र आए और उस वायरस को दूसरों में स्थानांतरण कर दे। रोचक बात यह है कि एचआईवी पाज़िटिव वायरस में ग्रस्त 90 प्रतिशत लोगों को स्वयं के ग्रस्त होने की सूचना नहीं होती। दूसरी ओर एचआईवी वायरस का पता लगाने के बारे में होने वाली जांच की रिपोर्ट के निगेटिव आने का यह मतलब नहीं है कि वह व्यक्ति स्वस्थ्य है क्योंकि इस जांच के परिणाम आरंभ में सामान्य रूप से निगेटिव ही दिखाते हैं।

एच.आई.वी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। लंबे समय तक अर्थात 3 6 महीने या अधिक, एच.आई.वी का भी औषधिक परीक्षण से पता नहीं लग पाता। अधिकतर एड्स के मरीजों को सर्दी, जुकाम या वायरल बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने का पता नहीं लगाया जा सकता। एचआईवी वायरस का संक्रमण होने के बाद उसका शरीर में धीरे-धीरे फैलना शुरु होता है। जब वायरस का संक्रमण शरीर में अधिक हो जाता है, उस समय बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं। एड्स के लक्षण दिखने में आठ से दस साल का समय भी लग सकता है।

ऐसे व्यक्ति को, जिसके शरीर में एच.आई.वी वायरस हो पर एड्स के लक्षण प्रकट न हुए हों, एचआईवी पॉसिटिव कहा जाता है।

ऐसे व्यक्ति भी एड्स फैला सकते हैं। एड्स के कुछ प्रारम्भिक लक्षण इस प्रकार हैं, वज़न का काफी हद तक कम हो जाना, लगातार खांसी आते रहना, बार बार ज़ुकाम का होना, बुख़ार, सिरदर्द, थकान, शरीर पर निशान बनना अर्थातफंगल इन्फेक्शन के कारण, हैज़ा, भोजन से अरुचि और लसीकाओं में सूजन इत्यादि।

ध्यान रहे कि ऊपर दिए गए लक्षण अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः एड्स की निश्चित रूप से पहचान केवल और केवल, चिकित्सीय परीक्षण से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये। एच.आई.वी. की उपस्थिति का पता लगाने हेतु मुख्यतः एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोएब्जॉर्बेंट एसेस यानि एलिसा टेस्ट किया जाता है।

एड्स एक सामाजिक, चिकित्सकीय और मानसिक संकट है जो ख़तरनाक बर्ताव से पैदा होता है इसीलिए न केवल बड़े बूढ़े बल्कि बच्चे और युवा भी इस घातक रोग का शिकार हो जाता हैं। रिपोर्टों में बताया गया है कि एड्स में ग्रस्त अधिकतर रोगी युवा हैं जिनमें से 85 प्रतिशत विकासशील देशों में जीवन व्यतीत करते हैं।

बताया गया है कि एड्स के रोग में ग्रस्त 50 प्रतिशत लोगों की आयु 10 से 24 साल के बीच है और हर एक मिनट पर पांच युवा इस वायरस से संक्रमित होते हैं। एड्स की बीमारी इतनी अधिक फैल गयी है कि वर्तमान समय में यह दुनिया की चौथी हत्यारी और तीसरी दुनिया में अपंगता का पहला कारक है।

वैश्विक आंकड़ों के अनुसार 80 प्रतिशत एड्स की बीमारी यौन संबंध से, 12 प्रतिशत संक्रमिक इन्जेक्शन या रक्त मिलाप से जबकि 4 प्रतिशत संक्रमित ख़ून चढ़ाने से होती है।

बहुत सारे लोग समझते हैं कि एड्स पीड़ित व्यक्ति के साथ खाने, पीने, उठने, बैठने से हो जाता है जो कि गलत है। ये समाज में एड्स के बारे में फैली हुई भ्रांतियां हैं। सच तो यह है कि रोज़मर्रा के सामाजिक संपर्कों से एच.आई.वी. नहीं फैलता जैसे कि पीड़ित के साथ खाने-पीने से,बर्तनों की साझीदारी से,हाथ मिलाने या गले मिलने से,एक ही टॉयलेट का प्रयोग करने से, मच्छर या अन्य कीड़ों के काटने से, पशुओं के काटने से और खांसी या छींकों से।

एड्स के उपचार में एंटी रेट्रोवाईरल थेरपी दवाईयों का उपयोग किया जाता है। इन दवाइयों का मुख्य उद्देश्य एच.आई.वी. के प्रभाव को काम करना, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना और अवसरवादी रोगों को ठीक करना होता है। समय के साथ-साथ वैज्ञानिक एड्स की नई-नई दवाइयों की खोज कर रहे हैं। लेकिन सच कहा जाए तो एड्स से बचाव ही एड्स का बेहतर इलाज है।

निसंदेह स्वेच्छा से वीसीटी की जांच या सलाह द्वारा इस घातक बीमारी के संक्रमण को पहले से ही रोका जा सकता है। इन जांच पड़ताल से ख़तरे में घिरे लोग अपनी सुरक्षा के हवाले से सूचनाएं प्राप्त कर लेते हैं और इस प्रकार से बीमारियों के फैलाव को रोका जा सकता है। इस बिन्दु पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है कि एड्स से संक्रमित गर्भवती महिलाएं जब बच्चे को जन्म देती हैं तो उनका बच्चा भी संक्रमित होता है क्योंकि गर्भाशय में बच्चे को संक्रमित मां द्वारा ही आहार मिलता था।    

यहां पर अपनी देखभाल और एक स्वस्थ्य व सुरक्षित जीवन के लिए यह आवश्यक है कि अपने ख़तरनाक बर्तावों के मुक़ाबले में अपने दोस्तो, सगे संबंधियों और साथियों से साफ़ शब्दों में "न" कह दे। इस्लामी सिद्धांतों और नियमों पर अमल करे और यह जान ले कि दुनिया में एड्स जैसी ख़तर बीमारियों के फैलाव का मुख्य कारण, अनैतिक बर्ताव है। व्यायाम के साथ अध्ययन करे और अच्छे काम करे और जीवन को सुन्दर ढंग से जीने का प्रयास करे। (AK)

टैग्स